नशा पर निबंध – Nasha Mukt Bharat in Hindi

Nasha Essay In Hindi – नशा एक अभिशाप है । यह एक ऐसे मादक और उत्तेजक पदार्थ है, जिनका प्रयोग करने से व्यक्ति अपनी स्मृति और संवेदनशीलता अस्थाई रूप से खो देता है। वैसे तो नशे का चलन समाज में आदि काल से रहा है। भारत में मादक द्रव्यों के उपयोग का पहला सन्दर्भ ऋग्वेद में मिलता है। लगभग 2000 ईसा पूर्व व्यक्ति विभिन्न उत्सवों पर सोमरस का पान करते थे। जोकि एक प्रकार का मधुरस (नशा) था। लेकिन आधुनिक युग में पाश्चात्य संस्कृति से नशे को नए रूप मिले हैं। इसमें विशेष रूप से चरस, गांजा, भांग, अफीम, स्मैक, हेरोइन जैसी ड्रग्स उल्लेखनीय हैं। शराब भी इसी प्रकार का एक नशा है।
अपने देश का दुर्भाग्य है कि लोग पाश्चात्य संस्कृति से इस नए रूप को ग्रहण तो कर रहे हैं, पर उनका अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है। आज अकेले भारत में बड़ी संख्या में लोग नशीले पदार्थों के सेवन से जान गवा रहे हैं। सोचने की बात तो यह है कि भारत में नशाखोरी अब किसी एक राज्य की समस्या भर नहीं रह गई है, अपितु देश के लगभग सभी राज्य इस समस्या से जूझ रहे हैं।
बेहद अफसोसनाक तो ये है कि समाज में बढ़ते नशे के इस नए रूप से पीड़ित आज का अधिकांश मासूम किशोर व युवा पीढ़ी है। हालाँकि अपनी सरकार इन पीड़ित मासूम किशोरों एवं युवाओं को नशे के चुंगल से छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति अभियान जैसे अनेक मुहीम चला रही हैं, ताकि जल्द से जल्द नशीले पदार्थों जैसे शराब तम्बाकू और गुटखे पर रोक लगा सके।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस नशीली दवाओं की रोकथाम की दिशा में एक बड़ा आयोजन है जो वैश्विक स्तर पर मुहीम चलाकर काम करता है। संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से इस दिवस की स्थापना वर्ष 1987 में हुई थी। लोगों को नशे से मुक्त कराने और उन्हें जागरुक करने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ तथा समाजसेवी संगठनों द्वारा नशीले पदार्थों के खिलाफ जनजागरूकता अभियान चलाया जाता हैं। इस साल अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस का थीम बेहतर देखभाल के लिए बेहतर ज्ञान जरूरी है (Better Knowledge For Better Care) है।
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पर नशे के जाल और दुष्परिणाम को समझना भी बेहद जरुरी हैं। क्योंकि इसने बहुतों मासूम किशोरों को अपने चंगुल में कर लिया है। आँकड़ो की आइने में देखें तो मासूम किशोरों में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवन शैली, परिवार का दबाव, परिवार के झगड़े, इन्टरनेट का अत्यधिक उपयोग, एकाकी जीवन, परिवार से दूर रहने, पारिवारिक कलह जैसे अनेक कारण हैं। बरहाल कारण जो भी हो पर इसके दुष्प्रभाव और दुष्परिणाम, दोनों ही खतरनाक हैं।
नशे के नुकसान या दुष्परिणाम
नशाखोरी किसी भी समाज में विलासिता और अकर्मण्यता पैदा करने का सबसे सरल उपाय है। यदि किसी व्यक्ति को इसकी आदत हो जाती है तो वह कई प्रकार की बीमारियों का शिकार हो जाता है । नशे में डूबा इंसान अपने अच्छे बुरे की पहचान भी खो देता है । एक जानकारी के अनुसार नशे के सेवन से दिमाग की कोशिकाओं पर बहुत बुरा असर पड़ता है जो एक बार क्षतिग्रस्त होने पर दुबारा नहीं बन पाती है। इस विश्वव्यापी नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ लगभग सभी देशों में रोक है और रोकथाम के कड़े कानून भी बने हैं।
