15 August Swatantrata Diwas par Short Speech/Bhashan

वंदे मातरम ! इस सभागार में उपस्थित सभी गणमान्य अथिति, अध्यापकों और प्यारे साथियों को मेरा नमस्कार। जैसा कि आप सबको ज्ञात है, आज हम यहाँ स्वतंत्र भारत के 76वे स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्र को नमन करने के लिए एकत्रित हुए है। हमारे लिए यह परम गौरव की बात है कि हम सब विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र देश में एक है और स्वतंत्र है। ऐसे राष्ट्रीय पर्व सचमुच हमें याद दिलाते हैं कि स्वतंत्रता से बढ़कर कुछ नहीं।
एक जानिमानि उक्ति है….’गरीब होकर स्वतंत्र रहना गुलामी भरी अमीरी से अधिक अच्छा है।’ मतलब ये है कि स्वतंत्रता का मूल्य अमीरी से अधिक है। स्वतंत्रता के बिना आप कभी भी खुश नहीं रह सकते। आप में से कोई ऐसा है जो स्वतंत्र नहीं रहना चाहता ? खुद स्वतंत्र रहने के साथ आप सभी यह भी अवश्य चाहते होंगे कि आपके परिवार के सभी सदस्य, आपके परिचित और मित्र, सगे-संबंधी सभी स्वतंत्र रहें तो अच्छा है! परन्तु स्वतंत्रता की अक्षुण्णता के लिए यह आवश्यक होगा कि हम पारस्परिक भेदभाव छोड़कर सहयोग और ऐक्य में विश्वास करें, आज्ञानान्धकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण मार्ग पर अग्रसर हों।
हमारे पूर्वजों को अंग्रेजों ने क्या-क्या लालच नहीं दिये? कितना-कितना भयभीत किया? किंतु उन्होंने सदैव संघर्ष किया। स्वतंत्रता के लिए बलिदान किये। जलियांवाला बाग हमें डरा नहीं सका। बल्कि उसका बदला हमारे शेरों ने अंग्रेजों के बिल में जाकर लिया। यदि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त चाहते तो एसेंबली में बम फेंक कर आराम से भाग सकते थे; किंतु उल्टे उन्होंने नारेबाजी की। क्योंकि वे दिखाना चाहते थे कि भारतीय शेर किस प्रकार शिकार करते हैं।
आज एक गंभीर प्रश्न। क्या वह इतिहास आज मिथ्या हो गया? वह असीमित त्याग…. वह कुर्बानी…. वह प्राणोत्सर्ग इसलिए किया गया था कि आजाद हिंद के कर्णधार सदन में बैठकर भारत माता की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करें…… सदन में जूते, चप्पले और माइक उखाड़कर एक-दूसरे पर मारे जायें…. देश के कर्णधारों के बिस्तरों के नीचे नोट… सोफा सेट के नीचे नोट… कालीन के नीचे नोट….? क्या हमारे दिल में शहीदों के लिए इतना ही समान शेष बचा है? क्या उनकी कुर्बानी हमारी पेट की भूख के नीचे दब कर रह गई? क्या हम यह सिद्ध करना चाहते हैं कि वह गौरवशाली भारत जो कभी अपरिमित त्याग, बलिदान और शौर्य के लिए पहचाना जाता था, आज उसका वर्तमान भ्रष्टाचार की घिनौनी दास्तान बन गया है?
