कश्मीर समस्या पर संपूर्ण विश्लेषण – Kashmir Issues (Samasya) History & Events

Kashmir Samasya (Issues) History & Events – कश्मीर विवाद (कश्मीर समस्या) पर संपूर्ण विश्लेषण
ब्रिटिशकाल में जम्मू व कश्मीर एक विस्तृत देशी रियासत थी जिसकी अधिकांश जनता मुस्लिम थी और राजा हिन्दू था | आजादी के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा देशी रियासतों को यह स्वतंत्रता प्रदान की गई थी कि वे चाहे तो भारत में मिल सकते हैं या पाकिस्तान में अथवा अपना पृथक अस्तित्व बनाये रख सकते हैं |
आजादी के समय जम्मू – कश्मीर रियासत के प्रमुख हरि सिंह थे | कश्मीर रियासत के अलग – अलग हिस्सों गिलगिट, बाटलिस्तान , लद्दाख, जम्मू आदि के लोगों के महत्काक्षाओं को ध्यान में रखते हुए महाराजा हरि सिंह को निर्णय लेना था लेकिन जब महाराजा हरि सिंह 15 अगस्त 1947 तक निर्णय नहीं कर सके तो लिहाजा उन्होंने दोनों मुल्कों को समझौते का प्रस्ताव भेजा | पाकिस्तान की सरकार ने इस प्रस्ताव को तत्काल मान लिया क्योंकि उसे विश्वास था कि ब्रिटेन के दबाव में आकर महाराजा हरि सिंह को पाकिस्तान में ही कश्मीर का विलय करना पड़ेगा |
दूसरी तरफ भारत ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में यह कहकर रख दिया, की आपसी विचार – विमर्श द्वारा इस मुद्दे को सुलझाएंगे | वहीं महाराजा हरि सिंह भारत के नेतृत्व के साथ रियासत के भविष्य को लेकर लगातार विमर्श कर रहे थे | और अंत तक भारत में ही विलय के पक्षधर बने रहे |
भारत – पाकिस्तान के विभाजन के बाद 26 अक्टूबर, 1947 को इसी बौखलाहट में पाकिस्तान के कबाइलियों ने, जो पाकिस्तान सरकार द्वारा समर्थित थे, जम्मू और कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, फलस्वरूप हरि सिंह भारत में जम्मू – कश्मीर के विलय के अधिपत्र पर हस्ताक्षर कर ‘कश्मीर’ को भारतीय संघ में शामिल करने की औपचारिक घोषणा कर दीया | इस अधिपत्र में यह व्यवस्था की गई थी कि जम्मू – कश्मीर के संबंध में भारत सरकार को प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार के सम्बन्ध में अधिकार प्राप्त होगा |
इसके बाद समूचा जम्मू – कश्मीर (जिसमे वर्तमान में पाकिस्तान के अवैध अधिकार वाला हिस्सा भी शामिल है) भारतीय गणराज्य का अभिन्न अंग बन गया | भारत में कश्मीर के विलय से सम्बंधित दस्तावेजों में यह सबसे अधिक वजनदार और मौलिक दस्तावेज है और भारतद्रोहियों और पाकपरस्तों के पास इसकी काट नहीं है |
विलय – पत्र पर हरि सिंह द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद, समूची कश्मीर रियासत अन्य रियासतों की भांति भारत का अभिन्न अंग तो बन गयी किन्तु वर्तमान समय में राज्य का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है और दूसरा चीन के गैर – क़ानूनी नियंत्रण में |
इसी दिन भारतीय फ़ौज संकटग्रस्त कश्मीर में दाखिल हुई | उस दिन तक लगभग 45,000 वर्ग किमी जमीन पर ही पाकिस्तान का कब्ज़ा हो पाया था | भारत सरकार विलय के बाद भी अधिक चौकस और गंभीर नहीं हो पाई और मौजूदा हालात को सही तरीके से नियंत्रित नहीं कर पाई | सही तरीके से मामले को संभाला गया होता तो पाकिस्तानी फ़ौज की बढ़त को रोका जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ |
