Corruption In India Essay In Hindi

भ्रष्टाचार के बढ़ते कदम – भूमिका –
Corruption In India Essay In Hindi – दोस्तों ! भारत में भ्रष्टाचार के बढ़ते कदम पर गंभीरता से विचार किया जाए तो आज हर स्तर पर किसी न किसी रूप में इस राक्षस का सामना करना पड़ता है चाहे अपने बच्चों की शिक्षा से संबंधित हो, चाहे राशन खरीदना हो फिर चाहे अपने वृद्ध माता-पिता की पेंशन के लिए फंड ऑफिस के चक्कर लगाना। कुल मिलाजुला कर कहें तो यहाँ के सरकारी कार्यालय का दृश्य देख कर आम आदमी का शायद इंसानियत से ही विश्वास उठ जाएगा। इन कार्यालयों में फाइल पर वजन (रिश्वत) रखें बगैर कोई काम हो ही नहीं सकता है। जिसका प्रमुख कारण भ्रष्टाचार ही है।
भ्रष्टाचार शब्द भ्रष्ट+आचार का सन्धि है, जिसमें भ्रष्ट बुराई को इंगित करता है और आचार मनुष्य को दिन प्रतिदिन के कार्यकलाप और व्यवहार को दर्शाता है । अतः जीवन में बुरे आचरण को अपनाना ही भ्रष्टाचार है । आज यह शब्द ‘रिश्वतखोरी’ ‘घूसखोरी’ के अर्थ में ज्यादा प्रयुक्त होता है, जिससे आप सभी परिचित हैं।
शायद आपने यह अनुभव भी किया होगा कि शिक्षक कॉलेजों में पढ़ाने में उतनी रुचि नहीं लेते जितनी ट्यूशन की दुकानों को चलाने में लेते हैं। विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ने के लिए बाध्य करने हेतु तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। स्कूल कॉलेज में कक्षाएं नहीं लगती किंतु कोचिंग स्कूलों में सदैव भीड़ रहती है। ट्यूशन की मोटी कमाई पर कोई आयकर नहीं देते।
यही आलम सरकारी दफ्तरों का भी है। सरकारी दफ्तरों में क्लर्क के रूप में जो व्यक्ति सीट पर बैठा हुआ है वही आपका असली भाग्य विधाता होता है। यदि क्लर्क ना चाहे तो आप एड़िया रगड़ते रहिए आपकी फाइल पर फॉरवर्डिंग नोट नहीं लगेगा और भला किस अफसर की मजाल है जो क्लर्क की टिप्पणी के बगैर अपना निर्णय लिख दे। इस विषय में एक कहावत है कि प्रांत में बस दो ही शक्तिशाली व्यक्ति हैं – लेखपाल या राज्यपाल। लेखपाल ने जो लिख दिया, उसे काटने वाला तो जिलाधीश भी नहीं।
राजनीति में भी भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। नेताजी चुनाव जीतने के लिए सभी मर्यादाओं को ताक पर रख देते हैं। और जब भ्रष्टाचार प्रलोभन आदि से चुनाव जीतते हैं तो बाद में भ्रष्टाचार से कमाई करते हैं। राजनीतिक पार्टियां चुनावी खर्च के लिए उद्योगपतियों से भारी रकम चंदे के नाम पर लेती है और फिर बाद में अपने नीतिगत निर्णयों से इन बड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाती है। रक्षा सौदों में कमीशन, दलाली आम बात हो गई है। भ्रष्टाचार ने ही राजनीति का अपराधीकरण कर दिया है।
ये तो मात्र कुछ ऐसे उदाहरण थे जो सर्वविदित है। असलीयत में तो समाज में सीमा से अधिक फैल चुका भ्रष्टाचार सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ को ही तोड़ दे रहा है। पूरे मानव जाति के लिए यह एक कलंक बन गया है। ये एक ऐसा अभिशाप बन गया है जो लोगों के जीवन को खोखला करता जा रहा है। भारत में यह न सिर्फ बड़े पैमाने पर व्याप्त है बल्कि वह सुव्यवस्थित, प्रणालीबद्ध नियोजित एवं स्वैच्छिक बनकर रिश्वतखोरों एवं रिश्वत देने वाले दोनों ही पक्षों को फायदा पहुँचाने वाली व्यवस्था का रूप ग्रहण कर चुका है।
आज भारत में भ्रष्टाचार के जितने रूप व्याप्त है दुनिया के शायद ही किसी अन्य देशों में मिलता हो। अफ़सोस अगर अब भी इसे रोका नहीं गया तो यह आगामी दस वर्षो में एक सहज स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना हम सबके लिए मुश्किल कर देगा।
यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के अवसर पर देश की जनता ने यह परिकल्पना की थी कि अब हमारी अपनी सरकार होगी और हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी, किंतु यह परिकल्पना सच नहीं हुई और अब तो हालात इतने बदतर हो गए हैं कि इस भ्रष्टाचार रूपी दानव ने समाज को पूरी तरह अपने मजबूत जबडो़ में फंसा लिया है।
भ्रष्टाचार के कारण –
भ्रष्टाचार का मूल कारण है अधिक-से-अधिक धन कमाने की प्रवृत्ति। आज हमारी दृष्टि बदल गई है। हम भौतिकवादी हो गए हैं और वस्तुओं के प्रति गहरा मोह बढ़ गया है। सुविधाभोगी जीवन-पद्धति के हम अत्यधिक आदी बन गए हैं। जैसे भी संभव हो भोग विलास के उपकरण एकत्र किए जाएं। पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। अब यदि पड़ोसी के घर में महंगे उपकरण हैं तो भला मेरे यहां क्यों ना हो? बस एक अंधी दौड़ प्रारंभ हो जाती है जिसका समापन भ्रष्टाचार के कुएं में होता है।
इस चीज को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि आज हमको सब कुछ आसानी से पा लेने की आदत पड़ चुकी है। लाइन में न रहना पड़े, कुछ ले देकर काम हो जाए, कोई प्रमाण पत्र ही बनवाना हो; घर बैठे काम हो जाए, कुछ पैसे ही तो देने पड़ेंगे; ऐसी सोच से ही भ्रष्टाचार की उपज होती है। यही सोच का नतीजा है कि आज कोई भी अच्छी परियोजना लाने के लिए हमारी सरकार को इतनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। ऐसे में जरूरत है सही समय पर जागरूक होने की, जरूरत है समय रहते संभल जाने की। क्योंकि हालात ऐसे ही बने रहे तो देश को गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता है।
भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उपाय-
भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए सरकार ने कानून बनाए हैं किंतु वे अधिक प्रभावी नहीं है। कहा जाता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें ऊपर होती है। यदि किसी विभाग का मंत्री या सचिव रिश्वत लेता है तो उसका चपरासी भी भ्रष्ट होगा। अतः भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए ऊपर के पदों पर योग्य एवं ईमानदार लोगों को आसीन किया जाए। कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार लोगों को सरकार एवं समाज की ओर से सम्मानित किया जाए तथा नैतिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाए।
शिक्षकों एवं समाज के अन्य जिम्मेदार नागरिकों को विद्यार्थियों के समक्ष आदर्श उपस्थित करना चाहिए। भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का तिरस्कार एवं बहिष्कार समाज करें और मीडिया ऐसे लोगों को महिमामंडित ना करें जो भ्रष्टाचार से धन अर्जित करते हैं। राजनीति में साफ-सुथरे लोगों के आने पर ही राजनीतिक भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकेगी।
यदि ईमानदारी से लागू कर दिया जाए तो कोई कारण नहीं कि हम भ्रष्टाचार की बीमारी से छुटकारा ना पा सके। जिन राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त हैं और जहां उन्हें कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता मिली हुई है वहां तमाम भ्रष्ट लोगों के नकाब उतरे हैं। यह पढ़कर आश्चर्य होता है कि मामूली क्लर्क के यहां छापे में करोड़ों की संपत्ति प्राप्त हुई। भ्रष्टाचार कालेधन को बढ़ावा देता है, नैतिक मूल्यों का क्षरण करता है और इंसानियत को नेस्तनाबूद करता है अतः उस पर प्रभावी अंकुश लगाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
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