तीन शिक्षाप्रद लघु प्रेरक कहानियां (3 Inspirational story for Students in Hindi)
Story in Hindi – गलती का पश्चाताप
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अध्यापक द्वारा कक्षा में गणित की परीक्षा ली गई। परीक्षा लेने से पहले उन्होंने सभी विद्यार्थियों से कहा, “जो विद्यार्थी सबसे अधिक अंक प्राप्त करेगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा।” परीक्षा में केवल एक ही प्रश्न दिया गया। सभी विद्यार्थी उस प्रश्न को हल करने और पुरस्कार प्राप्त करने में जुट गये।
लेकिन प्रश्न अत्यंत कठिन था, सरलता से हल नहीं किया जा सकता था। सभी विद्यार्थी जी जान से जुटे हुए थे। बहुत समय तक कोई भी विद्यार्थी उस प्रश्न को हल नहीं कर सका। अंत में एक बालक प्रश्न हल करके अध्यापक के सामने पहुँचा। अध्यापक महोदय ने प्रश्न और उसका हल देखा और पाया कि हल सही है।
उन्होंने इन्तजार किया कि शायद अन्य कोई विद्यार्थी भी सही हल निकाल कर ले आए, किन्तु देर तक कोई भी विद्यार्थी सही हल नहीं निकाल सका। समय पूरा हो चुका था। अध्यापक महोदय ने सही हल निकालकर लाने वाले को पुरस्कार दिया। पुरस्कार – प्राप्त विद्यार्थी नाचते गाते खुशी से झूमते अपने घर पहुँचा। दूसरे सभी विद्यार्थी हैरान थे कि यह लड़का सही हल कैसे निकाल सका, क्योंकि पढ़ने – लिखने में वह बालक मंदबुद्धि था।
अगले दिन अध्यापक महोदय ज्यों ही कक्षा में आए, त्यों ही पुरस्कार – प्राप्त विद्यार्थी लपक कर उनके चरणों से लिपट गया और फूट – फूट कर रोने लगा। सभी विद्यार्थी और अध्यापक हैरान थे कि इसे क्या हो गया है।
अध्यापक ने उससे पूछा, “क्या बात हा तुम रोते क्यों हो ? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि पुरस्कार प्राप्त करके तुमने अच्छा विद्यार्थी होने का प्रमाण दिया है। ” वह बालक रोते हुए बोला, “आप यह पुरस्कार वापस ले लिजीए श्रीमान !” “पर क्यों ?” अध्यापक ने पूछा। “इसलिए कि मैं इस पुरस्कार का अधिकारी नहीं हूँ। मैंने पुस्तक में से देखकर, चोरी करके प्रश्न सही हल निकाला था। मैंने अपनी योग्यता से सही हल नहीं निकाला था। आप यह पुरस्कार वापस ले लीजिए और मेरी भूल के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए। भविष्य में मैं ऐसी गलती कभी दोबारा नहीं करूँगा, बालक ने कहा।”
अध्यापक ने उसे वापस बुलाकर कहा, “सही हल तुम्हें नहीं आया, लेकिन धोखा देना भी तुम्हें नहीं आता। धोखा देना और चोरी करना तुम्हारा स्वभाव नहीं है, इसलिए कल घर जाने के बाद तुम्हारा मन दुखी रहा और तुमने सही बात कह डाली। तुमने सही हल नही निकाला मुझे इसका इसका दुःख नहीं है, पर तुमने सही बात कह डाली, उसकी मुझे बहुत खुशी है। गलती मान लेने वाले बालक बड़े होकर बड़ा नाम और काम करते है।” आगे चलकर यह बालक न्यायमूर्ति गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से जाना गया।
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सच्चाई की जीत
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लगभग दो सौ वर्ष पहले स्काटलैंड के एक गरीब परिवार में बालिका हेलेन वाकर का जन्म हुआ था। उस समय राज्य की ओर से एक कड़ा कानून प्रचलित था, जिसको तोड़ने पर मृत्यु-दण्ड दिया जाता था।
एक बार हेलेन की छोटी बहिन ने कानून तोड़ दिया। हेलेन के लिए अत्यंत कड़ी परीक्षा का अवसर उपस्थित हुआ। वह अपनी बहिन से बहुत प्रेम करती थी और उसको राजदण्ड से बचाना भी चाहती थी। यदि वह न्यायधीश के समक्ष झूठी गवाही दे देती तो निस्संदेह उसकी बहिन की प्राण-रक्षा हो जाती। पर, हेलेन को यह पवित्र सीख मिली थी कि असत्य बोलने से बढ़कर दुनिया में कोई दूसरा पाप नहीं है। इस पाप का कोई प्रायश्चित भी नहीं है। उसने अपने मन में यह बात ठान ली कि बहिन को बचाने के लिए मुझे अपने प्राणों से हाथ भले ही धोना पड़े, पर मैं झूठ नहीं बोलूँगी।