भारत सरकार ने बड़ी भूल की, पाकिस्तान की सेना अभी घाटी में थी लेकिन युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई | परिणामस्वरुप आज तक खामियाजा आम कश्मीरी जनता को समय समय पर भुगतना पड़ा रहा है, और विभाजन के 66 सालों के बाद भी पाकिस्तान गिद्ध की तरह नजर भारत – शासित कश्मीर पर टिकाए है और सियासी जमातों की अपनी महत्वाकांक्षाओं ने समय – समय पर इसे समर्थन प्रदान किया जिसके परिणामस्वरुप पाक ने तीन बार वर्ष 1965, वर्ष 1971 और वर्ष 1999 में भारत पर विफल आक्रमण किया |
आज भारत – शासित कश्मीर के 18 जिलों में से 4 जिले मीरपुर, मुजफ्फरबाद, गिलगिट और हुजा पाकिस्तान के अवैध अधिकार में है और यदि हालात को सुधारा न गया, तो आने वाले कुछ दशकों के बाद कश्मीर का अस्तित्व संकट में आ जाएगा |
कश्मीर समस्या के कारण और निवारण kashmir problem and solution in hindi
कश्मीर के भारत में विलय के बाद समय – समय पर भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध हुए और जिसके कारण संबंधों में दिन प्रतिदिन कटुता बढ़ती रही है | कश्मीर समस्या आज न सिर्फ वहां की जनता की समस्या है, बल्कि इस समस्या से पूरा राष्ट्र प्रभावित है | कश्मीर समस्या से जुड़े कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित है –
(1) कश्मीर के भारत में विलय में विलम्ब
महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को भारत में विलय करने का निर्णय करने के बाद भी अधिकारिकरूप से विलय करने में अत्यंत विलम्ब किया | भारत के रक्तरंजित विभाजन की विभीषिका देखने के बाद भी हरि सिंह ने 15 अगस्त, 1947 में ही ‘कश्मीर’ का भारत में विलय नहीं किया, बल्कि विलय को लटकाकर वे काफी समय तक विचार करते रहे और जब अक्टूबर 1947 में पाक सेना ने कश्मीर घाटी में रक्तपात मचाना शुरू किया, तो वे इस मामलें को लेकर गंभीर हुए और अंततोगत्वा 26 अक्टूबर, 1947 को विलय – पत्र पर हस्ताक्षर किए और भारत में कश्मीर का विलय हो हुआ, परन्तु तब तक हालात बदल चूका था |
वर्तमान में भारत के नियंत्रण में कश्मीर घाटी का कुल क्षेत्रफल 15853 वर्ग किमी है | दूसरा क्षेत्र जम्मू क्षेत्र है, जिसका क्षेत्रफल 26293 वर्ग किमी है | भौगोलिक दृष्टि से यहां तराई और पहाड़ी ये दोनों ही तरह के क्षेत्र पाए जाते हैं | इसमें वस्तुतः हिन्दुओं की बहुलता है | जम्मू कश्मीर का तीसरा ‘लद्दाख’ क्षेत्र है जिसका कुल क्षेत्रफल 59241 वर्ग किमी है | यहाँ आबादी बहुत कम है, लेकिन जनसंख्या में बौद्धों का बहुमत है | महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय में बिलम्ब करने के कारण ही आज कश्मीर समस्या नासूर बन गई है |
(2) पं. नेहरू की राजनीतिक अदूरदर्शिता
यह स्थापित सत्य है कि कश्मीर समस्या का एक बहुत बड़ा कारण पं. नेहरू की अदूरदर्शिता भी है | कश्मीर विलय को लटकाकर हरि सिंह ने जहाँ इस समस्या की नींव रखी, वही दूसरी तरफ पं. नेहरू ने सही समय पर सही फैसला न लेकर समस्या को और गंभीर बना दिया | इसी के परिणामस्वरूप पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाली भूमि पर उसी का नियंत्रण रह गया | आज भी उसी पाक अधिकृत कश्मीर से प्रशिक्षण प्राप्त जिहादी तत्व जम्मू – कश्मीर में अलगाववाद और हिंसा फैलाने के साथ – साथ पूरे भारत को लहूलुहान करने में जुटे हैं |
