अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर विस्तृत हिंदी भाषण एवं निबंध (Speech for International Women’s Day )

Speech Short Speech on International Women’s Day Hind
Speech for International Women’s Day 2021 : औरत एक ऐसा जीता जागता विषय है जो अक्सर ही चर्चा में रहता है….. कभी करुणा, कभी शक्ति, कभी शोषण तो कभी अपनी परंपरागत भूमिका के नि:शब्द निर्वाहन या फिर इसी भूमिका से बगावत के कारण। लेकिन आज हम उसकी किसी भूमिका पर विचार नहीं करेंगे बल्कि उस दिन पर बात करेंगे जो औरत के अस्तित्व और अस्मिता दोनों को ही हर हाल में सुरक्षित रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर 8 मार्च को मनाया जाता है।
……..औरत यानी ‘आधी दुनिया’, जिसे बच्चे की प्रथम पाठशाला कहा जाता है जो अपने प्यार-दुलार से ईंट- गारे के ढांचे को घर बनाती है। अपने आंचल में सारे दुख छुपाकर परिवार में खुशियां बांटती है। यही नहीं अपनी पूरी जिंदगी आशियां के ही तिनके सहेजने-समेटने में गुजार देती है। सदियों से वह नि:स्वार्थ-भाव से सर्वस्व समर्पण करके अपनी जिम्मेदारियां निभा रही है क्या कभी इस बात पर गौर किया गया है कि औरत के स्नेह, ममता, करुणा, सेवा और त्याग के बदले समाज ने उसे क्या दिया, चंद खोखले और कमजोर बनाने वाले नारे, जो बरसों से यही कहते आ रहे हैं कि औरत की डोर हमेशा तीन ‘प’ पिता-पति-पुत्र के ही हाथों में रहनी चाहिए क्योंकि बकौल तुलसीदास ‘जिमि स्वतंत्र होई बिगरहि नारी’ यानी आजादी मिलने से औरत बिगड़ जायेगी । इसीलिए उस पर अंकुश रखें।
विरासत में मिली इसी मूर्खतापूर्ण नसीहत ने ही लोगों के दिमाग में यह बात भर दी की औरत तो ‘निजी संपत्ति’ की तरह है जैसे चाहो इस्तेमाल करो लेकिन शायद समाज यह नहीं जानना चाहता है कि इस सड़ी-गली सोच से हम रिश्तो में बिखराव और स्वभाव में उच्श्रृंखलता के अलावा और कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। इसी घटिया मानसिकता ने ही औरत के खिलाफ तमाम अपराधों को जन्म दिया।
जरा सोचिए जिस हिंदुस्तान में घर में रहने वाली एक आम औरत जो सेटेलाइट के इस दौर में भी सिर से पल्लू तक गिरने में संकोच महसूस करती है उसे अगर चौराहे पर बेइज्जत किया जाए तो उसके दिल पर क्या गुजरती होगी। मगर अफसोस के साथ यह कहना पड़ता है कि आज ऐसे कम लोग बचे हैं जो दूसरे की आंख के आंसू को अपना समझते हैं। इससे अधिक खराब स्थिति और क्या हो सकती है कि महिला दिवस मना कर हमें इंसानों को यह एहसास कराना पड़ रहा है कि औरत कोई वस्तु नहीं है वह भी इंसान है उसका भी सम्मान है उसके भी कुछ सपने हैं। लेकिन जो एक बात मुझे इस वक्त महसूस हो रही है वह यह है कि समाज को यह एहसास कराने के साथ ही हमें हर औरत को भी वह सब महसूस कराना होगा जो उसे एक सम्मानपूर्ण पृष्ठभूमि दे सके।
हालांकि इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। उनको उनके हितों की रक्षा के लिए बने कानूनों, संविधान में उन्हें दिए गए अधिकारों, मानवाधिकारों सहित तमाम अहम जानकारियां देने की कोशिश की जाती हैं ताकि वह खुद अपने हक के लिए आवाज उठाएं क्योंकि वे स्वयं शक्ति की प्रतीक हैं। जरूरत महज एहसास कराने की है।
तो चलिए आज और अभी से हर स्त्री को सशक्त और जागरूक बनाने के लिए हम एक स्वर से कहे ‘जाग ! तुझको दूर जाना है’, महादेवी वर्मा के इन्हीं प्रेरक वचनों के साथ हम इस अधिकारपूर्ण दिन की सभी स्त्रियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई देते हैं। धन्यवाद
Long Speech on International Women’s Day Hind
स्त्री और पुरुष परमात्मा के दो विशिष्ट सृजन है। यह दोनों एक – दूसरे के अनिवार्य पूरक भी है। एक के अभाव में दूसरा निष्प्रभावी है। लेकिन भारतीय संस्कृति में स्त्री की भूमिका पुरुष की अपेक्षा कहीं अधिक सम्माननीय माना गया है। मंत्रों के माध्यम से इनकी अभ्यर्थना की गई है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी को गुरुतर मानते हुए यहाँ तक घोषित किया गया है – यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते है अथवा गृहणी गृहमित्याहू न गृह गृहमुक्यते।
