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नारी दिवस पर कविता – Women’s Day Poem In Hindi

महिला दिवस पर बेहतरीन कविता

Best Women's Day Poem In Hindi
Best Women’s Day Poem In Hindi

प्रस्तुत कविता शचीन्द्र भटनागर जी ने लिखी है। इन्हें यहाँ पर खास आपके लिए उपलब्ध करा रही हूँ। उम्मीद करती हूँ आप इसे जरूर सराहेंगे।

नारी तुम नारायणी

नारी! सदा से तुम रही हो विश्व की वरदायिनी,

उत्कृष्टताओं के लिए होगा तुम्हारा जग ऋणी।

तुम प्रेरणा, संवेदना, करुणा, क्षमा की मूर्ति हो,

नर की अनेकों न्यूनताओं की तुम्हीं तो पूर्ति हो,

तुम हो समय की शक्ति, पहचानो स्वयं को देवियो,

शंकर व ज्ञानेश्वर सरीखा त्याग का जीवन जियो,

होगी तुम्हारी शक्ति अपराजेय टो नारायणी।

उत्कृष्टताओं के लिए होगा तुम्हारा जग ऋणी।

अब रूढ़ियों, जड़ क्षुद्रताओं से न अभिशापित रहो,

हो मुक्त सीमित बंधनों से, किंतु मर्यादित रहो,

अब हर दिखावा त्याग कर तुम आत्मबल जाग्रत करो,

इसके लिए नारीत्व की गरिमा न तुम आहत करो,

तुम मात्र काया हो नहीं, तुम हो न रमणी कामिनी।

उत्कृष्टताओं के लिए होगा तुम्हारा जग ऋणी।

यह रूप भोग्या का, खुला अविवेक पूरित अनुकरण,

यह आधुनिकता है नहीं, है आत्मघाती यह चरण,

तुम भगवती, दुर्गा तम्हीं, तुम शक्ति का भंडार हो,

हो रूप, जिससे सौम्यता का हर समय संचार हो,

तुम ब्रह्मवादिनी बन पूज्या बनी सबकी तरणी,

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उत्कृष्टताओं के लिए होगा तुम्हारा जग ऋणी।

दृढ़ आत्मबल की ज्योति भीषण क्रांति की ज्वाला बने,

वह हर कुकर्मी के लिए विकराल वधशाला बने,

उद्धार नारी का स्वयं बढ़कर करेंगी नारियाँ,

अन्यायकारी को बनेंगी ध्वंस की चिनगारियाँ,

यह है सुनिश्चित कल बनेंगी नारियाँ ही अग्रणी।

उत्कृष्टताओं के लिए होगा तुम्हारा जग ऋणी।

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Babita Singh
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2 thoughts on “नारी दिवस पर कविता – Women’s Day Poem In Hindi

  1. Happy Women’s Day to every woman who I know … you are my strength and the reason for my happiness.

    एक नारी सशक्त हूँ मैं

    समझो ना कमजोर मुझे तुम
    तन निर्बल पर मन मेरा बलवान है
    ठान लिया जो करने का एक बारी
    वो तीर से निकला जैसे कमान है

    क़दम बढ़ाया आगे जो एक बार
    पीछे मुड़ना फिर संभव नहीं
    कर दे मेरी रूह को विध्वंस
    इस जग में ऐसा कोई डर नहीं

    तेरे पाँव की मैं कोई धूल नहीं
    तेरे सर पर सजा हुआ ना कोई ताज हूँ मैं
    रिश्तों की मजबूर बेड़ियों में क़ैद न होकर
    हर बंधन से आज़ाद हूँ मैं

    चोट दो मेरे आत्म सम्मान को तो
    एक बार को शायद टूट बिखर जाऊँगी
    समेट कर हर कतरा अपना
    लेने अपना प्रतिशोध मैं लौट आऊँगी

    क्यूँ करते हो भेदभाव नर -नारी में
    इच्छाएँ दोनों की ही समान है
    ग़र छूता है आदमी बुलंदियों को
    मेरी परिसीमा भी अनंत आसमान है

    ना टूटूँगी ना मैं झुकूँगी यूँ ही
    मेरा ग़ुरूर मेरा अभिमान है
    सह कर हर इल्ज़ाम जहाँ का
    बस आगे बढ़ना मेरा अरमान है

    नाइंसाफ़ी की बलि चढ़ी हूँ अक्सर
    हक़ की लड़ाई में फिर भी डटी रही
    कोशिश लाख की गिराने की मुझको
    पर मैं अपनी ज़िद्द से हटी नहीं

    ना रोक सकोगे ख़याल मेरे
    ना आवाज़ कभी बंद कर पाओगे
    उठेगा आँचल से मेरे तूफ़ान कभी जब
    मिट्टी में तुम मिल जाओगे

    अवतार बहुत हैं , नाम बहुत हैं
    बेख़ौफ़ गुजरता हुआ वक़्त हूँ मैं
    समझो ना तुम बेबस मुझको
    एक नारी हूँ और सशक्त हूँ मैं !

    निशा टंडन

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