Best Diwali Poem In Hindi

(1) देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
हो रहा है नई ऋतु का आगमन
मौसम में घुल रही है गुलाबी ठंडक,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
मां लक्ष्मी सबके घर पधार रही है
लेकर सुख समृद्धि और खुशियों की माला,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
बच्चे बूढ़े सभी कर रहे हंसी ठिठोली
चारों और खुशियों की लहर फैल रही है,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
चहु और खुशियों के दीपक की लो जल रही है
चारों ओर ढोल पतासे पटाखे फूट रहे है,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
बाजारों की उदासी हो गई है गुल
सब लोग खरीद रहे है नए वस्त्र व आभूषण,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
बुराई पर अच्छाई की जीत हुई है
श्री राम अयोध्या को लौट रहे है,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
बच्चों की आंखों में एक अलग चमक है
मिठाइयां खा कर सब लोग झूम रहे है,
देखो देखो दीपावली का पावन अवसर आया।
– नरेंद्र वर्मा
(2) दीपावली का त्योहार आया।
दीपावली का त्योहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया।
दीपको की सजी है कतार,
जगमगा रहा है पूरा संसार।
अंधकार पर प्रकाश की विजय लाया,
दीपावली का त्योहार आया।
सुख-समृद्धि की बहार लाया,
भाईचारे का संदेश लाया।
बाजारों में रौनक छाई,
दीपावली का त्योहार आया।
किसानों के मुंह पर खुशी की लाली आयी,
सबके घर फिर से लौट आई खुशियों की रौनक।
दीपावली का त्यौहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया।
***
(3) Short Poem On Diwali in Hindi
आई रे आई जगमगाती रात है आई
दीपों से सजी टिमटिमाती बारात हैं आई
हर तरफ है हंसी ठिठोले
रंग-बिरंगे, जग-मग शोले
परिवार को बांधे हर त्यौहार
खुशियों की छाए जीवन में बहार
सबके लिए हैं मनचाहे उपहार
मीठे मीठे स्वादिष्ट पकवान
कराता सबका मिलन हर साल
दीपावली का पर्व सबसे महान
आई रे आई जगमगाती रात है आई
(4)
दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे
खुशी-खुशी सब हँसते आओ
आज दिवाली रे।
मैं तो लूँगा खील-खिलौने
तुम भी लेना भाई
नाचो गाओ खुशी मनाओ
आज दिवाली आई।
आज पटाखे खूब चलाओ
आज दिवाली रे
दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे।
नए-नए मैं कपड़े पहनूँ
खाऊँ खूब मिठाई
हाथ जोड़कर पूजा कर लूँ
आज दिवाली आई।
(5)
जगमग-जगमग
हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!
पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!
राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
– सोहनलाल द्विवेदी
(6)
साथी, घर-घर आज दिवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का देखो,
दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर
डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है
रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
– हरिवंशराय बच्चन
(7)
जब प्रेम के दीपक जलते हों
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है ।
जब मन में हो मौज बहारों की,
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है,
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है ।
जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।
जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।
जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्-भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है।
– अटल बिहारी वाजपेयी
(8)
बचपन बाली दीवाली
हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं।
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं।
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं।
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं ।
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं।
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं।
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
बिजली की झालर छत से लटकाते हैं।
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं।
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं।
दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है।
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है।
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं।
बार-बार बस गिनते जाते है।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है।
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं।
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं।
प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
माँ से खील में से धान बिनवाते हैं ।
खांड के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है।
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है ।
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं।
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं ।
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं ।
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं ।
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं।
सामान से नहीं, समय देकर सम्मान जताते हैं।
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।
– गुलज़ार
(9)
आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश, प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।
दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज, जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय, भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ, प्रेम के दीप जलाकर।।
जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।
दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय, बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
(10)
आओ फिर से दिया जलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
-अटल बिहारी वाजपेयी
(11)
शाम सुहानी रात सुहानी, दीवाली के दीप जले!
नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले,
शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले!
धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के,
लहराये वो आंचल धानी दीवाली के दीप जले!
नर्म लबों ने ज़बानें खोलीं फिर दुनिया से कहन को,
बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले!
लाखों-लाखों दीपशिखाएं देती हैं चुपचाप आवाज़ें,
लाख फ़साने एक कहानी दीवाली के दीप जले!
निर्धन घरवालियां करेंगी आज लक्ष्मी की पूजा,
यह उत्सव बेवा की कहानी दीवाली के दीप जले!
लाखों आंसू में डूबा हुआ खुशहाली का त्योहार,
कहता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले!
कितनी मंहगी हैं सब चीज़ें कितने सस्ते हैं आंसू,
उफ़ ये गरानी ये अरजानी दीवाली के दीप जले!
मेरे अंधेरे सूने दिल का ऐसे में कुछ हाल न पूछो,
आज सखी दुनिया दीवानी दीवाली के दीप जले!
तुझे खबर है आज रात को नूर की लरज़ा मौजों में,
चोट उभर आई है पुरानी दीवाली के दीप जले!
जलते चराग़ों में सज उठती भूके-नंगे भारत की,
ये दुनिया जानी-पहचानी दीवाली के दीप जले!
(12)
इक दीप जले उनकी खातिर, जो सीमा पर कुर्बान हुए!
