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दशहरा पर निबंध – Dussehra Essay In Hindi

दशहरा : Dussehra Essay in Hindi  

Dussehra Essay In Hindi -100,150, 200, 250 300 & 500
Dussehra Essay In Hindi

दशहरा एक धार्मिक त्योहार है, जो भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आमतौर पर यह पर्व सितम्बर से अक्टूबर के बीच आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इसलिए इसको दशहरा भी कहते है ।

दशमी से पहले नौ दिन लोग भक्तिपूर्वक देवी दुर्गा की पूजा और रामलीला करते है और इन नवरात्रों का नवा – दसवाँ दिन ही पवित्र विजयादशमी का पर्व होता है। विजयदशमी का पर्व भारत के सभी हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन उत्तरी भारत में यह बहुत ही उमंग व उल्लास के साथ मनाया जाता है । पश्चिम बंगाल में इसे दुर्गापूजा के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

दशहरे / विजयदशमी का आकर्षण

विजयदशमी का सबसे बड़ा आकर्षण ‘रामलीला’ होता है। कोई भारतीय ऐसा नहीं होगा, जिसने कभी-न-कभी और कहीं-न-कहीं रामलीला न देखी हो। राम की कथा का प्रचार हमारे देश में ही नहीं अपितु बाहर के भी अनेक देशों में है। उन देशों में भी रामलीला के प्रदर्शन हर साल होते हैं। इस सिलसिले में इंडोनेशिया का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

हमारे देश में रामलीला का इतना प्रचार है कि छोटे – बड़े शहरों, नगरों के अतिरिक्त गाँवों में भी लोग बड़े उत्साह से इसका आयोजन करते हैं। नगरों में कई स्थानों पर एक साथ रामलीला होती है। राम-जन्म, सीता-स्वयंवर, लक्षमण-परशुराम-संवाद, सीता-हरण, हनुमान द्वारा लंका-दहन, लक्षम-मेघनाद-युद्ध आदि के दिन तो दर्शकों को अपार भीड़ रामलीला-मंडप में दिखाई देती है। सचमुच रामलीला के दिनों की चहल-पहल देखने योग्य होती है। रातभर दर्शकों का ताँता लगा रहता है।

रामलीला का मंचन प्राय: तुलसीदास जी के संसार-प्रसिद्ध ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ के आधार पर होता है। मंच के एक ओर बैठे व्यास जी ‘मानस’ की पंक्तियाँ गाते जाते हैं और उन्हीं के अनुसार पात्र अभिनय करके कथा आगे बढ़ाते हैं।

अंतिम दिन की रामलीला रंगमंच पर न होकर खुले मैदान में होती है । जहाँ राम-रावण युद्ध होता है और राम रावण का बध करते हैं । उसके तुरंत बाद रावण का पुतला जलाया जाता है । इस पुतले को बनाने में कई दिन लग जाते हैं।

विजयदशमी के दूसरे दिन भरत-मिलाप का उत्सव मनाया जाता है। उस दिन का दृश्य बड़ा हृदयहारी होता है। नंगे पैरों भागते हुए भरत बड़े भाई राम के चरणों पर गिर पड़ते हैं। श्रीराम अपने भाई को बीच में ही रोकर उन्हें अपनी विशाल भुजाओं में ले लेते हैं। इस दृश्य को देखकर सभी की आँखे आँसुओं से भर जाती हैं। 

दशहरे / विजयदशमी की पौराणिक कथा

पवित्र पर्व दशहरे से अनेक धार्मिक कथाएँ भी जुडी हुई हैं, पृथक – पृथक कथाओं और मान्यताओं के आधार पर सभी लोग इसे अनेक प्रकार से मनाते हैं। लेकिन भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध किए जाने की कथा सबसे अधिक प्रचलित हैं

