Essay on “Bin Pani Sab Suna” for Class 10, Class 12 and B.A Students

“बिन पानी सब सून” (Hindi Essay on Bin Pani Sab Suna for Class 10, Class 11 and Class 12)
बात चार-पांच सौ वर्ष पुरानी है। मैं यह तो नहीं जानता कि उस समय के लोगों का जीवन कैसा था! जीवनयापन के आवश्यक साधन पूरी तरह उपलब्ध थी या नहीं! परंतु लगता है, उन दिनों भी, लोग आज की तरह, कम से कम, पानी की कमी से अवश्य परेशान रहे होंगे। तभी तो अकबर जैसे महान सम्राट के सेनापति और विद्वान, नीतिवान और साहित्य-प्रेमी रहीम को पुकार-पुकार कर कहना पड़ा- ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।’
आपके पास सब-कुछ है- विद्या, बुद्धि, जमीन-जायदाद – सब कुछ ! लेकिन अगर पानी नहीं तो सब बेकार, सब शुन्य! बिना पानी के खेतों में पैदावार कैसे होगी? आपके शरीर, घर-आंगन और गली-मोहल्ले की सफाई कैसे होगी? आपकी और आपके जीवन-साथी ढोर पशुओं की प्यास कैसे बुझेगी? सफाई नहीं होगी, प्यास नहीं बुझेगी, तो स्वास्थ्य कैसे ठीक रहेगा।
शायद इन्हीं कठिनाइयों से परेशान होकर आम लोग आकाश की ओर हाथ उठाकर प्रार्थना किया करते थे – ‘काले मेघा! पानी दे! पानी दे गुड़-धानी दे! वे जानते थे- पानी होगा तो ईख की पैदावार होगी। ईख होगी, तो गुड बनेगा! पानी होगा तो धान अर्थात अनाज होगा!
प्रिय बहनों और भाइयों! यह सब- कुछ हम-आप भी अच्छी तरह जानते हैं। हम यह भी जानते हैं कि हमारे पास उस समय की तुलना में आज बहुत अधिक सुविधाएं हैं। आज कवि या साहित्यकार जल-संरक्षण के लिए पुकार नहीं करते! लोग आकाश की ओर हाथ फैलाकर प्रकृति से पानी प्रदान करने के लिए प्रार्थना नहीं करते। क्या करते हैं – जगह-जगह जुलूस निकालकर, नारे लगाकर पानी की कमी के लिए सरकार को कोसते हैं। घर-घर में पानी के नल हैं। जगह-जगह बड़े-बड़े ट्यूबेल और पानी के टैंक हैं।
फिर भी फिर भी कठिनाई यह है कि हमारी आवश्यकताओं के अनुसार हमें पूरा पानी नहीं मिलता। कहते हैं – जल ही जीवन है। जब जल ही नहीं तो जीवन का क्या होगा? सचमुच बड़ी सोचनीय स्थिति है!
अब सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान कैसे हो? हमने जुलूस निकाले, नारे लगाए, कुछ नहीं हुआ। अगर कुछ हुआ हो तो वह यह है कि हमारी कारों, गाड़ियों, ट्रकों और बसों को चमकाने के लिए हजारों लीटर पानी बह गया, प्यासों का सूखा गला गीला करने को दो घूंट पानी ना मिला। हमने दांत चमकाने के लिए टूथब्रश किया, एक गिलास पानी की जगह पूरी बाल्टी लगा दी। बाल्टी भरने के लिए नल खोला, पर टीवी देखने में ऐसे मस्त हुए कि पानी में बह-बहकर गली-मोहल्ले की नालियां भर गई, लेकिन गागर और मटके खाली रह गए। लोटे या गिलास से नहाने में क्या मजा? फव्वारे की टोटी घुमा दी-सिर पर पानी की सीधी धार पड़ी, मजा आ गया। मन हुआ, घंटा-दो घंटा ऐसे ही जल-धारा के नीचे बैठे रहें – भले ही बाकी लोग बिन-नहाए और प्यासे ही रह जाएं।
तो क्या रहीम ने केवल सरकारी जल-अधिकारियों को ही ‘पानी राखिए’ का उपदेश दिया था? हमारा अधिकार केवल पानी बर्बाद करने का है? उसके दुरुपयोग से दूसरों को प्यासा मारने का है? पानी बचाकर अपने परिवार, समाज, गांव, नगर और देश के स्वास्थ्य की चिंता करना क्या हमारा, कर्तव्य नहीं है?
साथियों! हमने तो यही सुना है कि हमारे पूर्वज मिल-जुलकर श्रमदान से तालाब और कुए बनाते थे, ताकि वर्षा ऋतु में पानी सुरक्षित रहें और आवश्यकता के समय काम आए। हमारी माताएं और बहनें तालाब और कुएं पर पूजा करके जल-देवता की आराधना करती थीं। और हम क्या कर रहे हैं? तालाबों और कुओं को पाटकर स्टील और सीमेंट की बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर रहे हैं। धरती माता के तरल प्यार की धारा के उपकार का बदला निर्दयता के कठोर बोझ से चुका रहे हैं! अब इसमें सिर्फ सरकार क्या करेगी? कुछ हमारा भी कर्तव्य है या केवल आलोचना और भाषण, प्रदर्शन और नारे ही हमारे हिस्से में आए हैं?
मैं अधिक क्या कहूं? आप सब बुद्धिमान और विवेकशील है। सोचिए- कैसे पानी बचाकर सुनेपन को दूर किया जा सकता है? अंत में मैं पुनः वही पुरानी पंक्ति दोहरा कर अपना वक्तव्य समाप्त करूंगा- ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’ धन्यवाद!
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