मुहर्रम पर निबंध | Essay on Muharram Festival In Hindi | मुहर्रम मनाएं जाने का कारण, कहानी, महत्व..

Muharram निबंध : Muharram Essay in Hindi – Essay on Muharram in Hindi, for Class 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 &10
Essay on Muharram In Hindi – दोस्तों ये तो सर्वविदित है कि भारत देश में कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं। प्राय: इन सबके अपने कुछ पारंपरिक, ऐतिहासिक और धार्मिक त्योहार भी है, जिससे यहाँ वर्षभर किसी न किसी धर्म का कोई न कोई त्यौहार राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया ही जाता रहता है। और जिनके पीछे एक समृद्ध संस्कृति तथा महात्म होता है।
भारतीय पर्वों के इसी क्रम का एक बड़ा अहम और महत्वपूर्ण पर्व मुहर्रम है, जिसे इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं। रमजान के बाद ‘मुहर्रम’ इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे पवित्र महिना होता है। मुहर्रम के महीने को गम का महीना या मातम का महिना भी कहा जाता है। आइए जानते हैं कि मुस्लिम समुदाय में इस दिन का क्या महत्व है और इसे गम का महीने के तौर पर क्यों मनाया जाता है।
दरअसल, मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। इसे अल-हिजरा भी कहा जाता है। जिस तरह से सनातन धर्म का विक्रम संवत है, उसी तरह इस्लाम के कैलेंडर को हिजरी संभवत कहा जाता है। इसका पहला माह माहे मोहर्रम है और आखिरी माह है जिलहिज्जा। मोहर्रम का 10 वां दिन सबसे महत्वपूर्ण समय आशूरा का है। इन दिन को इस्लामिक कैलेंडर में बेहद अहम माना गया है क्योंकि इसी दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी।
मान्यताओं के मुताबिक, मुहर्रम के महीने में 10वें दिन ही इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला में अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी।। इसलिए मुहर्रम महीने के 10वें दिन मुहर्रम को मनाया जाता है। हालांकि हर साल मोहर्रम की तारीखें बदल जाती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस्लाम सौर-आधारित ग्रेगोरियन कैलेंडर के विपरीत एक चंद्र कैलेंडर का अनुसरण करता है।
मुहर्रम/आशूरा को कैसे मनाते हैं?
मुहर्रम और आशूरा सभी मुसलमानों द्वारा अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता हैं। शिया मुस्लिम के रूप में, यह एक शोक की अवधि है इसलिए ये लोग पैगंबर मोहम्मद के बेटे की शहादत को याद करते हैं। और मुहर्रम की पहली रात से लेकर दसवें दिन तक काले कपड़े पहनते हुए प्रार्थनाएँ करते हैं। वहीं अशूरा पर, ये लोग नंगे पांव चलते हुए सड़क पर जुलूस में भाग लेते हैं। जबकि सुन्नी समुदाय के लोग रोजा-नमाज करके अपना दुख जाहिर करते हैं। आशूरा भारत में एक राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश है। बाकी मोहर्रम माह सभी के लिए एक विशिष्ट कार्य दिवस है।
मुहर्रम की कहानी –
बता दें कि आज से लगभग 1400 साल पहले 680 ईसवी को इराक की राजधानी बगदाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर रेगिस्तान की तपती धरती कर्बला के मैदान में पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे हजरत इमाम हुसैन समेत 72 साथियों को 3 दिन का भूखा प्यासा रख बेरहमी से शहीद कर दिया गया था। हजरत इमाम हुसैन ने अपने घरवालों व साथियों के साथ जिस तरह यजीदी फौज से लोहा लिया, वह पूरी दुनिया के लिए एक अनूठी मिसाल है।
बुराई के खिलाफ यह दुनिया की पहली जंग थी। इसमें एक तरफ उस वक्त का हुक्मरान यजीद और उसकी हजारों की संख्या में फौज- जिसमें हाथी, घोड़े, तीर और तलवार समेत जंग का सारा सा-ओ-सामान था, वहीं दूसरी तरफ निहत्थे हजरत इमाम हुसैन के 72 साथी, जिसमें 6 माह के नन्हे अली असगर व महिलाएं भी शामिल थीं।
हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान से सारी दुनिया को यह पैगाम दिया कि बुराई के आगे सिर नहीं झुकाना चाहिए। वे शहीद होकर भी जंग जीत गए और यजीद जीत कर भी हार गया। बुराई ज्यादती अन्याय सामाजिक व धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज बुलंद करने, इंसानियत को बढ़ावा देने व अपने वतन की जमीं और अपने लोगों को हर तरह की बुराई से आजाद कराने का सबक भी कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन की शहादत दे गई।
कर्बला की शहादत सीख देती है कि हमें इमाम हुसैन के बताए तरीकों और रास्तों पर चलते हुए बुराइयों से लड़ना होगा। इस्लाम के उसूलों पर चलते हुए- नमाज-रोजों की पाबंदी करते हुए जुए, बुक्ज (बैर), हसद, (ईर्ष्या), से अपने आप को दूर रखना होगा। साथ ही अपने वतन का वफादार रहकर उसके संविधान पर अमल करते हुए अपने वतन से सच्ची मोहब्बत करनी होगी।
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