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रक्षा बंधन पर निबंध – Raksha Bandhan Essay for Students In Hindi

Essay on Raksha bandhan in Hindi, for Class 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 & 10

Raksha Bandhan Essay in Hindi - Nibandh
Raksha Bandhan Essay in Hindi – Nibandh

रक्षा बंधन की कहानी | Essay on Rakshabandhan Festival In Hindi | रक्षा बंधन का इतिहास व महत्व….

Raksha Bandhan Essay In Hindi – नमस्कार! दोस्तों ये तो सर्वविदित है कि भारत में आए दिन कोई न कोई पर्व और त्योहार राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाते हैं और जिनके पीछे एक समृद्ध संस्कृति तथा महात्म्य होता है, जो हमें प्रतिवर्ष इसे मनाने के लिए प्रेरित करता है।

रक्षा बंधन भारतीय पर्वों के क्रम का ही एक बड़ा अहम और महत्वपूर्ण पर्व है। रक्षाबंधन राष्ट्रीय स्तर पर भी सबसे ज्यादा मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष मनाया जाता है, इसलिए इसे श्रावणी भी कहा जाता है।

श्रावणी का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। देश-विदेश में रहने वाले सभी हिन्दू इसे बड़ी श्रद्धा तथा उत्साह से मनाते हैं। हिन्दू धर्म में परंपरागत रूप से इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र का पवित्र धागा बाँधकर आशीर्वाद देती हैं; जिसे राखी कहते हैं। बदले में, भाई भी अपनी बहनों को उपहार आदि देकर जीवनभर यह संबंध प्यार और संरक्षण से निभाने का प्रण लेते हैं। 

रक्षा बंधन त्यौहार के पीछे का इतिहास

भारत में रक्षाबंधन मनाने की परंपरा कितनी पुरानी है, इस संबंध में सही-सही कुछ नहीं कहा जा सकता है। हाँ युगों से मनाए जाने वाले इस त्योहार का गहरा आध्यात्मिक महत्व जरूर है और इस त्योहार से कई युगों की कहानियाँ जुड़ी हुई हैं।

भविष्य पुराण में कहा गया है कि देवासुर संग्राम में जब देवता निरंतर पराजित होने लगे, तब इंद्र ने अपने गुरु वृहस्पति से रण में विजयश्री दिलाने वाले उपाय की प्रार्थना की। इस प्रार्थना पर देवगुरु ने श्रावण पूर्णिमा के दिन आक के रेशों की राखी बनाकर, उसे रक्षा विधान संबंधी मन्त्रों से अभिमंत्रित करके इंद्र की कलाई पर रक्षा-कवच के रूप में बाँध दिया।

कथा यह भी है कि युद्ध प्रयाण के समय देवराज इंद्र की पत्नी देवी शची ने गायंत्री मंत्र का पाठ करते हुए उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बाँधा और उन्हें आश्वासन दिया कि मेरे सत् का प्रतीक यह धागा रणक्षेत्र में आपकी रक्षा करेग।जनविश्वास यह बना कि रक्षासूत्रों ने ही देवों में आत्मविश्वास जगाया और वे विजयी हुए।

इसके अलावा दक्षिण भारत के धर्म ग्रंथो में भी रक्षाबंधन से जुड़ी एक कहानी है कि भगवान विष्णु के वामन अवतार में जब राजा बलि के दानी प्रवृत्ति से खुश होकर विष्णु ने राजबली से वरदान मांगने को कहा, तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने साथ पाताल लोक में साथ रहने को कहा, तो भगवन विष्णु बलि के संग पाताल लोक रहने चले गए।

इससे लक्ष्मी देवी दुःखी और परेशान हो गई और रूप बदल कर राजा बलि के पास जा पहुंची। राजा बलि के सामने जाकर रोने लगी और जब बलि ने उसके रोने का कारण पूछा तब लक्ष्मी देवी ने अपने कोई भाई न होने की बात कही। इस तरह राजा बलि लक्ष्मी माता के भाई बनकर उनकी वह इच्छा पूरी की।

जब लक्ष्मी माता ने राजा बलि को राखी बाँधी तब राजा बलि ने अपनी बहन को उपहार मांगने को कहा। तब माता लक्ष्मी ने उपहार में अपने पति भगवान विष्णु को माँगा और पाताल लोक छोड़ कर अपने साथ जाने की बात कही।

