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अच्छे संस्कार और शिष्टाचार पर निबन्ध – Good Manners Essay In Hindi

 बच्चो को अच्छे संस्कार कैसे दे Sanskar Essay in Hindi

Sanskar Essay in Hindi

संस्कार का अर्थ – What is the Meaning of Sanskar in Hindi

Sanskar in Hindi – संस्कार का तात्पर्य हृदय से शिष्ट आचरण करना सिखाना है। दिखावे या कृत्रिमता का संस्कार में तनिक भी स्थान नहीं है। बच्चों को अच्छे संस्कार अर्थात् माता – पिता को नमस्कार करना, सभी व्यक्तियों के साथ विनम्रता का व्यवहार करना, किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना, छोटे बड़े का लिहाज करना तथा हर तरह से मर्यादित आचरण करना इत्यादि बताएं;

बच्चों को अच्छे संस्कार और शिष्टाचार कब और कैसे दे

आजकल के बच्चे एक अच्छा इंसान बनने के बजाय संस्कारहीन बनते जा रहे हैं। माता – पिता भी बच्चे के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाने से ज्यादा उन्हें किसी बड़े स्कूल – कॉलेजों में दाखिला दिलाने और ऐशो-आराम पर समय और धन खर्च करने के लिए उतावले रहते है। उनका यह गैरजिम्मेदाराना रवैया बच्चो में संस्कारहीनता को बढ़ावा दे रहा हैं। बच्चे जरूरी संस्कारो से वंचित होते जा रहे हैं। 

आजकल के बच्चों में संस्कारहीनता एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। चोरी, डकैती, लूटपाट, आगजनी, ड्रग्स सेवन, मद्यपान, धूम्रपान आदि गंदी आदतों का शिकार वे बड़ी सरलता से हो रहे है।  जिसका खामियाजा माता – पिता के साथ पुरे समाज को भुगतना पड़ रहा है।

ऐसा नहीं कि बच्चे में बढ़ती इस प्रवृत्ति यानि संस्कारहीनता को रोका नहीं  जा सकता है। बच्चे में बढ़ती इस प्रवृत्ति को रोकने की शक्ति संस्कारों में निहित है।

बच्चे ईश्वर का दिया हुआ एक अनुपम वरदान है। देश का भविष्य हैं, इसलिए उनका बचपन संवारना हर माता – पिता का सबसे पहला दायित्व है। स्वयं संस्कारी होना और अपने संस्कारों से अपने बच्चों को गढ़ने में सहयोग करना यदि हर माता – पिता की जीवन – नीति बन जाए तो देश के भविष्य में नए प्राण फूँके जा सकते हैं। बच्चे संस्कारहीन होते ही इस कारण हैं, क्योंकि माता – पिता एवं परिवारीजन के पास इन्हें संस्कार और शिष्टाचार सिखाने की फुरसत ही नहीं होती है।

समाज में व्यक्ति की पहचान ज्ञान के साथ – साथ उसके अच्छे संस्कार से भी होती है। अच्छे संस्कार के बिना व्यक्ति अधूरा है। अगर हर माँ – बाप सही वक्त पर सही संस्कार अपने बच्चों को दे तो वह संस्कार बच्चों के साथ जीवनपर्यंत रहता है।

बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। यही सही समय है जब उन्हें अच्छे आकार – प्रकार में ढाला जा सकता है। वे अच्छे रूप में ढलें, अच्छी दिशा में बढ़े, मन से पवित्र और तन से स्वस्थ बनें और उनके जीवन की बुनियाद मजबूत बने इसके लिए उन्हें अभी से मानसिक एवं शारीरिक रूप से बलवान बनाने के लिए उचित “संस्कार” देना जरुरी है।

बच्चे बहुत छोटे होते है । इस समय बालकों का नैतिक विकास नहीं हुआ होता है । उसे अच्छी बुरी उचित और अनुचित  बातों का ज्ञान नहीं होता है । वे वही कार्य करते है जिसमें उसे आनन्द आता है भले ही वह नैतिक रूप से अवांछनीय हो । जिन कार्यों से दुःख होता है उन्हें वह छोड़ देता है ।

इसलिए बच्चों में बचपन से ही नैतिक मूल्यों के बीज बोने शुरू कर देने चाहिए है हर माता – पिता का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने बच्चे में संस्कार रूपी बीज को फलने – फूलने के लिए उसे सही माहौल दें सही शिक्षा दें क्योंकि बच्चे देश के भविष्य होते है। आपके के द्वारा दिया गया संस्कार उसे एक अच्छा नागरिक बनाएगा।