हेलेन की बहिन ने हेलेन को झूठ बोलकर अपने प्राण बचाने के लिए उकसाना चाहा और बड़ी विनती की, पर हेलेन को निश्चय से डिगाना आसान काम नहीं था। छोटी बहिन ने उसे बहुत भला – बुरा कहा। उसने कहा कि तुम्हारा हृदय पत्थर है, मैं मरने जा रही हूँ और तुम्हें न्याय और सत्य की बात सूझ रही है। पर हेलेन टस से मस न हुई।

हेलेन झूठ भले न बोलती, पर छोटी बहिन को मृत्यु के दुःख से बचा लेने का एक रास्ता तो था ही। बादशाह से क्षमादान पाने के लिए वह लंदन की ओर पैदल ही चल दी। स्काटलैंड के बादशाह की राजधानी इग्लैंड वहाँ से सैकड़ों मील की दूरी पर स्थित थी।
सत्य की रक्षा और न्याय के प्रति पूर्ण आस्था लिए हेलेन हर कठिनाई को पार कर आखिरकार लंदन पहुंच ही गई। उस समय बादशाह लंदन से बाहर गये हुए थे, इसलिए हेलेन महारानी से मिली और अपने आने का कारण बता दिया। महारानी ने हेलेन की सत्यनिष्ठा और राज्य-भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी बहिन को क्षमादान दिया।
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लालच करना बुरी बात है
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किसी अमीर के घर में एक दिन धुँआसा साफ़ करने के लिए एक मजदूर लड़के को बुलाया गया। लड़का सफाई करने लगा। वह जिस कमरे का धुँआसा उतार रहा था, उसमें तरह-तरह की सुंदर चीजें सजायी रखी थी। उसे देखने में उसे बड़ा मजा आ रहा था। उस समय वह अकेला ही था, इसलिए प्रत्येक चीज को उठा – उठा कर देखने लगा। इतने में उसे एक बड़ी सुंदर हीरे – मोतियों से जड़ी हुई सोने की घड़ी दिखाई दी। वह घड़ी को हाथ में उठाकर देखने लगा।
घड़ी की सुंदरता पर उसका मन लुभा गया। उसने कहा – ‘काश ! ऐसी घड़ी मेरे पास होती।’ उसके मन में पाप आ गया, उसने घड़ी चुराने का मन किया, परन्तु दूसरे ही क्षण वह घबराकर जोर से चिल्ला उठा – ‘अरे रे !मेरे हृदय में यह कितना बड़ा पाप आ गया। चोरी करते हुए पकड़े जाने पर मेरी बहुत ही ज्यादा दुर्दशा होगी। जेल जाना पड़ेगा और लोग हिकारत की नज़र से मुझे देखेंगे। ईमान तो जायेगा ही लोग अपने घरों में घुसने तक न देंगे। मनुष्य पकड़े न पकड़े लेकिन ईश्वर की नज़र तथा हाथ से तो कभी नहीं छूट सकता।’
ये कहते – कहते लड़के का चेहरा उतर गया, उसका शरीर पसीने – पसीने हो गया और वह काँपने लगा। वह सर थामकर दीनभाव से जमीन पर बैठ गया और आँखों से आँसुओं की धारा बह चली।
कुछ समय बाद अपनी मानसिक स्थिति सामान्य हो जाने के बाद उसने घड़ी यथा स्थान रख दी। उसने जोर से कहा – ‘लालच बहुत ही बुरी चीज है।’ इसने ही मेरे मन को बिगाड़ा है, पर दयालु भगवान ने मुझको बचा लिया। लालच में फँसकर चोरी करने की अपेक्षा धर्म पर चलकर गरीब रहना बहुत अच्छा है।
चोरी करने वाला कभी निर्भय होकर सुख की नींद नहीं सो सकता, चाहे वह कितना ही अमीर क्यों न हो। चोरी का मन होने पर जब इतना मानसिक क्लेश होता है तो चोरी कर लेने पर पता नहीं कितना भयानक कष्ट उठाना और दुःख झेलना पड़ेगा’ ।
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Such an awesome post.
wah kya post likha hai aapne.aasha karta hun ek din aap uchayiyo ko chuwenge…
aur aise hi aap hamare liye acche acche post awashya likhte rahe.
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Lalach buri balah hai sirf bolne ko nahi hum apne jivan mai v dekhte hai.
Motivational kahani hai. Keep it up.
कहानी बहुत प्रेरणा देने वाली है | हेलेना की कहानी से असत्य कभी बोलना नहीं चाहिए ये सिख मिली
धन्यवाद
Best stories
Sach haar kar bhi jeet jata hai Lalach hai hi buri bala