नहाने की सही तरीका | Tips For Bath In Hindi | Nahane Ka Sahi Tarika

Tips For Bath In Hindi – दोस्तों! प्रतिदिन स्नान करना वैदिक दिनचर्या का एक आवश्यक अंग माना गया है। स्नान करने से शरीर शुद्ध हो जाता है, रोम कूप खुल जाते हैं। शरीर का आलस्य तथा निद्रा रोग दूर होकर चित्र शांत होता है। शरीर में स्वच्छता और स्फूर्ति बनी रहती है।
रोजाना नहाने से पाचकाग्नि तीव्र होकर क्षुधा को बढ़ाती है जिससे बल, बुद्धि तथा स्वास्थ्य का संवर्द्धन होता है। स्नान करने से मन में प्रसन्नता, उपासना, ध्यान आदि में भी मन लगता है तथा स्वाध्याय के प्रति रूचि हो जाती है। स्नान करने के महर्षि चरक ने निम्न लाभ बताए हैं-
पवित्रं वृष्यमाष्यं श्रमस्देमलापहम्।
शरीर बल संधानं स्नानं ओजस्करं परम्।।
यानि स्नान करने से शरीर पवित्र होता है आयु बढ़ती है, थकावट, पसीना और मैल को दूर करता है, शारीरिक बल बढ़ाकर ओज उत्पन्न करता है।
आचार्य सुश्रुत के अनुसार- स्नान- दाह, थकावट, पसीना, खुजली और प्यास को नाश करने वाला, हृदय को प्रसन्न करने वाला, मैल नाशक तथा श्रेष्ठ इन्दियशोधक है। तंद्रा, पाप को नाश करने वाला, पौरूषवर्धक रक्त को साफ करने वाला एवं अग्नि को दिप्त करने वाला कहा गया है।
जर्मनी के प्रसिद्ध डॉक्टर लुई कुने तो केवल स्नान क्रिया से मनुष्य के सभी रोगों को दूर किया करते थे। इसलिए नहाने के फायदे को ध्यान में रखते हुए नहाने का सही तरीका पता होना बेहद जरुरी है। जो हर किसी को मालूम नहीं होता है।
लिहाजा आज के इस लेख में एक आदर्श स्नान के कुछ घटकों के बारे में बताने जा रही हूँ। इसे पढ़ने के बाद आप यह भलीभांति जान जायेंगे कि हमें स्नान करते समय किन-किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए व एक स्वस्थ परंपरा अपनाते हुए इन्हें किस प्रकार से करें ताकि हम इनका पूरा लाभ अपने जीवन में उतार सकें।
इसके साथ ही यह भी जान जायेंगें कि सही स्नान विधि के पालन का हमारे जीवन में क्या महत्व है। तथा एक आदर्श स्नान हमें किस प्रकार आयुर्वेद के प्रथम प्रयोजन (स्वास्थ्य का रक्षण) की तरफ अग्रसर कर सकती है। तो आइए जानते है नहाने का सही तरीका और उनके benefit के बारे में।
स्नान करने की सही विधि
सर्वप्रथम जल सिर पर डालना चाहिए, सिर पर जल डालने के लिए सिर नीचा करके दो-तीन लोटे जल डालना चाहिए। ऐसा करने से मस्तिष्क की गर्मी पैरों से निकल जाती है। जो लोग पहले पैर धोते हैं, उनकी गर्मी मस्तिष्क में चली जाती है। इससे मस्तिष्क में नाना प्रकार की व्याधियॉं उत्पन्न होती हैं।
सिर को भिगोकर पश्चात अन्य अंगों को भी भिगोना चाहिए। गीले खद्दर आदि मोटे वस्त्र की सहायता से शरीर को खूब रगड़ना चाहिए। पसीना आदि दुर्गंध को मिटाने के लिए साबुन लगा कर, पुनः अच्छी तरह पानी डालकर शरीर को अच्छी तरह रगड़ना चाहिए इससे रोम कूप खुल जाते हैं। साबुन के स्थान पर बेसन, हल्दी, सरसों तैल का उबटन लगाकर भी शरीर की अच्छी सफाई हो जाती है।
स्नान करने के पश्चात फिर अंगों से मैल नहीं उतारना चाहिए। बालों को भी नहीं झटकना चाहिए। तौलिए से शरीर को भलीभांति सुखाकर धुले हुए वस्त्र धारण कर लेनी चाहिए। स्नान से पूर्व जो वस्त्र त्वचा से लगे पहने हुए होते हैं, उन्हें स्नान करने के पश्चात नहीं पहनना चाहिए।
सामान्य शीतल जल से ही स्नान करना चाहिए, सामान्य शीतल जल में स्नान करना स्पूर्ति दायक है। तंत्रिका तंत्र को इससे बल की प्राप्ति होती है। रक्त संवहन तथा चयापचय क्रिया बढ़ती है। त्वचा की तान बनी रहती है। तथा वाह्य तापमान के परिवर्तनों का दुष्प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता है।
अधिक गर्म पानी से भी स्नान नहीं करना चाहिए, सिर पर गर्म पानी नहीं डालना चाहिए। इससे नेत्र ज्योति की हानि होती है। ठंडे जल से स्नान करने से रक्तपित्त रोग शांत होता है। सिर पर बिना पड़े गर्म जल से स्नान करना, बलकारक एवं बात कफ को नाश करने वाला है।
ठंडा पानी सिर पर डालकर स्नान करना चाहिए, इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है। ठंडे जल से स्नान करने से आरोग्यता एवं बल प्राप्त होता है।
स्नान निषेध- ज्वार, अतिसार, कान के रोग, अफारा, अजीर्ण तथा भोजन के बाद स्नान नहीं करना चाहिए। और अर्दित नेत्र रोग, मुख रोग तथा जुकाम में स्नान नहीं करना चाहिए।
सार्वजनिक स्थानों पर वस्त्र विहीन होकर स्नान नहीं करना चाहिए। नदी आदि में स्नान करते समय जल को हाथों अथवा पैरों द्वारा नहीं उछालना लेना चाहिए। जल के अंदर अपनी परछाई नहीं देखनी चाहिए।
शरीर मार्जन- जो व्यक्ति स्नान नहीं कर सकते हैं उन्हें जल में वस्त्र भिगोकर और हल्का निचोड़ कर उस भीगे वस्त्र से शरीर की शुद्धि कर लेनी चाहिए ऐसा करने से शरीर की दुर्गंध, भारीपन, तन्द्रा, कण्डू, मैल, श्वेत की दुर्गंध तथा भोजन के प्रति अरुचि समाप्त हो जाती है।
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धन्यवाद बबीता जी ,
आपने स्नान करने के दोनों कारण वैदिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण बताया | और स्नान करने की विधि विस्तृत तरीके से बताया |