इनकी शक्ति को सर्वोपरी समझने का एक सशक्त प्रमाण और है, श्रेष्ठ देवताओं के नाम के पूर्व उनकी पत्नियों के नाम का उल्लेख होना – जैसे लक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर, सीता-राम, राधे-श्याम। इतना ही नहीं पति – पत्नी के संदर्भ में भी पत्नी को पति का अर्द्धागिनी विशेषण इसी यथार्थ को ध्यान में रखकर कहा गया है।
पुरातन भारतीय समाज में तो किसी पुरुष द्वारा पत्नी की अनुपस्थिति में किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान सर्वथा अधूरा समझा जाता था। यही वजह है कि पत्नी के लिए धर्मपत्नी शब्द प्रचलित हुआ।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय संस्कृति के पुरातन नारी को पुरुषों से बढ़कर सम्मान और स्वतंत्रता प्राप्त थी। लेकिन पुरातन नारी को जो स्वतंत्रता प्राप्त थी क्या आज भी उतनी ही सवतंत्रता उन्हें प्राप्त है? क्या इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को वह सम्मान प्राप्त है जो उसका अधिकार है !! नहीं।
जबकि प्रकृति और पुरुष दोनों विधाता के विशिष्ट सृजन है और एक – दुसरें के पूरक है। एक के अभाव में आप दूसरे की कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन अनेक समानताओं के होते हुए भी नर – नारी सामर्थ्य और सक्रियता के क्षेत्र कई संदर्भों में भिन्न – भिन्न माने जाते है।
उदाहरार्थ स्वरूप भारतीय समाज में जहाँ पुरूषों को पौरुष, श्रम, कठोरता, बर्बरता और अधीरता का प्रतिमूर्ति माना गया है वही नारी को त्याग, दया, करुणा, ममता और धैर्य की प्रतिमूर्ति कहा जाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने भी अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में यह उक्ति कही है कि “पुरुष में नारी के गुण आ जाते है तो वह महात्मा बन जाता है लेकिन नारी में पुरुष के गुण आ जाते है तो वह कुलता हो जाती है।” यथार्थ नारी की स्वीकृति को ही दर्शाते हुए जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी कामायनी में लिखा है –
नारी तुम केवल श्रध्दा हो, विश्वास रजत नग पद तल में |
पीयूष स्रोत – सी बहा करों, जीवन के सुंदर समतल में ||
यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि, भारतीय नारी अपनी इसी विशेषता की वजह से न जाने कितने रिश्तों का निर्वाह किया करती है। बेटी के रूप में जन्म लेकर जीवन आरंभ करने वाली नारी किसी की बहन, किसी की पत्नी, और किसी की माँ होती है। इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी पुरुष को प्रतिष्ठा और उपलब्धि के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ करने के लिए स्वयं को भी दाव पर लगा दिया करती है। नारी के इसी अभिनव व्यक्तित्व और कृतित्व को लक्ष्य कर कही गयी यह उक्ति एक सर्वमान्य सत्य बनकर स्थापित हो गई है कि प्रत्येक पुरुष के सफलता में एक स्त्री का हाथ होता है।
लेकिन विडम्बना देखिए नारी – सामर्थ पर सवाल हमेशा ही उठते रहे हैं। पर नारी को जो सम्मान (अवस्था) पुरातन भारतीय संस्कृति में प्राप्त था वह सम्मान वह अवस्था आज भी नारी को नहीं मिल सका है। जबकि तत्कालीन परिस्थियों में नारी को शिक्षा प्राप्त करने, अपना जीवन – साथी चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त थी।
भारतीय संस्कृति में नारी को माता के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। नारी को देवी मानकर उसकी पूजा की जाती है। ये घर की लक्ष्मी मानी जाती थी और इन्हें लगभग प्रत्येक दृष्टि से भरपूर सम्मान मिलता था। खुद को मिले सम्मान का परिचय इन्होंने अपने नारी – सामर्थ से प्रस्तुत किया।
कैकेयी जो रणभूमि में पति की सारथी बनी, गांधारी जिन्होंने अंधे पति के लिए जीवन – पर्यंत आँखों पर पट्टी बाँध ली, सीता जिन्होंने पति के साथ स्वेच्छा से वन – गमन किया या फिर शास्त्रार्थ के लिए पुरुषों को ललकारने वाली गार्गी / मैत्रेयी आदि आदर्श चरित्र नारियों का प्रंसग उल्लेखनीय हैं। नारी के प्रति ऐसी उदात्त अवधारणा समभवत: कही और देखने को नहीं मिलती है।
लेकिन अफ़सोस….. भारतीय परिवेश में नारी के प्रति सम्मान सर्वथा एक समान नहीं रहें। समय बीतने के साथ – साथ नारी को मिलने वाले भरपूर सम्मान का अवमूल्यन होना प्रारंभ हो गया। और जो मध्यकाल तक आते – आते काफी बढ़ गया। इस काल की राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों के मध्य नारी यतीम बनकर रह गयी। नारी को प्राप्त समस्त स्वतंत्रता छीन ली गयी।
