बच्चों को अनुशासन में रखने के उपाय (Baccho ko anushasan me rakhne ke upay)

Parenting Tips In Hindi – यह तो हम सब जानते हैं कि अनुशासन बच्चे को अच्छा, सुघड़ एवं सुशील बनाता है। पर यह बात बच्चो को कैसे समझाएं? जबकि हम सबकी यह हार्दिक इच्छा रहती है कि हमारा बच्चा धनात्मक सोच वाला, कर्तव्यनिष्ठ, विवेकी एवं कठोर परिश्रमी बनें। उसे समाज का हर व्यक्ति पसंद करें। उसकी प्रशंसा करें। पर वास्तविकता तो इसे बहुत परे होती है। हम स्वयं ही दूसरे बच्चों का उदाहरण पेश कर अपने बच्चों की उपेक्षा करते रहते है कि देखो “फलां बच्चा कितना अच्छा, सुशील, सुघड़ एवं अनुशासित है। तुम भी वैसा ही बनो।”
इस उपेक्षा और उलाहना के बीच हम यह क्यों भूल जाता हैं कि हमारा बच्चा सबसे पहले हमसे ही तो अनुशासन का पाठ पढ़ता है। ऐसे में जब हम लोग ही उसके प्रति कठोर रवैया अपनायेंगे तो भला वह क्या सीखेगा। और तो और हमारे व्यवहार के कारण वह अधिक अनुशासनहीन उद्दंड, उच्छृंखल, अविवेकी, क्रोधी, जिद्दी और दुराचारी बन जाता है। बेवजह दूसरों को परेशान करता रहता है। दूसरे बालकों के साथ मारपीट करता है। और हम यह कहकर अपने उत्तरदायित्वों से पीछा छुड़ा लेते है कि बच्चा मेरी बात नहीं सुनता, बच्चे की संगति ही ख़राब हैं या फिर बच्चा बहुत जिद्दी हो गया है, दिन – रात टीवी देखता रहता है इत्यादि।
माँ – बाप बच्चों के संस्कारहीनता का सारा दोष भले ही मोबाइल या टीवी पर मढ़ देते हो लेकिन असलियत में बच्चों के संस्कारहीनता के सबसे पहले जिम्मेदार माता – पिता होते है क्योंकि बच्चा सबसे पहले वही सीखता है जो आपको करते हुए देखता है। बच्चा अपने आस – पास के वातावरण से सबसे ज्यादा सीखता है। जब बच्चा सच बोलना, सहयोग करना, दया करना, निष्पक्षता, आज्ञापालन, राष्ट्रीयता, समयबद्धता, करुणा आदि मानवीय गुणों का पालन करते हुए आपको देखेगा तो ये गुण खुद-ब-खुद उसके अन्दर विकसित हो जायेंगे।
अत: पेरेंट्स होने के नाते आपका यह प्रथम दायित्व बनता हैं कि बच्चों के व्यवहार को एक सही दिशा दें। परन्तु अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासित रखने के लिए बहुत ज्यादा मारते – पीटते हैं, छोटी – छोटी गलतियों के लिए कठोर सज़ा देते हैं। पर बच्चों को अनुशासन सिखाने का मतलब, उन्हें सजा देना नहीं होता, बल्कि आपको उन्हें अच्छे व्यवहार प्रतिमानों को सिखाना होता है जो समाज एवं संस्कृति द्वारा मान्य होते हैं और जिससे बच्चे के सामाजिक समायोजन में सहायता मिलती है। बच्चे तो कच्चे घड़े की भाँति होते है, जिसे सुंदर रूप देने के लिए समय – समय पर डांटना- फटकारना, मारना – पीटना भी जरूरी होता है। कविता की ये पंक्तियाँ प्रासंगिक सिद्ध होती हैं-
“गुरु कुम्हार है, शिष्य कुंभ, घड़ी – घड़ी काढै खोट,
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर – बाहर चोट।”
बच्चे छोटे हो या बड़े उनमें गुणों को विकसित करने के लिए माता-पिता को कभी-कभी सख्ती से डांटना पड़ता है। मैं भी जब छोटी थी तो अकसर अपने माता – पिता से डांट- फटकार सुनती थी। चुकि मेरे परिवार का आकार बहुत बड़ा था, इसलिए डांटने वालों की संख्या भी अधिक थी, और घर के बड़े बुजुर्गों के हस्तक्षेप करने पर माँ – पापा का तर्क भी काफी हद तक सही होता है कि वे हमें हमारी बेहतरी के लिए डांटते हैं, लेकिन यह सोच सिर्फ मेरे माता-पिता की नहीं है बल्कि हमारे घर जैसे हर साधारण माता – पिता की यही सोच होती है पर क्या बच्चों को डांटने के प्रति आप भी ऐसी ही सोच रखते हैं, तो यह बातें जान लेना आपके लिए बेहद जरुरी है।