संसार के महापुरुषों में भगवान रामचंद्र का जीवन सर्वश्रेष्ठ और मर्यादाओं में दीप्तिमान था, ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर धर्म और न्याय की प्रतिष्ठा की तो लोगों ने आज के दिन ही नाटक द्वारा बड़े उत्साह के रूप में रावण का पुतला बनाकर उसको जलाना आरम्भ कर दिया और आज के दस दिन पूर्व से भगवान रामचंद्र का सम्पूर्ण जीवन चरित्र अभिनय द्वारा ही दिखाना शुरू कर दिया।

बहुत लोग इस पर्व को भगवती “विजया” के नाम पर भी विजयदशमी कहते है और दुष्ट व भयंकर राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का प्रतीक मानते है। लोक कथा के मुताबिक भगवती महिषमर्दिनी ने विजयादशमी की पूण्यतिथि को महिषासुर के आसुरी दर्प का दलन किया था। इसी कारण से यह पर्व विजयदशमी कहलाया।

वही एक अन्य लोक कथा के मुताबिक जगदम्बा ने अपनी विभिन्न शक्तियों के साथ शारदीय नौवरात्रि के नौ दिनों तक शुम्भ – निशुंभ की आसुरी सेना से युद्ध किया और अंत में दशमी के दिन क्रमशः दोनों का बध करके देवशक्तियों का त्राण किया और तब से विजयादशमी को माता आदि शक्ति की उस विजय गाथा के प्रतीक रूप में तथा महापुण्यकरी पर्व के रूप में मानाते है । इसीलिए इस पर्व का नाम विजयदशमी पड़ा।

इस त्यौहार को मनाए जाने के पीछे एक अनोखा सांस्कृतिक पहलू भी प्रचलित है। भारत कृषि प्रधान देश है । जब किसान अपने खेत में फसल उगाकर अनाज रूपी सम्पति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता । इस प्रसन्नता को वह भगवान की कृपा मानता है और उसे प्रकट करने के लिए दशहरा पूजन करता है ।

इस दिन महिलाएं सोने जैसी पीली-पीली जौ की नवीन कपोलों को अपने – अपने कानों में खोसे हुए गाते – बजाते गांव की सीमाएं लाँघकर दुसरे गांव वालों को देने जाती है । बहने अपने भाइयों के कानों में नौरते रखकर उपहार पाती है । 

दशहरे / विजयदशमी का महत्व

दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों – काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, हिंसा, और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है । भारत के अधिकतर हिन्दू परिवारों में इस दिन कोई भी अच्छा कार्य करना शुभ माना जाता है। केरल में इस दिन औपचारिक रूप से शिक्षा आरम्भ होती है।

यह शस्त्र पूजन की भी तिथि है। यह तिथि उत्तम होने के कारण नये कार्य का आरम्भ करने के लिए भी अत्यन्त शुभ माना जाता है। इस दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभ माने जाते है।

देश के विभिन्न भागों में अलग अलग प्रकार से मनाया जाने वाला दशहरा भारत की विविधता में एकता का भी प्रतीक है। यह दशहरा का पर्व हमारी परम्परा, गौरव और संस्कृति का प्रत्यक्षीकरण कराता है। यह देश के उत्थान में बहुत सहायक है। यह उत्सव हमें यह शिक्षा देता है कि अन्याय, अत्याचार और दुराचार को सहन करना भी एक महापाप है। वीर – भावनाओं से युक्त दशहरा हमें राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता की प्रेरणा देता है। आतताइयों को समाप्त करने का संकेत प्रदान करता है। हमें ही नहीं भ्रष्ट व्यापारी वर्ग, उत्कांक्षी नेता एवं गुंडों को भी इससे शिक्षा लेनी चाहिए कि हम अपने अन्याय की अति न करें।

वास्तव में यह त्योहार बुराई पर भलाई की विजय, न्याय की अन्याय पर विजय और सत्य पर झूठ की विजय की याद दिलाता है। यह त्योहार हमें अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाता है। इस सुन्दर त्योहार से जुड़े सभी प्रसंग हमें सिखाते है कि दुराचार का नहीं, बल्कि सदाचार का अनुकरण करें। दुराचार अधिक समय तक नहीं टिक सकता, जबकि सदाचार हमेशा जीवंत रहता है। 

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Babita Singh
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