Guru Purnima Short/Small Poem in hindi

शीर्षक – गुरु की महिमा
प्रवेश से उसकी महक जाए जीवन का यह चंदन,
नित-नित पल-पल पहर-पहर करूं मैं वंदन।
कभी आत्मज्योति बनकर करता काया का अभिनंदन,
अंधकार से खींचकर भर दे जो चीर पुंज प्रकाश।
रुका जीवन चल पड़े भर के नई आस उल्लास,
अमृतवाणी पिलाकर अपनी बुझा दे जीवन की प्यास।
पढ़ा था जो जीवन की नीरज बंजर सा वन मुरझाई घास,
स्पर्श से अपने कर दे वह सोना पारस करके अपने पास।
वह समुंद्र है वह सत्य है वह जन्मों का है मानसरोवर,
शरण में रखिए खान गुणों की समरथ ओ गुरुवर।
चरणों की मिल जाए जो रज चित्त हर्ष मन हो घनेरा,
पुलक हृदय प्रेम विभोर चक्षु से हटे कुंप अंधेरा।
पल में जन्मों के सुलझा दे गुत्थी अनसुलझी गॉंठ,
उलझ-उलझ कर पड़ी है जो धागों रूपी सॉंठ।
निखर जाता जीवन साध के उसकी साधना,
कभी महापुरुष कभी दिव्य ज्योति रूप में होती जब आराधना।
पूजनीय है प्रथम गुरु मां, जय, जगत, जननी,
धरा गा रही है महिमा जय पावन गुरु पूर्णिमा की।
– श्री श्री मिश्रा
शीर्षक – गुरु की भक्ति
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन, हर्षित सब नर नार।
अनगढ़ माटी के घड़े, बन इस जग में आय।
संस्कार की सीख से, जीवन दिया तपाय।
प्रथम गुरू माता पिता, दूजा ये संसार।
गुरु कृपा यदि साथ तो, जीवन धन्य अपार।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन, हर्षित सब नर नार।
दूर करे मन का तमस, करे दुखों का नाश।
अध्यातम की लौ जला, उर में भरे प्रकाश।
गुरु बिन ये मन नहि सधे, गुरू ज्ञान भंडार।
मिले गुरू आशीष जब, भवसागर से पार ।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन, हर्षित सब नर नार।।
श्रद्धा अरु विश्वास से, चित्त साध लें आज।
गुरु कृपा बिन होय कब, पूरन मङ्गल काज।
गुरू बिना हम कुछ नहीं, गुरु जीवन आधार।
अन्तस में जोती जले, महिमा अपरम्पार।
गुरु चरणों की वन्दना, करते बारम्बार।
अर्पित कर श्रद्धा सुमन, हर्षित सब नर नार।।
शीर्षक – गुरु की महिमा
हे गुरु मुझे ऐसा वर दो,
जीवन मेरा जगमग कर दो।
जिस पथ पर मैंने कदम रखा,
हे सुधी शूलहीन कर दो।
मर्मज्ञ तुम्हारे कदम तले,
सकल विश्व लघु लगता है।
हे पंडित, ज्ञानी, प्रज्ञ, सुज्ञ,
आचार्य तुम्हारी प्रभुता है।
मैं तन की छाती चीर सकूं
मेरा शस्त्र ज्योतिर्मय कर दो।
हे गुरु मुझे ऐसा वर दो…
गतिशील मेरी तब नौका हो,
जब तूफानों का मौका हो।
गिरी तोड़ बढूॅं आगे पथ में,
ध्वज राज करें हरदम रथ में।
मैं नभ में स्यदंन चला सकूं,
मेरे साहस को दुगुना कर दो।
हे गुरु मुझे ऐसा वर दो…
तुम सकल जगत की शक्ति हो,
मेरे अंतस्थल की भक्ति हो।
यदि भटक जाऊं नीज पथ से मैं,
मेरे पथ को आलोकित कर दो।
हे गुरु मुझे ऐसा वर दो….