मत्स्य – न्याय की परंपरा का अनुगमन करते हुए विजयी राजाओं ने हारे राजाओं को अन्य भेटों के साथ अपनी बेटी भी सौपने के लिए विवश कर दिया। इतना ही नहीं हिन्दू परिवारों की धन – सम्पत्ति लूटने के साथ – साथ बहू – बेटियों का भी अपहरण करना शुरू कर दिया।
परिणाम स्वरुप बहू – बेटियों की रक्षा हेतु पर्दा – प्रथा, बाल – विवाह, सती – प्रथा, कन्या – वध, विधवा – प्रताड़ना, आदि तत्कालीन कुरीतियों ने जन्म ले लिया। विदेशियों के आक्रमण से स्थिति और भी भयावह हो गई। बहुविवाह और अनमेल विवाह जैसे भोगवादी मानसिकता का विकास कर नारी को प्राप्त समस्त स्वतंत्रता छीन ली गई।
नारी के मन में असुरक्षा की भावना लाने के जिम्मेदार कही न कही कुछ दार्शनिक की विचारधारा भी सम्लित है। जान स्टुवर्ट मिल, प्लेटो एवं मार्क्स आदि ने नारी को पुरुष के समकक्ष रखने का प्रयास किया लेकिन कुछ दार्शनिक जैसे अरस्तू, हिगेल, कान्ट, नीत्शे, आदि को स्त्री जाति की बौद्धिक और तार्किक क्षमता पर गहरा संदेह था। देकार्ते ने तो खुलकर कहा है कि स्त्री की तर्क क्षमता पुरुषों से कमजोर एवं दुर्बल होती है।
इस तरह पुरातन में जो नारी पुरुषों की अर्धांगिनी थी उसे जाने – अनजाने इन दार्शनिकों ने दो भागों में बाँट दिया। इन दार्शनिकों ने नारी को संवेदनशील बताकर पुरुषों को उसकी सुरक्षा करने तक की दलील दे डाली। इन्होंने नारी के मन में उसी के अस्तित्व के प्रति असुरक्षा के बीज डाल दिए।
इसके बाद तो नारी को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने, विरोध करने में नारीवादीरूपी अनेक विचारधाराओं का जन्म हुआ। जिसमें उदार नारीवाद, मार्क्सवादी नारीवाद, मनोविश्लेषक नारीवाद, अराजक नारीवाद, सामाजिक नारीवाद आदि उल्लेखनीय है। इन नारीवादी विचारकों के विचारों का असर भारतीय समाज पर भी पड़ा।
हालांकि आज की नारी जाग चुकी है। वह अपनी स्वतंत्रता, अस्मिता, आजादी के हक़ के लिए लड़ना जानती है। इस हक़ की लड़ाई का आरंभ सर्वप्रथम तब हुआ जब रूस की महिलाओं ने 1997 में रोटी और कपड़े के लिए वहां की सरकार के खिलाफ़ आन्दोलन छेड़ दिया। जब यह आन्दोलन शुरू हुआ था तो उस समय वहां जुलियन कैलेण्डर के मुताबिक रविवार 23 फ़रवरी का दिन था जबकि दुनिया के बाकि के देशों में ग्रेगेरियन कैलेण्डर का प्रयोग किया जाता था और जिसके अनुसार 8 मार्च का दिन था। तब से इस दिन को नारी जागरण का दिन मानकर पूरे विश्व में 8 March को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस / International Women’s Day घोषित कर दिया गया। और महिलाओं के सम्मान के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस / International Women’s Day के रूप में मनाया जाने लगा।
सबसे पहला महिला दिवस अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वाहन पर 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था। अमेरिका में उस समय महिला दिवस का उत्सव मनाए जाने के पीछे महिलाओं को वोट देने का अधिकार हासिल करना था क्योंकि तत्कालीन परिस्थियों में अधिकांश देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था।
भारत में भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का उत्सव महिलाओं की उपलब्धियों और उनका सम्मान करने के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर महिला दिवस मनाने का उद्देश्य नारी को कुरीतियों की बेड़ियों से निकालकर उसे विकसित – परिष्कृत होने का सुअवसर प्रदान करना है ताकि वह न केवल खुद को सशक्त कर सके बल्कि बेहतर समाज के निर्माण में भरपूर योगदान दे सके।