नशे की रोकथाम के उपाय –
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या पर काबू पाने के लिए अस्सी साल पहले से ही प्रयास किया जा रहा है जब अफीम को अंतर्राष्ट्रीय न्याय सीमा के भीतर लाया गया था। इस मामले में नवीनतम प्रयासों को देखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेम्बली ने 90 के दशक को ‘नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ दशक’ घोषित कर दिया है।
नशीली वस्तुओं का धन्धा करने वालों को कठोरता से दबाने के लिये भारत सरकार भी कठोर दण्ड देने पर विचार कर रही है जिससे नशे का बढ़ता हुआ जाल रोका जा सके। सरकार नशीली वस्तुओं की तस्करी और अवैध धन्धा करने वालों को मृत्युदंड देने तक के लिए संसद के मानसून अधिवेशन 1988 में एक विधेयक पारित किया, जोकि 29 मई 1989 से ही प्रभावी भी हो गया। सरकार ने इसके लिए मादक द्रव्य नियन्त्र ब्यूरो की भी स्थापना की।
अन्य उपायों में पंजाब और राजस्थान से लगी हुई भारत – पाक सीमा पर 3000 किमी. तक कंटीले तार लगाए जाने की योजना है। इतना ही नहीं, भारत सरकार ने मादक द्रव्यों के खिलाफ लड़ाई के लिए गैर सरकारी संगठनों को सहयोग देने का भी फैसला लिया है। लेकिन अफसोसजनक यह है कि आज समाज में धन के साथ – साथ इन्हीं चीजों को प्रतिष्ठा मिल रही है, इनकी गति भी इतनी तीव्रतर एवं तीव्रतम है कि नशाबन्दी की दिशा में इतने शख्त कानून बनने के बावजूद भी कोई लाभ होता न दिखाई पड़ रहा है। सच तो यह है कि समस्या के विकराल रूप को देखते हुए ये सभी कानून और अन्य उपाय नाकाफी हैं। नशा जैसी सामाजिक बुराई को केवल कानून और दण्ड के बल पर दूर नहीं किया जा सकता।
जिंदगी तबाह करने वाली इस सर्वनाशी नशा से मुक्ति हेतु सामाजिक चेतना, जागृति और एक जुट होकर मजबूत प्रयास करने की जरुरत है। यदि जाग्रति की यह प्रक्रिया सामाजिक अभियान बनाकर छेड़ी जाए तो कोई कारण नहीं कि इन अवांछित मूल्यों से निजात नहीं पाई जा सकती, परन्तु यह मात्र कहने एवं व्याख्यान, प्रवचन से संभव नहीं हो सकता। दृढ़ इच्छाशक्ति एवं संकल्पशक्ति के द्वारा सतत भागीरथप्रयास से इसे किया जाना संभव है और यदि ऐसा होता है तो समाज से नशा का तीव्र प्रभाव घटेगा। इसके घटते ही अन्य सामाजिक बुराइयाँ भी घटने लगेंगी। क्योंकि सारी बुराईयों की यही तो जड़ है।
अत: सभ्य एवं श्रेष्ठ समाज गढ़ने के लिए निर्विरोध रूप से सरकार और जनता दोनों का सक्रिय सहयोग ही सफल हो सकता है। सरकार और जब सारा समाज एक जुट होकर नशे के खिलाफ कब्र खोदने के लिए कमर कस लेगा, यह बुराई तभी समाप्त होगी। और हानि केवल एक होगी और वह है आर्थिक। सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि सबसे अधिक राजस्व सरकार को एक्साइज से मिलता है। आज भी शराब का एक ठेका लाखों में उठता है।
दोस्तों यहां उपलब्ध “नशा मुक्ति पर निबंध और भाषण” केवल साधन नहीं है, बल्कि जनजागरूकता फैलाकर नशा मुक्ति भारत अभियान को तेज करने का हमारा एक छोटा प्रयास है। आशा करती हूँ यह जानकारी आपके द्वारा अवश्य सराही जायेगी। धन्यवाद !
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