भारत देश पर कविता – Poem on India in Hindi

मेरा देश भारत पर कविता – Poem on India (Bharat) in Hindi
Poem on India in Hindi : कितना भाग्यशाली है भारत देश, जिसका देवता मुक्त कंठ से गान करते हैं, जहाँ एक बार जन्म लेने को तरसते हैं। उसी भारत देश की महिमा पर उत्कृष्ट लेखको के द्वारा कलमबद्ध की हुई कुछ बेहतरीन कविताएँ उपलब्ध करा रही हूँ जो यकीनन आप के लिए उपयोगी होगा।
Poem/कविता 1 – “वह देश कौन – सा है”
मन मोहिनी प्रकृति, की गोद में जा बसा है।
सुख स्वर्ग सा जहाँ है, वह देश कौन सा है !!
जिसका चरण निरंतर, रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन सा है !!
नदियाँ जहाँ सुधा की, धारा बहा रही है।
सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन सा है !!
जिसके बड़े रसीले, फल कुंद नाज मेवे।
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन सा है !!
जिसमें सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन रात हँस रहे हैं, वह देश कौन सा है !!
मैदान गिरी वनों में, हरियालियाँ लहकती।
आनंदमय जहाँ है, वह देश कौन सा है !!
जिसके अनन्त धन से, धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन सा है !!
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Poem/कविता 2 – “जय जय भारत भारती”
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जय जय भारत भारती !
कोटि कोटि कंठो से बोलेन, जय भारत जय भारती !
जय जय भारत भारती !
उत्तर में हिमालय सुशोभित
दक्षिण में सागर आलोड़ित
जिसका है हर कण आलोकित
बारी – बारी आकर ऋतुएं जिसको सदा संवारती,
जय जय भारत भारती !
जिसका आंगन बड़ा सलोना
हरा भरा जिसका हर कोना
जिसकी धरती उगले सोना
जिसके चप्पे-चप्पे पर श्री वैभव है को वारती,
जय जय भारत भारती !
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई
जैन, बौद्ध है भाई -भाई
सबने है आवाज लगाई,
आओ मिल कर आज उतारें भारत माँ की आरती,
जय जय भारत भारती !
कोटि कोटि कंठों से बोलेन, जय भारत जय भारती,
जय जय भारत भारती !
– इन्दरराज बैद
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Poem/कविता 3 – “भारत की जय हो”
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लोकतंत्र संकल्प – सिद्ध हो,
भारत जो जग में प्रसिद्द हो,
आलोकित पथ से चलने का-
निज दृढ़ निश्चय हो।
खंड – खंड यह देश नहीं हो,
खंडहर का अवशेष नहीं हो,
नहीं किसी को दिन – हीन-
होने का संशय हो।
रहे सुरक्षित देश हमारा,
सब विधि उन्नत सजा संवरा,
कहीं किसी को नहीं किसी का-
आपस में भय हो।
संस्कृतियों का संगम है यह,
कर्म – कर्म का उद्गम है यह,
विविध सभ्यता के रूपों में –
शोभा छविमय हो।
अपनी एक राष्ट्रभाषा हो,
जिसमें अपनी परिभाषा हो,
अपने काम सकें कर जिसमें-
प्रगति असंशय हो।
हिमगिरी – सा ऊंचा चरित्र हो,
गंगा-सा जीवन पवित्र हो,
सागर-सा गम्भीर भाव से –
छवि महिमामय हो।
भारत की जय हो।
– मोहनचंद्र मंटन
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Poem/कविता 4 – “मेरा देश”
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इस कल्याणी धरती पर,
यह मेरा मनोहर देश,
है इस पर प्राण निछावर।
इसके तन (धरती) पर,
सूरज चमके,
मन में महके चाँदनी
नस-नस में इसकी-
रस बरसे
अधरा गूंजे रागिनी।
ममता में मान सरोवर,
धाता का धीर धरोहर,
है इस पर प्यार निछावर।
इसके गांव,
स्वर्ग से सुन्दर,
नंदन नगर महान हैं।
इसके वीर सुतों से-
धरती, हिमगिरी-
महिमावान है।
इसमें प्रताप है अकबर,
इसमें रहीम है रघुवर,
इस पर सब धर्म निछावर।
चांदी जैसी शुभ्र अहिंसा,
सत्य स्वरुप सुनहरा
भाल गगन से ऊंचा,
पग के नीचे सागर गहरा।
यह मानव का मन सुंदर,
दानव के लिए भयंकर,
इस पर सर्वस्व निछावर।
– मधुर शास्त्री
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Poem/कविता 5 – “भारत की जय बोल दो”
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सांझ सकारे चंदा सूरज करते जिसकी आरती
उस मिट्टी में मन का सोना घोल दो।
ग्रह नक्षत्रों ! भारत की जय बोल दो।
वह माली है, वह खुशबू है, हम चमन
वह मंदिर है, वह मुरत है, हम नमन
छाया है माथे पर आशीर्वाद-सा
वह संस्कृतियों के मीठे संवाद-सा
उसकी देहरी अपना माथा टेक कर
हम उन्नत होते हैं उसको देख कर
ऋतुओं ! उसको नित नूतन परिधान दो।
झुलस रही है धरती सावन दान दो।
सरल नहीं परिवर्तन में मन ढालना
हर पत्थर से भगीरथी निकालना,
जिस मंदिर-मस्जिद- गिरजे में कैद पड़ा इन्सान हो
जाओ उसमें किरन किवार खोल दो।
कुमकुम पत्रों ! भारत की जय बोल दो।
उसका करो प्रणाम, रगों में नीर है,
झेलम की आंखो वाला कश्मीर है,
बजरे और शिकारे उसकी झील के,
लगते बनजारे तारे कंदील-से,
किसी नारियल वन की गेय सुंगध से,
अंतरीय के दूरागत मकरंद से,
फूटा करता नए गीत का अंतरा,
कुछ क्षणों को दुःख भूल विहंसती है धरा,
दो छवि- कमलों के अंतर-आवास में,
कोई बादल घुमड़ रहा आकाश में,
सर्जन की मंगल-बेला में धूमकेतु क्या चाहता
बच्चों की पावन उत्सुकता तोल दो।
देशज मित्रों ! भारत की जय बोल दो।
हम अनेकता में भी तो हैं एक ही,
हर संकट में जीता सदा विवेक ही,
कृति, आकृति, संस्कृति, भाषा के वास्ते,
बने हुए हैं मिलते-जुलते रास्ते
आस्थाओं की टकराहट से लाभ क्या?
मंजिल को हम देंगे भला जबाब क्या?
हम टूटे तो टूटेगा यह देश भी,
मैला होगा वैचारिक परिवेश भी,
सर्जन-रत हो आजादी के दिन जियो
,श्रम कर्माओ ! रचनाकारो ! साथोयो !
शांति और संस्कृति की जो बहती स्वाधीनता जान्ह्वी,
कोई रोके, बलिदानी रंग घोल दो।
रक्त- चरित्रों ! भारत की जय बोल दो।
– वीरेन्द्र मिश्र
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Very nice poems babita mam. Keep it up the good work.
very nice info
thanks for info
Nice , Thanks for Information