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कल करे सो आज कर आज करे सो अब – kal kare so aaj kar aaj kare so ab

“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब” (निबंध)

"Kal Kare so Aaj Kar"
“Kal Kare so Aaj Kar”

‘कल करै सो आज कर, आज करै सो अब’। यह पंक्तियाँ निर्गुण भक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि महात्मा कबीरदास के एक दोहे का पूर्वार्द्ध है। उनका पूरा दोहा इस प्रकार है –

कल करे सो आज कर आज करे सो अब |

पल में परलै होयेगी बहुरि करोगे कब ||

इस दोहे का अर्थ ये है कि हमे समय के सदुपयोग की आदत डालनी चाहिए। तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। समय तो क्षणभंगुर है जो अगले क्षण ही धोखा दे सकता है। इसलिए  मृत्यु आने से पूर्व जो कुछ करना चाहते है; उसे कर लेना चाहिए। मनुष्य जीवन की सार्थकता समय के सदुपयोग में है और जिसने भी इसके महत्व को समझा वह सफलता की सीढ़ी चढ़ता गया। समय का सदुपयोग करने वाला ही जीवन में सफलता अर्जित करता है।

मनुष्य के जीवन में समय से बलवान कोई चीज नहीं है। वह व्यक्ति जो इस सूक्ति के असली सार को धारण कर लेता है उसका जीवन सफल और सार्थक बन जाता है। कुछ लोगों को जब भी कोई जिम्मेदारी या काम करने के लिए दिया जाता है तो वे तुरंत कहते हैं कि कल कर लूंगा। इसके पीछे ढेर सारे बहाने भी तैयार होते हैं, जैसे आज बहुत व्यस्त हूँ, तबीयत ठीक नहीं लग रही हैं आदि। खास बात तो यह है कि इन लोगों का “कल” कभी नहीं आता।

ऐसे लोगों की भलाई अपने टाल मटोल की आदतों को बदलने में ही होती हैं। रुपया – पैसा, स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा आदि खोकर पुनः प्राप्त किये जा सकते है परन्तु बीता समय कभी वापस लौटकर नहीं है। इसलिए किसी काम को कल पर टालते रहने से कोई लाभ नहीं होता हैं। अत: कल किए जाने वाले कार्य को आज तथा आज किये जाने वाले कार्य को यथाशीघ्र ही कर लेने की आदत डालनी चाहिए।

समय ईश्वर का ही एक विधान है, जो सबसे अनोखा, अमूल्य किन्तु क्षणिक है। समय की अमुल्यता पर स्वेट मार्डेन ने सही ही लिखा है –“ईश्वर एक बार ही क्षण देता है और दूसरा क्षण देने से पूर्व, उस क्षण को ले लेता है।” समय सबका संचालन करता है। उसके लिए सभी एक समान है। समय के अनुसार ही हमारे जीवन में भी उतार – चढ़ाव आते है।

अत: हर पल की अहमियत समझते हुए सभी को समय का आदर करना चाहिए। व्यावहारिक रूप से जो समय की क़द्र करता है और उसका सही से उपयोग करता है तो समय भी उसकी कद्र करता है। समय के महत्व को पहचान कर उसके अनुरूप जीवन व्यतीत करना ही मनुष्य के लिए श्रेयस्कर है।

वस्तुतः समय जीवन का सबसे अहम हिस्सा है। समय खोने का सीधा सा अर्थ है जीवन को खोना और व्यर्थ नष्ट करना, जो किसी भी दृष्टि से बुद्धिमानी नहीं है। जो व्यक्ति समय – नियोजन न कर समय को आलस्यवश नष्ट कर देते है, समय उन्हें नष्ट कर देता है। इस महामंत्र को सुन समझकर भी हम समय के मूल्य को नहीं समझते।

अंग्रेजी में कहा गया है, “Time and tide waits for none.” अर्थात समय और तूफान किसी का इन्तजार नहीं करता है। ठीक ही कहा है समय कभी स्थिर नहीं होता निरंतर गतिशील रहता है। उसकी यह गतिशीलता जीवन है। घड़ी की सुइयां भी निरंतर सरकती हुई हमें यही चेतावनी देती है कि समय निकला जा रहा है, कुछ कर लो। यदि एक बार समय निकल गया तो वह फिर कभी लौटकर नहीं आएगा।

यह समय की अमूल्यता का द्योतक ही है, जो वह कभी किसी के लिए नहीं रुकता है। यद्यपि समय प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर देता है। लिहाजा जो व्यक्ति समय के अनुरूप चलता है, समय का सदुपयोग करता है, उसे निर्थक नहीं गवाता वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बन जाता है। संभवतः जीवन की सफलता समय के समुचित उपयोग में ही निहित है। प्रत्येक व्यक्ति को इसके लिए सचेत और जागरूक रहना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे प्रकृति अपने सारे काम समय पर ही करती है।

सूर्य और चन्द्रमा अपने समय पर उदय और अस्त होकर जीवन का चक्र संपादित करते हैं तथा समस्त प्राणी और पदार्थ को उचित विकास और विश्राम दे पाते हैं। विभिन्न ऋतुएँ भी अपने समय से बदलती रहती है। वृक्ष तथा पौधे समय के अनुरूप फल तथा अन्न प्रदान करते हैं। इसी प्रकार वसंत ऋतु के आने पर ही कोयल कूकती है। अत: जब प्रकृति समय के अनुसार चलती है तो मनुष्य को क्यों नहीं समय के साथ चलना चाहिए। 

यह ध्रूव सत्य है कि समय उन्हीं के रथ के घोड़े को हाँकता है जो उसके महत्व को समझता है। वास्तव में मनुष्य जिस समय को चाहे उसे शुभ समय बना सकता है अवश्यकता तो बस समय के महत्व के परख की है। इसीलिए बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा समय के साथ चलता है और योजनाबद्ध तरीके से अपने सारे काम पूरे करता है। समय को अधिक से अधिक सदुपयोग में लाने के लिए नियोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

दरअसल समय का सदुपयोग ही समय के मूल्य को बढ़ाता है।  जब हम समय – सारणी बनाकर, प्रत्येक कार्य को निश्चित समय पर संपन्न करते है तो कार्य के रूप में मिली प्रगति ही हमारे समय का मूल्य  होता है। समय पर कार्य सम्पन्न करने से हमारे भीतर स्वावलंबन, आत्मविश्वास, धैर्य आदि गुणों का संचार होता है जिससे प्रगति पथ पर हम निरन्तर आगे बढ़ते है। 

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Babita Singh
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