मद, लोभ, रोष, प्रतिघात, काम,
न निकट आए मेरे चित्त धाम,
तव चरण-शरण ऋषि पहुंचा है,
आचरण ऋषि सम हो वर दो।
हे गुरु मुझे ऐसा वर दो..
– ऋषि कुमार सोनी
शीर्षक – गुरु की विशेषता
“दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो,
मुझको विद्या का धन देकर
जीवन को सुख से भर दो ।”
“ना शब्दों का ज्ञान
न अर्थों की गहराई आती है
इस दीपक में तेल नहीं है
केवल इसमें बाती है
जो अज्ञान का तम है मुझमें
अपनी आभा से हर दो
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो।”
“नवल चेतना, नव प्रकाश की
मुझ को कमी अखरती है
गुरु का जब आशीष मिले तब
पांव के नीचे धरती है
दान, दया, आशीर्वचन का
मेरे शिक्षक, गुरुवर दो
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो।”
“शिक्षा रूपी दीप शिखा का
हो प्रकाश घर आंगन में
मानवता के पुष्प मनोहर
खिले रहें मेरे मन में
सदविचार की शक्ति भरी हो
वाणी को ऐसा स्वर दो
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो।”
“बिन गुरु यह जीवन है ऐसा
जैसे सृष्टि अधूरी है
जिस ने गुरु को पाया उसकी
सारी इच्छा पूरी है
द्वार तुम्हारे खड़ा हुआ हूं
ज्ञानोदय वाला वर दो
दिव्य ज्ञान की ज्योति जलाकर
मन को आलोकित कर दो।”
शीर्षक- गुरु का जीवन में महात्म्य
सभी गुरु को करो प्रणाम,
बढ़ता जाए रुके का ज्ञान।
अर्जुन को दिया गीता ज्ञान,
कान्हा केशव उनका नाम।
चंद्रगुप्त था बहुत बलवान,
उसकी नींव था गुरु का ज्ञान।
एकलव्य था शिष्य महान,
प्रतिमा से लिया उसने ज्ञान।
देवव्रत का अथाह था ज्ञान,
गुरु आशीष से बने महान।
रामकृष्ण दोनों भगवान,
फिर भी गुरु से लिया था ज्ञान।
जो गुरु का करें सम्मान,
उसका जीवन बने महान।
– स्वाति यादव
शीर्षक – जीवन में गुरु का महत्त्व
गुरु होना आसान नहीं
गुरु जैसा कोई महान नहीं,
गुरु के बिना यह जीवन है अधूरा
गुरु मिल जाए तो हो जाए हर मकसद पूरा।
गुरु ने अपना जीवन विद्या को सौंपा है
गुरु भगवान का दिया एक अमूल्य तोहफा है।
गुरु से ही सीखा है दुनिया का चक्रव्यूह
गुरु की वजह से ही पास किए है सारे इंटरव्यू।
गुरु से ही जीवन का अर्थ है
गुरु की शिक्षा बिना ये जीवन अधूरा है।
गुरु ही शिष्य का हुनर उभारते है
गुरु ही हमारी गलतियों को सुधारते है।
गुरु ही हमारे सच्चे मित्र है
गुरु बिना ये ज़िन्दगी बिना रंग के चित्र है।
गुरु के पास है सारी उलझनों का हाल
गुरु ने खिलाए है कीचड़ में भी कमल।
गुरु बिना कोई धर्म नहीं गुरु से अच्छा कोई कर्म नहीं,
गुरु से ही समाज की एकता है
गुरु सभी शिष्यों को एक ही नजर से देखता है।
गुरु है इस दुनिया के समंदर में हमारी नाव
जिन्होंने मदद की हमें पार करने में जीवन के हर पड़ाव।
यूंही अपना आशीर्वाद बनाए रखना
ताकि जीवन के किसी पड़ाव पे ना पड़े हमें भटकना।
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Very nice poem