चाचा नेहरू के 5 प्रेरक प्रसंग कहानियाँ (Pandit jawaharlal nehru ki kahani)

Prerak Prasang for Childrens in Hindi – पण्डित जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले लोकप्रिय प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ बच्चों के प्रिय चाचा के रूप में पूरी दुनिया में विख्यात रहे हैं. चाचा नेहरू जहां भी जाते, कोई अगवानी करने के लिए होता न होता लेकिन बड़ी संख्या में बच्चे जरूर होते थे. चाचा नेहरू भी उनसे हमेशा एक दोस्त की तरह ही मिला करते थे. नेहरूजी बच्चों को देखते ही रास्ते भर की सारी थकावट भूल जाते, और रम जाते उनकी प्यारी-प्यारी बातों और हरकतों में. आज हम उनसे जुड़े कुछ प्रसंगो का जिक्र कर रहे हैं, जो नेहरूजी को एक बेहतरीन इंसान भी साबित करते हैं…
बगीचे का फूल
एक बार की बात है जब पण्डित जवाहर लाल नेहरू अपने निवास त्रिमूर्ति भवन के बगीचे में पेड़-पौधों के बीच से गुजरते घुमावदार रास्ते पर टहल रहे थे. प्रधानमंत्री के रूप में यह भवन उनका सरकारी आवास था. चारों ओर पेड़-पौधों की हरियाली और ठण्डी नम हवा में वे खोए हुए ही थे कि उन्हें एक नन्हें बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी. चाचा ने आसपास देखा तो बेलों और पेड़ों के झुरमुट में एक गोलमोल सा बच्चा दिखा, जो पूरे जोर से रो रहा रहा था.
चाचा ने सोचा कि इसकी मां कहां होगी ? शायद माली के साथ मे बगीचे में ही कहीं काम कर रही होगी या फिर बच्चे को छांव में सुलाकर वह कहीं दूर काम पर निकल गई होगी. चाचा काफी देर तक शायद ये सोचते रहते लेकिन बच्चे की रुलाई उनका ध्यान अपनी ओर खींचे जा रही थी, चाचा उसके रोने से विचलित हो गए. उन्होंने तय कर लिया कि जो भी हो बच्चे को मां का प्यार चाहिए. उन्होंने मां की भूमिका निभाने की मन में ठान ली.
नेहरूजी ने बच्चे को झुककर उठा लिया. उसे बाहों में झुलाया और धीरे-धीरे थपकियां दीं. तो कुछ ही देर में बच्चा चुप हो गया और उसके पोपले मुंह में मुस्कान खिल गई. उसे खुश देखकर चाचा भी खुश हो गए. थोड़ी ही देर में धूल-पसीने से लथपथ बच्चे की मां भी वहां आ पहुंची, उसने अपना बच्चा प्रधानमंत्री की गोद में देखा तो अपनी आंखो पर विश्वास नहीं हुआ. उसकी आंखों का तारा प्रधानमंत्री की गोद में था, जहां चाचा नेहरू मां की भूमिका निभा रहे थे और बच्चा बड़ी सहजता से टुकर-टुकर उनके मुह की ओर देखकर मुस्कुरा रहा था.
गुब्बारे वाले चाचा
एक बार जब चाचा नेहरू दक्षिण भारत में तमिलनाडु की यात्रा पर गए. जिस सड़क से उनकी सवारी गुजर रही थी, उसके दोनों ओर उनको देखने वालों की भीड़ खड़ी थी. जो अपने प्यारे प्रधानमंत्री का स्वागत करने के लिए आतुर थे. इनके अलावा कुछ दीवारों पर, कुछ छज्जों पर और कुछ भीड़ के पीछे से भी उचक-उचक कर चाचा के लवाजमे को देखना चाह रहे थे. यहां तक कि इमारतों की बालकनियों पर लोग जमा थे. बच्चों का तो कहना ही क्या, वे तो पेड़ों की टहनियों और तनों पर भी लूम रहे थे. इस भीड़ के पीछे एक गुब्बारे वाला खड़ा था, जो तरह-तरह के रंगों और डिजाइनों के गुब्बारे लिए पंजों के बल खड़ा चाचा को देखने का प्रयास कर रहा था.
रंगीन गुब्बारे भी इधर-उधर डोल रहे थे, जैसे वे भी चाचा को देखने के लिए उतावले हों. जब चाचा की गाड़ी वहां से गुजरी, तो उनकी नजर गुब्बारे वाले पर पड़ी. अचानक उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई और उतरकर चल दी गुब्बारे वाले की ओर. अपनी ओर प्रधानमंत्री को देख गुब्बारेवाला तो घबरा गया कि क्या गलती हो गई? चाचा के पास आने पर उसने एक सलाम करके चाचा को गुब्बारा भेंट किया. इस पर चाचा बोले कि मुझे एक नहीं सारे गुब्बारे चाहिए. इसके बाद उन्होंने अपने तमिल जानने वाले साथी से कहा कि सारे गुब्बारे खरीद लो और बच्चों में बांट दो. बच्चों की तो मौज हो गई. गुब्बारे वाला दौड़-दौड़ कर खुद ही बच्चों को गुब्बारे थमाने लगा. चाचा नेहरू होठों पर संतुष्टि की मुस्कान लिए खड़े थे. जब तक वह पूरे गुब्बारे बांटता, तब तक चाचा अपनी गाड़ी में सवार होकर चल पड़े थे. उनके पीछे चाचा नेहरू जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे.