हालांकि भारत में आधुनिक काल के आरंभ से देश की आजादी के लिए नारी जागरण के महत्व को समझा गया और इसी के निमित्त नारी को विभिन्न विसंगतियों से मुक्त करने का प्रयास शुरू किया गया। इसमें 1955 में पारित विशेष विवाह और विवाह विच्छेद कानून, 1956 में पारित हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1959 में पारित अंतरजातीय विवाह अधिनियम, 1961 में पारित दहेज़ निषेध कानून की वजह से नारी के उत्थान में सर्वथा अनुरूप एवं सुखद परिणाम देखने को मिले। 1970 से 1980 तक अधिकतर नारीवाद आंदोलन स्त्री को पराधीनता की बेड़ियों से निकालने के लिए बनाए गए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वतंत्रता – संग्राम हेतु नारी सामर्थ का सहयोग प्राप्त करने के लिए जो उसे अवसर प्रदान किया गया उन अपेक्षाओं की कसौटी पर नारी खरी उतरी। इसके बदले आजादी मिलने के बाद नारी को बौधानिक, धार्मिक, सामाजिक लगभग हर प्रकार की विसंगतियों से मुक्त कर दिया गया।
नारी शिक्षा पर कविता (Women Education Poem In Hindi)
लेकिन आज विडम्बना देखिए आजादी के बाद जिस नारी को पराधीनता की सारी बेड़ियों से मुक्त कर दिया गया था उसे आज उपभोग की वस्तु मानकर बाजार में फिर से खड़ा कर दिया गया है। आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के बाद भी महिला हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। घरेलू हिंसा, acid attack , honour killing (सम्मान के लिए मौत के घाट उतरना), अपहरण, तथा पति द्वारा उत्पीडन आदि समाज में महिलाओं के लिए आम बात हो गई है।
अगर हम भारतीय समाज की बात करें तो यह एक पुरुष प्रधान समाज है। हर जगह पुरुषों का ही वर्चस्व है। हमारे समाज में नारी को दोयम दरजा देकर उसे बताया जाता है कि उसका कार्य केवल बच्चे पैदा करना और घर सम्भालना है, परंतु महिलाएँ इस पुरुष प्रधान मान्यता को प्रारंभ से ही चुनौती देती आ रही है।
पुरातन काल में गार्गी, अपाला और मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियों ने पुरुषों को शस्त्रार्थ में, आधुनिक काल में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने रणभूमि में अग्रेजों को, महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान ने श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करके, इंदिरा प्रियदर्शिनी ने देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करके, प्रथम आइपीएस अधिकारी किरण वेदी कठोर प्रशासकीय दायित्वों का सकुशल निर्वहण करके, मदर टरेसा ने अनाथों को गले लगाकर और कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने आकाश की ऊचाईयों को छूकर नारी – सामर्थ का अभिनव परिचय प्रस्तुत किया।

आज से कुछ साल पहले जिन खेलों में नारियों को कमजोर बताकर उन्हें खेलने से रोका जाता था आज उन्ही खेलों में मेरी कॉम (Mary Kom) ने सफलता का परचम लहराकर देश का नाम रोशन किया। गीता फोगाट, पीवी सिंधु, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, साक्षी मलिक आदि जैसी महिलाए खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान है तो प्रियंका चोपड़ा, एश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, लारा दत्ता आदि महिलाओं ने सौन्दर्य प्रतियोगिता जीतकर अन्तराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रौशन किया।
वर्तमान समय को अगर हम नारी उत्कर्ष की सदी कहे तो गलत नहीं होगा। आज की भारतीय नारी लगातार हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। आज भारतीय नारी अनेक क्षेत्रों में आपने – अपने प्रयोजनों में कार्यरत हैं जिनमें शिक्षा, संस्कृति, कला, संपदा, प्रतिभा, कॉरपोरेट, media आदि है। अब यह इन सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्व सिद्ध करती जा रही है।
आधुनिक नारी कुरीतियों की बेड़ियों से निकलकर अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बन रही है और विधाता ने भी उसे मुक्तिदूत बनने का गरिमापूर्ण दायित्व सौप दिया है। लेकिन अभी भी भारतीय नारी को अपना खोया हुआ आत्मसम्मान पाने में कुछ समय अवश्य लगेगा, परन्तु संभावनाएँ स्पष्ट है।
Friends ये hindi essay & speech on International Women’s Day खासतौर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं के सम्मान में बोलने के लिए लिखा गया है और उम्मीद है कि आपको ये लेख बेहद पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो देर किस बात की फटाफट इसे share करें ताकि दूसरे भी इसका लाभ उठा सके और हाँ हमारा free email subscription जरुर ले ताकि मैं अपने future posts सीधे आपके inbox में भेज सकूं।
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