हड़ताल पर निबंध (Strike Essay in Hindi)
Essay on (Hadtal) Strike in Hindi : प्राय: जब किसी उद्द्योग या प्रतिष्ठान में काम करने वाले कर्मचारी और श्रमिक सामूहिक रूप से उद्द्योग या प्रतिष्ठान में काम बंद कर देते है, तो उसे ही हड़ताल का नाम दिया जाता है | हड़ताल से ही मिलती – जुलती स्थिति बंद और तालाबंदी की होती है | इसमें भी काम काज ठप्प और जीवन की सभी प्रकार की गतिविधियाँ एक निश्चित निर्धारित समय के लिए समाप्त कर दी जाती है |
अपने संघ बनाने और उनके माध्यम से अपनी सेवा शर्तों को उत्तम बनाने के उपाय के रूप में हड़ताल का अधिकार सभी लोकतांत्रिक देशों में कर्मचारियों व श्रमिकों को प्राप्त है | वस्तुतः हड़ताल का साधन श्रमिकों व कर्मचारियों का सर्वमान्य अधिकार और उनका मनोवैज्ञानिक बल है |
लेकिन आज के युग में हड़तालें करना और हड़तालें तोडना एक व्यवसाय बन गया है | हर छोटी – छोटी बातों को लेकर आये दिन हड़तालें होती रहती है | स्कूल में फीस बढ़ जाये तो विद्दायार्थियों की हड़ताल, शिक्षकों को अगर अपना वेतन कम लगे तो भी हड़ताल यहाँ तक की डॉक्टर, नर्स, रिक्शे वाले, बैंकों में काम करने वाले आदि के हड़ताल होते रहते है | इस प्रकार जीवन का कोई भी क्षेत्र हड़ताल शून्य नहीं रह गया | यह महामारी सर्वत्र परिव्याप्त हो चुकी है |
दरअसल हड़ताल के मुद्दे बिल्कुल व्यक्तिगत, सामूहिक, क्षेत्रीय, राज्य स्तर के या राष्ट्रीय किसी भी तरह के हो सकते है और इनके दिन प्रतिदिन बढ़ते स्वरुप देश व समाज के लिए हानिकारक होते जा रहे है |

पहले तो केवल यह मूल रूप से श्रमिक संघ के हाथों में एक महत्वपूर्ण साधन था, जो अपनी मांगों को मालिक द्वारा स्थापित करने के लिए करता था। इसका दायरा भी केवल कल कारखानों या मिलों में काम करने वाले मजदूर तक ही सिमित था और वह भी उचित एवं जायज मांगों को लेकर | पर आज तो लोग काम नहीं करते या करना नहीं चाहते पर सब प्रकार की सुविधाएँ सबसे पहले चाहते है | यदि काम करने को कहा जाता है तो स्वयं तो काम – धाम नहीं करते और सबका काम करना भी बंद करवा देते है यानि हड़ताल करवा देते है |
वास्तविकता तो ये है कि पहले जो हड़ताल सामूहिक लाभ या प्रश्न को लेकर की जाती थी वो आज व्यक्तिगत लाभ के लिए होने लगी है | आज किसी कामचोर, मुंह-जोर या सीनाजोर को भी उसकी बुराइयों से रोको तो एक बेकार एवं बोझ जैसे व्यक्ति के लिए हड़ताल का मतलब काम बंद करना है |
अब के समय में हड़तालें एक मजदूर के विशेषाधिकार नहीं हैं बल्कि किसी के पूर्वाग्रह पर किसी भी कार्य के विरोध में स्ट्राइकस एक सार्वभौमिक मोड बन गया हैं | आज हड़ताल का अर्थ, महत्त्व और प्रयोजन सभी कुछ बदल गया है तथा घटकर व्यर्थता का बोध बनकर रह गया है या यों कहना चाहिए कि उसकी सोद्देश पवित्रता तो नष्ट हो ही गयी है , उसमें वास्तविक आस्था भी नहीं रह गई | इसी कारण कोई भी समझदार व्यक्ति आज हड़ताल यानि कामबंदी को उचित एवं आवश्यक नहीं मानता | उसे महज निहित स्वार्थों की प्रेरणा ही स्वीकार करता है |
आज हड़ताल का क्षेत्र भी विस्तृत होकर असीम हो गया है | महानगरों में शयद ही कोई ऐसा दिन बीतता है जब कहीं न कहीं हडताल न चल रही हो | मिलों, कारखानों, छोटी – बड़ी फैक्ट्रियों में तो कहीं न कहीं हड़ताल का दौर चलता ही रहता है, जहाँ कही भी पांच – दस आदमी इकट्ठे काम करते है, जरा जरा – सी बात पर प्राय: हड़ताल हो जाया करती है |
