Discipline Essay
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छात्र-जीवन में अनुशासन का महत्व – Discipline Essay In Hindi

छात्र-जीवन में अनुशासन का महत्व – Discipline Essay In Hindi

Discipline Essay in Hindi
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Discipline Essay in Hindi : “अनुशासन” नाम हैं संयम का। इसे आत्म-नियंत्रित व्यवहार भी कहा जा सकता है। अनुशासन पूर्णत: एक प्राकृतिक गुण है। अनुशासन के सूत्र हैं – परिश्रम और ईमानदारी ।  पूरे राष्ट्र स्तर पर अनुशासन का सूत्र है एकता।  

अनुशासन शब्द ‘अनु’ उपसर्ग और ‘शासन’ मूल शब्द के मेल से बना है। अनु का अर्थ होता है पश्चात् या साथ और शासन का अर्थ नियमन या व्यवस्था। इस तरह अनुशासन शब्द का अर्थ है नियमन व्यवस्था का अनुसरण करना। नियमित जीवन जीने का प्रयत्न करना। इस धरती पर जब भी हम किसी भी चीज़ को गहराई से देखना शुरू करते हैं, वह हमें इसी मूल्यवान नियमन व्यवस्था का अनुसरण करती दिखाई देता है।

हम जरा प्रकृति के नियमों का अवलोकन करें तो पायेंगे कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु परम पिता परमेश्वर की आज्ञा का पालन करती है। पृथ्वी बिना थके, बिना रुके अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है। सूरज के चारों तरफ घूमती है जिससे दिन – रात होते है। मौसम में परिवर्तन होता है और गर्मी, सर्दी, बरसात के मौसम आते हैं। आकाश में ग्रह-नक्षत्र भी समय के साथ अपनी – अपनी दिशा बदलते हैं। पर्वत भी अचल – अटल रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। सागर की लहरें भी निरन्तर बनते एवं मिटते रहती हैं। इस प्रकार संसार की सभी वस्तुएँ परमात्मा की आज्ञा का पालन करते हैं जिससे संसार का हर प्राणी सुख पाता है।

जरा सोचें ! यदि प्रकृति ने अपना नियम तोड़ दिया तो क्या होगा ? सर्वत्र विनाश ही विनाश। इसी प्रकार मानव जीवन में शांति, सुरक्षा व सुव्यवस्था को बनाये रखने के लिए अनुशासन जरूरी है। यदि अनुशासन नहीं होगा तो लोग अपने – अपने मन से कार्य करने लग जाएँगे जिससे अराजकता फैलेगी। समाज में लूटपाट चोरी – डकैती, मारपीट, लड़ाई – झगड़े, दंगा – फसाद होने लगेंगे। समाज की सारी व्यवस्था चौपट हो जाएँगी तथा सम्पूर्ण मानव समाज ही आपस में लड़ – झगड़कर नष्ट हो जाएगा। अनुशासन टूटने पर सामाजिक जीवन की नींव ही खंडित हो जाएगी। अत: अनुशासन हर एक व्यक्ति की पहली और प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। सभी को यह समझना चाहिए कि सामूहिक अथवा सामाजिक जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु अनुशासन अनिवार्य ही नहीं मानना चाहिए बल्कि अनुशासन को संस्कार से भी ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन हम केवल तभी संस्कारवान रह सकते है जब हम सब स्वयं अनुशासित, विवेकजन्य व स्वप्रेरित हो।

यह संस्कार सामाजिक जीवन में ही पैदा किया जा सकता है और सामाजिक जीवन का आधार भी है। अत: यह कथन ठीक ही है कि अनुशासन समाज का भूत, वर्तमान और भविष्य भी है। अनुशासन का संस्कार सोचने – समझने, विचार और अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वाधीनता के वातावरण में विकसित होता है। भेड़ –चाल और अन्धानुकरण से इसका कोई वास्ता नहीं होता। यह एक सहज मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो हमारे व्यवहार का नियमन करती है। अनुशासन की आवश्यकता हर स्थान पर और हर क्षेत्र में है।

गांधीजी ने भी अनुशासन को एक बड़ा कार्य कहा है। उनका मानना था कि अनुशासन एक ऐसा क्रम है एक ऐसी नियमित प्रक्रिया है जो कार्य अथवा जीवन की अभिव्यक्ति में सुन्दरता उत्पन्न करती है। Discipline ही है जो व्यक्ति को व्यवस्थित जीवन व्यतीत करना सिखाता है और उसके सुख का साधन बनता है।

जीवन में अनुशासन का महत्व (Importance of Discipline in Hindi)

