एकता में बल है(Unity is Strength Short Story In Hindi)

सामूहिकता के चमत्कारी सत्परिणाम (Unity is Strength Short Story In Hindi)
एक बार कार्तिकी अमावस्या के घनघोर अंधकार में प्रकाश की आवश्यकता पड़ी। सूर्य से प्रार्थना की, उनने इस आपत्तिकालीन अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। चंद्रमा ने भी असमर्थता प्रकट की। कोई उपाय न देखकर एक दीपक ने जलना आरंभ किया।
दूसरे बुझे हुओं ने सोचा जो एक कर सकता है, वह दूसरा क्यों न करें? जब बुराई छूत की तरह फैल सकती है तू अच्छाई की लहरें भी एक दूसरे को सहारा देते हुए आगे क्यों नहीं बढ़ सकतीं? दीपक एक दूसरे के निकट आते गए। जलों ने बुझों को जलाया और नगण्य सी कीमत वाले दीपको की पंक्ति देखते देखते सर्वत्र जलने लगी।
कार्तिक की अमावस्या जुगनूओं की चादर ओढ़कर सूर्य – पत्नी जैसी गौरवान्वित होकर इठलाने लगी। सभी ने दीपमालिका की जय बोली और उस दिन से वह सहकारी आदर्शवादिता महालक्ष्मी की तरह पूजी जाने लगी।
कहानी से सीख – छोटे के छोटे काम भी मिलजुल कर बड़ों के बड़े कामों की प्रतिद्वंदिता कर सकते हैं। तिनको से रस्सा बटा जा सकता है। धागे मिलकर वस्त्र बनते हैं। ईंटें परस्पर जुड़कर महल खड़े करती हैं। सीकों से बुहारी व बूंदों से घट भरता है। अणुओं के समन्वय से विराट की संरचना हुई है।
इन सब पर विश्वास करने पर यह सोचने में तनिक भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए छोटो में सज्जनता का दौर चल पड़े तो उनके संयुक्त प्रयासों का प्रतिफल समष्टि को सतयुगी परिस्थितियों से भरपूर बना सकता है। बड़ों की प्रतीक्षा में बैठे रहने की अपेक्षा यही अच्छा है कि छोटे लोग मिलजुल कर नवसृजन के प्रयास करें। यही युग की मांग भी है।
सम्मिलित प्रयास जरूरी (Unity is Strength Short Story In Hindi)
वह रात बड़ी भयावह थी। पहाड़ों के ऊपर तूफानी घटाएं घिर आई थी। बिजली कड़कने लगी। बरसात इतनी हुई की नाले भर गए और दरिया से जा मिले। दरिया नीचे घाटियों में होता हुआ तेजी से बढ़ने लगा। उसके तेज बहाव में हर चीज को अकरांत कर दिया। उथल-पुथल में एक चट्टान से एक बहुत बड़ा पत्थर टूट गया। वह कुछ देर भयभीत सा तंग पहाड़ी सड़क के ऊपर लटका रहा। फिर एक भयानक आवाज के साथ सड़क के बीचो बीच आ गिरा।
रात बीती, सुबह हुई। आकाश पर चमकीला सूर्य निकला। ओस की बूंदे पेड़ के पत्तों पर जगमगाने लगी। घास जो दब गई थी, फिर सिर उठाने लगी। इतने में गांव से एक छकड़ा प्रकट हुआ। उसे नुकीले सींगों वाले दो काले बैल खींच रहे थे। छकड़े के अंदर एक आदमी बैठा अपनी धुन में कोई पहाड़ी लोक गीत गा रहा था। वह गांव का दुकानदार था। जो अपनी दुकान का सामान खरीदने शहर जा रहा था । मोड़ पर पहुंचकर, जहां बड़ा पत्थर पड़ा हुआ था, उसने छकड़ा रोक दिया। दरअसल पत्थर ने पूरा रास्ता रोक रखा था। बाई और दरिया बह रहा था और दायीं और ऊँची चट्टानों ने अपना सीना ताने खड़ी थीं।
दुकानदार पहले तो छकड़े में बैठा थोड़ी देर सिर खुजाता रहा। फिर नीचे उतरकर पत्थर के पास गया। पत्थर को हटाने के लिए उसने कई तरकीब आजमाईं, पर पत्थर हिला तक नहीं। यह मुझसे नहीं हटेगा। उसने सोचा किसी ऐसे आदमी की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जो मुझसे ज्यादा शक्तिशाली हो। यह सोचकर वह धरती पर बैठ गया। उसने एक लकड़ी उठाई और उसे धरती पर फूल पत्तियां बनाने लगा।
थोड़ी देर बाद एक दूसरा छकड़ा वहां आ पहुंचा। उस पर जलाने की लकड़ियां लदी हुई थीं। लकड़ी वाले ने दुकानदार से कहा, अरे भाई, तुमने अपना छकड़ा सड़क के बीचो बीच क्यों खड़ा कर रखा है? इसे एक तरफ करो, ताकि मैं गुजर सकूं। मुझे जल्दी है। दुकानदार बोला तुम्हें जल्दी है, तो पहले यहां आकर यह चट्टान हटाओ।
