शिक्षक दिवस पर भाषण – Teacher’s Day Speech In Hindi

Teacher’s Day Speech In Hindi – नमस्कार! सबसे पहले यहाँ उपस्थित समस्त आदरणीय गुरुजनों को हम शिष्यों के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होने के लिए हृदय तल की गहराइयों से आभार एवं धन्यवाद, मैं नतमस्तक हूँ, अभीभूत हूँ आपके स्नेह, प्यार और आशीर्वाद से, आशा करता हूँ कि आपका स्नेह और आशीर्वाद आगे भी मुझे इसी प्रकार मिलता रहेगा।
जैसा की आप सब जानतें हैं कि आज हम लोग यहाँ पर अपने गुरुजनों की गरिमा को सम्मानित करने के लिए एकत्रित हुए है। यूँ तो शिक्षक का एक दिन नहीं होता लेकिन जिनके होने से यह दिन प्रासंगिक बना उन गुरुप्रवर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को सादर नमन।
ये तो सर्वविदित है कि 1962 से हर साल सितंबर माह की 5 तारीख़ को हम लोग शिक्षक दिवस के रूप में बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते आ रहें हैं। वास्तव में यह दिन शिक्षक एवं महान दार्शनिक सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्म दिवस भी है। उन्होंने ने ही सर्वप्रथम अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
डा. साहब भारत के राष्ट्रपति भी रहे थे। इस दौरान उन्होंने अपनी योग्यता के बूते एक अध्यापक से लेकर देश के सर्वोच्च पद को सुशोभित किया। वे एक ऊँचे दर्जे के इंसान थे। अध्ययन – अध्यापन से उन्हें गहरा लगाव था। शीर्ष पद पर पहुँचने पर भी ये अपने आप को अध्यापक ही मानते थे।
उन्होंने शिक्षक वर्ग का हमेशा मान बढाया। ये हमेशा से चाहते थे कि गुरु और शिष्य में सदैव मधुर रिश्ता हो, शिक्षक का समाज में गौरवपूर्ण स्थान हो क्योंकि शिक्षक ही देश के भावी कर्णधारों का निर्माता होता है। इसीलिए हर साल इनके जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर हम सब डा. साहब के शिक्षा के क्षेत्र में किये गए अभूतपूर्व योगदान के लिए याद कर सच्ची श्रद्धांजलि देते है। इस दिन सच्ची मानवता की भावना विकसित करने वाले सभी शिक्षकों का श्रद्धापूर्वक शीश झुकाकर सम्मान करते हैं।
प्राय: इस दिन गुरु के आदर और सम्मान में एक शुभ मंत्र का जाप किया जाता है “गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु: साक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्रीगुरुवे नम:”, अर्थात गुरु ब्रह्मा हैं, जो सृष्टि के स्वामी हैं, जिन्हें जनक भी कहा जाता है, गुरुर्विष्णुः का अर्थ है गुरु विष्णु हैं (विष्णु भगवान हैं जिन्हें आयोजक कहा जाता है), गुरुर्देवो महेश्वर: का अर्थ है गुरु ही महेश्वर (शिव या विध्वंसक) हैं।, गुरु: साक्षात् परब्रह्मा का अर्थ है परब्रह्म अर्थात सर्वोच्च देवता या सर्वशक्तिमान। तस्मै श्रीगुरुवे नम: का अर्थ है कि हम उस गुरु को नमन करते हैं जिसका उल्लेख पहले किया गया था।
इस प्रकार, एक वास्तविक आत्मा के रूप में, गुरु परम ब्रह्म, परम देवत्व के अवतार हैं। और इस बात का उल्लेख वेद, पुराण, उपनिषद, गीता आदि सब में किया गया हैं। साथ ही गुरु और परमात्मा के प्रति एक सी ही श्रद्धा रखने की बात कही गई है। ‘यस्य देवे परा भक्तियर्था देवे तथागुरौ’ गुरु और परमात्मा की महत्ता ऐसी ही बताई गई है।
वास्तव में शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य गुरुत्व की इस महत्ता में ही निहित है। वस्तुतः शिक्षक दिवस मनाने से अध्यापक और विद्यार्थी का रिश्ता और भी मधुर बनता है क्योंकि वह शिक्षक ही है जो खुद जलकर अपने विद्यार्थी को रौशन करता है। अध्यापक विद्यार्थियों को सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं रहता अपितु उसका मकसद समाज की हर एक बात बताना होता है। ताकि आगे चलकर विद्यार्थी ठोकर न खाए तथा भविष्य में वह इस बात को औरों को भी समझाए।
गुरु ही है जो बच्चों को अच्छे रास्ते पर जाने की सीख देते हैं। आजकल इस दुनिया में जितने भी डॉक्टर या इंजीनियर हुए है वो सब भी शिक्षक से ही शिक्षा प्राप्त कर इतने बड़े बने है। कोई भी व्यक्ति बिना किसी शिक्षक के पढाये बड़ा नहीं बन सकता। क्योंकि अगर हम चमन के फूल है तो शिक्षक बागवान है। शिक्षक ही वह इंसान है जो दुनिया को सन्मार्ग दिखता है।
कोविड-19 एक ऐसा दौर था जिससे साल 2020-21 में हर कोई गुजरा। कोई भी ऐसा नहीं था जो इससे अछूता रहा हो। शिक्षा के क्षेत्र पर भी इसका बेहद प्रतिकूल प्रभाव दिखाई दिया। इस काल में छात्रों को अपनी पढाई पूरी कर पाना एक सपना सा लग रहा था। लेकिन तभी हमारे परम पूजनीय शिक्षकों ने ऑनलाइन शिक्षा के जरिए ज्ञान देकर एक बार फिर से हमें गौरवान्वित महसूस कराया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि शिक्षक हमें गढ़ना जानते है तो समय के साथ-साथ चलना भी जानते हैं। उनको मान-सम्मान देना हम सब का प्रथम कर्तव्य है। अगर हम इस दुनिया को रौशन करने के काबिल हुए है तो वह गुरु की कृपा से ही हुए है। इसीलिए तो गुरु को साक्षात ईश्वर माना गया है। कबीर दास जी ने भी गुरु को ईश्वर से उच्च स्थान दिया है– गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लांगू पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।
अंत में बस यही कहना चाहूँगा कि गुरु और शिष्य के रिश्ते का भले ही कोई नाम न दिया गया हो पर यह सबसे विलक्षण, पवित्र और सर्वोपरि संबंध है जो जीवनपर्यन्त चलता है। अर्थात जब तक शिष्य मुक्त नहीं हो जाता, नये-नये शरीर धारण कर जीवन जीता रहता है, तब तक गुरु उसका हाथ थामकर उसे मुक्ति मार्ग पर आगे बढ़ाते रहते हैं, बशर्ते शिष्य उनका हाथ थामे रहे, उन्हें अपना जीवन गढ़ने में सहयोग दे। धन्यवाद !
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