Poem on Women Life in Hindi : नारी (Nari) पर तीन प्रेरक कविता

नारी शोषण पर कविता “नारी का दर्द” – Hindi Poem ‘Nari Ka Shoshan’
नारी को कभी अपनों ने
तो कभी परायों ने
तो कभी अजनबी सायों ने
तंग किया चलती राहों में
कभी दर्द में
कभी मर्ज में
तो कभी फर्ज में
वेदना मिली इस धरती के नरक में
कभी शोर में
कभी भोर में
कभी जोर में
संताप सहे अपनी ओर से
कभी अनजाने में
कभी जान में
तो कभी शान में
कुचले गए है अरमान झूठी पहचान में
कभी प्यार से
कभी मार से
तो कभी दुलार से
छली गयी हूँ मैं स्त्री इस संसार में ।
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नारी हृदय
नारी हृदय प्रभात संग ही बाहर उड़ जाता
जैसे एकाकी “खग” चंचल नभ पर तिर आता
दूर जिंदगी की मीनारों और घाटियों पर
उन प्रतिध्वनियों में है हृदय बुलाता वापस घर
और रात जब नारी हृदय शिथिल हो जाता है
किसी अजनबी पिंजड़े में अपने को पाता है
करता यत्न कि दृग के तारक स्वप्न जाय सब भूल
तन जब पाता क्षत कारा से मानस पाता शूल ।

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Poem ‘Nari Ka Dard’ (हिंदी कविता एक नारी का दर्द)
नारी की स्वतंत्रता
मुक्ति नहीं आएगी
आज या इस वर्ष
कभी नहीं
समझौते और भय के माध्यम से ।
मुझे है अधिकार
औरों सा ही
खड़े होने का अपने दोनों पावों पर ।
मैं थक गयी सुन सुन,
जैसा है चलने दो ।
कल होगा नया दिन ।
मुझे चाहिए न मुक्ति मरण – अनंतर ।
मैं जी सकती नहीं ऐसे ।
मुक्ति है
बीज बली
आरोपित
महती आवश्यकता में ।
मेरा भी यहाँ आवास ।
ठीक तुम्हारे समान
मुझे भी मुक्ति – अभिलाष ।
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nari ko kamjhor samajne ki bhul na karna
nari jhab thaan le to parvat ko bhi pathar bana degi