Hindi Essay on Naitik Shiksha

नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता पर निबंध : बच्चे ईश्वर का दिया हुआ एक अनुपम वरदान होते है। देश का भविष्य होते है। परन्तु यदि बच्चे का चरित्र ही खराब होगा, वह अपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त होगा, चोरी, डकैती, लूटपाट, आगजनी, ड्रग्स सेवन, मद्द्यपान, धुम्रपान आदि गंदी आदतों का शिकार होगा तो उसकी असफलता निश्चित है।
बच्चे का इस प्रकार का व्यवहार न केवल माता – पिता एवं परिवारजनों के लिए ही एक विकट एवं गंभीर समस्या है बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है। बलात्कार, ट्रेन डकैती, लूटपाट, चैन स्नैचिंग आदि खबरे आए दिन समाचार पत्रों में पढ़ने व सुनने को मिल ही जाती है। बच्चों एवं किशोरों में बढती इस प्रवृत्ति को रोकने का एकमात्र साधन नैतिक शिक्षा है।
समाज में व्यक्ति दो चीजों से पहचाना जाता है। पहला ज्ञान और दूसरा उसका नैतिक व्यवहार। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए यह दोनों ही अति आवश्यक है। अगर ज्ञान सफलता की चाबी है तो नैतिकता सफलता की सीढ़ी। एक के अभाव में दूसरें का पतन निश्चित है। नैतिकता के कारण ही विश्वास में दृढ़ता और समझ में प्रखरता आती है।
नैतिकता ही वह गुण है जो बच्चों को सामाजिक प्राणी बनने में मदद करता है। इसलिए हर बच्चे को नैतिक शिक्षा का पाठ जरुर पढ़ाना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले हमें नैतिक शिक्षा के अर्थ को समझना होगा।
नैतिक शिक्षा का अर्थ क्या है / नैतिक मूल्य क्या है ?
नैतिक शिक्षा का अर्थ उस शिक्षा से है जो बच्चे में नैतिकता के गुणों का विकास करती है। बच्चों को संस्कारों से जोड़ती है। उन्हें उनके कर्तव्यों का ज्ञान कराती है। परिवार, समाज, समूह के नैतिक मूल्यों को स्वीकारना तथा सामाजिक रीति – रिवाजों, परम्पराओं व धर्मों का पालन करना सिखाती है। दूसरे शब्दों में कहे तो नैतिक शिक्षा समाज व समूह की रीतियों या कार्य करने के तरीकों का पालन करना सिखाती है।
साधारण बोलचाल की भाषा में कहे तो नैतिक शिक्षा वह शिक्षा है जो हमें बड़ों का आदर करना, सुबह जल्दी उठाना, सत्य बोलना, चोरी न करना, माता – पिता के चरणस्पर्श करना तथा अपराधिक प्रवृतियों से दूर रहना सिखाती है। यह चीजे तभी संभव है जब आप में अनुशासन हो। अत: नैतिक शिक्षा हमें अनुशासन का भी पाठ पढ़ाती है।
नैतिक शिक्षा का अर्थ और मूल्य जानने के बाद आप यह समझ ही गए होंगे कि नैतिक शिक्षा का हमारे जीवन में क्या महत्व है और यह कितना आवश्यक है।
नैतिक शिक्षा की आवश्यकता
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज में बने रहने के लिए उसे सामाजिक नियमों का पालन भी करना जरुरी होता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो उस समय वह न तो नैतिक होता है और न ही अनैतिक। वह तो ईश्वर का दिया हुआ एक अनुपम वरदान होता है जिसे आप चाहे तो नैतिक बना सकते है या अनैतिक।
लेकिन हर माता – पिता की यही इच्छा होती है की उनका बच्चा समाज में प्रतिष्ठा, प्रंशसा एवं लोकप्रियता हासिल करें। इसके लिए वह अपने बच्चे का अपने हैसियत से बढ़कर अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमिशन कराते है ताकि वह नैतिक शिक्षा को ग्रहण कर नैतिक मूल्यों का विकास कर सके। लेकिन स्कूली शिक्षा के साथ – साथ बच्चों में नैतिक गुणों का विकास करने में माता – पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
माता – पिता को ही बच्चे का प्रथम गुरु भी माना जाता है। इसलिए बच्चे में संस्कार के बीज डालना सर्वप्रथम आपका कर्तव्य है।