(3) कश्मीर का भारत में सशर्त विलय और विशेष राज्य का दर्जा
अन्य सभी देशी रियासतों और राजवाडों का भारत में विलय बिना किसी शर्त के हुआ था, जबकि जम्मू – कश्मीर के विषय में ऐसा न हुआ | कश्मीर का भारत में विलय सशर्त हुआ | जम्मू – कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया | साथ ही यहाँ पर राज्य का अपना संविधान भी है |
विलय से पूर्व पं. नेहरू ने अपने घनिष्ठ मित्र शेख अब्दुल्ला को रियासत का साझीदार बनाया | शेख अब्दुल्ला के ‘दो प्रधान, दो विधान और दो निशान’ को धारा 370 का कवच पहनाया | वस्तुतः सेकुलर व्यवस्था ने धारा 370 के अंतर्गत जम्मू – कश्मीर में अलगाववाद को संवैधानिक मान्यता दे रखी है |
कश्मीर को विशेष प्रान्त का दर्जा देने का बाबा भीमराव अम्बेडकर ने घोर विरोध किया था | भारत के कानून मंत्री होने के नाते उन्हें ये मंजूर नहीं था कि कश्मीर के सारे हक भारत पर हो किन्तु कश्मीर पर भारत का कोई अधिकार न हो |
यह कटु सत्य है कि बाबा साहेब की अनदेखी पर पं. नेहरू ने शेख अब्दुल्ला का साथ दिया | उसी का परिणाम है कि घाटी में तिरंगा चलाया जाता है और अलगाववादी ताकतें कश्मीर घाटी में आतंक मचाते हैं और भारत के मौत की दुआ मंगाते है |
इन उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट है कि कश्मीर की समस्या जमातों को अपनी महत्वाकांक्षाओं को फलीभूत करने के कारण आज दोनों देशों के सम्बन्धो में काफी कटुता है |

(4) – मजहब के आधार पर देश का विभाजन
कश्मीर समस्या (kashmir samasya) के जन्म के पीछे वास्तव में मजहबी तत्व का समावेश था | भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है | 14 अगस्त, 1947 से पूर्व तक पाक भारत का ही अंग था और धर्म आधारित राष्ट्र के रूप में उसका अस्तित्व, भारत के रक्तरंजित विभाजन के बाद संभव हुआ | कश्मीर की 80 % जनता मुस्लिम थी |
धर्म के आधार पर व जनमत के आधार पर पकिस्तान को पूर्णत: विश्वास था कश्मीर का विलय पकिस्तान में ही होगा, किन्तु जब राजा हरि सिंह ने कश्मीर का विलय भारत में किया, तो पाक की सियासी जमातों के इरादों पर पानी फिर गया | अपने आन्तरिक क्षोभ को काबू नहिं कर पाने के कारण पकिस्तान ने कई बार भारत पर विफल आक्रमण किया | लडाइयों में बार – बार हारने के बाद और अपने आतंरिक विक्षोभ को काबू नहिं कर पाने के कारण पकिस्तान आज एक ‘विफल राष्ट्र’ के कगार तक जा पहुँचने पर भी उसने सिर्फ यही सिद्ध किया है कि वह जितना कुटिल है उसका सौ गुना कुटिल, भारत के साथ उसके कटुतापूर्ण कुटिल संबंध जगजाहिर हैं |
द्विराष्ट्र सिद्धांत से जन्मा पाकिस्तान अपने संसाधनों पर जीवित है, किन्तु यहाँ कश्मीर में धारा 370 और स्वायत्तता का मुद्दा इस तरह तालमेल बनाया गया है कि भारतीय धन से ही एक सल्तनत या छोटा पाकिस्तान कश्मीर में पोषित हो रहा है | इन सब को दर किनार कर भारत ने जब भी उससे अच्छे पड़ोसी जैसे बर्ताव की उम्मीद की और सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने वाली पहलकदमियों की, उसने कुटिलतापूर्ण उसे नाउम्मीदी करके ही दम लिया | 1965 एवं 1971 में बुरी तरह मुह की खाने और पूर्वी पाकिस्तान के अलग देश बन जाने के बाद से तो उसकी कुंठा जैसे उसे पल भर भी चैन नहीं लेने देती | कभी कारगिल पर अधिकार को लेकर भारत में घुसपैठ करता है, तो कभी आतंकवाद का सहारा लेकर भारत की शांति को भंग करने की कोशिश करता है |
