दशहरा : Dussehra Essay in Hindi

विजयदशमी/दशहरा
हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा होता है। इस दशमी को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर यह तिथि सितम्बर से अक्टूबर के बीच आता है। समान्यत: इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।
वैसे तो दशहरा देशभर में बहुत ही धूमधाम व उत्साह के साथ मनाया जाता है लेकिन हिन्दु धर्म में यह त्योहार विशेष महत्व रखता है। भारत के अलावा दशहरा पर्व बांग्लादेश और नेपाल में भी एक समान उत्साह और शौक़ से मनाया जाता है। नेपाल में इसे दशाइन के नाम से जानते हैं। दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है।
दशहरा का त्यौहार का महत्व (Importance of Dussehra festival in Hindi)
ज्योतिर्निबंध के अनुसार अश्विन शुक्ला पक्ष दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक काल होता है। यह सब सिद्धियों का दाता है। यह दिन उत्तम होने के कारण नये कार्य का आरम्भ करने के लिए अत्यन्त शुभ माना जाता है। इस दिन क्षत्रिय अपने अस्त्र-शास्त्रों एवं वाहन की पूजा भी करते है।
महाराष्ट्र में इस अवसर पर ‘सिलंगण’ के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामवासी सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘स्वर्ण’ लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
बंगाल, ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। यह बंगालियों, ओडिआ, और आसाम के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। पूरे बंगाल में इसे पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। ओडिशा और असम मे चार दिन तक त्योहार चलता है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों में विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को बुलवा कर दुर्गा की मूर्ति तैयार करवाई जाती हैं। इसके साथ अन्य देवी द्वेवताओं की भी कई मूर्तियां बनाई जाती हैं। त्योहार के दौरान शहर में छोटे मोटे स्टाल भी मिठाईयों से भरे रहते हैं। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। अष्टमी के दिन महापूजा और बलि भी दी जाती है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
इस प्रकार देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग प्रकार से मनाया जाने वाला दशहरा भारत की विविधता में एकता का भी प्रतीक है। यह दशहरा का पर्व हमारी परम्परा, गौरव और संस्कृति का प्रत्यक्षीकरण कराता है। यह देश के उत्थान में बहुत सहायक है। यह उत्सव हमें यह शिक्षा देता है कि अन्याय, अत्याचार और दुराचार को सहन करना भी एक महापाप है। वीर – भावनाओं से युक्त दशहरा हमें राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता की प्रेरणा देता है।
दशहरे / विजयदशमी की पौराणिक कथा (Legend of Dussehra / Vijayadashami)
दशहरा अयोध्या के राजा अर्थात भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक कथानुसार अयोध्या के राजा श्री राम ने इसी दिन दुष्ट और अत्याचारी राजा रावण का वध करके संसार को यह संदेश दिया था कि बुराई पर सदा अच्छाई की ही जीत होती हैं।
अत: दशहरे से दस दिन पूर्व से ही भगवान रामचंद्र जी का सम्पूर्ण जीवन चरित्र अभिनय द्वारा लोक संगीत के साथ रामलीला के रूप में देश के अलग-अलग हिस्सों में दिखाना आरम्भ कर दिया जाता है। यह प्रायः विजयादशमी तक चलता है। और दशहरे के दिन रावण के वध के साथ इसका समापन होता है।
कुछ लोक-कथाओं एवं लोक काव्यों में दिए गए विवरण के अनुसार दशहरा का पर्व देवी माँ दुर्गा द्वारा नौ रात्रि के बाद दसवे दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर का वध करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार अत्याचारी राक्षस महिषासुर का अंत करने के लिए देवी पार्वती ने भगवती दुर्गा का रूप लिया था और जो सभी देवताओं की शक्तियों से सज्ज थीं। देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच लगातार 9 दिनों तक यह युद्ध होता रहा और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया ।
अत: इसी को स्मरण करते हुए अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ रातों तक लोग देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करते हुए पारंपरिक संगीत पर गरबा नृत्य करते हैं। गुजरात का गरबा देखने के लिए बहुत दूर – दूर से लोग आते है।
पश्चिम बंगाल में इस त्योहार को ‘दुर्गा पूजा’ कहा जाता है। बंगाल में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ दस दिनों के लिए कोलकाता सहित कई शहर एक कला दीर्घा में तब्दील हो जाते हैं, जिसमें विस्तृत रूप से सुसज्जित विभिन्न पंडाल होते हैं, और कई नृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होती हैं । त्योहार के अंतिम दिन देवी दुर्गा की मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है।
इस त्यौहार को मनाने के पीछे सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में फसल उगाकर अनाज रूपी सम्पति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता को वह भगवान की कृपा मानता है और उसे प्रकट करने के लिए दशहरा पूजन करता है। इस दिन महिलाएं सोने जैसी पीली-पीली जौ की नवीन कपोलों को अपने – अपने कानों में खोसे हुए गाते – बजाते गांव की सीमाएं लाँघकर दुसरे गांव वालों को देने के लिए निकलती है। बहने अपने भाइयों के कानों में नौरते रखकर उपहार पाती है।
स्पष्ट है कि ये त्यौहार विभिन्न रूपों में देशभर में मनाया जाता है। फिर भी मैं यही कहना चाहूँगी कि दशहरा अथवा विजयदशमी वास्तव में बुराई पर भलाई की विजय, न्याय की अन्याय पर विजय और सत्य पर झूठ की विजय की याद दिलाता है। यह त्योहार हमें अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाता है। इस सुन्दर त्योहार से जुड़े सभी प्रसंग हमें सिखाते है कि दुराचार का नहीं, बल्कि सदा सदाचार का अनुकरण करना चाहिए। दुराचार अधिक समय तक नहीं टिकता, लेकिन सदाचार हमेशा जीवंत रहता है।
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