आजकल के हर माँ – बाप की यही शिकायत होती है कि बच्चों से कुछ कहों तो वो सुनते नहीं है। किसी बात पर टोको तो नाराज हो जाते है। छोटी – छोटी बातों पर ही लड़ाई – झगड़ों पर उतारू हो जाते है। बातचित करने की तमीज नहीं है। आस – पड़ोस या स्कूल से शिकायत आती है तो माँ – बाप इसका सारा दोष टीवी और फिल्मों पर मढ़ देते है।
मैं तो यह कहूँगी कि बच्चे की इस संस्कारहीनता के सबसे पहले जिम्मेदार माँ – बाप होते है क्योंकि बच्चा अपने आस – पास के वातावरण से सबसे ज्यादा सीखता है।
बच्चे समझाने से उतना नहीं समझते जितना कि वह आपकी आदतों से सीखते है। बच्चा सबसे जयादा वही सीखता है जो आप को करते हुए देखता है। बहुत से माँ – बाप ऐसे है जो अपने बच्चे की बचपन की गलतियों को बच्चा समझकर नजरअंदाज कर देते है लेकिन यह गलत है।
जिन बच्चों को बचपन से ही सच बोलना, सहयोग करना, दया करना, निष्पक्षता, आज्ञापालन, राष्ट्रीयता, समयबद्धता, सहिष्णुता, करुणा, आदि मानवीय गुणों को सिखाते है उन्हीं बच्चों में बाद में चलकर ये ही गुण पुष्पित, पल्लवित, व विकसित होकर चरित्र निर्माण में सहायक होते है।
बचपन से ही बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने से उन्हें भले – बुरे, उचित – अनुचित का ज्ञान हो जाता है। वह समझने लगता है कि कौन सा व्यवहार सामाजिक है और कौन सा व्यवहार असामाजिक। किन व्यवहारों को करने से समाज में प्रतिष्ठा, प्रंशसा एवं लोकप्रियता मिलती है और किससे नहीं।
आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता और महत्व
बच्चे में नैतिक मूल्यों का विकास करने या उनमे संस्कार डालने की प्रथा आज से नहीं बल्कि आदि काल से चली आ रही है। हमारे धर्म ग्रंथो का यही उद्देश्य रहा है कि वह व्यक्ति के अन्दर नैतिक गुणों का विकास करें ताकि व्यक्ति स्वयं को तथा दूसरों को सही मार्ग दिखा सके। यही वजह है कि हमारे देश के संस्कार और परम्पराओं के चर्चे अन्य देशों में भी खूब होते रहे है।
आधुनिक बच्चों या विद्धायार्थियों के जीवन में नैतिक मूल्यों का महत्व को हम निम्न विन्दुओं के द्वारा समझ सकते है –
- नैतिक मूल्यों से बच्चे के सुंदर चरित्र का निर्माण होता है।
- नैतिक मूल्यों के विकास से बच्चे में समाजीकरण की भावना का विकास होता है।
- बच्चे में नैतिकता का विकास हो जाने पर वह समाज विरोधी कार्यों को करने से डरता है। वह दुराचार के बारे में कल्पना में भी नहीं सोच पाता है। वह भली – भाति समझने लगता है कि अनुचित एवं गलत कार्यों से उसका तथा उसके माँ – बाप की बदनामी होगी।
- नैतिकता बच्चे के व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होती है।
- नैतिक मूल्य बच्चे के आचरण व व्यवहार को निर्धारित करते है।
- नैतिक मूल्यों एवं उच्च आदर्शों से बच्चे का आत्मविश्वास व आत्मचेतना मजबूत होती है। उसके अंदर सच्चाई का बोलबाला होता है। उसमे समस्या के समाधान के लिए सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता होती है।
उपरोक्त बातों से आप यह समझ गए होंगे कि बच्चों के जीवन में नैतिक मूल्यों का कितना महत्व होता है।
बालक जब समाज द्वारा मान्य मूल्यों, आदर्शों एवं व्यवहारों का पालन करता है तथा नैतिक मूल्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा, लगन एवं ईमानदारी रखता है, तो वह बुरे आचरणों एवं गलत कार्यों से दूर रहता है उस बालक का वर्तमान और भविष्य दोनों सुंदर होता है। स्पष्ट है कि नैतिक मूल्य बच्चे के व्यवहार को प्रभावित करते है और उसके आचरणों की रूपरेखा निर्धारित करते है।
बच्चों को अच्छे संस्कार कैसे दें / बच्चों को नैतिक मूल्य कैसे सिखाएं ?

