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स्वामी विवेकानंद पर कविता – Swami Vivekananda Poem in Hindi

Poems on Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद जी के भाषण पर दिल छू लेने वाली कविता

Swami Vivekananda Poem in Hindi - Kavita
Swami Vivekananda Poem in Hindi

दोस्तों ! विवेकानंद जी का इस धराधाम पर बसेरा बहुत थोड़े दिनों का रहा, लेकिन अपने जीवन के संक्षिप्त विस्तार में उनकी उपलब्धियां अत्यधिक थीं। आज स्वामी विवेकानंद के जीवन की कई प्रेरक घटनाओं का वर्णन उनके जीवन पर लिखी गई लगभग हर भाषा की पुस्तकों में मिलती है, जो लोगों को सीधे प्रेरित करती है। और उनमें से कुछ को हमने कविता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हमें विश्‍वास है कि स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित ये प्रेरक कविताएँ आपके द्वारा अवश्य सराही जायेंगी।

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर प्रेरणादायक कविता

भारत का यश फैलाने जग में,
ऐसा पूत सपूत हुआ ।
12 जनवरी 1863 में,
पैदा एक अवधूत हुआ।

विश्वनाथ दत्ता थे पिता ,
और भुनेश्वरी थी महतारी।
कोलकाता थी जन्मस्थली,
हर्ष हुआ जन-जन भारी ।।

चंचल बालक नाम नरेंद्र,
हमजोली सरताज थे।
कुश्ती लाठी मुक्केबाजी,
हर दिल के हमराज थे।।

साहित्य कला गणित विज्ञान,
अभिनय में प्रवीण हुए।
इतिहास दर्शन अंग्रेजी में,
वो ज्ञानी और गंभीर हुए ।।

मानव से महामानव बनता,
हर बाधा जो सहता है।
अग्नि में तप कर सोने का,
कुंदन सा रूप संवरता है।।

उसी तरह नर इंद्र में,
औचक विपदा आती है।
साया सिर से उठा पिता का
माता भी स्वर्ग सिधारती है।।

इस दुख से दिल उद्विग्न हो,
मन ईश्वर में लग जाता है।
गुरु रामकृष्ण सा पा करके,
अध्यात्म से जुड़ जाता है।।

मानस पुत्र बन कर उनका,
तब नाम विवेकानंद हुआ।
धर्म कर्म का मर्म जगा,
जन सेवा सचिदानंद हुआ।।

अमेरिका के शिकागो में ,
भारत परचम लहरा दिया।
शुन्य से ब्रह्मांड बना,
वेदों का सार बता दिया।।

क्या है हिंदू क्या है हिंदी ,
समझे सब नर नारी है ।
वसुधा को परिवार समझते,
यही संस्कृति हमारी है।।

कवि : सुरेश कुमार जांगिड़

 

वसुधा जिनके उज्जवल चरणों से ,
प्रसन्न हुई और धन्य हुई।

ज्योतिपुंज सा प्रकट हुआ जो,
पुलकित जननी अन्य हुई।

कर्मों से आनंदित जिनके,
अखिल विश्व के संत हुए।

ऐसे थे वह पुण्यात्मा,
नाम विवेकानंद हुए।

क्यों नहीं उनके पद चिन्हों पर,
हम अपनी पग डालें।

क्यों भटक रहे दुनिया में,
फिर न शिकागो कर डालें।

राह दिखाई जग को जिसने,
क्यों दुविधा में पडा रहे।

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शाश्वत है सनातन है जो,
क्यों न सत्य पर अड़ा रहे।

स्वविवेक से आनंदित करके,
धन्य हुए हम धन्य हुए।

भारत की माटी से जन्मे,
सार्थक विवेकानंद हुए।

कवि: प्रफुल्ल चंद्र मठपाल

 

सो गया वह चिर निद्रा में
जिसने देखा था सपना,
क्या होगा भारत विश्व गुरु?
क्या होगा उसका काया?

त्याग तपस्या संयम का
अब परिभाषा देगा कौन?
चला गया वह चिर निद्रा में,
जो युवा का प्ररेता था।

उठो जागो लक्ष्मी प्राप्ति तक
मत रुको,
जीवन के संघर्षों पर आधे रास्ते में
रुको मत ।

कोई मानव शिक्षा से
रंचित नहीं दिखाई दे,
इतनी खुशियां बांटो सबको
हर दिन पर्व दिखाई दे।

चलता रहा क्रम अगर
हे मनुज! तुम तर जाएगा,
स्वामी के दर्शाए पद पर
संसार प्रकाशमय में हो जाएगा।

सोचो एक बार तुम
सीने में जलन, हवाओं में गलन,
आंखों में तूफ़ान क्यों है?
हे मनुज! स्वामी महान क्यों है?

कवि: शिवम सिंह

 

आज भी परिभाषित है
उसकी ओज भरी वाणी से
निकले हुए वचन;
जिसका नाम था विवेकानंद !

उठो ,जागो , सिंहो;
यही कहा था कई सदियाँ पहले
उस महान साधू ने,
जिसका नाम था विवेकानंद !

तब तक न रुको,
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो…
कहा था उस विद्वान ने;
जिसका नाम था विवेकानंद !

सोचो तो तुम कमजोर बनोंगे;
सोचो तो तुम महान बनोंगे;
कहा था उस परम ज्ञानी ने
जिसका नाम था विवेकानंद !

दूसरो के लिए ही जीना है
अपने लिए जीना पशु जीवन है
जिस स्वामी ने हमें कहा था,
उसका नाम था विवेकानंद !

जिसने हमें समझाया था की
ईश्वर हमारे भीतर ही है,
और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है
उसका नाम था विवेकानंद !

आओ मित्रो , हम एक हो;
और अपनी दुर्बलता से दूर हो,
हम सब मिलकर;
एक नए समाज ,
एक नए भारत का निर्माण करे !

यही हमारा सच्चा नमन होंगा;
भारत के उस महान संत को;
जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद !!!

कवि: विजय कुमार

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Babita Singh
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