Akbar Birbal Kahani – अकबर बीरबल की मजेदार और रोचक कहानियाँ बच्चों के मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। अकबर बीरबल की सैकड़ों दिलचस्प कहानियों में से कुछ मजेदार कहानियों का चुनाव करना मेरे लिए बेहद मुश्किल काम था। पर छोटे बच्चों, छात्रों, स्कूलों में बाल कहानियों को सुनाने की स्वस्थ्य परम्परा हर माता-पिता और अध्यापक को प्रारम्भ करनी चाहिए। इससे बच्चों को मनोरंजन के साथ साथ प्रेरणा मिलती है। khayalrakhe.com द्वारा प्रकाशित इस पोस्ट में बेहद रोचक एवं मजेदार 5 अकबर बीरबल की कहानियों को आप तक पहुँचा रही हूँ। बच्चों को ये Akbar Birbal Stories in Hindi में पढाएँ, सुनाएँ।
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छोटे मजेदार अकबर-बीरबल की कहानियाँ – Short Akbar Birbal Stories in Hindi
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हंसे या रोएं ?
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एक बार की बात है, शाही दरबार में खूबसूरत सजावट हुई थी। फारस देश के कुछ मशहूर लोग भी भारत आये हुए थे। दरबार में उनके स्वागत की खूब तैयारीयाँ थी। सभासद एकत्रित थे। कुछ देर बाद, फारस देश के मेहमान शाही दरबार में पधारे। पर सम्राट अकबर उस समय दरबार में मौजूद नहीं थे इसलिए बीरबल ने उनकी तरफ से अतिथि गणों का स्वागत किया और उन्हें उचित स्थान पर बैठाया ।
दरबार में सभी अतिथियों का स्वागत – सत्कार बड़े अच्छे ढंग से संपन्न हुआ। बस सम्राट अकबर के आने की प्रतीक्षा थी। कुछ समय बाद दरबार में एक व्यक्ति ने प्रवेश किया और दरबारियों को सम्बोधित करके बोला – “आज सम्राट अकबर की माँ की मृत्यु हो गई है।” इतना कहकर वह जहां से आया था, वहां चला गया।
लोग अभी वेदना प्रकट कर ही रहे थे कि कुछ देर बाद एक दूसरे व्यक्ति ने दरबार में प्रवेश करते हुए कहा – “सभी लोगों को बधाई हो। आज सम्राट अकबर के घर में लड़का पैदा हुआ है।”
एक ही समय में दुःख और खुशी के समाचारों के मिलने से दरबारियों में आपस में यह विचार होने लगा कि इस अवसर पर हँसना चाहिए या रोना ? किसी से कोई निश्चय न हो सका कि क्या करना चाहिए। जब कुछ निश्चय न हो सका तब सब दरबारियों ने बीरबल से सलाह देने की प्रार्थना की।
बीरबल बोले – “आप सब लोग जैसे सम्राट अकबर करें, वैसे ही करें। यानी उनके आने की प्रतीक्षा करें। यदि वह हंसते हुए सभा भवन में प्रवेश करें तो हंसना चाहिए, इसके विपरीत यदि रोते हुए दाखिल हों तो रोना चाहिए।”
बीरबल की इस बात को सब दरबारियों ने एक राय से मान लिया। फारस से आये हुए व्यक्तियों ने भी बीरबल की बुद्धि की बड़ी प्रशंसा की।
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“प्रकाश से दूर”
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एक दिन सम्राट अकबर के मन में यह बात आयी कि संसार में कोई तो ऐसी चीज होगी, जो सूर्य और चंद्रमा की पहुंच से दूर होगी; अर्थात जिस पर सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश न पहुंच पाता होगा। काफी दिमाग खपाने पर भी जब उनकी समझ में नहीं आया, तो उन्होंने इस बात को दरबारियों के सामने रखा।
