Essay & Speech on Nari Shakti (woman empowerment in India) in Hindi – नारी शक्ति एवं महिला सशक्तिकरण पर भाषण और निबंध

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि “एक राष्ट्र हमेशा ही अपने यहाँ की महिलाओं से सशक्त बनता है, वह माँ, बहन और पत्नी की भूमिकाओं में अपने नागरिकों का पालन पोषण करती है और तब जाकर यह सशक्त नागरिक, एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाते है।”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन दर्शाता है कि देवीयता प्राप्त नारी कभी माँ के रूप में तो कभी बेटी के रूप में ईश्वर का दिया एक अमूल्य धन है जो बिना परिश्रम लिए अत्यंत आत्मीयता से सभी परिवार जनों की सेवा करती है और जिसने जमीन से आसमान तक हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है | बावजूद इसके समाज में आज भी कुछ लोग ऐसे है जो महिलाओं को अबला नारी कहते है और मानसिक व शारीरिक रूप से उसका दोहन करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते है |
प्रसिद्द लेखिका तसलीमा नसरीन ने लिखा है कि – “वास्तव में स्त्रियाँ जन्म से अबला नहीं होती, उन्हें अबला बनाया जाता है |” पेशे से एक डॉक्टर तसलीमा नसरीन ने उदाहरण के रूप में इस तथ्य की ब्याख्या की है – “जन्म के समय एक ‘स्त्री शिशु’ की जीवनी शक्ति का एक ‘पुरुष शिशु’ की अपेक्षा अधिक प्रबल होती है, लेकिन समाज अपनी परम्पराओं और रीति – रिवाजों एवं जीवन मूल्यों के द्वारा महिला को “सबला” से “अबला” बनाता है | ”
इसका मतलब है की व्यक्तित्व को निखारने के लिए प्रकृति लिंग का भेदभाव नहीं करती है | इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें महिलाओं का सशक्तिकरण करने के लिए महिलाओं को एहसास दिलाना होगा कि उनमें अपार शक्ति है, उनको अपनी आंतरिक शक्ति को जगाना होगा | क्योंकि जिस प्रकार एक पक्षी के लिए केवल एक पंख के सहारे उड़ना संभव नहीं है, वैसे ही किसी राष्ट्र की प्रगति केवल शिक्षित पुरुषों के सहारे नहीं हो सकता है।
राष्ट्र की प्रगति व सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उनती ही अहम् है जितना की पुरुषों की और इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब नारी ने आगे बढ़कर अपनी बात सही तरीके से रखी है, समाज और राष्ट्र ने उसे पूरा सम्मान दिया है और आज की नारी भी अपने भीतर की शक्ति को सही दिशा निर्देश दे रही है यही कारण है कि वर्तमान में महिलाओं की प्रस्थिति एवं उनके अधिकारों में वृद्धि स्पष्ट देखी जा सकती है |
आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में बहुत भारी बदलाव आया है। अधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आका जाता | यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई है। जीवन के हर क्षेत्र में वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़ी हैं और आत्मबल, आत्मविश्वास एवं स्वावलंबन से अपनी सभी जिम्मेदारी निभाती है |
वर्तमान में महिला को अबला नारी मानना गलत है | आज की नारी पढ लिखकर स्वतंत्र है अपने अधिकारों के प्रति सजग भी है | आज की नारी स्वयं अपना निर्णय लेती है | आज की नारी ‘शक्ति’ का सघन पुंज है। यह शक्ति जिस रूप में प्रकट होती है, वह उसी रूप में परिलक्षित होती है ।
आज की नारी जब अपने अबोध एवं नवजात बालक को स्तनपान कराती है तो वह वात्सल्य एवं ममता का साकार रूप होती है | जब वह अपने केंद्र पर खड़ी होकर हुंकार भरती है तो वह दुर्गा एवं कालीरुपा बन जाती है, फिर उसकी दृढ़ता एवं साहस के सामने कोई नहीं टिकता है | जब नारी अपनी सुकोमल सम्वेदनाओं के संग विचरती है तो सृष्टि में सौंदर्य की एक नई आभा, एक दिव्य प्रकाश बिखर जाता है |
वर्तमान स्थिति में नारी ने जो साहस का परिचय दिया है, वह आश्चयर्यजनक है | आज नारी की भागीदारी के बिना कोई भी काम पूर्ण नहीं माना जा रहा है | समाज के हर क्षेत्र में उसका परोक्ष – अपरोक्ष रूप से प्रवेश हो चुका है |
आज तो कई ऐसे प्रतिष्ठान एवं संस्थाएँ हैं, जिन्हें केवल नारी संचालित करती है | हालांकि यहां तक का सफर तय करने के लिए महिलाओं को काफी मुश्किलों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है | इसके बावजूद महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए अभी मिलों लम्बा सफर तय करना है, जो कंटकपूर्ण एवं दुर्गम है लेकिन अब महिलाएं हर क्षेत्र में आने लगी है |