सिगमंड फ्रायड कहते है कि “मनुष्य को जो कुछ बनना होता है प्रारंभ के चार – पाँच वर्षों में ही बन जाता है ।” लेकिन आजकल के माता – पिता यही सोचते है कि अमुक जगह, अमुक कॉलेज, अमुक विद्यालय या अमुक स्कूल में भेज देंगे तो हमारे बच्चे योग्य, चरित्रवान और संस्कारवान बन जाएँगे। पर जब तक हम बच्चों को स्कूल – कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजते हैं, उस समय तक उसकी वह उम्र समाप्त हो जाती है, जिसमें बच्चे का निर्माण किया जाना संभव है।

इसलिए बच्चों में संस्कार के बीज बोने के लिए आपको उसके स्कूल जाने का इन्तजार नहीं करना चाहिए बल्कि बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए अभी से उन्हें अच्छे आहार – विहार और अच्छे आचार – विचार की शिक्षा दीजिये ।

साधारण बोलचाल की भाषा में कहे तो संस्कार की शिक्षा वह शिक्षा है जो बच्चों बड़ों का आदर करना, सुबह जल्दी उठना, सत्य बोलना, चोरी न करना, माता – पिता के चरणस्पर्श करना तथा अपराधिक प्रवृत्तियों से दूर रहना सिखाना है।

अभिभावकों को आरम्भ से ही बच्चे में सत्य बोलने, बड़ों का आदर करने, समय पर काम करने, स्वच्छता, सफाई रखने तथा अन्य अच्छी आदतों के निर्माण का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि यही अच्छी आदतें ही हमारे भावी जीवन का निर्माण करती है। यह चीजे तभी संभव है जब बच्चे में अनुशासन हो । अत: संस्कार बच्चों को अनुशासन में रहना भी सिखाता हैं ।

हमारे चारों ओर जितनी भी अव्यवस्थाएँ एवं बुराइयाँ हैं, उन सबका मूल कारण अनुशासनहीनता है। इसलिए अनुशासन का पालन आवश्यक हो गया है। अनुशासन हमारे जीवन की आधारशिला होनी चाहिए। इसी पर सुख – समृद्धि और विकास का महल खड़ा हो सकता है। यदि हर बच्चा अनुशासन में रहने के गुण सीख ले तो राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

बचपन में परिवार के बाद विशेष रूप से बच्चों को संस्कार विद्यालय में सिखाएँ जाते हैं। अत: शिक्षक का कर्तव्य है कि वह कक्षा तथा खेल के मैदान में ऐसा वातावरण उपस्थित करें जिससे बच्चे में अच्छे संस्कार का विकास हो।

विद्यालय में ऐसी क्रियाओं का आयोजन होना चाहिए जिनमें भाग लेने से बच्चे में अनुशासन, आत्मसंयम, उतरदायित्व, आज्ञाकारिता, विनय, सहयोग, सहानुभूति, प्रतिस्पर्धा आदि सामाजिक गुणों का विकास हो सके।

समाज के नैतिक मूल्यों, मान्यताओं और नियमों का ज्ञान देने के लिए नियमित रूप से नैतिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। माता – पिता तथा शिक्षकों को बच्चों के सामने अच्छे आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए क्योंकि बच्चा अनुकरणीय होता है। इसके अतिरिक्त उन्हें आदर्श चरित्र वीरों, नेताओं और महापुरुषों की छोटी छोटी कथाएँ सुनानी चाहिए।

हर बच्चा संस्कार और आचरण को अपने माता – पिता के द्वारा किये गए अच्छे आचरण और अच्छे संस्कार से सीख सकता है। इसके लिए किन्हीं विशेष परिस्थितियों या उच्च खानदान में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं। किसी भी स्थिति का अभिभावक प्रयत्नपूर्वक संस्कार के बीज अपने बच्चों में डाल सकता है। इतिहास गवाह है कि  जिन माता – पिता ने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए है उन्होंने अपने माता –पिता का नाम रोशन किया है।

बचपन से बच्चों को ये 10 संस्कार के बारे में जरुर बताएं (Sanskar in Hindi)

ईश्वर में विश्वास रखें।

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माता और पिता का सम्मान करे

सदा सत्य बोले और ईमानदारी के रास्ते पर ही चले

दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहे

कर्तव्यों का पालन करे

सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार रखे

देश के प्रति सम्मान

सहनशील बने

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Babita Singh
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