विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (डब्ल्यूईडी) पर विशेष भाषण और निबंध – 5 Jun World Environment Day Speech & Essay in Hindi

Vishwa Paryavaran Diwas Speech 2020 : विश्व पर्यावरण दिवस (ईको दिवस) पर्यावरण संरक्षण हेतु, सारी दुनिया में मनाया जाने वाला एक पर्यावरणपूरक उत्सव का दिन है। यह प्रकृति को समर्पित दुनिया के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है। हर साल इसे सारा संसार 5 जून को मनाता है।
पर्यवारण और मानव का अनादिकाल से बड़ा घनिष्ठ और गहरा नाता है। ये हमारे जीवनदाता है और जो सारी सृष्टि को प्रदुषण मुक्त रखता है। जीवन के लिए अच्छा पर्यावरण अत्यंत आवश्यक है लेकिन जब बात पर्यावरण को बचाने की आती है तो हम प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों से मुह मोड़ लेते है और तब भी हम यही चाहते है कि हमारा पर्यावरण स्वच्छ और सुन्दर हो। जरा सोचिए जो प्रकृति हमें जीवित रखती है तो क्या हम सब का फर्ज नहीं बनता कि हम भी उसके लिए कुछ करें।
इसी उद्देश्य से आज से 48 साल पहले 5 जून को एक कार्यक्रम के रूप में ईको दिवस मनाने की घोषणा की गई थी, जिसका लक्ष्य पूरे विश्व में मानवीय पर्यावरण का संरक्षण और विकास करना था साथ ही मानव जीवन में स्वस्थ्य और हरित पर्यावरण के महत्व के बारे में सकारात्मक जागरूकता फैलाना है। इस उत्सव को पूरा विश्व मनाता है। इस साल भी व्यापक स्तर पर पूरे विश्व में अनोखे कार्यक्रम के जरिए यह संदेश जा रहा है कि अभी भी हम पर्यावरण को पहले की तरह बना सकते है बशर्ते जब पूरा विश्व मिलकर सार्थक पहल में अपना-अपना योगदान दे।
पृथ्वी ही एक अकेला ग्रह है जहां पर जीवन है बाकी किसी भी ग्रह पर मानव जीवन और पर्यावरण के अनुकूल कोई भी वातावरण उपलब्ध नहीं है। पृथ्वी के इस तापमान में मनुष्य सदियों से जीवन जीता आ रहा है लेकिन उसने विकास की रफ्तार में पर्यावरण को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया है। ऐसे में विश्व पर्यावरण दिवस कार्यक्रम एक सार्थक पहल है जो वैश्विक स्तर पर मुहीम चलाकर पर्यावरण को बचाने में जागरुक करता है।
विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास (Short Speech on World Environment Day in Hindi)
पूरे विश्व के पर्यावरण की कुछ समस्याओं पर संयुक्त राष्ट्र संघ तथा उसकी अन्य एजेंसियां कार्य कर रही हैं, जिसमें मानव पर्यावरण स्टाक होम सम्मेलन 5 जून, 1972 से प्रारम्भ होकर 16 जून, 1972 को समाप्त हुआ था। विश्व पर्यावरण की सुरक्षा और संक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ का यह पहला प्रयास था। इस सम्मेलन में 119 देशों ने पहली बार ‘एक ही पृथ्वी’ का सिद्धांत स्वीकार किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ। सम्मेलन में मानवीय पर्यावरण का संरक्षण करने तथा उसमें सुधार करने के लिए, राज्यों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को दिशा – निर्देश दिये गये।
मानव स्वास्थ्य और उचित पर्यावरण बनाने के लिए वैश्विक जागरूकता लाने हेतु 5 जून को एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में विश्व पर्यावरण दिवस (डब्ल्यूईडी) मनाने की घोषणा सम्मेलन में की गई। सम्मेलन द्वारा सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाय। परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की गई।
