मी टू कैंपेन क्या है और भारत में मी टू का असर – What is MeToo Movement in Hindi
This article provides information on the MeToo Campaign Movement in India in Hindi, What is me too Campaign Movement Meaning, Story in India in Hindi – Me Too Movement : क्या है मी टू मूवमेंट, क्यों और किसने किया शुरू –
Me Too Movement in India in Hindi : तकरीबन बारह साल पहले तराना बुरके नाम की अमेरिकन महिला ने औरतों के शोषण के विरुद्ध ‘#MeToo Movement नाम से सोशल मीडिया पर एक विश्वव्यापी जनांदोलन शुरू किया था। इस अभियान ने महिलाओं को एक सुरक्षित मंच प्रदान किया कि वे अपने साथ कार्यस्थल, पब्लिक प्लेस आदि जगहों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सके। अगर उन्हें सताया गया है, किसी ने कुछ गलत किया है तो उसे ‘#MeToo के जरिए बता सके और उन व्यक्तियों का चेहरा बेनकाब करे ।
अब इस #Me Too अभियान का हिस्सा भारतीय महिलाएं भी बड़ी तेजी से बन रही हैं। वर्षों पहले अपने साथ हुए शारीरिक छेड़छाड़ की घटनाओं, शोषण और यौन अत्याचारों की बात खुलकर सोशल मीडिया साइट्स जैसे – ट्विटर, फेसबुक आदि पर शेयर कर रहीं हैं, जो भारत में इस समय अखबारों की सुर्खियों और न्यूज चैनलों पर सबसे अधिक चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत में यह अभियान न सिर्फ़ सोशल मीडिया पर लोकप्रिय हुआ, बल्कि अब यह इन्टरनेट की दुनिया से बाहर निकलकर यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ एक जनांदोलन अभियान बन चुका है।

बहरहाल, भारत जैसे देश में इस तरह के अभियान शुरू होने से यह यौन उत्पीड़न के खिलाफ जंग कम और लम्बी अवधि तक लोगों के बीच चर्चा में रहने वाला विषय अधिक लग रहा है क्योंकि कभी न खत्म होने वाले हैशटैग #Me Too से सामने आए औरतों के यौन उत्पीड़न के तजुर्बों के बाद उन्हें किसी तरह का न्याय मिलता तो नहीं दिख रहा है, हाँ उनको लेकर राजनीति जरुर शुरू हो चुकी है । लेकिन कुछ लोगों का इस अभियान के बारे में ये भी कहना है कि इस मुहीम ने अपने शारीरिक शोषण और अपमान के खिलाफ बोलने के लिए औरतों को पहली बार एक कारगर मंच उपलब्ध कराया हैं। ऐसे में ये सवाल जो आज हर एक आम आदमी जानना चाहता है वो ये कि आखिर इस कैंपेन में ऐसी क्या खास बात हैं जिससे न सिर्फ प्रभावशाली औरतें जुड़ रही है बल्कि आम लड़के – लड़कियां भी इसका हिस्सा बन रहें हैं।
इसलिए आगे बढ़ने से पहले इसके बारे में जानना बेहद जरुरी हो जाता है कि मी टू कैंपेन क्या है What is MeToo Movement in Hindi ?
# Me Too है क्या ? क्यों और किसने किया शुरू ?
#Me Too यौन उत्पीड़न और यौन हमले के खिलाफ एक आंदोलन का नाम है जिसे सामाजिक हमले और उत्पीड़न के व्यापक प्रसार को स्पष्ट करने के प्रयास में सोशल मीडिया पर हैशटैग के रूप में दर्शाया गया है, खासकर कार्यस्थल में।
#Me Too को सबसे पहले 2006 में तराना बुरके नाम की एक 45 वर्षीय अफ्रीकन – अमेरिकन महिला ने शुरु किया था और जिसके लिए वे 2017 में ‘टाइम परसन ऑफ द ईयर’ सम्मान से सम्मानित भी की गई । ये एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
भारत में #Me Too की शुरुआत तनुश्री दत्ता की ओर से बॉलीवुड एक्टर नाना पाटेकर पर यौन प्रताड़ना का आरोप लगाकर किया गया था ।
हालांकि इस #Me Too campaign की शुरुआत 12 साल पहले हुई थी लेकिन इसका असर सबसे अधिक 2017 में दिखा। 80 से भी अधिक महिलाओं ने जब हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टीन पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया जिसके परिणामस्वरूप 25 मई 2018 को वे गिरफ्तार कर लिए गए।
भारत में #Me Too Movement का असर
भारत में #MeToo आंदोलन के बारे में कई चीजें उल्लेखनीय हैं। इतनी सारी साहसी महिलाएं खुलकर सामने आईं और अपने ज़ख़म को साझा किया। इस तरह उनके सामने आने से इस क्रांतिकारी मुहीम से हजारों लाखों लोगों को ये उम्मीद है कि, भारत में महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में भारी परिवर्तन के साथ एक क्रांति आएगी। भविष्य में किसी भी औरत के साथ दुर्व्यवहार करने से पहले व्यक्ति हजार बार सोचेगा |