Discipline Essay in Hindi
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अनुशासन से अभिप्राय है नियमों का पालन करना; अर्थात जो अपने निजी जीवन, सामाजिक जीवन और राष्ट्रीय जीवन यानि सब में जितना अधिक अनुशासित होगा, वह उतना ही अधिक उन्नतिशील एवं धन-धान्य से परिपूर्ण होगा। जिसके निजी व सामाजिक जीवन में अनुशासन का अभाव होगा, उसे बार–बार विषम स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। वह प्राय: अपने लक्ष्यों को पूरा कर पाने में असमर्थ रहेगा और समाज में भी प्रतिष्ठा नहीं मिल पायेगी।

और बात जब राष्ट्रीय जीवन की हो, तो अनुशासन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अनुशासनहीन व्यक्ति अपने समाज की उन्नति में कोई योगदान नहीं कर सकता। वह समाज की प्रगति में बाधा और समाज के लिए बोझ भी बन सकता है। अनुशासनहीन नागरिकों वाला राष्ट्र एक अनियंत्रित भीड़ जैसा होता है, जो कब कैसा आचरण करेगा कोई नहीं बता सकता। मगर जिस राष्ट्र के नागरिकों में अनुशासन होता है वे बड़े से बड़े संकट को भी स्वाभिमान के साथ झेल लेते है।

व्यक्ति ही समाज और राष्ट्र की ईकाई है। अत: जैसे व्यक्ति होंगे, वैसा ही उनका समाज और राष्ट्र होगा।किसी राष्ट्र या समाज के चरित्र का अध्ययन उसके नागरिकों को देखकर किया जा सकता है। घर या बाहर हर व्यक्ति का आचरण उसके संस्कारों को उजागर करता है। सड़क, पाठशाला, बाज़ार या कार्यालय में हमें ( हमारे व्यवहार – आचरण) देखकर हमारे संस्कारों का अंकन किया जा सकता है। सुसंस्कार ही अनुशासन का स्रोत बीज होते है।

विश्व के इतिहास  में किसी भी अनुशासनहीन समाज या राष्ट्र को न प्रतिष्ठा मिली और न महान सफलता । अनुशासन सफलता की कुंजी है । यह चरित्र का आभूषण और राष्ट्र का गौरव है ।

अनुशासन का दूसरा नाम ‘मर्यादित आचरण’ हो सकता है। मर्यादित आचरण के अभाव में मनुष्य पतन की ओर अग्रसर होगा। कोई व्यक्ति कितना ही शिक्षित, बलशाली और सत्ता संपन्न हो, किन्तु उसके उत्कर्ष का मार्ग उसके मर्यादित आचरण द्वारा ही प्रशस्त होता है। अनुशासन की मर्यादा व्यक्ति को प्रगति, समाज को संबर्धन और राष्ट्र को गौरव की और उन्मुख करती है।

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विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व

जिस काल में विद्यार्थी मनोयोग से विद्या अध्ययन करता है उस काल को ही ‘विद्यार्थी जीवन’ कहते हैं। भारतीय मनीषियों ने, मानव जीवन के सभी कालों में विद्यार्थी जीवन को सबसे महत्वपूर्ण काल माना है तथा इसकी पालना पर जोर दिया है। उनके अनुसार जीवन के प्रथम 25 वर्षों तक अनुशासन का पालन करने से विद्यार्थी में तेज (Iinelligence) उत्पन्न होता है जिससे उसका अन्तर्मन प्रकाशित होता है। वह विभिन्न शीलगुणों को सीखता है, विद्यार्जन करता है। शस्त्र-शास्त्रों का ज्ञान सीखता है जिससे उनका भविष्य सुन्दर एवं सुखद बनता है। 

दूसरे शब्दों में विद्यार्थी जीवन में अनुशासन छात्रों के भविष्य निर्माण का सबसे प्रभावी एवं सशक्त माध्यम है। अनुशासित छात्र सभी कार्यों को सही समय पर सही तरीके से पूरा करते हैं। अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के अनुशासन का पालन करते हैं। समय की पाबंदी, कठोर परिश्रम, संयमित जीवन, कर्तव्य पालन ये सभी गुण उसमें प्रमुखता से पाये जाते हैं। वे उचित-अनुचित, झूठ-सच, भला-बुरा आदि के बारे में भेद करना अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जो छात्र जीवन में अनुशासन को दर्शाता है। अनुशासित विद्यार्थी-जीवन अनुभूतियों की अनवरत प्रवाह है।

आज का अनुशासित विद्यार्थी ही देश और सामाज के उत्थान हेतु भविष्य की पूँजी है अर्थात् विद्यार्थी ही देश का भावी कर्णधार है। विद्यार्थी जीवन सबसे महत्वपूर्ण काल है, इस काल में उसके चरित्र का निर्माण होता है और उसकी बुद्धि विकसित की जाती है। चूंकि विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होना बहुत आवश्यक है और उत्तम एवं निर्मल चरित्र ‘अनुशासन’ से ही बनता है।