मनोचिकित्सकों के इस बात को पढ़कर शायद आप हैरान हो जायेंगें कि जब आप अपने छोटे बच्चे को डांट रहे होते हैं, तो उसका ध्यान केवल इस बात पर होता है कि आपकी टोन कैसी है, आप किन शब्दों का प्रयोग कर रहें हैं और वह आपकी डांट से स्वयं को कैसे बचाएं। बच्चे को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि उन्हें डांट क्यों पड़ रही है? बच्चों को लगता है मम्मी – पापा उन्हें बेवजह डांटते रहते है और उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है, और यही सोच उनकी मानसिकता पर बहुत गहरा असर करता है।
अमेरिका के मैसच्यूसेट्स संस्थान के जस्टिस रिसोर्स इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस मानसिक दबाव का नकारात्मक असर बच्चों के जीवन पर यौन शोषण से भी गहरा होता है। यह अध्ययन मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण झेल चुके 5616 किशोरों पर किया गया। इनमें से आधे से अधिक युवाओं ने बचपन में कभी न कभी मानसिक प्रताड़ना को अनुभव करने की बात कही जबकि बाकि बचे युवाओं ने माना कि बचपन में उन्हें गलत काम करने पर हर बार मारा, डराया, धमकाया गया।
इस अध्ययन के दौरान जब और गहराई से जांच की गयी, तो पाया गया कि बचपन में शारीरिक शोषण का शिकार हो चुके बच्चों के मुकाबले मानसिक शोषण झेलने वाले किशोरों का जीवन ज्यादा नकारात्मक था। उनका आत्मविश्वास लगभग शून्य था। वे तनाव और चिंता से ग्रस्त थे और उनमें डिप्रेशन जैसे लक्षण भी नजर आ रहे थे। यहां तक कि मानसिक दबाव में आ कर वे आत्महत्या की कोशिश भी कर चुके थे। दरअसल, शोध में यह पाया गया कि डांटे जाने पर बच्चे जबरदस्त मानसिक दबाव में आ जाते हैं और उनमें डिप्रेशन जैसे लक्षण भी नजर आने लगते हैं।
कुछ बच्चे इस कारण हीन भावना का शिकार हो जाते हैं और अपने खेल में सिमटते जाते हैं, यह सोचते हुए कि वे किसी काम के लायक नहीं हैं। कुछ को लगने लगता है कि घर में उन्हें कोई प्यार नहीं करता और वे अवांछित महसूस करने लगते हैं। बात बस यही खत्म नहीं होती है, बच्चों को तनाव देने वाला आपका डांटना जिसमें चिल्लाना भी शामिल है आगे बढ़कर उन्हें भी ऐसा करना सीखा देता है। जब बच्चे आपसे शांत रहना सीख सकते है, फिर चिल्लाना सीखने में उन्हें दिक्कत क्यों होगी। हालांकि ऐसा आप बिलकुल भी नहीं चाहेंगें, पर वो तो वैसा ही करेंगें।
अधिक डांट, डपट और प्रभुत्वशाली वातावरण में पलने-बढ़ने वाले बच्चों में अपराधी बनने की प्रवृत्ति भी प्रबल हो जाती है, क्योंकि वे माता-पिता की डर से अपने भीतर छीपे संवेगों को दबाये रखते हैं। परन्तु वे संवेग भीतर-ही-भीतर उनके व्यवहार को जटिल बना देते हैं। यद्यपि वे संवेगों को दबाकर रखते हैं, परन्तु उसकी चिंगारी अंदर-ही-अंदर भड़कती रहती है जो उचित मौका पाकर धधक उठती है।
बच्चे का भावी स्वरूप, प्रगति एवं सुरक्षा उसके वर्तमान परवरिश पर ही अवलम्बित होती है। इस दृष्टि से बच्चों को बचपन से ही अनुशासन सीखना बेहद जरुरी है। माना की बच्चो को अनुशासन सीखना आसान नहीं मगर यह कार्य इतना भी दुष्कर नहीं जितना की आप समझतें हैं बशर्ते आपको अपने बच्चे की उम्र के हिसाब से, उन्हें अलग-अलग तरीके से अनुशासित करना होगा। अपने बच्चे को अनुशासित करते वक़्त, कुछ ऐसे नियम बनाकर शुरुआत करें, जिसे आपका बच्चा अच्छी तरह से समझ पाये।
तो आइये जानते हैं कि बिना हाथ उठाए बच्चों को अनुशासित कैसे रखा जाय (How To Discipline a Child Without Hitting And Yelling.)

