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लालच बुरी बला है कहानी – Lalach Buri Bala Hai Short Story In Hindi

‘लालच बुरी बला है’ कहानी (Lalach Buri Bala Hai Short Story In Hindi)

 Lalach Buri Bala Hai In Hindi - Kahani
Lalach Buri Bala Hai In Hindi – Kahani

Lalach Buri Bala Hai In Hindi – दोस्तों! जब हम प्राचीन ऋषियों-मुनियों के निवास स्थान या आश्रम की बात करते हैं तो स्वभावत: वनों को चर्चा में शामिल कर ही लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में वनों के महत्व को स्वीकार करते हुए हमारे ऋषि और मुनि वनों में आश्रम बनाकर रहते थे। असल में हमारे ऋषियों तथा मुनियों को वृक्षों और वनों के महत्व की अनुभूति थी, जिसके कारण उन्होंने उसे धर्म में सम्मिलित करके मनुष्य द्वारा उसके संरक्षण पर बल दिया।

चुंकि बच्चे छोटे होते हैं इसलिए उनको ये बातें सिद्धांतों के उपदेश देकर नहीं सिखाई जा सकतीं। इसलिए इन सिद्धांतों को आचरण में उतारने के लिए कहानियों का सहारा लिया जाता हैं। कहानियों से बच्चों को हर तरह से मार्गदर्शन मिलता है। और यहां पर उपलब्ध वनों की महत्ता को दर्शाने वाली “लालच बुरी बला” कहानी भी छोटे बच्चों और छात्रों को निश्चित रूप से प्रेरित करेंगी।

एक गांव में एक बड़ा गरीब लकड़हारा और उसकी पत्नी रहते थे, दोनों अपने मेहनत के बल से जंगल से सूखी लकड़ियां काटकर बाजार में बेंचते और उससे जो भी आमदनी होती, उसमें खुशी-खुशी अपना जीवन यापन कर रहे थे। चूंकि वे गरीब थे और जीवन यापन का दूसरा कोई साधन भी नहीं था; तो अगर किसी दिन बिक्री नहीं होती तो उन्हें खाली पेट ही सोना पड़ता था।

एक दिन लकड़हारा जब बाजार में लकड़ियां बेच रहा था, तभी भाग्यवश वहां के एक धनी जमींदार ने उसे देखा और कहा-

सुनों! आज से तुम रोज मेरे घर लकड़ियां लेकर आना, मैं रोज तुम्हें उसकी कीमत भी दे दूंगा।

लकड़हारे खुश होकर बोला- जी बिल्कुल जमींदार जी।

कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा, लकड़हारा और उसकी पत्नी रोज जंगल से सूखी लकड़ियां लेकर आते और जमींदार के घर दे आते और जमींदार भी उन्हें अच्छे खासे पैसे भी देने लगा।

परन्तु लकड़हारे की पत्नी को इतने पैसे से ख़ुशी नहीं मिल रही थी और उसके  के मन में लालच आने लगा। एक दिन उसने लकड़हारे से कहा-

अजी! सुनते हो,,,हम कब तक ऐसे ही इन सूखी लकड़ियों को इकट्ठा करके बेंचते रहेंगे? रोज जंगल में यहां-वहां भटकना पड़ता है।

लकड़हारे ने कहा- मैं लकड़हारा हूं और यही तो मेरा काम है, और पेट भरने के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, जब तक मेहनत नहीं करेंगे, शरीर से पसीना नहीं बहाएंगे, तब तक हमें फल कैसे मिलेगा।

लकड़हारे की पत्नी ने कहा- वो सब मैं नहीं जानती। मैं अब इस जंगल में और नहीं भटक सकती। यहां बहुत सारे वृक्ष हैं। आप रोज एक वृक्ष को काट ले आना। यहां इतनी वृक्ष है कि किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा।

लकड़हारा मना करता रहा लेकिन उसकी पत्नी ने उसकी एक ना सुनी, मजबूरन उसे उसकी पत्नी की बात माननी पड़ी।

अगले दिन लकड़हारा और उसकी पत्नी कुल्हाड़ी लेकर जंगल गए, वहां एक बहुत ही विशाल और पुराना वृक्ष था। लकड़हारे की पत्नी ने कहा- चलो इस वृक्ष को काटते हैं, यह बहुत ही पुराना और विशाल वृक्ष है, हमें दो-तीन दिन तक जंगल आने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

लकड़हारा मायूस चेहरा लेकर वृक्ष के पास गया, जैसे ही वह कुल्हाड़ी से वृक्ष काटने वाला था, वृक्ष के अंदर से आवाज आई- रुक जाओ!

लकड़हारा बोला- हे महाजन! आप कौन हैं,  और हमें दिखाई क्यों नहीं दे रहे।

वृक्ष से आवाज आई- मैं इस जंगल का देवता हूं। लकड़हारा और उसकी पत्नी ने झुककर प्रणाम किया। जंगल देवता ने कहा- यह तुम क्या कर रहे हो? वृक्षों से और इस जंगल से तुम्हें बहुत लाभ मिलता है, तुम्हें ही नहीं अपितु अन्य जीव-जंतु, पंछी, सबको लाभ मिलता है, फिर तुम इन्हें क्यों काटना चाहते हो? यदि एक-एक करके तुमने सारे वृक्ष काट दिए तो जीवों का आवास नष्ट हो जाएगा, यह जंगल धीरे-धीरे मरुस्थल में बदल जाएगा। वृक्षों से तुम्हें फल, फूल, शुद्ध हवा, औषधियां मिलती हैं, फिर भी तुम इन्हें काटने आए हो!

लकड़हारे और उसकी पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा- जंगल के देवता हमें क्षमा कर दीजिए, हम लालची बन गए थे और यह भूल गए थे कि इस जंगल से हमें इतने लाभ मिलते हैं। हम मूर्ख हैं जो इस जंगल को उजाड़ने चले थे, हम अपराधी हैं, हमें क्षमा कर दीजिए। जंगल के देवता ने कहा! ठीक है- मैं तुम दोनों को क्षमा करता हूं लेकिन याद रखना, कभी किसी को नुकसान पहुंचा कर तुम भी सुखी नहीं रह सकते। चाहे वह वृक्ष हो, मनुष्य हो या कोई जीव जंतु।

लकड़हारे और उसकी पत्नी ने जंगल के देवता को प्रणाम किया और वहां से सूखी लकड़ियां लेकर वापस आ गए। और वे दोनों पुनः सूखी लकड़ियां बेचकर अपना जीवन यापन करने लगे।

शिक्षा- लालच में आकर अपने फायदे के लिए कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए, इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारा ही नुकसान होता है।

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Babita Singh
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