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मन के हारे हार है मन के जीते जीत (Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay in Hindi)

मन के हारे हार, मन के जीते जीत (Hindi Essay on Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet)

Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Hindi Anuched : मन की गति प्रकाश की गति से भी अधिक तीब्र होती है । कहने का अभिप्राय यह है कि मन एक विषय से दूसरे विषय पर बहुत जल्दी बदल जाता है। लेकिन यह कोई समस्या नहीं है क्योंकि अस्थिरता तो मन का स्वभाव है जिसे आप रोक नहीं सकते । लेकिन आप अपने मन की करतूतों पर नजर जरुर रखें क्योंकि यही आप आपके कर्मो का रूप धरते है । 

मन ही वह सबसे बलवान तत्व है जिसे शरीर के सब अंगों हाथ पैर, नाक – कान आदि तथा जड़ चेतन सभी इन्द्रियों का राजा और प्रशासक स्वीकार किया गया है हम या हमारी इन्द्रियाँ जो कुछ भी करती – कहती है, उन्हें करने – कहने का इरादा या विचार पहले मन ही में बनता है उसके बाद, उसकी प्रेरणा से अन्य इन्द्रियां इच्छित कार्य की ओर सक्रिय हुआ करती है अच्छा – बुरा जो कुछ भी होता है या किया जाता है वह सब मन की इच्छा और प्रेरणा से हो पाता है

Man Ke Hare Har Hai
Man Ke Hare Har Hai

मन को जितना बलवान अथवा ताकतवर समझा जाता है उतना ही इसे चंचल, जागरूक और चेतन अंग भी माना जाता है तभी तो जब मन में शक्ति, उत्साह और उमंग होता है तो शरीर भी तेजी से कार्य करता है तथा जब मन हतोत्साहित होता है तो दुर्बलता का कारण बनता है

‘मन के हांरे हार है, मन के जीते जीत’ यह युक्ति मन के संदर्भ में ही किसी विचारवान  व्यक्ति ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर कहा है यह सौ आने सच है व्यक्ति तब तक नहीं हारता जब तक कि उसका मन किसी काम से हार नहीं मान लेता हो सकता है की एक – दो या चार बार कोई काम करते हुए व्यक्ति को असफल भी होना पड़ जाए पर यदि वह अपना यह विचार बनाए रखकर कि “हार नहीं मानना है” और निरंतर प्रयत्न करता रहता है कि मुझे अवश्य सफलता या जीत हासिल करना ही करना है तो कोई कारण नहीं कि उसे सफलता एवं विजय प्राप्त न हो

मानव मन में आई निराशा की भावना अकसर तन और मन दोनों को कमजोर बनाती है इसी कारण हर स्थिति में ‘मन बनाए रखने’, ‘मन को चंचल, अस्थिर, या डांवाडोल न होने देने’ की प्रेरणा दी जाती है क्योंकि मन मानव की समस्त इच्छाओं का केंद्र होता है जो वास्तविक हार और सच्ची जीत के रूप में व्यावहार में दिखाई पड़ता है

हर मनुष्य शारीरिक शक्ति की दृष्टि से लगभग बराबर होता है लेकिन उनमें मन की सबलता या मानसिक शक्ति की दृष्टि से अंतर होता है शरीर तो केवल एक यन्त्र होता है जो भौतिक तत्वों से प्रभावित होता रहता है परन्तु मन, तन को शक्ति प्रदान करता है जब तन थक जाता है तो मन उसे शक्ति प्रदान कर पुन: खड़ा कर देता है

इसलिए मनुष्य को अपनी मानसिक शक्ति बनाए रखने के लिए सदैव यह विचार करना चाहिए कि मन को दुर्बल करने वाले विचार न आने पाए क्योंकि मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है | जिस मनुष्य में जितनी इच्छाशक्ति बलवती होती है उसका मन उतना ही दृढ़ और संकल्पवान होता है |