जन्म के समय बच्चा न तो अनुशासनहीन होता है और न ही अनुशासित। वह तो केवल एक जीता – जागता इंसान होता है जिसके लालन – पालन, शिक्षा – दीक्षा आदि की समस्त जिम्मेदारी माता – पिता एवं परिवारजनों पर रहती है। माता – पिता एवं परिवार के सदस्य जिस तरह का आचरण करते हैं, बच्चा भी उन्हीं की तरह व्यवहार करता है। इसलिए यदि आपका बच्चा अनुशासनहीन है तो इसके लिए सबसे अधिक दोषी आप है। हमेशा यह देखा गया है कि माता-पिता बच्चों को अनुशासन का पालन करने के लिए उन्हें डांटते रहते हैं या मारते हैं मगर कोई भी बच्चा डांट या मार खाकर न ही सीखता है और न ही सुधरता है।
कुछ माता – पिता एवं संरक्षक अपने बच्चों के साथ उन्हीं अनुशासन प्राविधियों का अपनाते हैं जैसा उनके माता – पिता ने उनके साथ अपनायी थी । उनकी दृष्टि में वही अनुशासन का ढंग सबसे अच्छा होता है। पर ऐसा नहीं है। आपके माता – पिता ने आपको कठोर अनुशासन में रखा हो तो इसका कत्तई मतलब नहीं कि आप भी अपने बच्चे को कठोर अनुशासन में ही रखे।
बच्चे से अगर कोई गलती होती है तो उसके कोमल मन को ठेस पहुँचाने का प्रयास न करें, मगर उसकी गलतियों को कदापि नजरअंदाज भी नहीं करें, बल्कि उसकी गलतियों को सुधारने का प्रयास करें। अनुशासन की यह विधि सबसे अधिक उपयुक्त श्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण है। इस विधि में माता – पिता बच्चों को जिन नैतिक मूल्यों एवं समाज द्वारा मान्य व्यवहारों को सिखाते हैं, उसके बारे में बताते भी हैं। उसकी अच्छाइयों एवं बुराइयों के बारे में भी बताते हैं और उससे संबंधित तर्क भी देते हैं।
यदि बच्चा कोई अनुचित अथवा गलत कार्य करता है तो हमेशा माता-पिता यही कहते हैं, ‘तुमने ये किया, तुम गलत हो, तुम समझते नहीं हो।’ जबकि इसकी जगह यदि गलती होने पर आप बता दे कि उसने क्या गलती की है तो वह आपकी बात जल्दी समझ जायेगा। बच्चे को कभी भी ‘तुम गलत हो’ यह मत बताइए। बच्चा गलती जानबूझ कर नहीं करता। बच्चा जब अपनी गलती समझता है तब वह गलती कैसे सुधारनी है, यह भी जानना चाहता है। आपका बच्चों को मारकर या सज़ा देकर काम करवाना यह सिखाता है कि काम करवाने के यही तरीके हैं, सज़ा देकर ही काम होता है।
बच्चे ने यदि स्कूल की कुछ घटना घर में आकर बताई तो कई लोग तुरंत उसे डांटते हैं। इस प्रकार की डांट सुनकर बच्चे डर जाते हैं और तब उस घटना में उन्हें क्या करना चाहिए था, यह वह भावुक होकर बताते हैं। पर इससे बच्चे के आत्मविश्वास पर असर पड़ता है उसका आत्मविश्वास खो जाता है। इस वक्त में माता-पिता को बच्चों से सही ढंग से बातचीत करने की आदत डालनी चाहिए। ऐसे माता-पिता को बच्चे के प्रति भावनात्मक न होते हुए भी अपनी भावनाएँ व्यक्त करने की कला सीखनी होगी। कहने का मतलब है कि भावनाएँ न होते हुए भी आप अपनी भावनाएँ बयान करें। बच्चे के कुछ भी कहने से पहले अगर सामान्य रहते हुए पहले बच्चे की पूरी बात सुने तत्पश्चात उसे समझाते हुए बताएं कि कहाँ उसकी गलती थी और कहाँ दूसरो की और उसे यह भरोसा भी दिलाये कि वह अगर सही है तो आप उसके साथ है। इससे बच्चा हमेशा आपको अपने स्कूल की सारी बातें बताता रहेगा।