राष्ट्रध्वज से प्रेम
नेहरू जी में अपने देश के प्रति राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी थी. इसके साथ ही उनमें राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज के प्रति भी अगाध श्रद्धा थी. किसी भी स्थिति में इन प्रतीकों का वे अपमान सहन नहीं कर सकते थे. एक बार किसी छोटे कस्बे में उन्हें एक समारोह में राष्ट्रध्वज फहराना था, लेकिन एक मौके पर ध्वज की घिर्री में कुछ खराबी आ गई और वह खुल ही नहीं रही थी जिससे ध्वज खुलकर हवा में लहरा नहीं रहा था. कड़ी धूम थी. सभी परेशान थे. तभी कुछ स्थानीय पदाधिकारियों ने नेहरू जी से कहा, ‘यह घिर्री ठीक हो जाएगी, तब तक आप क्यों धूप में खड़े रहते हैं, आप वहां छाया में विश्राम कीजिए.’ पर नेहरूजी नहीं माने, और वे तब तक वहां पर डटे रहे, जब तक कि घिर्री दुरूस्त न कर ली गई. इसके बाद ध्वज फहराने और उसे सलामी देने के बाद ही वहां से हटे.
बर्थडे आइसक्रीम
नेहरू जी देश और विदेश की समस्याओं को निपटाने में बड़े व्यस्त रहते थे. यहां तक कि उनके निजी कई काम और दिन भी उन्हें कई बार तो याद भी नहीं रहते थे. एक बार जब उनका जनमदिन था तो वे देश से बाहर थे. जब देश में उनका विमान आया तो एयरपोर्ट पर सभी मंत्री, अधिकारी और मित्रगण उन्हें लेने और बधाई देने के लिए पहुंचे. इनके अलावा पोर्ट के बाहर से भी कई लोग उनके दर्शन करने के लिए खड़े थे.
नेहरूजी सबसे बधाइयां स्वीकार कर रहे थे. सभी से पुष्पगुच्छ स्वीकार कर रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक वृद्ध महिला भीड़ के पीछे से जैसे-तैसे उनको देखने और मिलने के लिए आतुर सी दिखाई दे रही थी, जिसके हाथ में एक आइसक्रीम थी जो वह पण्डित जी के जन्म दिवस पर भेंट करने लाई थी. वह किसी भी तरह से नेहरूजी तक नहीं पहुंच पा रही थी. उसे सिक्योरिटी वाले धकिया कर वापस पीछे की ओर कर रहे थे. अचानक नेहरू जी की नजर उसपर पड़ी तो उन्होंने एकदम से भीड़ से किनारा किया और पहुंच गए उस बुढ़िया के पास. पहुंचते ही उन्होंने बुढ़िया के हाथ से आइसक्रीम ली और खाने लगे. नेहरू जी के इस तरह प्रेम से आइसक्रीम खाने से वहां उपस्थित लोगों को तो आश्चर्य हुआ, पर वह वृद्ध महिला ख़ुशी से गद्गद् हो गई.
एकता का महत्व
एक बार पण्डित जी किसी सभा को संबोधित करने वाले थे. जब वे वहां पहुंचे तो देखा कि मौसम बारिश का सा हो रहा था. एक बार तो सभी लोग चिंतित हो गए कि नेहरूजी ऐसे मौसम में भाषण भी देंगे या नहीं? सही समय पर नेहरू जी ने अपना भाषण आरंभ किया. इतने में बारिश भी होने लगी. लोग जमे रहे और भाषण भी निर्बाध रूप से चलता रहा. कुछ व्यक्तियों ने बारिश के कारण अपने छाते खोल लिए. इससे सभा में कुछ अव्यवस्थता फ़ैलने लगी. कुछ लोग छाता लेकर नेहरूजी की ओर भी आए. नेहरू जी ने अपने लिए छाता अस्वीकार करते हुए कहा, ‘एकता का महत्व बहुत बड़ा होता है. कुछ लोग छाता लगाकर रहें और बाकि बिना छाते के रहें. यह उचित नहीं है.’ नेहरू जी की यह बात सुनकर लोगों ने तुरंत ही अपने खुले छाते बन्द कर लिए और चुपचाप वे भी भाषण सुनने लगे.
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bahut hi badhiya bahut hi umda