महाशिवरात्रि की व्रत विधि

“महाशिवरात्रि” निराकार परमपिता परमात्मा ‘त्रिमूर्ति शिव’ के इस धराधाम पर आने का यादगार त्यौहार है। यह भारत के सबसे बड़े और महिमामय त्योहारों में से एक है। यह आध्यात्मिक तौर तरीके से पवित्र होने और मनोकामनाओं की पूर्ति करने का शुभ अवसर है।
दरअसल हमारे इस रात्रि की अपनी एक गौरवमयी गाथा और महिमा है। महाशिवरात्रि का पर्व भारत में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को हर साल मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि के आदि में इसी दिन भगवान शंकर का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में रात्रि के मध्य में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसलिए इसे शिवरात्रि या कालरात्रि कहते है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए भी है कि इसी दिन भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए यह रात्रि भगवान शिव को अति प्रिय है।
हिन्दू धर्म, जन में इस शुभ दिन पर भोलेनाथ को खुश रखने के लिए उपवास रखते है। अधिकांश लोग इस दिन भगवान शिव का पूजन मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए करते हैं। वे अपनी भावनाओं व प्रार्थनाओं को भगवान शिव तक पहुँचाने के लिए शिवलिंग की पूजा करते है शिवाभिषेक, रुद्राभिषेक आदि भी करते है, जिससे भगवान शिव की कृपा उनपर बनी रहें और वे कल्याण के पथ पर चलते रहें।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन परमपिता शिव की अवतरण वेला में की गई महाशिवरात्रि की पूजा-पाठ, उपवास एवं साधना से भक्त जहाँ भावनात्मक रूप से उनके करीब आता है वहीं इस पूजा का फल भी बहुत जल्दी मिलता है। हालांकि शिवरात्रि की पूजा करने के लिए विशेष विधि की जरुरत नहीं होती है। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि शिव फक्कड़ हैं, भोलेनाथ है, औघड़दानी हैं। केवल एक लोटे जल, बिल्वपत्र के अर्पण एवं दिनभर के उपवास से ही प्रसन्न हो जाते हैं और लोग उन्हें प्रसन्न करने के लिए इतना कुछ करते हैं। बिल्कुल महाशिवरात्रि की पूजा – आराधना में कर्मकाण्ड की उतनी आवश्यकता नहीं, फिर भी कर्मकाण्ड का अपना महत्व है, जो अपना फल देता है।
इसीलिए इस पोस्ट के माध्यम से महाशिवरात्रि की पूजा घर पर करने की बहुत आसान विधि बताने जा रही हैं। यह पूजन विधि जितनी आसान है उससे कही अधिक फलदायी है। अगर इस विधि को आप ध्यान से पढे और इसी के अनुसार पूजा करे तो यकीनन भोलेनाथ आप की हर एक मनोकामना पूरी करेंगे। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान शिव अपनी पूजा – उपासना से शिघ्र प्रसन्न होते हैं, इसलिए उनका नाम ‘आशुतोष’ है।
इसमें प्रात:काल नहा धोकर अनशन व्रत शुरू करने से पहले पत्र-पुष्प तथा वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ, गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नन्दी की चाँदी की मूर्ति रखनी चाहिए।
यदि इन मूर्तियों का प्रबन्ध नहीं हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चन्दन, दूध, घी, धतूरा, बेलपत्र, अकौआ आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात उनसे अपने और अपने परिवार के लोगों के लिए सुख – शन्ति और समृद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए। इस दिन श्रद्धालूगण चाहे तो शिव मंदिर भी जा सकते है और भोले भंडारी की पूजा – अर्चना कर सकते है।
रात को शिव की स्तुति का जागरण करके ब्राह्मणों से पाठ कराना चाहिए। इस जागरण में चार बार शिवजी की आरती का विधान जरुरी है। इस अवसर पर शिव पुराण के पाठ का विधान मंगलकारी है। दूसरे दिन प्रात: जौ, तिल, खीर तथा बेलपत्र का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत को पारना चाहिए। इस विधान से स्वच्छ भाव से जो भी इस व्रत को करता है भगवान शिव उस पर द्रवित होकर अपार सुख-सम्पदा प्रदान करते हैं।
भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खा लेता है वह नरक के दुःखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति का रखना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति होगी तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं हैं।
महाशिवरात्रि के पुण्य क्षणों में सम्पूर्ण रीति से उपवास करते हुए महेश्वर महाकाल का पूजन भक्तों को उनका मनोवांछित फल देने वाला है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रात उर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और अध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है । इसलिए इस रात जागरण का विशेष महत्व है। जो लोग स्वेच्छा से सायुज्यता के लिए इस व्रत को करते हैं, वे निश्चय रूप से स्वर्ग को प्राप्त होते है।
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
महाशिवरात्रि की कथा
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