कश्मीर घाटी में वर्तमान समय में पाकिस्तान पोषित दर्जनों आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं जो समस्त भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देकर भारतवासियों को लहूलुहान करने पर तुले हैं | कश्मीर घाटी की 10 % अलागववादी आबादी के कारण कश्मीर की शेष आबादी के अलावा पूरा भारत भयाक्रांत है | कश्मीर घाटी में सक्रिय अलगाववादी तत्वों की सियासी दलों और राजनीतिज्ञों का संरक्षण प्राप्त हैं जिसके कारण गैर – कानूनी रूप से उनके उनके लिए हथियार उपलब्ध काराए जाते हैं और ये गुप्तरूप से भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं |
कश्मीर में अलगाववादी तत्वों का बढ़ता वर्चस्व और बढ़ती ताकतों की वजह से कश्मीर समस्या भारत के लिए दर्द का सबब बनती जा रही है |
(5) अनुच्छेद 370
भारतीय संघ में जम्मू – कश्मीर का विलय इस आधार पर किया गया कि सविधान के अनुच्छेद 370 के तहत इस प्रदेश की स्वायत्तता की रक्षा की जाएगी, और जिसका अपना संविधान होगा, जबकि भारतीय संघ के अन्य किसी भी राज्य का अपना संविधान नहीं है तथा जम्मू – कश्मीर राज्य का प्रशासन इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार चलता रहेगा |
भारतीय संविधान द्वारा संघ और राज्यों के बीच जो शक्ति विभाजन किया गया इसके अंतर्गत अवशेष शक्तियों संघीय सरकार को सौपी गई हैं, परन्तु जम्मू – कश्मीर के सम्बन्ध में अवशिष्ट शक्तियाँ जम्मू – कश्मीर राज्य के पास रही | जम्मू – कश्मीर राज्य के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त हुई | अन्य राज्यों का कोई व्यक्ति जम्मू – कश्मीर में कोई सम्पत्ति नहीं खरीद सकता |
कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया, जिसके द्वारा जम्मू – कश्मीर में अलगाववाद को अप्रत्यक्ष रूप से संवैधानिक मान्यता मिल गई | केद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों स्तर पर शेष राज्य के साथ भेदभाव बरते जाने के कारण वहाँ अलगाववादी तत्वों की जड़े मजबूत हुई हैं |
जम्मू – कश्मीर के सभी नागरिक चाहे वे वहाँ पिछले 50 सालों से ही क्यों न बसे हों वहाँ के स्थायी निवासी नहीं कहें गए . पश्चिमी पंजाब से विस्थापित हिन्दू – सिख, जो विभाजन के दौरान जम्मू में आ बसे, इसी श्रेणी में आते हैं | वे भारतीय नागरिक तो हैं पर जम्मू – कश्मीर के नहीं | वे राज्य, पंचायत, या न्यायपालिका चुनाव में भाग नहीं ले सकते | ऐसे युवा छात्र – छात्राएं राज्य के चिकित्सा, प्रोद्योगिकी या कृषि महाविद्यालयों में दाखिला नहीं पा सकते | हमने द्विराष्ट्र सिद्धांत को नाकारा है, दुनिया में उद्दघोष किया है कि भारत में मजहब कभी विभाजन का आधार नहीं बन सकता | विडम्बना यह है कि हम ही अपने कश्मीर में द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रयोग वर्षों तक किया |
