राखी पर निबंध – Raksha Bandhan Essay in Hindi

रक्षा बंधन पर निबंध (150 Words)
रक्षा बन्धन समाज में अत्यधिक व्यापकता और गहराई से समाया हुआ भाई-बहन के अटूट प्रेम, स्नेह और परस्पर विश्वास का प्रतीक पावन पर्व है। गौरतलब है की रिश्तों में सबसे अनमोल और सबसे प्यारा रिश्ता भाई-बहन का ही होता है। जिसमें नोक-झोंक के बावजूद भी मिठास बनी रहती है। भाई और बहन के इसी अनूठे रिश्ते को समर्पित रक्षा बन्धन एक बेहद खुबसूरत पर्व है या फिर यूं कहें कि यह उनके आपसी प्रेम की डोर का दिन है। एक ऐसी डोर जो न सिर्फ बहन भाई के बीच के प्रेम और विश्वास के धागे को पिरोता है अपितु उन्हें संजोता भी है।
आमतौर पर यह पर्व श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन पूरे देश में बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इस त्यौहार का विशेष महत्व है। साथ ही भाई-बहन का भी यह अत्यंत प्रिय पर्व है। बहनें मुख्य रूप से इस दिन अपनी भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हुए अपने भाई की अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की मंगल कामना करती है और बदले में भाई, अपनी बहनों की हर प्रकार के अहित से रक्षा करने का वचन उपहार के रूप में देते हैं। रक्षा बंधन को हिन्दू महिना सावन में पड़ने के कारण श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है।
रक्षा बंधन पर निबंध (250 Words)
रक्षाबंधन भारत के सबसे महान और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है जो बेशक भाई-बहन के अटूट रिश्ते, बेइंतहां प्यार, त्याग और समर्पण को दर्शाता है। आमतौर पर भाई-बहन का रिश्ता प्यार और मीठे तकरार से भरा होता हैं। भाई बहन के खट्टे मीठे इस रिश्ते की अपनी एक अलग खासियत भी होती है। एक दूसरे से लड़ना-झगडना, नोक झोक और फिर दोस्ती तो जैसे इस अनोखे रिश्ते की जान होती हैं। इनका आपस में इस तरह मीठी तकरार करना मानों कुदरती उपहार हो। रक्षाबंधन भाई और बहन के इसी प्यारे रिस्ते का बखान करता है।
वर्तमान में यह पर्व भाई-बहन के प्रेम के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांधती हैं, वहीं भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। राखी शब्द संस्कृत शब्द के रक्ष से बना है जिसका तात्पर्य रक्षा करना है। यही वजह है कि ये रेशम के कच्चे धागे जब भाई की कलाई पर एक बार बंध जाते हैं तो वह अपनी बहन की रक्षा के लिए वचनबद्ध हो जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी इस पर्व की बड़ी महानता है। ऐसा कहा जाता है कि जब सुल्तान बहादुरशाह ने चारों ओर से चित्तौड़गढ़ को घेर लिया था तब चित्तौड़गढ़ की महारानी कर्मवती ने अपनी रक्षा के लिए हुमायूं के पास राखी भेजी थी। और तब राखी के बन्धन में बंधा हुमायूँ अपने सभी बैर-भाव को भुला कर उस महारानी की रक्षा के लिए दौड़ पड़ा। इस प्रकार रक्षाबंधन का त्योहार जाति धर्म के झगड़े से ऊपर उठकर भाई बहन के निर्मल प्यार का प्रतिक एक त्योहार हैं।
रक्षा बंधन पर निबंध (500 Words)
रक्षाबन्धन भारत का एक महान हिन्दू त्योहारों है जो विशेष रूप से भाई-बहन के प्यार को समर्पित है। इस दिन को हिन्दू भैया बहिन बड़ी श्रद्धापूर्वक मनाते है। बहिनें अपनी खुशियों का इजहार महीनों पूर्व से विशेस राखी चुनकर करती है। फिर त्यौहार के दिन वही राखी बहिनें अपने भाई को बाँधते हुए उसके अच्छे और सुरक्षित भविष्य की कामना करती है।
इस अवसर पर विवाहित बहिनें भी ससुराल से आपने मायके जाती हैं और भाइयों की कलाई पर राखी बाँधने का आयोजन करती हैं। वे भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं तथा राखी बाँधकर उनका मुँह मीठा कराती हैं । और बदले में भाई भी जीवन भर उनकी पूर्ण रक्षा करने का वचन देते हैं। ऐसा करने से जहां भाई और बहन के बीच प्यार प्रगाढ़ होता है वहीं उनका रिश्ता और अधिक गहरा, निःस्वार्थ मृदुल व मजबूत बनता है।