मनुष्य जीवन ही ऐसा जीवन है जहाँ परिस्थितियाँ पल – पल बदलती रहती है ये परिस्थितियाँ सफलता – असफलता, जय – पराजय, हानि – लाभ किसी भी रूप में हो सकती है लेकिन जब ये  जीवन के मार्ग में विध्न – बाधाएँ या रूकावटे बनकर आती है तो साधारण मनुष्य का मन इन विपत्तियों को देखकर बहुत जल्दी हार स्वीकार कर लेता है जबकि प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के आधार पर उनपर विजय प्राप्त कर लेता है विषम परिस्थितियों में और उन पर मानसिक दृढ़ता के कारण विजय प्राप्त करना, उसे महान बना देती है

कहने का मतलब है कि जो भी परिस्थितियाँ मिले पर हारे नहीं इंसान मनुष्य जीवन का तो सन्देश यही है कि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का मन की दृढ़ता का होना बेहद जरुरी है गुलामी और आतंकवाद के वातावरण में भी जब क्रांतिकारी विद्रोह का विगुल बजा लेते है और मुट्ठी भर हड्डियों वाले महात्मा गांधी विश्व विजयी जिन अंग्रेजों को देश से बाहर कर लेते है तो आखिर वह कौन सा बल था ? निश्चय ही यह थी मन की सबलता यानि मन से हार न मानने की सबलता

अगर मनुष्य अपने मन को किसी भी स्थिति में मरने न दे तो वह दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर एक बार मृत्यु को भी टाल सकता है वास्तव में मन की दृढ़ता असंभव को भी संभव बना सकती है अघटित को घटा सकती है

मनस्वी व्यक्ति का तो यही गुण होता है कि वह विषम परिस्थियों में भी कभी हारता नहीं लक्ष्य तक न पहुँच पाकर भी वह मन में यह संतोष लेकर प्राण त्यागा करता है कि उसने अंत तक पहुँचने का प्रयत्न तो किया यह संतोष भी निश्चय ही एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है, जो किसी किसी को ही प्राप्त हो पाती है

आम जीवन में भी एक कहावत है – “जी है, तो जहान है |” वास्तव में यह कहावत उचित है जिसका जी या मन ही बुझ जाता है, सब प्रकार की सुख सुविधाएँ पाकर भी उसका जीवन अपने लिए भी बोझ समान हो जाया करता है इसके विपरीत जिसका मन दृढ़ रहता है, हर हाल में तरो ताजगी का अनुभव कर सकता है, वह कठोर अभावों में भी जी लेता है एक न एक दिन सफलता भी पा लेता है अत: जहान और जीवन को बनाए रखने के लिए सुखी – समृद्ध बनाने के जी को कभी भी पतला या क्षीण नहीं पड़ने देना चाहिए

मनुष्य जीवन में तो न चाहते हुए भी कठिन परिस्थितयाँ आ ही जाती है और मन भी एक बार को घबराने लगता है पर इसका कत्तई ये मतलब नहीं की हम हार मान ले बल्कि हमें ये सोच कर आगे बढ़ना चाहिए कि यह हमारी परीक्षा की घड़ी है मानव इतिहास भी तो हमें यही प्रेरणा देता है कि ‘हिम्मते मर्दा मद्दे खुदा’ अर्थात जो ब्यक्ति हिम्मत नहीं हारता, ईश्वर भी उसकी सहायता करता है मन को सबल बनाएं रखने वाला सदैव विजयी होता है

नीति – शास्त्र ने भी कहा है – “मनस्विन: सिंहमुपैति लक्ष्मी:” अर्थात दृढ़ एवं स्थिर मन वाले वीर सिंहों का ही लक्ष्मी वरण किया करती है गीता में श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि मन को कभी बुझने या मरने नहीं देना चाहिए उसकी जाग्रति ही सक्रीयता की पर्याय है

अत: सफलता या जिंदादिली के लिए मन की दृढता आवश्यक है हारा हुआ मन कभी कुछ नहीं कर पाता जीता हुआ मन ही अंत में सफल हुआ करता है इसलिए मन को हार के निकट तक भी नहीं फटकने देना चाहिए क्योंकि –

“जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,

मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते है |”

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Babita Singh
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