कश्मीर में धारा, 370 स्वायत्तता का मुद्दा प्रभावी होने के कारण कश्मीर में अलगाववादी ताकतों द्वारा छोटा पाकिस्तान पोषित होता रहा और उसकी जड़े दिन – प्रतिदिन मजबूत होती जा रही हैं | यह कहना गलत न होगा कि कश्मीर की समस्या जटिल है | इसकी समस्या की गहराइयों में जाने का सामर्थ्य ही एक सफल कूटनीति की पहचान है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर के इतिहास में मील के पत्थर-सा एक अध्याय जोड़ दिया है | आजाद भारत के गठन और उसमें कश्मीर के विलय के बाद से ही जो समस्याएं चली आ रही थीं, उनके समाधान के लिए एक साथ कई बदलाव कर दिए गए हैं |
सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया है, इसके साथ ही अनुच्छेद 35 – ए का भी समापन हो गया है | इसका अर्थ है, भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू – कश्मीर में बसने में समर्थ होगा, वहां जमीन या सम्पत्ति खरीद सकेगा, और भारत के अन्य सभी राज्यों की तरह यहां भी सम्पत्ति पर उत्तराधिकार के कानून लागू होंगे |
गिलगिट – बाल्टिस्तान भारत और पाक
पाकिस्तान के गैरकानूनी नियंत्रण वाले चार जिलों (मीरपुर, मुजफ्फराबाद, गिलगिट और हुंजा) में से एक गिलगिट – बाल्टिस्तान है जिसे पकिस्तान अपना पांचवाँ सूबा बनाने जा रहा है | क्षेत्रफल की दृष्टि से जम्मू – कश्मीर राज्य का यह हिस्सा आज के पाक अधिकृत जम्मू – कश्मीर का लगभग 80 % क्षेत्र है | इसी गिलगिट – बाल्टिस्तान का भविष्य शेष कश्मीर से जुड़ा है | यदि यह पकिस्तान का संवैधानिक राज्य बन जाता है, तो कश्मीर रियासत का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला जायेगा |
1947 में कश्मीर रियासत का भारत में विलय करने के उपरांत यह भारत का हिस्सा था | डोगरा महाराज हरि सिंह ने अपनी पूरी रियासत का विलय भारत में ही किया था | अत: गिलगिट – बाल्टिस्तान सहित समूचा कश्मीर वैधानिक रूप से भारत की ही अंग है, लेकीन पकिस्तान अवैध नियंत्रण वाली हमारी भूमि को अपनी मिल्कियत घोषित करने की नापाक कोशिश कर रहा है | इस गैरकानूनी प्रयास के खिलाफ दिल्ली दरबार से अब तक कोई बुलंद आवाज न उठना इस बात का संकेत देता है कि हमारी सरकार कश्मीर की समस्या के हल को लेकर सचेत और संवेदनशील नहीं है | इसी असचेतता व संवेदनहीनता का परिणाम है कि इन क्षेत्रों में चरमपंथी गुटों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है |
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बबिता जी आपका लेख पढ़ा काफी अच्छा लगा लेकिन गुस्सा इस बात का आ रहा है की जो सैनिक कश्मीर में तैनात है उनके साथ ना तो कोई अच्छा व्यव्हार है न ही कोई उन्हें अपनी जान बचाने का हक़. में आज तक ये बात नहीं समझ पा रहा हूँ की आखिर क्यों हम इस तरह से सैनिको की जान जोखिम में डाल रहे है. या तो कड़े नियम लागू कर कश्मीर को india के ही राज्य का दर्जा दे जैसा की दुसरे देशो में है या फिर इसे पाकिस्तान को दे ही दे ताकि उन्हें पता चल सके की वो किस लायक है.
बहुत अच्छी जानकारी शेयर की है आपने बबीता जी, इससे पहले मुझे कश्मीर समस्या के बारे मे इतनी विस्तृत जानकारी नहीं थी |