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भारत का भावी स्वरूप, भारत की भावी प्रगति तथा भारतीय समाज के सुख – दुःख, वर्तमान विद्यार्थी – समाज की दिशा व दशा पर ही अवलम्बित है। इस दृष्टि से विद्यार्थी जीवन का विशेष महत्व है। 

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन की आवश्यकता

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन की कितनी अधिक आवश्यकता है, इसे शब्दों में बाँध पाना संभव नहीं है। हम जितना ही अधिक इसे शब्दों में बाँधने का प्रयास करते हैं, उतना ही अधिक शब्द फिसलते जाते हैं। इतना ही कहना काफी होगा कि अनुशासन विद्यार्थी जीवन का प्राण है, आत्मा है। यदि शरीर से प्राण निकल जाए तो शरीर का कोई महत्व नहीं रहता। यह एक लाश की तरह होता है जो दो – चार दिनों में ही सड़ – गलकर नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार अनुशासन के माध्यम से ही नैतिक चरित्र विद्यार्थी का निर्माण होता है।

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विद्यार्थी-छात्र में अनुशासनहीनता की समस्या और समाधान

आज के परिवेश में विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की शिकायत सामान्य सी बात हो गयी है। इससे शिक्षा जगत ही नहीं, अपितु सारा समाज प्रभावित हुआ है। वस्तुतः विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता एक दिन में पैदा नहीं हुई है। इसके अनेक कारण है, जिन्हें मुख्यतः चार वर्गों में बाटा जा सकता है –

1- पारिवारिक कारण।

2- विकृत सामाजिक कारण । 

3- दूषित राजनीतिक कारण

4- गिरता हुआ शैक्षणिक वातावरण

छात्र अनुशासनहीनता के उपर्युक्त कारण में मौजूद विकृतियों को दूर करके ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। विश्व में विद्या सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु है, जिस पर मनुष्य के भावी जीवन की सम्पूर्ण उन्नति निर्भर करती है। विद्या ही मनुष्य का श्रेष्ठ स्वरूप है। विद्या भली-भाँती छिपा वह धन है जिसे दूसरा कोई चुरा नहीं सकता।

विद्यार्थी जीवन में मनुष्य जो कुछ सिखता है, वह आजीवन उसके काम आता है और इसी से उसे सही दिशा का बोध होता है। यह सत्य है कि हर महापुरुष की महानता का मुख्य आधार उसका विद्यार्थी-जीवन ही रहा है।

एक छात्र से समाज को दुगुनी अपेकाक्षाएं होती है । वे देश के भावी नायक होते है। इन्हें न केवल अपना बल्कि अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र का भी गौरव बढ़ाना होता है। इसलिए हर माता – पिता और अध्यापक को तार्किक रूप से अनुशासन के उद्देश्य, फायदे और जरुरत आदि के बारे में छात्रों से बात करनी चाहिए। अनुशासन छात्र अपने माता-पिता, परिवार के सदस्यों एवं शिक्षकों से ही सीखता है। उन्हें जरुर बताना चाहिए कि अनुशासन को संस्कार की तरह ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

अनुशासन एक संस्कार के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। जिस प्रकार संस्कार के लिए अभ्यास और बोध आवश्यक होता है , उसी प्रकार अनुशासन के लिए भी अभ्यास और बोध की आवश्यकता होती है। ऐसी व्यवस्था करके हम विद्यार्थियों में व्याप्त अनुशासनहीनता की समस्या का स्थायी समाधान दूंढ़ सकते हैं। साथ ही शिक्षकों का भी हमें पूरा सम्मान करना चाहिये । उनका सम्मान करके ही कोई भी विद्यार्थी चरित्रवान शिक्षक का स्थान प्राप्त कर सकता है।

विद्यार्थी को गंभीर होना चाहिए । उन्हें आवश्यक रूप से यह समझना चाहिए कि विद्यार्थी विद्यालय में पूर्णतया विद्या अर्जन और अनुशासित रहने के लिए आते हैं।  मात्र अपने स्वार्थों और इच्छाओं के वशीभूत होकर तथा शिष्टाचार की अनदेखी करते हुए चलते जाना विवेकशील प्राणियों का लक्षण नहीं होना है।  

इस प्रकार कह सकते है कि अनुशासन समाज द्वारा मान्य वह सद्गुण है जिसकी सफल और अच्छा जीवन जीने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता पड़ती है। कुछ मानवीय चरित्रों और सामाजिक मर्यादायों के पालन के बाद यह जीवन जिया जा सकता हैं। 

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