आज की नारी जाग्रत एवं सक्रिय हो चुकी है | वह अपनी शक्तियों को पहचानने लगी है जिससे आधुनिक नारी का वर्चस्व बढ़ा है | व्यापार और व्यवसाय जैसे पुरुष एकाधिकार के क्षेत्र में जिस प्रकार उसने कदम रखा है और जिस सूझ – बूझ एवं कुशलता का परिचय दिया है, वह अद्भुत है | बाजार में नारियों की भागीदारी बढ़ती जा रही है | तकनीकी एवं इंजीनियरिंग जैसे पेचीदा विषयों में उसका दखल देखते ही बनता है |
किसी ज़माने में अबला समझी जाने वाली नारी को मात्र भोग एवं संतान उत्पत्ति का जरिया समझा जाता था | उन्हें घर की चारदीवारी में रहना पड़ता था और ऐसे में नारी की उपलब्धियों को इतिहास के पन्नों में ढूढ़ना पड़ता है |
जिन औरतों को घरेलू कार्यों में समेट दिया गया था, वह अपनी इस चारदीवारी को तोड़कर बाहर निकली है और अपना दायित्व स्फूर्ति से निभाते हुए सबको हैरान कर दिया है | इक्कीसवीं सदी नारी के जीवन में सुखद संभावनाएँ लेकर आई है | नारी अपनी शक्ति को पहचानने लगी है वह अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हुई है |
शक्ति स्वरूप नारी की सफलता के आँकड़ो का वर्णन करें तो शायद उसे समेट पाना संभव नहीं होगा, परंतु विश्लेषण करने पर पता चलता है कि नारी की प्रकृति बड़ी अनोखी और बेजोड़ होती है | उसमे अनगिनत तत्व एक साथ समाए होते हैं | हरेक तत्व की अपनी खास विशेषता होती है |
नारी करुणा भी है तो निष्ठुरता भी है, वात्सल्य भी है तो भोग की चरम कामना भी है, त्याग भी है तो मोह का प्रचंड चक्रवात भी उमड़ता – घुमड़ता है | इसमें प्रेम भी समाहित है और घृणा भी शामिल है | इसी में भक्ति के साथ बहिरंग का आकर्षण भी है | इसी में सौंदर्य के साथ विभत्सता भी है | इसमें पवित्रता और कुटिलता दोनों सम्मिलित हैं | ये दोनों विपरीत तत्व बड़ी तीव्रता एवं बहुलता में नारी में उपस्थित हैं |
नारी शक्ति की पहचान “मीरा” ने भक्तितत्त्व को बढ़ाया था | उनने पाँच हजार वर्ष पूर्व के कृष्ण को, राधा के समान उपलब्ध कर लिया | गार्गी, घोषा, अपाला ने ज्ञानतत्व को विकसित किया था और वे इतनी पारदर्शी ज्ञानी बन गई कि उन्हें ऋषिकाओं के नाम से संबोधित करते हैं |
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माता देवकी ने कठोर तप किया था और इसी कारण उनके दिव्य गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था |
कालितत्व भी नारी में ही समाहित है | इसे बढ़ाने वाली थी क्षत्रा क्षत्राणीयाँ, जिनके कोमल करों में तलवारे खनकती थीं | घोड़ों की पीठ पर वे बिजली के समान कौंधती थीं | रानी लक्ष्मीबाई ने ऐसी वीरता का परिचय दिया था | Malala Yousafzai जिन्हें उत्कृष्ट कार्यों के लिए सबसे कम उम्र में नोबेल प्राइज मिला |
वर्तमान समय में नारियों की दक्षता, कुशलता, और विभिन्न क्षेत्रों में उनकी बढ़ती प्रतिभा में उनके अंदर निहित विशिष्ट तत्वों के विकसित होने के कारण ही उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है |
आज के दौर में स्त्री परिवार को चुनौती देती हुयी महत्वाकांक्षा के सपने संजोती हुई अपने विकास को अवरुद्ध करने वाली सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ती आर्थिक रूप से स्वतंत्रा प्राप्त करती तथा स्त्रियों की पारंपरिक भूमिका से भिन्न खड़ी अपनी अलग जमीन तलाशती स्त्री के रूप में हमारे सामने आती है | जो अपने व्यक्तित्व से अथाह प्रेम करती है और उसे कही कुंठित नहीं होने देती | आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के प्रयास के साथ वह अपनी अस्तिमा के प्रति पूरी तरह सजग है |
इसी कारण स्वामी विवेकानंद ने कहा था –
“नारी का उत्थान स्वयं नारी ही करेगी | कोई और उसे उठा नहीं सकता | वह स्वयं उठेगी | बस, उठने में उसे सहयोग की आवश्यकता है और जब वह उठ खड़ीं होगी तो दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती | वह उठेगी और समस्त विश्व को अपनी जादुई कुशलता से चमत्त्कृत करेगी |”
अगर आज की सभी नारी स्वयं को पहचानने, अपनी आंतरिक शक्तियों को उभारने और उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगा दे तो विकास की गति कई गुना बढ़ सकती है | शक्ति तो शक्ति है, वह जहाँ पर लगेगी, अपना परिचय देगी | ठीक इसी प्रकार नारी शक्ति है, उसे और अधिक पददलित, शोषित और बेड़ियों में नहीं बाँधा जा सकेगा | उसे स्वयं में पवित्रता और साहस, शौर्य को फिर बढ़ाना होगा, जिससे कि उसे भोग्या के रूप में न देखा जा सके | यदि वह अपने स्वरुप को पहचान सकेगी तो वह आज के अश्लील मार्केट में बिकने से बच सकेगी |
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Kya speech di me to 1st price Paula thanks you are giving speech
Bahut hi accha likha hai apne thanks
Bahut hi Acha ..padhak bahut hi Acha laga baki post ki tarah aapki yah post bhi achi hai …