Pratahkal Ka Bhraman Essay In Hindi

दोस्तों! आपने ये कहावत सुनी होगी कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। लेकिन यह कहावत नहीं, हकीकत है। जीवन को सुखमय बनाने के लिये शरीर के साथ मन की भी प्रसन्नता परम आवश्यक है। और मन उसी मनुष्य का प्रसन्न रहता है, जिसका स्वास्थ्य सुन्दर हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा में भी अच्छा स्वास्थ्य उसे माना गया हैं जो शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के साथ – साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ्य हो। यदि शरीर अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रसित है तो मस्तिष्क भी मंद एवं बीमार होता है।
स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिये जितना पौष्टिक भोजन आवश्यक होता है, उतना ही श्रम भी आवश्यक होता है। श्रम से मनुष्य की शक्ति और स्वास्थ्य दोनों ही बढ़ते हैं। केवल संतुलित भोजन लेने से ही शरीर में स्फूर्ति और ताजगी नहीं रहती अपितु श्रम करने से शरीर चुस्त रहता है।
शारीरिक श्रम की बहुत-सी क्रियायें हैं। कोई व्यायाम करता है तो कोई प्राणायाम करता है, कोई दौड़ता है तो कोई मुग्दर घुमता है तो कोई यौगिक क्रियाओं में शीर्षासन ही करता है। जिसकी जिधर रूचि होती है, उसको उसी में अधिक आनन्द आता है । पर सुबह सवेरे टहलना (morning walk) शरीर को स्वस्थ और निरोग रखने के अच्छे व्यायामों में से एक माना जाता है । इससे मन खुश रहता है। दिमाग को सुकून मिलता है और उषा की लालिमा मानव हृदय को रोग-रंजित कर देती है। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि morning walk करने से न केवल शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि उम्र भी बढ़ती है ।
वास्तव में सुबह की सैर मनुष्य की सेहत के लिए एक वरदान है। अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि सुबह 30 मिनट की सैर जिम में दो घंटे के कसरत के बराबर होती है। हर दिन सुबह 30 से 45 मिनट की सैर स्वस्थ्य रहने के लिए काफी है।
अब सवाल ये उठता है कि अच्छी सेहत के लिए सुबह कितने बजे जगना चाहिए? तो प्रातः काल उठने का अर्थ अंधेरे में उठना नहीं होता है और ना धूप निकलने के बाद के समय को ही प्रातः काल कहा जा सकता है। ‘प्रातःकाल का समय‘ का अर्थ है- सूर्य उदय होने से पूर्व का समय, अर्थात जब रात का अँधेरा मिटने लगता है।
कई लोग ऐसे हैं, जो देर रात तक काम करते हैं। इसलिए ‘प्रातःकाल में जागना हो सकता है उनके लिए मुमकिन न हो। डॉ. भवसार कहती हैं कि ऐसे में सुबह 6:30 बजे से 7 बजे के बीच जागने की कोशिश करनी चाहिए। मगर कोशिश यही होनी चाहिए कि भोर में ही उठें। हमारी घड़ी के अनुसार प्रात: 4.24 से 5.12 का समय भोर यानि ब्रह्म मुहूर्त होता है। इसमें उठने से शरीर में भी स्फूर्ति रहती है। इससे मन भी प्रसन्न रहता है और इस प्रकार संध्या तक सारे दिन का समय ही प्रसन्नता में व्यतीत होता है।
ब्रह्म मुहूर्त में भ्रमण करने से शरीर में खून का संचार तीव्र गति से होता है इससे चेहरे पर तेज आता है। जल्दी जल्दी चलने से अंग प्रत्यंग गति करते हैं। ठंडी ठंडी हवा के सेवन से मुख मंडल चमकने लगता है। ब्रह्म मुहूर्त के भ्रमण से पाचन शक्ति बढ़ती है, हृदय तथा फेफड़ों की गति सामान्य ढंग से कार्य करती है और उन्हें बल मिलता है। शुद्ध हवा जब नाक के मार्ग से शरीर में प्रवेश करती है तो रक्त भी शुद्ध होता है।
ब्रह्म मुहूर्त में भ्रमण से मनुष्य का मानसिक विकास भी होता है। उसकी बुद्धि विकसित होती है और उसमें अच्छे भाव की वृद्धि होती है। जब नंगे पांव सुबह के समय हरी घास पर घूमते हैं तो मनुष्य के मस्तिष्क में ताजगी आती है और अनेक रोग भी दूर हो जाते हैं। इससे बुद्धि बढ़ती है।
अगर हम बात व्यक्ति के कार्य एवं उम्र की करे तो वृद्धावस्था में व्यायाम करना संभव नहीं होता है। अतः ऐसे लोगों के लिए प्रातः काल का भ्रमण विशेष उपयोगी माना जाता है। वृद्धावस्था में परिभ्रमण करना तो संजीवनी औषधि और अमृत का काम करता है ।
इसी प्रकार जो लोग केवल बैठकर दिनभर कार्य करते हैं, उनके लिए तो प्रातः काल का भ्रमण अत्यंत ही जरूरी है। ऑफिस में काम करने वाले लोग डॉक्टर दर्जी अध्यापक आदि के लिए प्रातः काल का भ्रमण उपयोगी होता है। अंत में बस मैं यही कहूँगी कि प्रातःकाल भ्रमण के लिए मनुष्य को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता है। अतः सभी के लिए यह बहुत लाभदायक है।
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