रहीम के दोहे

रहीम दास के अर्थ सहित दोहे (Rahim Das ke Dohe With Meaning in Hindi)
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धनि रहीम जल पंक को, लघु, जिय पिअत अघाय।
उद्धि बड़ाई कौन हैं, जगत पिआसो जाय।।
अर्थ – रहीम कहते हैं कि कीचड़ से भरा छोटा जलाशय धन्य है। इसमें से पानी पीकर छोटे – छोटे जीव – जंतु भी तृप्त हो जाते हैं। सागर तो बड़ा विशाल और पानी से भरा रहता है, फिर भी सागर का पानी कोई नहीं पिता है। सारे जीव उसके किनारे से प्यासे ही लौट जाते हैं। समग्रता चीज कितनी भी छोटी क्यों न हो मगर जो दूसरों की मदद करता है, वही धन्य होता है। जो दूसरों की सहायता नहीं करता है उसका जीवन व्यर्थ है।
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‘रहिमन’ गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं।
आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं॥
अर्थ – संत शिरोमणि रहीम कहते हैं ईश्वर की प्राप्ति में मनुष्य का अहंकार सबसे बड़ी बाधा है। हमारा हृदय अत्यंत संकुचित है, उसमें केवल एक के लिए स्थान है या तो उस संकुचित हृदय में ईश्वर रह सकते हैं या अहंकार, अत: जो व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है उसे सबसे पहले अहंकार का त्याग कर देना चाहिए। जब तक व्यक्ति के हृदय में अहंकार या अभिमान है, तब तक उसमें ईश्वर का प्रवेश नहीं हो सकता। इस तरह ईश्वर की प्राप्ति के संदर्भ में रहीम ने हृदय को बहुत सँकरा कहा है।
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रहिमनि निज मन की बीथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलाईहैं लोग सब, बांटी न लीह हैँ कोय ॥
अर्थ – कवि रहीम कहते हैं कि अपने दुःख को मन के भीतर ही छिपाए रखना चाहिए क्योंकि दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें लेकिन उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं मिलता।
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
अर्थ – कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम का बंधन (नाता) बड़ा नाज़ुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं है। यदि यह धागा एक बार टूट गया तो फिर इसका जुड़ना कठिन है। और यदि किसी प्रकार से जुड़ भी जाए तो भी टूटे हुए धागों के बीच गाँठ का पड़ना निश्चित है।
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जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कु-संग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग ॥
अर्थ – अच्छे चरित्र के स्वभाव वालों पर बुरे लोगों के साथ का कोई भी असर नहीं होता, ठीक उसी तरह ही जैसे चन्दन के वृक्ष से लिपटे सर्प के विष का कोई प्रभाव नहीं होता।
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम, पर काज हित संपति सँचहि सुजान ॥
अर्थ – वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। और सरोवर (तालाब) भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं। रहीम इस दोहे के माध्यम से हमें परोपकारी व्यक्तियों के बारे में बता रहे हैं। रहीम कहते हैं कि इस संसार में स्वार्थ के लिए तो लगभग सभी लोग जीवित रहते हैं । किन्तु जो लोग दूसरों के लिए जीते है वे ही महान हैं। जो लोग परोपकार के लिए जीवित रहते हैं उन से बड़ा महान इस संसार में और कोई नहीं। मानव धर्म भी हमें यही सिखाता है कि हमें परोपकार करना चाहिए।
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कदली सीप भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥
अर्थ – मनुष्य का पालन पोषण जिस वातावरण में होता है उसी से प्रभावित होकर उसके चरित्र का निर्माण होता है। संगति ही मनुष्य के विचारों को निर्मल अथवा मलिन बनाती है ठीक वैसे ही जैसे की लाठी एक है, किंतु यदि वह रक्षक के हाथ लगे तो रक्षा करती है, और गर हत्यारे के हाथ लगे तो हत्या।
रहीम कहते हैं, इसी प्रकार स्वाति की बूंदें एक ही जैसी होती है, किंतु वे जिसकी संगति में पड़ती है, वैसा ही गुण धारण करती है। जब वह ‘केलें‘ पर गिरती है तो कपूर बन जाती है और सीप में पड़ने से मोती का रूप ले लेती है, जबकि सांप के मुंह में जाकर विष बन जाती है। अत: जो जैसी संगति में बैठेगा, वैसा ही आचरण करेगा।
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छिमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उतपात ।
कह रहीम का घट्यो, जो भृगु मारी लात॥
अर्थ- बड़ों को शोभा क्षमा देता हैं और छोटों को उत्पात। अर्थात यदि छोटे गलती करते है तो कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे उत्पात भी करते है तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे की कोई कीड़ा (भृगु) अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती।
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“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ॥“
अर्थ – कवि रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक देना मुर्खता है, क्योंकि जहां पर ‘छोटे‘ की जरुरत होती है वहां ‘बड़े‘ के होने का कोई फायदा नहीं हैं। जैसे कि सुई काम तलवार से नहीं हो सकता। मतलब हर चीज का अपना मोल, उपयोग होता है। हर चीज खुद में अनमोल होती है।
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ॥
अर्थ इस दोहे में कवि रहीम ने पानी का प्रयोग तीन अर्थों में किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है। इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य जिस तरह आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।
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गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि ।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढ़ी ॥
अर्थ – रहीम कहते हैं जिस तरह किसी गहरे कुएं से भी बाल्टी द्वारा पानी निकाला जा सकता हैं उसी तरह किसी व्यक्ति के दिल में अच्छे कर्मों के द्वारा स्वयं के लिए प्रेम भी उत्पन्न किया जा सकता हैं क्योंकि मनुष्य का हृदय कुँए से गहरा नहीं होता।
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जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं ।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं ॥
अर्थ – संत रहीम दास कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होती है । जैसे गिरिधर को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती है ।
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दोनों ‘रहिमन‘ एक से, जौ लों बोलत नाहिं ।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं ॥