लेकिन अपने देश में जहां लड़कियों के साथ हुई छेडछाड को सामान्य बात कह कर टाल दिया जाता है, उल्टे अगर कोई भी राह चलता लड़का किसी लड़की पर ऊँगली भी रख दे, तो उस लड़की का जीना दूभर हो जाता है। ऐसे में सोशल मीडिया पर हैशटैग ‘मी टू’ के साथ एक आम लड़की अपने यौन उत्पीड़न के बारे में लिख भी दे तो क्या उसकी कही सुनवाई होगी? शायद नहीं।
हालांकि #Metoo जैसे आंदोलन एक अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए एक नए प्रकार के सामाजिक गठन को स्थापित करने में सक्षम है। एक ऐसा अन्यायी जो बिना सामने आये बच जता था उसके लिए इंटरनेट पर #मेटू सार्वजनिक रूप से शर्मसार करने का एक नया हथियार बना है। पर भारत के परिपेक्ष में इस सच्चाई को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि यहाँ पीड़ित बेटियो की आवाज उनके मरने के बाद ही सुनाई पड़ती है। यदि इस “MeToo” मुहीम से भारत की बेटियों के असली समस्याओं का समाधान दिखता तो मैं बेशक इसे यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक सटीक और क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत कहती लेकिन अभी तक तो कुछ ऐसा होता दूर – दूर तक नहीं दिख रहा है। उल्टे मुझे ऐसा लगता है कि Me Too के हो हल्ला के बीच उन बेटियों की आवाज डूब सी जा रही है, जिनके साथ वाकई कुछ गलत हुआ था या हो रहा है।
अगर # Me Too कैंपेन के जरिए न्याय पाने की बात करें तो सोशल मीडिया पर दिया गया बयान कोई ऐसा सबूत नहीं होता जो इन पीड़ितों को न्याय दिला पाए या फिर आरोपी को कानूनी सजा हो सके। भारत जैसे देश में इस मुहीम के साथ एक और बड़ी समस्या यह है कि अगर न्यायालय में आरोप साबित नहीं हुआ, तो आरोप लगाने वाली स्त्रियों को कानूनी ही नहीं बल्कि सामाजिक दिक्कतों और तानों का भी सामना करना पड़ सकता है।
सच कहा जाए तो इस अभियान का अब तक भारत में कोई सकारात्मक असर नहीं दिख रहा हैं । यहाँ पर इसका सकारात्मक असर ठीक उतना ही मुश्किल होगा, जितना की एक महिला के लिए इस पुरुष प्रधान समाज में अपनी खुद की एक पहचान हासिल करना क्योंकि भारत में आज भी एक महिला को किसी भी क्षेत्र में पहचान बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।
Me Too अपने अभी तक के आंदोलन में अखबारों की सुर्खियां बटोरने का जरिया केवल बना है, लेकिन मैं इतना अवश्य कहना चाहूंगी इस Me Too मुहीम ने महिलाओं को जरुर हिम्मत दी हैं और ये उनका यौन उत्पीडन के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार साबित हो सकता अगर सभी औरतें एक साथ आये क्योंकि ये अभी केवल प्रभावशाली महिलाओं के बीच ही है जो सोशल मीडिया पर एक्टिव है | जो छोटे कस्बों, गाँव और पिछडी जाती की औरते हैं उनको तो इसका मतलब भी नहीं मालूम है तो उनके लिए इसे यौन उत्पीड़न के खिलाफ इस्तेमाल करना तो बहुत दूर की बात हैं।
महिला हो या पुरुष इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता की भारत में महिलाओं के साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार बडी समस्या है। इसे देखते हुए सरकार ने कई कानून लागू किये हैं फिर भी Metoo आंदोलन में लैंगिक शक्ति समीकरण के एक पहलू को स्थायी रूप से बदलने की क्षमता है, जिसमे लंबे समय से सुधार की आवश्यकता थी । मी टू हैशटैग अभियान में भारत का नाम भी शुमार हो चुका है। बस देखना ये हैं कि क्या यह अपने उद्देश्यों को पूरा कर पाता है या नहीं।
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#mee too के ऊपर इतनी अच्छी जानकारी शेयर करने के लिए धन्यवाद. मुझे आपकी एक बात सही लगी है और वो ये है की इसने अब तक सबसे ज्यादा काम सुर्खिया बटोरने का किया है. वैसे तो ये एक अच्छा कदम है लेकिन क्या ये सही है की 100% केस सही हो. क्यों की कुछ केस में इल्जाम लगाने वाली लेडी ही कमजोर साबित हो जाती है मतलब दोषी पुरुष नहीं वो खुद थी. ऐसे ही कुछ केस आप इसे अपडेट कर लिख सकती है. दोनों पहलु सामने रखने के लिए धन्यवाद