एक समय ऐसा भी था जब कभी सरकारी दफ्तरों, अस्पतालों, स्कूलों, कॉलेजों या अन्य सार्वजनिक हित के प्रतिष्ठानों में हड़ताल को न केवल गैर कानूनी, अमानवीय एवं अनैतिक माना जाता था बल्कि एक प्रकार का मानवता – विरोधी कार्य भी स्वीकार किया जाता था, पर आज शायद सबसे अधिक हड़ताले ऐसे ही स्थानों पर होती है | कई बार ये हड़तालें वास्तव में सफलता भी ले आते हैं |
इस प्रकार के स्थानों में चलने वाली हड़ताल कई बार तो हफ़्तों – महीनों तक खिंच जाती है | तब सारी नैतिकताएं, मानवीय भावनाएं भुला दी जाती है | देश और मानवता गड्ढे में जाते है तो जायें, चिंता नहीं | कैसी विडंबना है यह आज के निहित स्वार्थों वाले राजनीतिज्ञ मानव की |
यह ठीक है कि इस हड़ताल या कामबंदी का प्रयोजन और उद्देश्य लाभ प्राप्त करने के लिए समान लक्ष्य वाले व्यक्तियों के समूह का एक संयुक्त गतिविधि है। सामूहिक लाभ हेतु दबाव बनाने, अपनी मांगे मनवाने का एक कारगर और अंतिम हथियार है | जनतंत्र प्रणाली में इस हथियार के प्रयोग का अधिकार भी प्राय: सभी को रहता है |
महात्मा गाँधी जैसे प्रबुद्ध नेताओं ने भी समय समय पर इस हथियार का प्रयोग और समर्थन किया था | पर क्या स्वतंत्र राष्ट्रों के नेताओं और जनता का यह कर्तव्य नहीं हो जाता कि इस प्रकार के कदम उठाने से पहले वे लोग यह सोच ले कि इससे राष्ट्र और आम आदमी के हित को कितनी हानि पहुंचेगी ? पर नहीं, कौन सोचता है यह सब नेताओं को तो मुट्ठी भर लोगों को चुल्लू भर लाभ दिलवाकर अपनी नेतागीरी की दुकान चमकानी होती है | अत: चंद लोगों के हितों कई रक्षा या मांगे मनवाने के नाम पर आम लोगों और राष्ट्र के हितों को सूली पर चढ़ा दिया जाता है |

आज जो हड़ताले होती है अक्सर उनके मूल में ऐसी मानसिकता ही काम कर रही होती है | इस प्रवृति को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता | नव – निर्माण की राह पर चल रहे राष्ट्र के लिए यह बहुत घातक बात है |
यह सब कह या लिखकर हम यह नहीं चाहते कि जनतंत्र में मनुष्यों को इस अधिकार से ही वंचित कर दिया जाए | हमारा अभिप्राय केवल यह स्पष्ट करना है कि हड़ताल जैसे कदम उठाने से पहले सौ बार, सौ तरीके से सोचना चाहिए | यदि हड़ताल से देश के बहुसंख्यक लोगो का, राष्ट्र का कोई बड़ा हित सिद्ध होता है तो अवश्य इस प्रवृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए | पर ऐसा प्राय: होता नहीं | अक्सर वैयक्तिक या कुछ व्यक्तियों के अहंपीड़ित दुर्भाव की रक्षा के लिए ही यहाँ हड़ताले हुआ करती है | आम जन और राष्ट्र – हित में इस प्रकार की दूषित प्रवृतियों पर अंकुश आवश्यक है | अन्यथा निहित स्वार्थी राज नेता आम लोगों को तो उल्लू बनाते ही रहेंगे, देश – जाति का भी बड़ा अहित करेंगे |
अत: हड़ताल के औचित्य पर उंगली न उठाते हुए यह सोचना वांछनीय होगा कि जहाँ तक हो सके विवादों को अन्य उपायों से हल करने की पूरी कोशिश की जानी चाहिए | यदि हड़ताल के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता न रह जाए तो हड़ताल न्यूनतम अवधि की और पूर्णत: अहिंसक होनी चाहिए | इसी में सबका कल्याण है |
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