दरबारियों ने अलग-अलग मत, अलग-अलग विचार रखे। कोई एक भी ऐसा उचित उत्तर न दे सका, जिससे बादशाह को संतुष्टि होती। अंत में उन्होंने बीरबल की ओर आशाभरी दृष्टि से देखा।
बीरबल ने अपनी जगह से उठकर कहा – “जहाँपनाह ! मेरी समझ में तो इस संसार में अंधेरा ही सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश से दूर है। उस तक ही सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश नहीं पहुंच पाता।”
बीरबल की बुद्धिमत्तापूर्ण बात सुनकर सम्राट अकबर वाह-वाह कर उठे। अन्य दरबारी बंगले झांकने लगे।
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“पतीले (बर्तन) का बच्चा”
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बर्तनों के एक व्यापारी के बारे में सम्राट अकबर को बहुत शिकायत मिली। शिकायत यह थी कि वह एक लालची व्यक्ति है और लोगो को ठगता है, लेकिन उसकी ठगी साबित नहीं होती थी। बादशाह ने बीरबल से कहा कि उसके पास जाकर उसे सबक सिखाओ।
बीरबल ने दूकानदार के पास जाकर तीन पतीले (बर्तन) किराये पर लिये। कुछ दिन बाद जब वह उन vessel को वापस करने गये तो उनके साथ एक छोटी vessel भी ले गये और दुकानदार से बोले – “ये आपके vessel ने बच्चा दिया है। मेहरबानी करके इस छोटी vessel को भी साथ लें।
दुकानदार बहुत प्रसन्न हुआ और छोटी वेसल ले ली।
बीरबल उस दुकानदार से एक और बर्तन किराये पर लाये। अगले दिन उस दूकानदार के पास गये और अफ़सोस के साथ बोले – “भाई आपने जो बर्तन मुझ को किराये पर दी थी, उसकी तो मौत हो गई।”
दुकानदार भड़क उठा और बोला – “क्या ? यह क्या कहते हैं – भला बर्तन की मौत हो सकती है ?”
“क्यों नहीं हो सकती ?” लोगो को जमा करके वाक्य सुनाते हुए बीरबल ने कहा – ” जब बर्तन बच्चा दे सकता है, तो क्या उसकी मौत नहीं हो सकती ?” उस दुकानदार को अपनी करनी पर बड़ा पछतावा हो रहा था।
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“दूध और पानी”
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सम्राट अकबर ने एक रोज बीरबल से पूछा – “हमारे राज्य की जनता बहुत खुश है, राज्य में समृद्धि है, मेरा ऐसा मानना है कि पूरे राज्य के व्यक्ति ईमानदार होंगे, इस बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ?”
बीरबल ने कहा – महाराज ! “राजनीति के अनुसार राजदण्ड के भय से ही जनता ईमानदार रहती है, अन्यथा उसे जब भी मौका मिले बेईमान होने से नहीं चुकती।” यही सत्य है अगर आपको यकीन नहीं होता है तो मैं इसे साबित कर सकता हूँ।
अकबर ने कहा – “मैं नहीं मानता। तुम्हीं इसे साबित करो।”
बीरबल बोले – “आप एक फरमान लिखकर दें। मैं ये ऐलान करा देता हूँ कि एक भोज आयोजित करने के प्रति हुकूमत की ओर से दूध का प्रबंध किया जाना है – हर किसी को आदेश दिया जाता है कि अमुक जगह के “हौज” में रात के आठ बजे से सुबह के चार बजे तक हर आदमी एक-एक लीटर दूध लाकर डाले और उसे दूध से भर दें।”
अकबर ने फरमान जारी कर दिया। फरमान के अनुसार राजदरबारी भी एक-एक लीटर दूध ‘हौज’ में डालने एकसाथ गये। जनता अँधेरे में ‘हौज’ में दूध डालने के लिए पहुँचने लगी। पर हौज में दूध डालने के लिए पहुंची प्रत्येक जनता यही सोच रही थी कि दूध डालने वालों की संख्या बहुत अधिक है और अगर मैं इसमें एक लीटर पानी डाल भी दूं तो भला किसको क्या पता चलेगा ?
