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एकता में शक्ति पर दो प्रेरक कहानियाँ – Ekta me Shakti Short Story in Hindi

एकता में शक्ति पर दो प्रेरक कहानियाँ – Ekta me Shakti Short Story in Hindi

Ekta me Shakti Short Story in Hindi - Kahani
Ekta me Shakti Short Story in Hindi – Kahani

Ekta me Shakti Short Story in Hindi – कहते हैं कि बंद मुट्ठी लाख की और खुल जाए तो खाक की…कहने का मतलब यह है कि एकता में ही शक्ति है…यहां प्रस्तुत कहानी जो है तो बड़ी पुरानी। लेकिन विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से कक्षा 2, 3 और 4 के बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है। तो चलिए जानतें हैं एकता में शक्ति है कहानी, जो निश्चित रूप से छोटे बच्चों और छात्रों को प्रेरित करेगी।

किसान और उसके बेटे…

एक बुढ़ा किसान था। वह अपने चार बेटों के रोज-रोज के लड़ाई-झगड़ों से बहुत परेशान था । किसान ने कई बार उनको समझाया पर वे बिना आदर किए बात को टाल गए। किसान और बूढ़ा हो गया लेकिन उसके चारों बेटे अभी भी वैसे के वैसे रहे। किसान अपने बेटे को लेकर और चिंतित रहने लगा। क्योंकि उसके बेटे हमेशा आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे।

एक दिन किसान ने अपने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा – मेरे प्यारे बच्चों तुम सबके लिए मेरे पास एक काम है। यह एक साधारण लकड़ियों का गट्ठर है। मैं चाहता हूं कि तुम इस गट्ठर को दो हिस्सों में तोड़ दो। सबको ऐसा करने का एक एक मौका मिलेगा।

बेटे ने कहा सच में पिताजी यह तो बहुत ही आसान है। तो पहले सबसे बड़े बेटे ने लकड़ियों के गट्ठर को तोड़ने की कोशिश की। लेकिन लकड़िया ना टूटने की वजह से वह हैरान रह गया। उसने बहुत जोर लगाया और सांस लेने भी रुक गया पर गट्ठर टूटा नहीं। अंत में उसने हार मान ली।

फिर दूसरे भाई ने भी कोशिश की पर वह भी असफल हुआ। गुस्से में आकर उसने तो लकड़ियों को नीचे ही फेंक दिया। बाकी के बचे दो भाइयों ने भी लकड़ियों को पूरा दम लगा कर तोड़ने की कोशिश की। पर वह भी सफल नहीं हुए। सब लोगों ने हार मान लिया और पिताजी से पूछने लगे क्या बकवास है पिताजी..! वैसे आप ने हम सब को यह करने के लिए बोला ही क्यों।

किसान ने कुछ नहीं कहा..! उसने लकड़ियों का गट्ठर लिया और उससे लकड़ियों को अलग-अलग कर दिया। फिर अपने बच्चों को एक-एक लकड़ी देकर बोला अब तुम लोग इस एक लकड़ी को तोड़ो। सभी ने बहुत आसानी से लकड़ी तोड़ दी।

तब किसान ने कहा – यदि तुम लोग मिलजुलकर रहोगे तो गट्ठर की भांति तुम्हें कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकेगा। अलग-अलग रहोगे तो इन लकड़ियों की तरह टूट जाओगे। ये बात बेटों की समझ में आ गई और वे आपस में मिलजुल कर शांति से रहने लगे। वे समझ गए कि एकता में ही बल है।

जैसे अंगूर के गुच्छे। आपने फ्रूट की दुकान पर अक्सर यह देखा होगा कि दुकानदार अंगूर के गुच्छे को लाल पन्नियों में सजाकर रखते हैं और उनकी की कीमत भी ज्यादा होती है। आपका ध्यान इस बात पर भी जाता होगा कि उन्हीं गुच्छों में से कुछ अंगूर छिटक कर गिर जाते हैं और गिरे हुए अंगूर की कीमत कम हो जाती है, बनिस्बत गुच्छे वाले अंगूर से।

यही हाल हमारे परिवार का भी है, जब तक हम अपने परिवार के साथ जुड़े हुए हैं तब तक हर किसी का अपना अपना महत्व होता है लेकिन कोई गर उस परिवार से अलग होना चाहता है तो उसका महत्व भी कम हो जाता है और उसकी हालत भी छिटके हुए अंगूर जैसी हो जाती है।

आखिर जुड़ेगा India तभी तो बढेगा India…

इसी प्रकार भारत अनेक विविधताओं का देश है। यहाँ के लोग अनेक धर्मों, प्रजातीय, भाषाई, सांस्कृतिक आदि समूहों में बंटे हुए। इसलिए देश को जोड़ने  के लिए हमारा और आपका यानि सबका आपस में जुड़ना बेहद जरुरी है। आखिर जुड़ेगा इंडिया तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया…यह बात विनोवा भावे जी बहुत अच्छी तरह समझते थे। यह कहानी विनोवा भावे के जीवन का ही एक वाकया है।

एक दिन विनोवा भावे जी के पास collage के कुछ students आये। विनोवा जी ने उन्हें कागज के टुकड़े देते हुए कहा – आप लोगों को इन कागज के टुकडो से भारत का नक्शा बनाना है। विद्यार्थी बहुत देर तक सिर खपाने के बाद भी उन टुकड़ो को जोड़कर नक्शा नहीं बना पाये। पास ही एक नौजवान युवक बैठा यह सब देख रहा था।

कुछ साहस करके उसने विनोवा जी से कहा – “आप यदि आज्ञा दें तो मैं इन टुकड़ो को जोड़ दूं।”

विनोवा जी की आज्ञा पाकर कुछ ही देर में उस युवक ने टुकडो को जोड़कर नक्शा बना दिया।

विनोवा जी ने उस युवक से पूछा –   “तुमने इतनी जल्दी इन टुकड़ों को कैसे जोड़ दिया?” 

युवक ने कहा – “इन टुकड़ो में एक तरफ भारत का नक्शा है तथा दूसरी तरफ आदमी का। मैंने आदमी को जोड़ा भारत अपने आप बन गया।

उस युवक की बातों और विचारों से खुश होते हुए विनोवा जी बोंले – बिलकुल सही, एकता में अपार शक्ति होती है। इसलिए यदि हमें देश को जोड़ना है तो पहले आदमी को जोड़ना पड़ेगा, आदमी जुड़ेगा तो देश अपने आप जुड़ जायेगा।

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Babita Singh
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