हिंदी भाषा पर कविता : Poem on importance of Hindi Language

हिंदी की राष्ट्रभाषा व राजभाषा वाली गरिमा को सुरक्षित रखते हुए इसकी महत्ता को बताती सुन्दर कविता प्रस्तुत कर रही हूँ। इस कविता को प्रेम शंकर शास्त्री जी ने लिखा है।
भारत के जन – जन का उद्गार है हिंदी,
हर इक के दिलो को जोड़ने का तार है हिंदी।
हर ओठों को, मुस्कान मिले जी भर,
ईश्वर का दिया गया अनुपम उपहार है हिंदी।।
बिहारी, केशव, भूषण का रीतिवाद है हिंदी,
स्थूल से सूक्ष्म तक रहस्यवाद जानने का,
प्रसाद, निराला, पन्त का ‘छायावाद‘ है हिंदी।
आती और जाती, सुबह – शाम है हिंदी,
हर लक्ष्य को पाने का मुकाम है हिंदी।
पी लो जितना चाहे दिन – रात छककर,
बच्चन की मधुशाला का छलकता जाम है हिंदी।
गीता, कुरान व बाईबिल का सार है हिंदी,
सुविसित गुलाब के फूलों का हार है हिंदी।
नहा लो चाहे जी भर प्यार से,
गंगा की बहती निर्मल धार है हिंदी।
हिन्दू, मुश्लिम, सिक्ख व ईसाईयों का संसार है हिंदी,
आपस में भाईचारा बढ़ाने का आधार है हिंदी।
हम रहें चाहे जितना भी अलग – अलग,
विभिन्नता में एकता को पिरोने में सूत्रधार है हिंदी।
किसानों की लगती मधुर चौपाल है हिंदी,
जवानों के सीनें में लगी हुई ढाल है हिंदी।
पड़ोसी मुल्को को सबक सिखाने हेतु,
हम सभी के करो में तीक्ष्ण तलवार है ‘हिंदी‘।।
हम सभी को मिला हुआ माँ का प्यार है हिंदी,
पिता का बच्चों को दिया गया दुलार है हिंदी।
खोजते रह जओगो, अनबूझी पहेलियों को तुम,
अगम असीम निधियों का पारावार है हिंदी।।
वीणा के निकलते मधुर स्वरों की झंकार है हिंदी,
बांसुरी के स्वरों की बहती रसधार है हिंदी,
रसाल पर कूँ कूँ कर, मदहोश कर देने वाली,
कोयल की सुरीली मधुर पुकार है हिंदी।।
फिल्मी जगत में अलग रखती पहचान है हिंदी,
फिल्मकारों की अदाओं की जान है हिंदी।
फिल्मों में चाहे जितनी भाषाओं के सुन ले गीत,
फिल्मी गीतों की आन – बान व शान है हिंदी।।
साहित्याकाश के तम को मिटाने में, सविता है हिंदी,
कवियों के मंथन से सृजित कविता है हिंदी।
डूबते उतराते रहो यूँ ही प्यार से,
जादू की बहती अजीब सरिता है हिंदी।
गम्भीर सागर को पार करने की पतवार है हिंदी,
राष्ट्रभाषा बनने की सचमुच हकदार है हिंदी।
श्रम से चूर होकर आ जाओ गोद में इसके,
राहत देती समझो रविवार है हिंदी।।
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हिंदी दिवस पर कविता “हिंदी के स्वर बुला रहे हैं” (Poem on hindi diwas)
अपने पन की चली हवाएँ, हिन्दी के श्रृंगार से,
हिन्दी स्वर बुला रहें हैं, सात समंदर पार से।
आज विश्व में हिन्दी के प्रति,
बढ़ने लगा लगाव है।
एक मात्र भाषा है जिसमें,
सर्वधर्म समभाव है।
हिन्दी इतनी सहज कि इसको सब अपनाते प्यार से,
हिन्दी स्वर बुला रहें हैं, सात समंदर पार से।
सकल विश्व साहित्य आजकल,
हिन्दी में उपलब्ध हैं।
हिन्दी के बढ़ते प्रचलन से,
हर भाषा स्तब्ध है।
प्रगति पथ पर देश चला है हिन्दी के विस्तार से,
हिन्दी स्वर बुला रहें हैं, सात समंदर पार से।
वही देश उन्नत होता हैं,
जिसकी भाषा एक हो,
उसको जग सम्मानित करता,
जिसके पास विवेक हो,
अनजाने अपने हो जाते, हिन्दी के व्यवहार से,
हिन्दी स्वर बुला रहें हैं, सात समंदर पार से।
कई सितारे चमक रहे हैं,
हिन्दी के आकाश में,
छटा इन्द्रधनुषी बिखरी है,
इसके मृदुल प्रकाश में, जग को ज्ञान ज्योति मिलती है हिन्दी के भंडार से,
हिन्दी स्वर बुला रहें हैं, सात समंदर पार से।
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मातृभाषा पर बहुत ही सुन्दर कविता । धन्यवाद ।