शिक्षक दिवस के लिए भाषण

नमस्कार ! सर्वप्रथम सांसारिक अथवा पारमार्थिक ज्ञान देने वाले संसार के हर गुरु को उनके शिष्यों के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मैं आदरणीय प्रिन्सिपल और सभी टीचर्स का बहुत आभारी हूं कि जो उन्होनें आज के इस शिक्षक दिवस समारोह के जरिए मुझे अपने निष्ठावान शिक्षकों को याद करने और उनके सम्मान में कुछ कहने के लिए मौका दिया।
गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, सन्त, मुनि आदि सब ने गुरु के इसी रूप को जाना और माना हैं। और आज अगर हम सभी “शिक्षक दिवस” के इस कार्यक्रम में एकत्रित हुए हैं तो वो भी सिर्फ इसीलिए ताकि निस्स्वार्थ भाव से पढ़ाने वाले शिक्षकों को उनके बहुमूल्य कार्य के लिए सम्मानित कर सकें।
ये सर्वविदित है कि किसी भी सभ्य एवं शिक्षित समाज का निर्माण शिक्षक वर्ग ही करते हैं । हमारे शास्त्रों में भी ज्ञान की शिक्षा देने वाले गुरू को श्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण माना गया है। माता पिता हमें जन्म देते हैं लेकिन हमारे ज्ञान, कौशल के स्तर को बढाकर एक अच्छा और सफल इंसान बनाने वाले शिक्षक ही होते हैं।
शिक्षक जीवन भर संघर्ष की धूप में जल कर अपने शिष्य को हमेशा ज्ञान का अमृत पान कराते हैं। इस धरती पर विद्यार्थी के लिए भगवान के सामान होते हैं शिक्षक।
बच्चें की ज़िंदगी पर अनन्तकालीन प्रभाव डालने वाले, उसका सच्चा मार्गदर्शक केवल शिक्षक ही होते है। उसके प्रभाव को किसी पैमाने से नापा या तौला नहीं जा सकता है। वास्तव में जो शिक्षा और संस्कार शिक्षक अपने बालकों को देता है वह अनमोल और अद्भुत होता है।
यद्यपि कभी-कभार शिक्षक विद्यार्थी के साथ कठोर रवैया अपनाता है। लेकिन यह विद्यार्थी के भले के लिए करता है। जबकि अन्दर से एक सौम्य व कोमल दिल वाला शिक्षक होता हैं। उसका हृदय तो विद्यार्थियों के कल्याण की कामना से हमेशा भरा होता है। जैसे कुम्हार नहीं चाहता है कि, उसके हाथ के बनाये बर्तन टूट – फूट जायें. ठीक उसी प्रकार कोई भी शिक्षक नहीं चाहता कि उसके विद्यार्थी कभी जीवन में असफल हो जायें। और जैसे कुम्हार ऊपर से चोट करता है किन्तु बर्तन को आकार प्रदान करने हेतु अन्दर हाथ का सहारा देता है, ठीक उसी प्रकार अपने विद्यार्थी को उन्नति के पथ पर देखने के लिए वह उनको दण्ड भी देता है, और डांटता भी है।
वास्तविकता में विद्यार्थी की जिंदगी की मुश्किल से मुश्किल राह, शिक्षक के साथ व सहयोग से आसान होती है। इन शिक्षकों से नव संदेश पाकर विद्यार्थी जीवन हमेशा से प्रेरित होता रहा है। अगर इनका सम्बल न होता तो विद्यार्थी जीवन में ना तो स्फूर्ति भर सकते है और ना सफलता पा सकते है। वास्तव में शिक्षक इस समाज की सच्ची संपत्ति हैं।
शिक्षक जनमन के नायक, राष्ट्र के उन्नायक हैं। असल में शिक्षक समाज के प्राण हैं। शिक्षक ही देश के अनमोल रत्न हैं जो किसी पद या सम्मान के मोहताज नहीं हैं बल्कि पद और सम्मान उनके नाम से गरिमामय हैं।
भारतीय दर्शन में भी शिक्षक को गुरु के रूप में सम्मानित किया गया है जो अपने ज्ञान, प्रज्ञा, अपरिग्रह एवं आदर्श आचरण के द्वारा समाज में एक अत्यंत सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया। ऐसे में देश के प्रत्येक व्यक्ति को अपने शिक्षक के लिए आवश्यक होता है कि वह जिस दशा में है जिस परिस्थिति में है जहां भी है, आज का दिन अपने शिक्षक को समर्पित कर दे।
यह बात आपको बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि हमारे सच्चे हितैषी, परम प्रेरणादायक गुरुजनों को समर्पित एक विशेस दिन (शिक्षक दिवस) निर्धारित हैं। जिसका जश्न भारत सहित विश्व भर में मनाते है।
शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) शिक्षक के आदर और सम्मान मनाया जाने वाला भारत का एक गौरवशाली राष्ट्रीय पर्व है। इसे हर साल 5 सितम्बर (5th September) को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में 1962 से मना रहें हैं।
इस अवसर पर महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का भी हम तहेदिल से अभिनन्दन करते हैं जो इस दिन के लिए प्रेरणास्रोत है और जिनके जन्मदिन पर टीचर्स डे प्रभावी हुआ। आप को बता दे कि डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ऊँचे दर्जे के इंसान थे । अध्ययन – अध्यापन से उन्हें गहरा लगाव था । शीर्ष पद पर पहुँचने पर भी ये अपने आप को अध्यापक ही मानते थे।
डा. सर्वपल्ली निश्चित रूप से फूलों के बीच गुलाब की तरह थे। उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के कारण इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता हैं । ऐसे महानायक के जन्मदिन को टीचर्स डे के रूप में मनाना हम सब के लिए वाकई बड़े ही गर्व की बात है। लेकिन शिक्षक दिवस के महत्व को भी हमें समझना होगा।
हमारे देश में जब से शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ है, शिक्षकों की गरिमा में काफी कमी आ गई है। वे अध्यापक जो कभी विद्यार्थियों के आदर्श हुआ करते थे, आज स्वयं को उपेक्षित मह्सूस कर रहें हैं। उनका सामाजिक सम्मान पहले जैसा नहीं रह गया है। ‘आचार्य देवो भव’ महज एक आदर्श वाक्य बनकर रह गया है। छात्र – छात्राएं अपने शिक्षकों के समक्ष ही अशोभनीय आचरण करते हैं जो कि अनुचित है। विद्यार्थियों को शिक्षकों का आदर करना चाहिए।
हमारे शिक्षक है तो ही हम शिक्षित हैं, हमारे मन में इन आदरणीय गुरुजनों के प्रति आदर और सम्मान का भाव होना चाहिए। ऐसे लोगों को कठोर दण्ड मिलना देना चाहिए जो अपने शिक्षकों के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं। शिक्षक दिवस तभी मनाना सार्थक होगा।
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