माँ की ममता पर चार अच्छी लघु हृदयस्पर्शी कविताएँ – 4 Short Heart Touching Poem on Mother in Hindi

माँ पर बेहतरीन कविता – Heart Touching Mother Poems in Hindi
कविता 1 – ‘मेरी माँ’
मेरी बाबा की बड़ी ‘हवेली’
कण कण में बसती मेरी माँ ….
बाहर दालान से लेकर पिछवाड़े
‘अमराईयों’ की छांह तक
चप्पे चप्पे में समायी,
चौके की ताखों पर
दिए के आलों पर
द्वार पर चिन्हित स्वास्तिक
की रेखा में हू – ब – हू
चिन्हित मेरी माँ ….
कभी पीपल में पानी डालती
कभी पीले धागे बाँधती
कभी कुंआ पूजती
कभी तुलसी चौरा पर परिक्रमा करती
कच्चे आँगन को लीपती
कभी गौ माता की
आरती उतारती कभी शमी
कभी केले के पेड़ के नीचे
दीप जलाती मेरी माँ….
छोटा बड़ा कोई आ जाए
आँचल ओढ़ कर आती
पास बिठाकर हाल पूछती
पंखा खुद से झलती
हम बच्चे उलझाए रखते
पर चौकन्नी रहती
मेरे बापूजी को तो जैसे
छाया बनकर रहती माँ….
और उस दिन जब फटा कलेजा
नाता तोड़ चले बाबूजी
बिन पानी की मछली जैसे
तड़प रही थी प्यारी माँ…
आँगन की बेला मुरझाई
घर की गैया खूब रंभाई
भैया ने जब गले लगाया
कुहंक उठी थी वह बेचारी
हम सबने मिल – जुलकर समझाया
होनी की यह रीत बताया
धीरे धीरे बात समझकर
आँसू पी गयी मेरी माँ …..
कल जब छोटे भैया ने कहा
चलो माँ तुम मेरे साथ
ऐसे फक्क हुआ तब चेहरा
कुछ भी बोल न पायी माँ …..
चुपचाप गठरी बांध रही है
छुपकर आँखे पोछ रही है
बार – बार इन दीवारों को
सगे जानकर ताक रही है
उसे मोह तुलसी चौरे से
उसे प्यार इस मौलाश्री से
नाता उसका गौ माता से
नाता पिंजरे के तोते से
नाता उसका इस घर से
आंगन के चप्पे चप्पे से,
सब कुछ छोडके जाना होगा
वह मन में कलप रही है
पर मुख से न बोल रही है,
हाय विधाता ! काहे तू
रची धरा पर ऐसी माँ …..
अनबोलती गुड़िया जैसी
चाभी की कठपुतली जैसी
जिसने जैसा जिधर नचाया
उधर नाचती बूढी माँ …..