जीवन में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, धन, दौलत, यश, नाम, आनंद की प्राप्ति में नैतिकता का असीम योगदान होता है। नैतिक गुणों से विभूषित व्यक्ति के चरणों को सफलता चूमती है। लेकिन आज के समय में हमारे संस्कार और परम्पराओं अर्थात नैतिक मूल्यों का पतन होने लगा है।
संयुक्त परिवार का विघटन, एकाकी परिवार, पाश्चात्यीकरण आदि का प्रभाव बच्चे पर पड़ रहा है। बच्चा सबसे पहले नैतिकता का पाठ अपने घर में अपने परिवारजनों से सीखता है और माँ – बाप की भूमिका तो किसान की तरह होती है।
जिस तरह किसान बीज का सही देखभाल कर उसे फलने – फूलने के लिए तैयार करता है वैसे ही माँ – बाप को अपने बच्चे को ऐसा माहौल देना चाहिए जिससे बच्चा अच्छा इंसान बनकर सफलता की सीढ़िया चढ़ सके।
मैं आप से कुछ ऐसे बच्चों को संस्कार देने के तरीकों को शेयर कर रही हूँ जिनसे आपको अपने बच्चे को नैतिक संस्कार देने में जरुर मदद मिलेगी :
- बालक के नैतिक विकास को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है परिवार। परिवार में ही पल – बढ़कर शिक्षा – दीक्षा पाकर बच्चा नैतिक आचरणों को सीखता है। एक बात आप हमेशा याद रखे ! बच्चा अपने माँ – बाप तथा परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आचरणों का ही अनुकरण करता है। जिस प्रकार का व्यवहार आप का होगा बच्चा भी उसी प्रकार का व्यवहार करेगा | इसलिए इस बात का सदैव ध्यान रखें कि आप का व्यवहार अच्छा हों।
- नैतिक विकास में रीति – रिवाजो, प्रथाओं, परम्पराओं एवं कानूनों का अति महत्वपूर्ण स्थान होता है लेकिन जब बच्चा छोटा होता है तो उसे सामाजिक परम्पराओं के अनुसार नैतिक आचरणों की जानकारी नहीं होती है। ऐसे में आप बच्चों को खेलों के माध्यम से नैतिक मूल्यों की शिक्षा दे सकते है। जब बच्चा खेलते समय अपने साथी समूहों के बच्चों की बात नहीं मानता है तो उसपर चीखे – चिल्लाए नहीं बल्कि प्यार से समझाएं।
- बच्चे को नैतिकता का पाठ पढ़ाने में पुरस्कार एवं दंड की अहम् भूमिका होती है। पुरस्कार से उन्हें प्रोत्साहन मिलता है तथा दंड से उनमे दमन की प्रवृत्ति विकसित होती है। जब बच्चे अच्छा कार्य करें तो उन्हें पुरस्कृत जरुर करें। ऐसा करने से वह भविष्य में भी अच्छा कार्य करेगा। इसके ठीक विपरीत जब वह गलत एवं अनुचित कार्य करें तो उसे दंड भी दे।
- नैतिक मूल्यों के विकास में मनोरंजन की भी अहम् भूमिका होती है। इसलिए आप बच्चे को स्वस्थ्य मनोरंजन की भी सुविधा दें। जैसे टीवी, रेडियों, सिनेमा, पार्टी में जाना, अच्छी पुस्तकें पढ़ना, कॉमिक्स पढ़ना आदि । बच्चों के बालमन पर इनका बहुत जल्दी प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखे कि बच्चों को मारपीट, अनाचार, कामुकता वाली फ़िल्में कभी न दिखाए। उन्हें ऐसी फिल्मे दिखाए जो नैतिक मूल्यों से परिपूरित हो।
- बच्चों के साथी – समूह का भी उनके नैतिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। बच्चा अपने माता – पिता व परिवार के सदस्यों से के व्यवहारों को जितना नहीं सीखता उससे कही ज्यादा वह अपने साथीयों से सीखता है। अगर बच्चे का साथी झूठ बोलता है, चोरी करता है तो बच्चा भी वही करने लगता है। इसलिए बच्चों की संगति को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- बच्चे में मानवीय चेतना का विकास करें। उसे परोपकारी, दयालु, सहनशीलता, दानी, ज्ञानी, त्यागी क्षमाशील, कर्तव्यनिष्ठ, सहिष्णु व उदार बनने का पाठ पढाएं। ये ही गुण उसे पद, प्रतिष्ठा तथा लोकप्रियता दिलाएंगे।
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great post share this post
very very nice post keep sharing
useful Information
Very interesting and fruitful .It is very important for students teachers and parents
Very Helpful Guide, Thanks For Sharing
i think this is the most importnt PART of education so plz ricmandede to add for our national values
It’s very useful topic for me because this topic is in my B.Ed syllabus.
Nice.
Its is very important for children
I am feeling grateful for who writes this essay.
Thanks