हिंदू पुराण कथाओं में ऐसी मान्यता है कि इस दिन बहनें सिर्फ भाई की कलाई पर धागा नहीं बाँधती, वरन स्नेह का ऐसा मजबूत सूत बाँधती है जोकी मात्र सूत होने पर भी भाई-बहन के जीवन को पावन और नैतिकतापूर्ण बनाते हैं साथ ही समस्त जीवन में नैतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना में सहयोगी बनते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, रक्षाबन्धन प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को सारे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे सारे राष्ट्र में अनेक नामों से जाना जाता है पर श्रावण (सावन) मास में मनाये जाने के कारण अधिकतर इसे श्रावणी (सावनी) या सलोनी कहा जाता हैं। इस पर्व पर रक्षा (राखी) के धागों में बहन का प्यार और मंगल कामनाएं एकत्र करके भाईयों की कलाईयों में बांधने की पवित्र प्रथा युगों – युगों से इस देश में चली आ रही है। इसलिए इसे राखी पूर्णिमा का त्यौहार भी कहा जाता है।
रक्षा बंधन का इतिहास (History of Raksha Bandhan in Hindi)
इस त्यौहार का आरम्भ और प्रचलन अत्यंत प्राचीन है। परन्तु रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है पर अगर एक दृष्टि अपने शास्त्रों पर डाले तो वहां से पता चलता है कि प्राचीन काल में पुरोहित राजा और समाज के वरिष्ठजनों को श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा – सूत्र बांधते थे। रक्षासूत्र के बाँधने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता था कि राजा और वरिष्ठजन समाज, धर्म, यज्ञ एवं पुरोहितों की रक्षा करेंगे। ऐसी मान्यता है कि इस प्रथा का प्रचलन देवासुर संग्राम से हुई थी।
भविष्य पुराण के अनुसार जब इंद्र और दैत्यराज बली के मध्य भयंकर युद्ध हुआ तब इंद्र के पराभव पर उनके अपमान से विचलित हो उनकी पत्नी शची ने भगवान विष्णु से परामर्श किया। इस पर भगवान विष्णु ने शची को धागे के रूप में राखी देकर इंद्र की कलाई पर बांधने को कहा।
शची ने ऐसा ही किया। परिणामस्वरूप इन्द्र ने उसके प्रभाव से महान शक्ति प्राप्त कर अमरावती (इंद्र की राजधानी) पर विजय प्राप्त की। अत: सुरक्षा की दृष्टि से युद्ध में जाते समय योद्धाओं की कलाई पर राखी बांधने का प्रचलन आरम्भ हुआ।
भगवान श्री कृष्ण का द्रौपदी को बहन के रूप में मानने का कारण भी रक्षाबंधन रहा है। शिशुपाल वध के समय भगवान श्रीकृष्ण की कटी उंगली पर द्रौपदी ने साड़ी का टुकड़ा बांध दिया। उनके इस कार्य से कृष्ण बहुत अभिभूत हुए और बहन मानकर समय आने पर उनका कर्ज चुकाने का वादा किया जिसे उन्होंने चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा कर पूरा किया।
रक्षाबन्धन पर्व भारत के अलग-अलग प्रान्तों में भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमायुं में रक्षाबन्धन ‘जन्योपुन्य’ नाम से मनाया जाता है। उस दिन मनुष्य शरीर पर धारित जनेऊ (यज्ञोपवीत) को बदलते हैं और चम्पावत जिले के देवीधुरा नगर में बगवाल का मेला लगता है।
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस पर्व को झूलन पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर राधा और कृष्ण की अराधना की जाती है। बहनें भाइयों को राखी बाँधकर कर उनकी अमरता की प्रार्थना करती हैं। राजनीतिक दल, अधिकारी गण, मित्र मण्डल, विद्यालय के छात्र और छात्राएँ आदि सभी लोग अच्छे संबंधों तथा नई आशा के साथ कल्याण की कामना करते हुए इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते है।
इस प्रकार रक्षाबंधन मनाने की जो प्रथा पहले भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में शुरू हुआ था वह आजकल किसी विशेस रिश्ते का न होकर विश्वबंधुत्व का संदेश देने वाला पर्व बन चूका है।
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