बसंत पंचमी (वसंत पंचमी) पर निबंध (Basant Panchami Essay in Hindi)

वसंत पंचमी भारत के प्रमुख त्योहार में से एक है। यह पर्व हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। सामान्यत: इसे “ऋषि पंचमी”, “बसंत पंचमी” या “सरस्वती पूजा” भी कहते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि, वसंत पंचमी की तिथि होती हैं जो अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक जनवरी या फरवरी में कोई भी एक तिथि हो सकती है। आमतौर पर वसतं पंचमी फरवरी में मनाई जाती है। इस साल वसंत पंचमी या सरस्वती पूजा 05 फरवरी को है।
पुराणों के अनुसार, वसंत विद्या की देवी माँ सरस्वती का इस दिन अवतरण हुआ था, जो ज्ञान, बुद्धि और कला की देवी हैं। अत: अत: इस दिन को शिक्षा का आरम्भ करने के लिए सबसे उत्तम दिन कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था।
ब्रम्ह वैवर्त पुराण के आधार पर वसंत पंचमी की यह कथा प्रचलित है कि श्रीकृष्ण ने सरस्वती पर प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जायेगी । इसी वरदान स्वरुप उनकी आराधना होती है ।
इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का भी विधान है । वहीं एक अन्य मान्यता के आधार पर प्राचीन भारत में वसन्त उत्सव काम-पूजा का उत्सव था, अत: इस दिन बसंत के सहचर रतिपति मदन और पतिव्रता रति की भी पूजा की जाती है ।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बसन्त ऋतु का पर्व धार्मिक मान्यताओं से भी संबंधित है। बारह महीने प्रकृति के रूप बदलते हैं । लेकिन इन महीनों में बसन्त अकेला ऐसा महिना है जब किसान सबसे ज्यादा खुश रहते हैं और इसलिए इस दिन कृषक वर्ग नए अन्न में घी व गुड़ मिलाकर अग्नि और देव पितरों को अर्पित करता है और फिर स्वयं ग्रहण करता है । इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के किसान इस दिन से राग गाना आरम्भ कर देते है ।
पंजाब प्रान्त के लोगो का यह दिन पतंगबाजी में बीतता है । ब्रजभूमि पर तो यह पर्व देखने योग्य है । वहाँ पर ‘राधा – माधव’ का विधिवत पूजन किया जाता है । संगीत – गोष्ठी द्वारा उनके गुण गान किये जाते है ।
भारत में मान्य ऋतु – चक्र इस दिन से ही आरम्भ होता है। इस दिन से प्रकृति के सौंदर्य में निखार दिखने लगता है । इस दिन से प्रकृति अपना साज-श्रृंगार शुरू करती है, जिससे वन – वाटिकाएं एक प्रकार के रूप लावण्य से भर उठती है । गुलाब और मालती पुष्पों पर पूरा यौवन छा जाता है ।
भवरों की गुंजार और कोकिल की सुमधुर ध्वनी ‘कुहू , कुहू’ सुनाई देने लग जाती है। रंग – बिरंगी तितलियों पीली – पीली सरसों के फूलों पर मंडराती है। जौ और गेहूँओं में बालियाँ आने लगती है। आमों में बौर का प्रथम दर्शन इसमें ही होता है। वसंत पंचमी से प्रकृति अपने इस अद्वितीय सौन्दर्य के साथ नृत्य कर उठती है। प्रकृति का ये सुन्दर विकसित रूप बरबस ही आखों को लुभाने लग जाता है। इस प्रकार ऋतुराज वसंत पंचमी का ये पर्व सौंदर्य और आनन्द का प्रतीक भी कहा जाता है।
यह पर्व अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विशिष्टता के कारण भारत व आसपास के क्षेत्रों के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। वसंत से होली तक के चालीस दिन सारे उत्तर भारत में वासंती छटा नजर आती है। इन चालीस दिनों व इनके बाद के पंद्रह दिनों में विद्या, कला, उल्लास, भाव-संवेदना के उपार्जन की साधना के लिए बहुत उत्तम माना जाता हैं।
वसंत पंचमी के अवसर पर कई प्रकार के उत्सव समारोह भी मनाये जाते है। विशेषकर युवतियां पीले और धानी वस्त्र ओढ़कर जब दिखती है तो मानों लगता है कि स्वयं वसंत ने ही कई – कई साकार स्वरुप धारण कर लिए हो । सौंदर्य और यौवन जैसे चारो और साकार हो उठा हो । इस दिवस पर बाल, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध का हृदय उल्लास से भर उठता है ।
हर वर्ग के लिए यह महत्वपूर्ण पर्व है । इसलिए इसे सामाजिक पर्व कहना अत्युक्ति नहीं होगी । यह मानवमात्र से आनन्दातिरेक का प्रतीक है । इस शुभ दिवस पर उसका हृदय उल्लास से ओतप्रोत रहता है । इसलिए इस मंगलमय पर्व को मनाना सब का धर्म हो जाता है ।
सरस्वती पूजा (बसंत पंचमी )पर कविता
Saraswati Puja Status In Hindi
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