अंजाम यह हुआ कि सुबह जब ‘हौज’ देखी गयी तो वह भरी हुई तो थी, लेकिन दूध से नहीं पानी से। पानी में हल्की सफेदी थी, वह भी इसलिए कि दरबारियों ने उसमें दूध डाला था। यह सब देखकर अकबर चकित थे।
बीरबल ने कहा – “सम्राट सलामत, ये सफेदी महज दरबारियों के दूध की है और अगर मैं कहूं कि यह सफेदी सभी दरबारी के एक-साथ जाकर दूध डालने की है तो ज्यादा सही होगा। यदि दरबारियों को भी अलग – अलग दूध डालने का अवसर मिलता तो शायद “हौज” में एक बूंद भी दूध न होता – सब पानी ही पानी होता। अत: मेरा कहना है बगैर राजदण्ड के कानून चल नहीं सकता।”
बीरबल की इस पर बुद्धिमत्ता की तारीफ करने से अकबर खुद को रोक न सके।
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“चार मुर्ख”
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एक बार अकबर ने बीरबल को हुक्म दिया – “बीरबल ! चार ऐसे मुर्ख ढूंढकर लाओ जो एक से बढ़कर एक हों।” सम्राट की आज्ञानुसार बीरबल चार मूर्खों को ढूढने के लिए नगर में निकल पड़े। नगर में घूमते-फिरते बीरबल को एक ऐसा आदमी मिला, जो विभिन्न प्रकार की लजीज मिठाइयों को एक थाल में में रखकर बड़ी जल्दी में कही जा रहा था।
बीरबल ने बड़ी कठिनाई से उसको ठहराकर पूछा – ” भाई ! यह सामान कहां ले जा रहे हो ?”
उसने कहा – “मेरी पत्नी अपने दूसरे पति के बच्चे को जन्म दी है इसलिए उसे बधाई देने ये मिठाइयाँ लेकर जा रहा हूँ।
महाराज की इच्छानुसार मुर्ख समझकर बीरबल ने उस व्यक्ति को अपने साथ ले लिया। आगे चलकर थोड़ी दूर जाते ही उन्हें एक और आदमी मिला जो घोड़ी पर सवार था और सर पर घास का बोझ रखे हुए था। बीरबल ने उससे पूछा – “भाई तुमने यह बोझ अपने सर पर क्यों रखा है ?”
उस आदमी ने जबाब दिया -“मेरी घोड़ी गर्भिणीं है, इसलिए इस बोझ को अपने सर पर रखा है। अगर इसके ऊपर बोझा रखा तो इसको हानि हो सकती है।”
बीरबल ने उस व्यक्ति को भी अपने साथ ले लिया और दोनों को लेकर दरबार में पहुँचे और सम्राट से प्रार्थना की कि चारों मुर्ख हाजिर है।
अकबर उन्हें देखकर बीरबल से बोले – बीरबल ! ये तो केवल दो हैं, बाकि के दो कहां है ?
तब बीरबल बोले – “तीसरे आप हैं, जो ऐसे मूर्खों को इकट्ठा करने का शौक रखते हैं और दूसरा मुर्ख मैं हूँ जो ऐसे मूर्खों को ढूंढ़कर आपके समक्ष पेश किया हूँ।
अकबर-बीरबल के जबाब से अत्यंत प्रसन्न हुए और जब उन्हें उन दोनों आदमियों की मुर्खता का पता चला तो वे खूब हंसे।
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Akbar Birbal Kahani
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Bahut khub kahani hai,aapne ise bade hi vistar se likha hai
mai apne bhai ko ye kahanni jarur bolunga
nice style of story carving. thanks babita ji