हम पुष्प सेज पर लेटे हैं, वो बारूदों पर लेटे थे,
इक दीप जले उनकी खातिर, जो भारत माँ के बेटे थे,
हम नेताओं अभिनेताओं की दीवाली में मस्त रहे,
लटकाकर झालर चायनीज़, आतिशबाजी में मस्त रहे।
यह कवि गौरव चौहान कहे, उन वीरों का भी ध्यान रहे,
हर जश्न मने, लेकिन दिल में उन वीरों का स्थान रहे,
वो डंटे रहे सीमाओं पर, अवकाश कहाँ त्योहारों पर,
यह देश अभी तक भूला था, क्या गुज़री उन परिवारों पर।
लेकिन अब भारत जाग रहा, दीवाली की अगवानी में,
हम समझ गए क्या शिद्दत थी, उन वीरों की कुर्बानी में,
हम समझ गए सीमाओं की हर रात बहुत ही काली है,
कुछ दीप वहां पर बुझते है, तब यहाँ मनी दीवाली है।
केवल वेतन के लिए नही वो जूझ रहे प्रतिघातों से,
कुछ रिश्ता इस धरती से था, हर जंग लड़ी जज़्बातों से,
सर्वस्व लुटाया भारत पर, बोटी बोटी बलिदान हुए,
इक दीप जले उनकी खातिर, जो सीमा पर कुर्बान हुए।
– गौरव चौहान
(13)
इक दीप जले उनकी खातिर, जो सीमा पर कुर्बान हुए!
दहलीज अभी दहली होगी, आँगन स्तब्ध खड़ा होगा,
घर के कोने कलुषित होंगे, चूल्हे पे दर्द चढ़ा होगा,
तस्वीर लिए माँ हाथों में, कुछ बातें बोल रही होगी,
पत्नी यूं ही हर आहट पर, दरवाज़ा खोल रही होगी।
अनमने पिता बूढ़े होंगे, घर भर को समझाते होंगे,
बच्चे पीड़ा के प्रश्न लिए, स्कूल अभी जाते होंगे,
है खड़ा दुआरे पर आओ, उस दुखी नीम की छाँव चलें,
लेकर इक दीप सहारे का, आओ शहीद के गाँव चलें।
जो सरहद की रखवाली का सिलसिला चला कर चले गए,
इक दीप जले उनकी खातिर जो जिस्म जला कर चले गए,
हर आँगन सजे रंगोलो, गोली को सीने पर झेल गए,
घर घर दीपक में तेल रहे, प्राणों की बाजी खेल गए।
– गौरव चौहान
प्रदुषण मुक्त दिवाली पर कविता (Diwali poem in hindi)
जब हो प्रदूषण मुक्त दिवाली,
लाये हर जगह खुशहाली।
जब दियों से हो सकता है उजियारा,
तो क्यूं लें हम पटाखों का सहारा।
सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त दीवाली मनाएं,
प्रकृति की सुंदरता बढ़ाएं।
दीवाली का जश्न मनाएं
पर्यावरण सुरक्षित बनाएं।
***
हर घर दीप जग मगाए तो दिवाली आयी हैं,
हर घर दीप जग मगाए तो दिवाली आयी हैं,
लक्ष्मी माता जब घर पर आये तो दिवाली आयी हैं!
दो पल के ही शोर से क्या हमें ख़ुशी मिलेंगी,
दिल के दिए जो मिल जाये तो दिवाली आयी हैं!
घर की साफ सफ़ाई से घर चमकाएँ तो दिवाली आयी हैं,
पकवान – मिठाई सब मिल कर खाएं तो दिवाली आयी हैं!
फटाकों से रोशनी तो होंगी लेकिन धुँआ भी होंगा,
दिए नफ़रत के बुज जाएँ तो दिवाली आयी हैं!
इस दिवाली सबके लिए यही सन्देश हैं की
इस दिवाली हम लक्ष्मी का स्वागत दियों के करे,
फटाकों के शोर और धुएं से नहीं
इस बार दिवाली प्रदुषण मुक्त मनायेंगे!
***
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में !
राष्ट्रहित का गला घोंट कर, छेद न करना थाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में।
देश के धन को देश में रखना, नहीं बहाना नाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में।
बने जो अपनी मिट्टी से, वो दीये बिके बाजारों में।
छिपी है वैज्ञानिकता, अपने तीज-त्योहारों में।
चायनीज झालर से आकर्षित, कीट पतंगे आते हैं।
जबकि दीये में जलकर, बरसाती कीड़े मर जाते हैं।
कार्तिक और अमावस वाली, रात न सबकी काली हो।
दीये बनाने वालों की भी, खुशियों भरी दीवाली हो।
अपने देश का पैसा जाए, अपने भाई की झोली में।
गया जो पैसा दुश्मन देश, तो लगेगा राइफल गोली में।
देश की सीमा रहे सुरक्षित, चूक न हो रखवाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में।
***
इस दीवाली दिए जलाएं और प्रकृति का जश्न मनाएं।
दीवाली पर दिए जलाएं और प्रकृति का जश्न मनाएं।
मन से मन का दिया जलाएं, प्रदुषण-मुक्त हों सबको भायें!
दीवाली पर दिए जलाएं, प्रदूषण को दूर भगाएँ!
पर्यावरण प्रेमी बनते जाएँ, दिए जलाएँ दिए जलाएँ!
सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त दिवाली मनाएं प्रकृति की सुंदरता बनाए।
हवा और ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सुरक्षित दिवाली मनाएं।
हम सब ने मिलकर ठाना है, प्रकृति को बचाना हैं,
फटाकें नहीं जलाना हैं, दिल से दिल को मिलाना हैं।
चिड़िया हमें हसाएं रे, बरखा हम सब को भायें रे,
सारा जग हरा भरा हो जाएँ रे, प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाकर आओं कुदरत को बचाएं रे!
आइए, इस दीवाली पर संकल्प लें – “हम अपनी प्रकृति को बचाएंगे,
पर्यावरण की रक्षा करेंगे और इकोफ्रेंडली-दीवाली मनाएँगे।”
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