अफसोस! आज हर पायदान पर पेट की लप-लपाती हुई भूख है। अर्थ-लिप्सा है। पद का सम्मोहन है। घिनौनी षड्यंत्र हैं। कुर्सी हथियाने के लिए कोई भी किसी किस्म का हथकंडा इस्तेमाल कर सकता है। यही तो है विश्व के महानतम लोकतंत्र की तस्वीर, जिसके लिए असंख्य देशभक्तों ने कुर्बानियाँ दी थीं, सुनहरे सपने संजोयें थे तथा फिरंगियों को खदेड़ कर देश की सरहद से बाहर निकाला था। कभी तो दर्द होना चाहिए हमारे दिल में। क्या कोई भी तड़प अब शेष नहीं है? पेट की भूख हमारी अंतरात्मा पर इतनी हावी हो गई है कि हमारा रक्त स्याह पड़ गया है। भष्टाचार की कीचड़ के अन्दर धँसने पर अब किसी को घिन नहीं आती, न उसका जी घबराता है, न उल्टियाँ होती हैं। वह जितना बड़ा घोटाला करता है, उसकी छवि उतनी ही अधिक उज्जवल हो जाती है। जो जितना बड़ा अपराधी है, क्रूर है, हत्यारन है- वह दल का टिकट पाने हेतु उतना ही अधिक सुपात्र है।
जनता भी ऐसे ही नृशंस, आतंक फ़ैलाने वाले, माफिया सरगना को झुक कर प्रणाम करती है, उसके चरणस्पर्श करती है तथा उसे वोट देकर लोकतंत्र के ताबूत में कील ठोंकती है। शरीफ, सज्जन, निष्कलंक छबि वाला प्रत्याशी इतने साधन, इतना बाहुबल और इतना ‘ब्लैक मनी’ जुटा ही नहीं पाता है कि वह इस संघर्ष में डटकर मुकाबला कर सके।
अपवाद आज भी हैं, परंतु वे ईश्वर के वरदान हैं, लोकतंत्र के प्राण हैं तथा देश की किंकर्तव्यविमूढ़, लक्ष्य से विचलित जनता जनार्दन के लिए आलोक स्तंभ हैं। भारत का विशाल लोकतंत्र ऐसे ही पावन आचरण वाले महापुरुषों के कंधों पर टिका है। हम उनका अभिनंदन करते हैं।
स्वाधीनता के पावन पर्व पर मात्र झंडा फहरा देने से, लच्छेदार भाषण देने से या बच्चों को बूंदी की थैली बांट देने से हमारे कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती। गांधी जी के चित्र पर माल्यार्पण करना एक प्रवंचना है। जब हमारी कृत्य हिंसावादी हैं तो ‘महात्मा गांधी की जय’ बोलना नितांत भ्रामक है। आचरण में शांति अहिंसा का पवित्र मंत्र अपने जीवन में अंगीकार कीजिए, त्याग समर्पण और लोक कल्याण की उसी भावना का उद्रेक होने दीजिए, जन-जन में परम प्रभु का साक्षात्कार कीजिए, पतितो और दलितों को गले लगाइए, निर्बल की सहायता कीजिए तभी महात्मा गांधी का जयनाद सार्थक होगा।
व्योम में तिरंगा ध्वज लहराने वालों ने कभी अपने सीने पर गोलियां खाई थीं, आप मात्र उसे अपने ललाट पर चूम कर उसे प्रणाम तो कीजिए, उसका तिरस्कार मत कीजिए। राष्ट्रगान गाते समय यदि शरीर में रोमांच नहीं हुआ, राष्ट्र के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व होम करने की भावना नहीं जगी तो राष्ट्रगान का गायन व्यर्थ है। आनन्दातिरेक के क्षण कब होंगे जब राष्ट्रगान के सस्वर पाठ के साथ हृदय में राष्ट्रप्रेम की तरंगे उठे, हम मन ही मन भारत माता को प्रणाम करें, हमारी यह प्रणामांजलि प्रेमातिरेक से विह्लल हो, नि:स्वार्थ हो त्याग-भाव से अनुप्राणित हो जाए।
राष्ट्रप्रेम की धधकती हुई मशाल बुझनी नहीं चाहिए। क्षितिज में कोहरा अवश्य है पर हमें आशा है, शीघ्र ही मंगलमय प्रभात होगा। आइए अपने सुनहरे गणतंत्र के उत्थान के लिए हम दृढ़ संकल्प लें, हमारे श्रम-सीकरों से सिंचित होकर भारत वसुंधरा एक बार पुनः स्वर्गिक आभा से मंडित होगी। स्वतंत्र राष्ट्र के प्रहरियों से हमारा यही निवेदन है-
आलोकवाही सूर्य हम, अज्ञान का तम चीर दें।
रक्षा करें विश्वास की, प्यासे अधर को नीर दें।।
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प्रिय पाठकों ये आर्टिकल एक छोटी सी कोशिश है आपको स्वतंत्रता दिवस पर भाषण उपलब्ध कराने की। वास्तव में यह भाषण बहुत सरल और मीठी भाषा में इसलिए प्रस्तुत की गई ताकि छोटे और बड़े सभी लोगों के लिए उपयोगी सिद्ध हो। गर आपको हमारा यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसमें निरंतरता बनाये रखने में आप का सहयोग एवं उत्साहवर्धन अत्यंत आवश्यक है।
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