अर्थ – कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं है तब तक इनकी पहचान छिपी होती है। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है।
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रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
अर्थ- ओछे व्यक्तियों से ना तो प्रीती और ना ही दुश्मनी भली होती है, ठीक उसी प्रकार जैसे कुत्ते से बैर किया तो काट लेगा और यदि प्यार किया तो चाटेगा।
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समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात ।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात ॥
अर्थ – रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
अर्थ- रहीम कहते हैं कि धन्य हैं वे लोग जिनका जीवन सदा परोपकार में बीतता हैं। ऐसे लोग असीम कृपापात्र खुद ही हो जाते है जैसे की फूल बेचने वालों के हाथों में खुशबू रह जाती है।
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
अर्थ – मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
अर्थ – रहीम कहते है कि जीवन में संघर्ष भी जरुरी है क्योंकि यही वह समय होता है, जब यह ज्ञात होता है कि कौन अहित में है, कौन हित में क्योंकि संघर्ष (विपत्ति) में ही सबके विषय में जाना जा सकता है।
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं विपत्ति॥
अर्थ – जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय ॥
अर्थ – मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं परन्तु एक बार वे फट जाएं तो करोड़ों उपाय कर लो वे फिर वापस अपने सहज रूप में नहीं आते।
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“जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय,
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥“
अर्थ – दीपक के चरित्र की भांति ही कुपुत्र का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ-साथ अंधेरा होता जाता है।
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय ॥
अर्थ – जब ओछे मकसद से लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने धोलागिरी को उठाया था तो उनका नाम कारन ‘गिरिधर’ नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया तो उनका नाम ‘गिरिधर’ पड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पहाड़ उठाया था।
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि ॥
अर्थ – माली को आते देखकर कलियां कहती हैं कि आज तो उसने फूल चुन लिया पर कल को हमारी भी बारी भी आएगी क्योंकि कल हम भी खिलकर फूल हो जाएंगे।
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“एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय ॥”
अर्थ – एक को साधने से सब सध जाते हैं वैसे ही जैसे पौधे के जड़ में पानी डालने से फूल और फल सभी को पानी मिल जाता है और उन्हें अलग से पानी डालने की जरूरत नहीं होती है ठीक इसी प्रकार मन को एक समय में एक विषय पर केंद्रित किया जाए सफलता निश्चित है इसके विपरीत यदि एक समय में अनेक विषयों में बुद्धि लगाने से किसी में भी सफलता अर्जित नहीं की जा सकती।
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रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
भीति आप पै डारि कै, सबै पियावै तोय॥
अर्थात – दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो खतरा मोलकर भी दूसरों की रक्षा करते हैं। दूसरों का हित साधने वालों से शिक्षा ली जाए तो मानवीय आचरण में सुखद परिवर्तन आ सकता है।
रहीम कहते हैं, घड़े और डोरी की रीति सचमुच सराहनीय है। यदि इनके गुण को अपनाया जाए तो मानव समाज का कल्याण ही हो जाए। कौन नहीं जानता कि घड़ा कुएं की दीवार से टकराकर फूट सकता है और डोरी घिस घिसकर किसी भी समय टूट सकती है। किंतु अपने टूटने व फूटने की परवाह किए बिना दोनों खतरा मोल लेते हुए कुएं में जाते हैं और पानी खींचकर सबको पिलाते हैं।
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
अर्थ – जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगने के लिए जाता है वो तो मरे हुए हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता है।
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“रूठे सृजन मनाईये, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोईए, टूटे मुक्ता हार ॥”
अर्थ – यदि माला टूट जाये तो भी उन मोतियों को दूबारा धागे में फिरों लेते है वैसे ही जब आपका प्रिय व्यक्ति आपसे सौ बार भी रूठे तो भी मना लेना चाहिये।
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“जैसी परे सो सही रहे, कही रहीम यह देह।
धरती ही पर परत हैं, सित घाम औ मेह॥”
अर्थ – रहीम कहते हैं कि जिस तरह धरती माता सर्दी गर्मी और वर्षा को सहती हैं, वैसे ही मानव शरीर को केवल सुख नहीं बल्कि दुःख को भी सहना आना चाहिये।
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खीर सिर ते काटी के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिये यही सजाय ॥“
अर्थ – अकसर कड़वाहट दूर करने के लिये “खीरा” के फल के उपरी सिरे को काटने के बाद उस पर नमक लगाया जाता हैं। कड़वे शब्द बोलने वालो के लिये भी यही सजा ठीक हैं।
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रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रकट करेइ।
जाहि निकासौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥
अर्थ – अर्थात् जिस प्रकार आँसू नयन से बाहर आते ही हृदय के दुःख (व्यथा) को व्यक्त कर देता है उसी प्रकार जिस व्यक्ति को घर से निकाला जाता है वह व्यक्ति घर के सभी भेद बाहर उगल देता है।
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जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
अर्थ : ओछे लोग जब प्रगति करते है तो बहुत अधिक इतराते है ठीक वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
अर्थ – जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।
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जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग ।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग ॥
अर्थ – जो लोग गरीब के हित में हैं, बड़े महान लोग हैं । जैसे सुदामा कहते हैं कि कान्हा की मैत्री भी एक भक्ति है ।
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
अर्थ – दीपक के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ-साथ अंधेरा होता जाता है।
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रहिमन के एक एक शब्द मे जीवन से जुडे प्रेरक शक्ति छुपी हुई है ।
ओछे व्यक्ति से दोस्ती और दुश्मनी दोनो घातक है बिल्कुल सही कहा है ।