राजा बलि वचनबद्ध थे इसलिए बहन की इच्छा पूरी की और भगवान विष्णु को लक्ष्मी के साथ जाने दिया। वह समय सावन पूर्णिमा का था तब से राखी बांधकर रक्षा बंधन मनाया जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रारंभ में राखी बाँधनेवाला स्वयं रक्षा करने में सक्षम होता था, इसलिए वह रक्षा के लिए अभयदान देता था।

पर काल ने करवट बदली और परम्परा बदल गई। सूत्र बंधाने वाले हाथों ने स्वयं अपनी रक्षा का वचन माँगा। इसकी शुरुआत तब हुई, जब द्रोपदी ने भगवान् को कृष्ण को राखी बाँधी। ऐसा कहा जाता है, कि तभी से बहनों ने भाईयों की कलाई पर राखी बाँधकर अपनी रक्षा का वचन माँगा।

रक्षाबंधन के इस पौराणिक प्रसंग के बाद में कई ऐतिहासिक वीरकथाएँ भी इसके साथ जुड़ीं। जिसमे से महारानी कर्मावती के धागे की कथा अति प्रसिद्ध है। मेवाड़ की रानी कर्मावती पर जब बहादुर शाह ने आक्रमण कर दिया तो वीरता से शत्रुओं का सामना करते हुए कर्मावती ने हिमायूं को राखी भेज कर मदद की प्रार्थना की। जिसे सहर्ष स्वीकार कर हिमायू ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुर शाह के विरुद्ध युद्ध किया तथा राज्य की रक्षा की।

वहीं इतिहास के पन्नों से एक और कहानी भी बहुत मशहूर है कि हमेशा विजयी रहने वाला एलेग्जेंडर (सिकंदर) भारतीय राजा पुरु की प्रचंडता से काफी विचलित हों गया था, इससे एलेग्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं, और युद्ध में अपने पति को खो देने के भय से भयभीत महरानी ने, एक उपाय क़िया जिससे उनके पति की प्राण रक्षा संभव हों सकी।

सिकंदर की पत्नी भारतीय सनातन परंपरा का ज्ञान रखती थीं और वो भारतीय परंपरा में दिए गए वचन के महत्व से परिचित थीं की दिए हुए वचन को निभाने हेतु एक हिंदू सम्राट प्राण भी त्याग सकता है। रक्षाबंधन के पर्व और उसकी पवित्रता से परिचित सिकंदर की पत्नी ने महाराजा पुरू को राखी भेजी तब कहीं जा कर उन्होंने सिकंदर के प्राण हरण का विचार त्याग कर, उन्हें वापस सम्मान सहित विदा किया। 

स्वातंत्रय युग में लार्ड कर्जन के काल में राखी का सफल भावनात्मक प्रयोग विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने किया था। जब लार्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन का फैसला कर ही लिया, तब श्री रविंद्र नाथ टैगोर ने बंग भंग का विरोध करते हुए रक्षाबंधन त्यौहार को बंगाल निवासियों के आपसी भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस पर्व का देश की आजादी के लिए उपयोग किया। 16 अक्टूबर 1905 को बंग भंग की नियत घोषणा के दिन रक्षाबंधन की योजना साकार हुई।

उपरोक्त कहानियों से स्पष्ट है कि रक्षा बंधन त्योहार विश्वप्रेम और विश्व शांति की स्थापना के उद्देश्य से प्राचीनकाल से मनाया जाता आ रहा है। हालांकि आधुनिक भौतिक युग में मानवीय संबंधों में दरारे आती जा रही हैं। इसलिए, इस त्योहार का वह रूप नहीं रह गया जो की पहले था। न तो भाइयों में ही त्याग की भावना रही, और न ही बहनों में प्यार का भाव। यदि हमें अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करना है तो अन्य त्योहारों की भांति इसका भी पुनद्धार करना होगा।

आज हमें आपसी भाईचारे और शांति की आवश्यकता है, इसे रक्षा बंधन पूर्ण योग दे सकता है। यदि हम इस त्योहार के प्राचीन गौरव को समझकर अपना सकें तो निश्चित ही देश में, समाज में स्नेह और प्रेम की धारा बहने लगेगी। अत: हमें आपसी प्रेम से इस पावन त्योहार को मनाना चाहिए। हमारा विश्वास हैं कि कच्चे धागे से पक्के रिश्ते बनते हैं। 

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Babita Singh
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