कविता 2
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
माँ का आंचल है, पावन सा हर तार में
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
हर पल स्नेह बरसता है, माँ से सदा,
भावना उर में लिखती है, ‘श्रृंगार’ में,
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
माँ का दूध है, पावन अमर गंगाजल,
सारा जीवन समाया है उपकार में,
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
सच्चे अर्थों में पृथ्वी से भारी है, माँ,
साधना खिल रही उसके ही प्यार में,
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
भूमि भारत की है, धन्य माँ से सदा,
संस्कृति बस रही उसके साकार में,
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
माँ के ऋण से उऋण न कभी होंगे हम,
माँ सदा रहेगी उर के झंकार में,
माँ की ममता अनुपम है इस संसार में
कविता 3
जब आंख खुली तो अम्मा की, गोदी का एक सहारा था,
उसका नन्हा सा आंचल मुझको, भू मण्डल से प्यारा था,
उसके चेहरे की झलक देख, चेहरा फूलों सा खिलता था,
उसके स्तन की एक बूंद से, मुझको जीवन मिलता था,
हाथों से बालों को नोचा, पैरों से खूब प्रहार किया,
फिर भी उस माँ ने पुचकारा, हमको जी भर के प्यार किया,
मैं उसका राजा बेटा था, वो आंख का तारा कहती थी,
मैं बनू बुढ़ापे में उसका, बस एक सहारा कहती थी,
उंगली को पकड़ चलाया था, पढ़ने विद्द्यालय भेजा था,
मेरी राहों के काटे चुन, वो खुद गुलाब बन जाती थी,
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से, एक रोग प्यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी, वो प्रेमलता को दे आया,
शादी की पति से बाप बना, अपने रिश्तों में झूल गया,
अब करवाचौथ मनाता हूँ, माँ की ममता को भूल गया,
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की धाती थी,
हमको सूखा बिस्तर देकर, खुद गिले में सो जाती थी,
मेरी नीदों के लिए रातभर, उसने लोरी गायी थी,
हम भूल गये हर गलती पर, उसने डाटा और समझाया था,
बच जाऊं बुरी नजर से, काला टीका सदा लगाया था,
हम बड़े हुए तो ममता वाले, सारे बंधन तोड़ आये,
उसके सपनों का महल गिराकर, कंकर कंकर बीन लिए,
खुदगर्जी में उसके सुहाग के, आभूषण तक छीन लिए,
हम माँ को घर के बंटवारे की, अभिलाषा तक ले आए,
उसको पावन मंदिर से, गाली की भाषा तक ले आए,
माँ की ममता को देख मौत भी, आगे से हट जाती है,
गर माँ अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है,
घर को पूरा जीवन देकर, बेचारी माँ क्या पाती है,
रुखा सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है,
जो माँ जैसी देवी घर के, मंदिर में नहीं रख सकते हैं,
वो लाखों पुण्य भले कर कर लें, इंसान नहीं बन सकते हैं,
माँ जिसको भी जल दे दे, वो पौधा संदल बन जाता है,
माँ के चरणों को छूकर पानी, गंगाजल बन जाता है,
माँ के आंचल ने युगों – युगों से, भगवानों को पाला है,
माँ के चरणों में जन्नत है, गिरिजाघर और शिवाला है,
हर घर में माँ की पूजा हो, ऐसा संकल्प उठाता हूँ,
मैं दुनिया की हर माँ के, चरणों में शीश झुकाता हूँ |
कविता 4
लेती नहीं दवाई “माँ”
जोड़े पाई पाई “माँ”
दुःख थे पर्वत, राई “माँ”
हारी नहीं लड़ाई “माँ”.
इस दुनियां में सब मैले हैं,
किस दुनियां से आई “माँ”
दुनियां के सब रिश्ते ठंडे,
गरमागर्म रजाई “माँ”.
जब भी कोई रिश्ता उधड़े,
करती है तुरपाई “माँ”.
बाबू जी जब सैलरी लाये,
उसमें बरकत लाई “माँ”.
बाबूजी सख्त मगर,
माखन और मलाई “माँ”
बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीर्थ हो आई “माँ”.
नाम सभी हैं गुड से मीठे,
मां जी, मैया, माई, “माँ”
सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,
मगर नहीं कह पाई “माँ”
घर के चूल्हे मत बाँटों रे,
देती रही दुहाई “माँ”
बाबूजी बीमार पड़े जब,
साथ ही साथ बीमार पड़ी “माँ”
रोती रही लेकिन छुप छुप के,
बड़े सब्र की जाई “माँ”
लड़ते – लड़ते, सहते – सहते,
रह गई एक तिहाई “माँ”
रहे बेटी अपने ससुराल में खुश,
सब जेवर दे आई “माँ”.
बेटी की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई “माँ”
दर्द बड़ा हो या छोटा हो,
याद हमेशा आई “माँ”
घर के शगुन सभी “माँ” से,
है घर की शहनाई “माँ”
सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई “माँ”.
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