हमारे संविधान की “उद्देशिका” में यद्दपि प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण के बारे में कुछ नहीं कहा गया है लेकिन जिस प्रकार की समाजवादी राज्य की परिकल्पना की गई है वह केवल तभी संभव है जब हमारा वातावरण स्वच्छ हो। हालांकि कुछ मूल अधिकारों में पर्यावरण को अप्रत्यक्ष रूप से समाहित किया गया है जो स्पष्ट रूप से पर्यावरण संरक्षण का उपबन्ध करता है। इसके अनुसार –
“भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंर्तगत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा और उसका संवर्धन करे और प्राणी के लिए दया भाव रखे।” हम अपने आस पास के वातावरण को जितना सहेज कर रखेंगे, जीवन उतना ही उत्कृष्ट, आनन्दमय एवं सुखमय होगा।
पर्यावरण की सुरक्षा – Environmental Protection in Hindi
पर्यावरण संतुलन बनाए रखने एवं किसी भी समुदाय या स्थान के समग्र विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण अत्यधिक आवश्यक है। लेकिन आम विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का जितनी क्रूरता से दोहन किया जा रहा है, वहां मानवता का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इसलिए पर्यावरण की क्षीणता पर गंभीरतापूर्वक चिंतन की आवश्यकता है।
पर्यावरण के प्रति जागरूकता कुछ लोगो के लिए यह सर्वथा एक नई बात है परन्तु हम भारतवासी अनादिकाल से प्रकृति की पूजा करते आए है। पर्यावरण के प्रति जागरूक, प्राचीन मानव समाज तो शुरू से रहा है। वैदिक संस्कृति पर्यावरण संरक्षण का विकल्प बन गया है। प्रकृति के विभिन्न अंगों, नदी, पर्वत, वृक्ष, जीव – प्राणी, भूमि आदि प्राकृतिक तत्वों की पूजा – अर्चना इस तथ्य के प्रमाण हैं।
प्राचीन संस्कृति में पौधों को, वृक्षों को, नदियों को आदरपूर्वक संबोधन करने की प्रवृति की भ्रर्त्सना करना बहुत कुछ उपहासास्पद माना जाता है। उनके मतानुसार यह सर्वथा अवैज्ञानिक है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वृक्षों के नीचे, नदियों के तट पर एवं अन्यत्र धार्मिक औपचारिकता के नाम पर जो लोग दीपदान करते है, धूप, अगरबत्ती, कपूर आदि जलाकर वातावरण को सुगन्धित एवं शुद्ध बनाते है। ये भले ही केवल औपचारिकताओं के नाम पर हो रहा हो पर वे क्या पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने का अथवा प्रदूषण मुक्त करने का प्रयास नहीं करते है ? इस प्रकार के पुण्यकार्य द्वारा पर्यावरण के प्रति तो कर्त्तव्य का पालन होता ही है, साथ ही ऐसा करते हुए किसी प्रकार के अहंकार का अंकुर भी उत्पन्न नहीं होता है।
उक्त प्रकार के आचरण को कुछ आधुनिक लोग अज्ञान मुल्क एवं अज्ञान प्रसूत कह सकते है। परन्तु इतना तो सुनिश्चित है कि इनके द्वारा प्रकृति के साथ हमारे सहजीवन की भावना मुखर होती है। हम प्रकृति के साथ पूरी सद्भावना एवं सहयोग भावना के साथ जीने का प्रयत्न करते है।
आज भी कई सौभाग्यवती नारियां को अपनी शादी के जीवन को सुखी बनाने के लिए, वट-वृक्ष का पूजन करते हुए देखा जा सकता है। हजारों नर – नारी दूध – दही चढ़ा कर गंगा – यमुना आदि नदियों का पूजा करते हुए देखे जाते हैं। लाखों व्यक्ति उन्हें माता कह कर संबोधित करते हैं। पीपल वृक्ष को घर के दरवाजे पर लगाने से शुभ माना जाता है कि क्योंकि वह प्रेतत्माओ के कूप्रभाव का निवारण करता है आदि।
हमारा निवेदन है कि हम अलबर्ट आइन्स्टीन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के परिवेश में विचार करें तो प्रत्येक पदार्थ ऊर्जा का संघात है तथा उसमें जीवन्तता का अंश अनिवार्य है। परमाणु के विघटन ने यह सिद्ध कर दिया है कि परमाणु में चेतना होती है और वह बाह्य संवेदनों के प्रति प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है। तब यह स्वीकार करना होगा कि तथाकथित जड़ पदार्थों के प्रति आत्मीयभाव की अभिव्यक्ति सर्वथा वैज्ञानिक है और प्रकृति के साथ हमारे अछेद्य संबंधों का सुदृढ़ आधार है।
