सुहानी सुबह के उत्साह से ओतप्रोत दो प्रेरक और उद्बोधक कविता

Good Morning Poem in Hindi – दोस्तों कभी प्रभात की किरणों को गौर से देखा या महसूस किया है। कैसे वो मस्ती के साथ हंसती, गाती, खेलती हर रोज सुबह का आगाज करती हैं। सुप्रभात का यह एक बड़ा और मुख्य लक्षण है। हमें भी इनसे सीख ले के अपने हर दिन का शुभारम्भ उत्साह के साथ ऐसे करना चाहिए, जैसे नया जन्म हुआ हो, दिनभर, हर श्वास योगी की तरह जीने की कोशिश करना चाहिए, जरा भी नकारात्मकता प्रविष्ट नही होने देना चाहिए। सकारात्मक, सकारात्मक मात्र सकारात्मक। यही हमारा चिंतन होना चाहिए।
यह चिंतन यदि प्रभात से ही हो तो जिंदगी अंततः और ताज़ा हो जाएगा। क्योंकि हर भोर में भावना होती है मानव – प्रेम की, कर्तव्य – बोध की एवं शाश्वत जीवन – मूल्यों प्रेरक और उद्बोध की। वेद में कही यह बात ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ का पावन आदर्श इस सुबह की मूल आधार – भूमि है। अनेक विद्वानों एवं कवियों ने भी सुबह के ऊपर अपने-अपने दिलकश अंदाज में बेहतरीन शायरी एवं कविता की रचना की है जो काफ़ी उत्साहवर्धक, स्फूर्तिदायक, प्रेरणा प्रदान करने वाला तथा साहस भरने वाले है। आइये यहाँ पर ऐसी ही कुछ Motivational Good Morning Poem पढ़ते है जिसका प्रत्येक शब्द प्रेरणादायक, प्रेरणा प्रदान करने वाला है।
एक motivational ब्लॉग होने के कारण मेरा पूर्ण प्रयास रहता है कि जो भी प्रेरणादायक कविता यहाँ पर लिखा जाये वो आपके के लिए ज्ञान और शिक्षा का अच्छा स्रोत हो। आशा करती हूँ ये कविताएँ आपके द्वारा सराही जाएगी।
कविता : “उठो प्रभात हो गया”
दिगन्त में जगी प्रभा, उठो प्रभात हो गया।
व्यतीत यामिनी हुई, तमिश्र – तोम खो गया।।
उठो प्रमाद छोड़, स्फूर्ति का अमन्द स्त्रोत ले।
तरो जगत्पयोधि को, अजेय शौर्य-पोत ले।।
बढ़ो सपूत देश के, रुको न वीर केशरी।
चलो प्रगल्भ चाल शौर्य – स्वाभिमान से भरी।।
विशाल शैल – श्रंग भी, अबाध लांघते चलो।
अनन्त अंतरिक्ष के, रहस्य आंकते चलो।।
असंख्य उग्र आंधियां, चलो समेट श्वास में।
ग्रसे रहो अराति को, प्रचण्ड नागपाश में।।
अजेय क्रांतिवीर हो, अमोघ क्रांति को वरो।
सरोष शंखनाद से, विदीर्ण व्योम को करो।।
पयोद की घटा बनो, अनीति – ज्वाल – जाल को।
चुनौतियां दिए चलो, सदा कराल काल को।।
बनो स्वयं – प्रकाश दिव्य ज्योति के प्रसार को।
करो स्व-रश्मि-राशी से, विदीर्ण अंधकार को।
अमर्त्य लोक – बंधु ! लोक को नया विहान दो।
उठो विषण्ण विश्व को, नवीन सामगान दो।।
सुनो अमर्ष त्याग दिन- हीन की कराह को।
समीर दो स्वदेश के, विकास के प्रवाह को।।
स्वदेश के लिए जियो, स्वदेश के लिए मरो।
वरो सुकीर्ति – श्रेय जो, स्वदेश के लिए वरो।।
चुनौतियां दिए चलो, चुनौतियां लिए चलो।
स्वदेश की ध्वजा उदग्र, व्योम में किये चलो।।
– श्री रामरज शर्मा
कविता: “जाग उठ, जग को जगा दे”
क्यों मनुज सोया पड़ा है,
जाग उठ, जग को जगा दे।
जाग उठ, स्वागत उषा का
कर, अरे अब मुस्करा दे।।
सो रहा है तू अभी तक,
हो रहा है भोर अब तो।।
जाग उठ, सुन गीत कवि का,
तू जगत में भोर ला दे।।
– श्री रामरज शर्मा
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आशा करती हूँ कि उपरोक्त कविता आपको सकारात्मक उर्जा से भरेगा। गर आपको हमारा यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसमें निरंतरता बनाये रखने में आप का सहयोग एवं उत्साहवर्धन अत्यंत आवश्यक है। आशा है कि आप हमारे इस प्रयास में सहयोगी होंगे साथ ही अपनी प्रतिक्रियाओं और सुझाओं से हमें अवगत करायेंगे ताकि आपके बहुमूल्य सुझाओं के आधार पर इस सुप्रभात कविता को और अधिक सारगर्भित और उपयोगी बनाया जा सके।
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