शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्णा अष्टमी) व्रत पूजा – Sheetala Ashtami in hindi

Sheetala Ashtami Vrat Vidhi & Pooja Vidhi 2021 – नमस्कार ! दोस्तों ये तो सर्वविदित है कि भारत एक धर्मपरायण देश है। यहाँ के अधिकांश त्योहार धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत है। और जिनके पीछे एक समृद्ध संस्कृति तथा महात्म हैं। भारतीय त्योहारों के इसी क्रम का एक बड़ा धार्मिक और महत्वपूर्ण पर्व शीतलाष्टमी है।
शीतलाष्टमी एक परम मंगलमय और स्वास्थ्यवर्द्धक व्रत है, जो शीतला देवी की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। हिन्दू धर्म में शीतलाष्टमी की पूजा बड़े ही विधि विधान से चैत्र कृष्णा अष्ठमी और वैशाख कृष्णा अष्ठमी के दिन की जाती है।
शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठाती देवी है। माता को वो लोग ही पसंद हैं, जो सफाई के प्रति जागरूक रहते है। अत: आज इसी त्योहार के उपलक्ष्य पर मैं, यहाँ शीतलाष्टमी की पूजा विधि बता रही हूँ। यह एक उपाय है जो व्रती के लिए और विशेष रूप से उसकी सलामती, आरोग्यता और घर में सुख शांति के लिए बहुत उपयोगी है। इन्हें यहाँ पर खास इस दिन की पूजा और व्रत रखने वालों के लिए उपलब्ध करा रही हूँ। आशा करती हूँ कि आपको इससे जरूर मदद मिलेगी।
चैत्र कृष्णा अष्ठमी की पूजा
शीतलाष्टमी का व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी – अष्टमी को होता है।
सामान्यत: यह पूजा होली के पश्चात आने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन किया जाता है।
स्कन्दपुराण के अनुसार बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है जिससे कुदाह, ज्वर, विस्फोटक, फोड़े – फुंसी, नेत्ररोग, शीतला के फुंसियों आदि रोग घर से सदा सर्वदा के लिए दूर रहता है।
शीतलाष्टमी व्रत में एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन किया जाता है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा, लसौडा या बसियौरा भी कहते है।
भारतीय सनातन परम्परा के अनुसार महिलाएं इसे अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता और घर में सुख शांति के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक माँ शीतला को बसौड़ा बनाकर पुजती हैं और माता का आशीर्वाद लेती है।
वैशाख कृष्णा अष्ठमी की पूजा
यह व्रत वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है।
इस दिन चेचक जैसे भयंकर प्रकोप से बचने के लिए भौतिक उपचारों पर भरोसा छोड़कर लोग शीतला माता की शरण में जाते हैं। और उनकी विधिवत् पूजा करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इसको विधिवत् करने से सुफल की प्राप्ति होती है। व्रती और उसके परिवार की काया निरोग बनी रहती है।
वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी व्रत में भी एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन किया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है। उपवास व पूजन के बाद बसी आहार खाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस पूजा का बहुत महत्व होता है।
बसौड़ा अथवा शीतलाष्टमी की पूजा विधि
रोगों से मुक्ति के लिए की जाने वाली शीतला अष्टमी की सही पूजा विधि इस प्रकार है –
इस दिन सुबह शीतल जल से स्नान करके निम्नलिखित संकल्प ले।
“मम गेहे शीतला रोग जनितोपद्रव शमन पूर्वका युरोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाषष्ठि तं करिष्ये।”
इसके बाद शीतला माता का धुप बत्ती और फूलों से पूजन करे।
नैवेद्य में पिछले दिन के बने शीतल पदार्थ माता को चढ़ायें।
फिर शीतल पदार्थों का भोग लगाकर स्वयं भी उसी प्रसाद को ले।
रात में जागरण और दीये अवश्य जलाए।
शीतला माता की पौराणिक कथा
एक गांव में एक सुशील स्त्री रहती थी। वह हर साल शीतला अष्टमी को बसौड़ा पूजती और तब भोजन करती। एक बार उस गाँव में भयानक आग लग लग गई जिससे पूरा गाँव प्रभावित हुआ पर उस स्त्री के घर पर तनिक आंच न आयी।
गाँव वाले जब उससे इस चमत्कार का कारण पूछे तो उसने बताया कि वह वर्षों से हर साल बसौड़ा के दिन शीतला माँ का पूजन करती है और ठंडा भोजन खाती है। शीतला माता के चमत्कार की कहानी सुनकर तब से बसौड़ा के दिन सारे गांव में शीतला माता का पूजन आरम्भ हो गया।
बसौड़ा पूजा के लाभ
चैत्र महीने से मौसम में बदलाव होता है। मौसम में यह बदलाव अपने साथ गर्मी के और नाना प्रकार की बीमारियाँ लाता है। शीतलाष्टमी का व्रत करने से शीतला जनित सारे दोष ठीक हो जाते है।
शीतला माता की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता |
जय शीतला माता……
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
रिद्धि – सिद्धि चंवर ढूलावें, जगमग छवि छाता |
जय शीतला माता……
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता |
जय शीतला माता……
इंद्र मृदंग बजावत चंद्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता |
जय शीतला माता……
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता |
जय शीतला माता……
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता |
जय शीतला माता……
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता |
जय शीतला माता……
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता |
जय शीतला माता……
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नहीं सिर धुनि पछिताता |
जय शीतला माता……
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता |
जय शीतला माता……
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति अपनी दीजे और न कुछ भाता |
जय शीतला माता……
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ऊँ जय शीतला माता