वैदिक धर्म को सर्वश्रेष्ठ धर्म इसलिए माना जाता है कि वह विश्व के कण – कण को विश्वात्मा का अंश, चेतनायुक्त स्थिति के रूप में स्वीकार करता है। प्रकृति के साथ सद्भावपूर्वक जीवन व्यतीत करना हमारे जीवन का अभिन्न भाग है – प्रकृति के साथ मानव जीवन का ताना बाना छिद्ररहित एवं सर्वथा अक्षुण्य हैं।
पर्यावरण के प्रति कर्त्तव्यपालन का न तो ढिढोरा पीटा जाता है और न ही मीडिया द्वारा विज्ञापन किया जाता है। वेदों की ऋचाओं में प्रकृति की महान शक्तियों एवं जीवनप्रदायिनी उनकी विशेषता का गुणगान मुक्तकंठ से किया गया है। घर के आँगन तुलसी का घरुआ (चौरा), द्वार पर पीपल , नीम आदि के वृक्ष आदि हमारे सांस्कृतिक जीवन के अलंकार माने जाते है। प्रकृति हमारी चिर सहचरी रही है। हम उसी के क्रोड़ में लोट – पोट कर बड़े होते आए है।
हमारे ऋषियों ने अनेक ऐसे मन्त्रों की रचना करके प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति हमारी कर्तव्य भावना को धर्म के साथ ऐसा जोड़ दिया कि हम चाहते हुए भी पर्यावरण की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं।

कुछ लता-गुल्म का औषधीय मूल्य एवं महत्व होता है – एव चिकित्सा में हमारे सहायक होते हैं। ऐसे अनेक पादपों जैसे आवला, तुलसी, नीम आदि का पूजन एवं संरक्षण हमारी परम्पराओं में रच – पच गया है। हम उनके वैज्ञानिक महत्व को जानने और हृदयंगम करने का अभ्यास करें।
अनुभव एवं सामूहिक ज्ञान द्वार हमारे पूर्वजों ने इन महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त की होगी। ज्ञानवान होने के साथ मनुष्य के मनोविज्ञान में भी उनकी गहरी पैठ थी। वे जानते थे कि यदि पर्यावरण की रक्षा सम्बन्धित उपदेशात्मक कथन किए जाएंगे तो कोई भी इस ओर ध्यान नहीं देगा।
हम प्रत्यक्ष देखतें हैं कि व्याख्यान, भाषण, लेख तथा प्रचार – संचार के माध्यमों द्वारा किए गये प्रयास प्रायः निष्फल हुए हैं तथा पर्यावरण की समस्या कम होने की अपेक्षा दिन – प्रतिदिन बढ़ती जाती है।
यह निवेदन करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि धार्मिक औपचारिकताओं के नाम पर हम भारतवासी पर्यावरण में गंदगी नहीं होने देते हैं। उसको स्वच्छ और पवित्र बनायें रखते हैं परन्तु अब प्रत्येक स्थिति एवं स्थान पर आर्थिक लाभ एवं सुख – सुविधा के दृष्टि से विचार किया जाने लगा है, परिणाम सामने हैं। हमारी समस्त नदियों के पानी को कारखानों की गंदगी ने प्रदूषित कर दिया है और तो और गंगोत्री को सैलानी – स्थल (picnic Spot) बनाने के नाम पर गंगा के प्रदूषण का प्रमुख केद्र बना दिया गया है। यानि वहां पर जलाए जाने वाले ईधन एवं प्रयोग के बाद फेके जाने वाले पोलिथीन के थैले आदि कचड़ा गंगा को स्रोत पर ही प्रदूषित कर देते हैं।
पर्यावरण का अपमान भूकम्प, सुनामी, अतिवृष्टि जैसे अभिशापों का दंड दे चूका है। हर बार दण्ड के साथ अवसर भी दिया जाता है कि हम अपने पर्यावरण की वैज्ञानिकता एवं उपयोगिता को समझें और उसका सम्मान करें। हमें स्मरण रखना चाहिए कि सभी के सहयोग से पृथ्वी का अस्तित्व है। जीवन स्तर केवल प्रदूषण रहित पर्यावरण में ही सम्भव हैं।
पर्यावरण को लेकर हम जिस स्थिति में पहुंच गए हैं वहां हर रोज ऐसे दिवस मनाने की जरुरत है। अपने मन में ये गांठ बाँध ले कि किसी भी सूरत में पर्यावरण का नुकसान नहीं करेंगे।
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