कैसी चट्टान? उसने हैरत से पूछा। यहां आओ और देखो। छकड़ों के आगे पड़ी हुई है। लकड़ी वाले ने नीचे उतर कर पत्थर को देखा और फिर अपनी आस्तीनें समेट कर पत्थर को दाएं-बाएं हिलाने की कोशिश करने लगा । पर पत्थर नहीं मिला। यह अपने वश की बात नहीं, वह सिर हिलाता हुआ बोला, हमें किसी शक्तिशाली आदमी की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। वही हमारा रास्ता साफ करेगा।
लकड़ी वाला दुकानदार के पास जाकर बैठ गया। अभी ज्यादा देर नहीं हुई थी की एक घोड़ा गाड़ी वाला वहां पहुंचा। वह काफी बूढ़ा था, उसकी कमर झुकी हुई थी।वह काफी बेदर्दी से घोड़े पर चाबुक बरसा रहा था। जब उसे पता चला कि दोनों छकड़े यहां क्यों खड़े हुए हैं, तो वह अनाप-शनाप बकता हुआ अपनी गाड़ी से उतरा और थोड़ी देर पत्थर के इर्द-गिर्द चहल कदमी की, फिर चुपचाप उन दोनों के पास बैठ गया।
थोड़ी देर दो छकड़े और आए। उन पर कंबल और मिट्टी के बर्तन लगे हुए थे। उनके मालिकों को बाजार पहुंचने की जल्दी थी। जब उन्हें पता चला कि रास्ता बंद है तो वह बड़े परेशान हुए। उनमें से एक बड़ा क्रोधी था। वह पत्थर को सजा देने के लिए उस पर चाबुक बरसाने लगा। समय बीतता रहा। दोपहर हो गई। अब वहां एक पूरा काफिला जमा हो चुका था। वह एक के बाद एक अपनी शक्ति परखते रहे, पर उनमें से कोई भी पत्थर को ना हिला सका।
इतने में गेरुआ वस्त्र पहने एक सन्यासी उधर से गुजरे। आसपास की पहाड़ी गांव के लोग उन्हें पहचानते थे। सभी ने श्रद्धा सहित उन्हें प्रणाम किया। यह कोई और नहीं विश्वबंध स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई एवं श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अखंडानंद थे। वह इन दिनों अपनी एकांत साधना के लिए यहां आए हुए थे। जब उन्होंने इन सबको वहां खड़े हुए परेशान देखा, तो बोले, तुम लोग अपनी बुद्धि का उपयोग क्यों नहीं करते।
महाराज हमें बुद्ध की नहीं सत्य की आवश्यकता है। उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, हम सब पत्थर को हटाने का प्रयत्न कर चुके हैं, पर इसे हटाना तो दूर हम लोग हिला भी नहीं सके।
उसका उत्तर सुनकर अखंडानंद जी महाराज थोड़ा हंसे और बोले, अच्छा अब तुम लोग सब मिलकर मेरे साथ आओ। उनकी बात मान कर सब लोग एक साथ आज जुटे। स्वामी जी भी उनके साथ थे। थोड़ी देर में पत्थर नीचे लुढ़कता हुआ भयानक आवाज के साथ गहरे गड्ढे में गिर गया और टुकड़े-टुकड़े हो गया।
सब ने इसे स्वामी जी का चमत्कार माना। उनकी भोली भाली बातें सुनकर वह हंसने लगे। और फिर उन्होंने उन सब से कहा, यह चमत्कार तो जरूर है, पर मेरा नहीं, तुम सब की सम्मिलित शक्ति का है। समस्याएं घर परिवार की हो या गांव समाज की अथवा फिर राष्ट्र एवं विश्व की। सब लोग मिलजुल कर प्रयास करेंगे, तो सार्थक समाधान मिलने में देर नहीं लगेगी। स्वामी जी की बातें सुनकर लगा कि उनके छकड़ों के गुजरने के लिए ही नहीं जिंदगी गुजारने के लिए भी रास्ता साफ हो गया है। उन्हें अब समझ में आ गया था कि समस्याओं को सुलझाने के लिए जरूरत किसी मसीहा की नहीं, बल्कि सम्मिलित प्रयास की है, एकजुट होकर किए जाने वाले पुरुषार्थ की है।
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आपने जो आपके विचार प्रकट किए हुए एकता में ही बोल है बिल्कुल सही है एकता एक ऐसी चीज है कि अकेले इंसान कुछ नहीं कर सकता अगर जहां पर भी एकता रहे हैं वह अच्छी-अच्छी चीज पलट डालता है धन्यवाद आपका यह विचार हमारे साथ शेयर करना