Vasant Panchami Essay in Hindi

Basant Panchami in Hindi – माघ सुदी पंचमी को वसंत पंचमी, श्री पंचमी तथा बसंत पंचमी भी कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक बसंत पंचमी हर साल जनवरी या फरवरी महीने में पड़ती है। वसंत पंचमी का पर्व नूतनता का प्रतीक है। इस दिन को ज्ञान, बुद्धि और कला की शिक्षा का आरम्भ करने के लिए बड़ा उत्तम माना जाता है। वेदों के अध्ययन के लिए यह पर्व शुभ माना गया है ।
ऋतु प्रधान देश होने के कारण ऋतु की सुन्दरता इसी बसंत में समाहित है। इस समय वन – वाटिकाएं एक प्रकार के रूप लावण्य से भर उठती है । आम जैसे पेड़ वर्ष भर यों ही केवल हरियाली की प्रतिमूर्ति बने खड़े रहते हैं, परन्तु वसंत के आगमन के साथ ही ये पेड़ भी अपनी मंजरी की भीनी-भीनी गंध से प्रकृति के सभी घटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल एवं सक्षम हो जाते हैं। जिन लताओं में केवल पत्तियों के अलावा कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होता है, उनमें गुच्छे-गुच्छे विभिन्न रंगों के पुष्प इतने खिल उठते हैं कि उनके भार से लताएँ झुक जाती हैं।
इन सबसे प्रकृति अपने विलक्षण, अद्वितीय सौन्दर्य के साथ नृत्य कर उठती है और प्रकृति का यह सब सुन्दर विकसित रूप बरबस ही मन को लुभाने लग जाता है । चहुँ ओर वातावरण में नवीनता के मोहक एवं मनभावन दृश्यों का नजारा एक नई दिव्यता एवं पावनता का अनुभव कराता है। इससे मन और भाव प्रसन्न, पुलकित एवं चैतन्य होकर आनंदोत्सव मनाते है। हम सब को इस नये के आगमन का संकेत माघ शुक्ल पंचमी (वसंत पंचमी) को मिलता है। इसलिए इस दिन हमारे देश में बसंत पंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
ब्रम्ह वैवर्त पुराण के आधार पर वसंत पंचमी की यह कथा प्रचलित है कि श्रीकृष्ण ने सरस्वती पर प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जायेगी । इसी वरदान स्वरुप उनकी आराधना होती है । और इस दिन को माँ सरस्वती की जयंती और उनकी पूजा उपासना के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। जिससे ज्ञात होता है कि इसकी महत्ता आजकल मनाये जाने वाले दिवाली, दशहरा, ईद और मुहर्रम आदि सार्वजनिक त्योहारों से किसी भी अंश में कम नहीं है, बल्कि उसके बराबर ही है।
इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का भी विधान है । वहीं एक अन्य मान्यता के आधार पर प्राचीन भारत में वसन्त उत्सव काम-पूजा का उत्सव था, अत: इस दिन बसंत के सहचर रतिपति मदन और पतिव्रता रति की भी पूजा की जाती है ।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बसन्त ऋतु का पर्व धार्मिक मान्यताओं से भी संबंधित है । बारह महीने प्रकृति के रूप बदलते हैं । लेकिन इन महीनों में बसन्त अकेला ऐसा महिना है जब किसान सबसे ज्यादा खुश रहते हैं और इसलिए इस दिन कृषक वर्ग नए अन्न में घी व गुड़ मिलाकर अग्नि और देव पितरों को अर्पित करता है और फिर स्वयं ग्रहण करता है । इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के किसान इस दिन से राग गाना आरम्भ कर देते है । पंजाब प्रान्त के लोगो का यह दिन पतंगबाजी में बीतता है । ब्रजभूमि पर तो यह पर्व देखने योग्य है । वहाँ पर ‘राधा – माधव’ का विधिवत पूजन किया जाता है । संगीत – गोष्ठी द्वारा उनके गुण गान किये जाते है ।
हम सब के लिए वसंत पंचमी और भी महत्वपूर्ण है; यों तो अंग्रेजी वर्ष की शुरुआत एक जनवरी से होती है, परन्तु हिंदू पंचांग के अनुसार यहाँ नववर्ष वसंत पंचमी से प्रारंभ माना जाता है । इस अवसर से भी हृदय स्वत: पुलकित हो जाता है। क्योंकि यह पर्व सर्दी के अंत और हिंदू नव वर्ष की मंगलबेला में मनाया जाता है । इसलिए इस पर्व पर बाल, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध का हृदय उल्लास से भर उठता है। इन दिनों वसंत पंचमी के अवसर पर कई प्रकार के उत्सव और समारोह भी मनाये जाने लगे हैं। विशेषकर युवतियां पीले और धानी वस्त्र ओढ़कर जब दिखती है तो मानों लगता है कि स्वयं वसंत ने ही कई – कई साकार स्वरुप धारण कर लिए हो । सौंदर्य और यौवन जैसे चारो और साकार हो उठा हो ।
हर वर्ग के लिए यह महत्वपूर्ण पर्व है । इसलिए इसे सामाजिक पर्व कहना अत्युक्ति नहीं होगी । यह मानवमात्र से आनन्दातिरेक का प्रतीक है । इस शुभ दिवस पर उसका हृदय उल्लास से ओतप्रोत रहता है । इसलिए इस मंगलमय पर्व को मनाना सब का धर्म हो जाता है ।
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