कुछ माता पिता में अपने बच्चों के प्रति अतिकठोरता की अभिवृत्ति होती है। वे अपने बच्चे के प्रति कठोर व्यवहार अपनाते हैं। वे बात – बात पर बच्चे को टोकते रहते हैं। छोटी – छोटी गलतियों पर भी मारते – पीटते रहते हैं। ऐसी स्थिति में, बच्चों के भीतर कुंठा, आक्रोश, कुस्मायोअजन, निर्दयता, आक्रामकता, अस्त्यावादिता आदि अवगुण विकसित हो जाते हैं। वे अवज्ञाकारी भी हो जाते हैं। अत: बच्चे की छोटी – छोटी गलतियों पर कठोर दंड नहीं दें। कठोर दंड से बच्चा और भी अधिक जिद्दी, उद्दंड एवं अनुशासनहीन हो सकता है।
यदि बच्चा किसी कार्य को गलत तरीके से कर रहा है तो उसे काम करने की सही विधि/तरीका बतायें, मगर भूलकर भी बच्चे के कार्यों की निंदा नहीं करें। उनमें सकारात्मक सोच उत्पन्न करें। बच्चें जब भी कोई अच्छा कार्य एवं प्रशंसनीय कार्य करे, तो उसे पुरस्कृत भी करे।
2 से 4 साल के बच्चों का खुद पर कम नियंत्रण रहता है। उन्हें आमतौर पर किसी अनुशासन में बंधना पसंद नहीं आता। ऐसे में जब इन नन्हे मुन्हों से उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ करने को कहा जाता है तो वे रोते है या फिर चिल्लाते है। इसे आप अनुशासन सिखाने के लिए बेहतरीन अवसर समझिये। इस अवसर का लाभ लेने के लिए बच्चे से जानने की कोशिश कीजिये कि वह क्या चाहता है? अगर वह थोड़ी देर और खेलना चाहता है तो ऐसे में आप शांत दिमाग से उसे थोड़ी देर और खेलने दे सकते है। आपके दिए 5 अतिरिक्त मिनट भी उसे बहुत लगेंगे।
याद रहे ! बच्चों को अनुशासन सिखाने में पुरस्कार एवं दंड दोनों का ही प्रयोग किया जाता है परन्तु आपको दंड की तुलना में पुरस्कार पर अधिक जोर देना चाहिए। दंड भी अधिक कठोर नहीं देना चाहिए और न ही बच्चों को हतोत्साहित करने वाला होना चाहिए। गलत कार्य करने पर बच्चों को डांटे मगर प्यार से। उन्हें उनके हिस्से का पूरा लाड़-प्यार दें। हमेशा ध्यान रखें, कि छोटी-सी-छोटी दरार गहरी खाई का रूप लेने न पाये।
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अच्छे स्पर्श और खराब स्पर्श की पहचान
बच्चो को अच्छे संस्कार कैसे दे
जीवन के अनुभव से संवारे भविष्य
नैतिक शिक्षा से दें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार
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Bahut hi Sunder Lekh hai.