मेरा प्रिय विषय ‘हिन्दी’ – Essay on My Favourite Subject Hindi

दोस्तों ! जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है। इस भाषा का सम्मान करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है। हिंदी का सम्मान यानि देश का सम्मान है। लेकिन तात्कालिक परिस्थितियों में हिंदी भाषा की घोर उपेक्षा हो रही है। आज हमारे देश में ही लोग हिंदी बोलने से कतराते हैं। उन्हें हिंदी में बातचीत करने में शर्म लगती है। हिन्दोस्तां में हिंदी की ऐसी अनदेखी देख मन वाकई विचलित हो उठता है।
“हिंदी पहचान है हिन्दुस्तान की”। अगर हिंदी की अनदेखी इसी तरह से लोग करते रहें तो एक दिन देश की एकता और अखंडता किसी कोने में पड़ी सिसक रही होगी। हालांकि हिंदी की खोई गरिमा को वापस लाने के लिए हमारी सरकार तथा हिंदी प्रेमियों द्वारा समय-समय पर अनेक प्रयास किए जाते रहे हैं। जिनमें से विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) और राष्ट्रीय हिंदी दिवस (14 सितंबर) दो प्रमुख हैं।
भारत में राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत देश की आजादी के बाद हुई। 1946 को 14 सितंबर के दिन संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। फिर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने हिंदी के महत्व को रेखांकित करते हुए 14 सितंबर के दिन को हिंदी दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया। हालांकि आधिकारिक तौर पर पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।
इस प्रकार स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद संवैधनिक तौर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा और राजभाषा का दर्जा दिया गया, क्योंकि यह देश के प्राय: सभी भागों में संपर्क के लिए सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है। या फिर यूँ कहें कि आरम्भ से ही हिन्दी भाषा का चरित्र राष्ट्रीय रहा; और इससे समय पर होने वाली राष्ट्रीय हलचलों की अनुगूँज सुनाई देती रही।
हां यह सर्वाधिक आश्चर्य की बात है कि हिन्दी के विकास और इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में अहिन्दी भाषी विद्वानों का योगदान सर्वाधिक रहा। इन विद्वानों में राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, केशवचन्द्र सेन, स्वामी विवेकानंद, सुब्रह्मण्य अय्यर कस्तूरी रंगा, बाल गंगाधर तिलक आदि विद्वान जो कोई भी हिन्दी भाषी नहीं थे उन्होंने हिन्दी की व्यापकता एवं सरलता के कारण इसे राष्ट्रभाषा के रूप में प्रयोग करने पर बल दिया। वे चाहते थे कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाया जाये और सभी भारतीय भाषाओं की लिपि देवनागरी हो। इस बात का समर्थन सर्वाधिक जिन लोगों ने किया उनमें दो नाम विशेष उल्लेखनीय है – एक तमिलभाषी जस्टिस कृष्ण स्वामी अय्यर तथा दूसरा बंगलाभाषी शारदाचरण मित्र।
सराहनीय है कि इनके प्रयासों के प्रतिफल ही आज हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी की पद प्रतिष्ठा बरकरार है। और हम सभी हिन्द वासियों की पहचान है। हिन्दी समाचार चैनलों की अत्यधिक लोकप्रियता इस बात का उदाहरण है। अंग्रेजी जानने वाले भी अधिकांशत: लोग हिन्दी चैनलों पर ही समाचार सुनना पसन्द करते हैं, क्योंकि अपनी भाषा, देश की भाषा अन्तर्रात्मा का स्पर्श करती है। वह बात दूसरी है कि किसी हीन भावना के कारण दिखावे के लिए लोग अंग्रेजी चैनलों पर समाचार सुनें और उन्हें अधिक पसन्द करने का दिखावा करते हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि अपनी भाषा में जो संवेदनशीलता है वह दूसरी भाषा में कदापि नहीं।
और इसीलिए हिन्दी बोलने समझने वालों की दृष्टि से भी यह विश्व की भाषाओं में तीसरे स्थान पर आती है। विश्व में सर्वाधिक संख्या अंग्रेजी बोलने वालों की है और उसके बाद चीनी भाषियों के तदन्तर हिंदी भाषा ही बोलने वाले माने जाते हैं।
इसका श्रेय अंतर्राष्ट्रीयता की भावना को दिया जा सकता है, क्योंकि जैसे-जैसे अंतर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ हिन्दी का भी प्रचार-प्रसार बढ़ता गया। वर्तमान में विश्व के सभी प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। प्राय: भाषाविदों का मत है कि हिन्दी की ग्राह्य क्षमता की सरलता ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्रदान किया।
मुझे भी यह भाषा अत्यंत प्रिय है। यह एक सरल और सुन्दर भाषा है। हिन्दी भाषा एक ऐसी भाषा है जिसमें बहुत ही अच्छी बातें बतायी गई हैं। हमें इस भाषा में ऐसी-ऐसी जानकारियाँ मिलती हैं जिससे कि हम अपने जीवन को सरलता से बहुत ऊँची चोटी पर पहुंचा सकते हैं। हिन्दुस्तान में ऐसे-ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने हिन्दी भाषा के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया।
हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी गयी है। मेरे पूर्वजों ने अपनी पूरी जिंदगी इस भाषा को समर्पित कर दी। उन्होंने इस भाषा को इतना ज्यादा पसंद किया कि वे अपनी पूरी जिंदगी इस भाषा को सही अर्थ में समझने एवं उसे ऊपर उठाने में लगे रहे। हमारे घर में लोग इस भाषा को बहुत पसंद करते हैं और मैं भी उसी माहौल में पली एवं बड़ी हुयी हूँ, यहाँ तक मुझे सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचाने वाली भाषा सिर्फ हिन्दी ही है, यही कारण है कि मुझे यह भाषा इतनी पसंद है।
यह भाषा मेरे भविष्य के लिए भी उतनी ही हितकर है जितनी कि वर्तमान के लिए। आज वर्तमान में मैं इस भाषा की वजह से सफलता की कई सीढ़ियों को पार कर चुकी हूँ। इसी तरह मैं भविष्य में इस भाषा की वजह से सफलता की सबसे ऊँची चोटी तक पहुँचने का प्रयास करूँगी।
मैं यदि सफल हो गयी तो उसके पीछे सिर्फ इसी भाषा का हाथ रहेगा। जिस तरह इस भाषा से मैं अपनी जिंदगी सुखमय कर रही हूँ, भविष्य में भी मैं इसी तरह करती रहूँगी। यह भाषा मुझे एक सच्चा इंसान बनने की प्रेरणा देती है एवं मुझे यह सच्चा इन्सान बनने को प्रेरित करती है। यदि मैं एक सच्चा इंसान बन जाऊंगी, तो उसके पीछे सिर्फ इसी भाषा का हाथ रहेगा। मैं सदा से इस भाषा का सम्मान करती आयी हूँ, करती हूँ, और आगे भी करती रहूंगी। इस पर मुझें बेहद गर्व है।
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