भ्रष्टाचार मुक्त भारत पर निबंध

सामान्य शब्दों में भ्रष्टाचार का अर्थ है मानव का अपने आचार – विचार से भ्रष्ट या पतित हो जाना। यह एक जाना माना तथ्य है कि भ्रष्टाचार सत्तासीन लोगों को ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों तक को नैतिक रूप से पतित करने वाला एक खतरान तन्तु है। वस्तुतः यह सत्तासीन लोगों एवं सरकारी कर्मचरियों की कार्यकुशलता को बुरी तरह से क्षीण बना देता है।
(भारत में भ्रष्टाचार के रूप)
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं जहाँ के लोग अपनी कार्यनिष्ठा, और लगन, मेहनत के लिए जाने जाते हैं। लेकिन यहाँ के एक सरकारी कार्यालय का दृश्य देखें तो आम आदमी का शायद सरकार के कार्य प्रणाली से ही विश्वास उठ जाएगा। इन कार्यालयों में फाइल पर वजन (रिश्वत) रखें बगैर कोई काम हो ही नहीं सकता है। रिश्वत भ्रष्टाचार का ही एक रूप है।
भारत में भ्रष्टाचार न सिर्फ बड़े पैमाने पर व्याप्त है, बल्कि वह सुव्यवस्थित, प्रणालीबद्ध नियोजित एवं स्वैच्छिक बनकर रिश्वतखोरों एवं रिश्वत देने वाले दोनों ही पक्षों को फायदा पहुँचाने वाली व्यवस्था का रूप ग्रहण कर चुका है। आज भारत में भ्रष्टाचार के जितने रूप व्याप्त है दुनिया के शायद ही किसी अन्य देशों में मिलता हो।
कदम – कदम पर रिश्वत, भाई – भतीजावाद, मिलावट, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, कमीशनखोरी, दायित्व पालन में विमुखता, सरकारी साधनों का दुरुपयोग, विदेशी मुद्रा हेरा – फेरी, रक्षा सौदा में कमीशन, आयकर चोरी, ठेके आदि देने में जान – पहचान, सरकार बनाने और सरकार बचाने के लिए संसद – सदस्यों और विधान – सभा सदस्यों की खरीद – फरोस्त आदि सभी भ्रष्टाचार के ही रूप है।इसके परिणामस्वरुप ही प्रगति और विकास का लाभ सामान्य और आम जन तक नहीं पहुँच पा रहा है।
ये तो भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण मात्र है। इनके अलावा भी भ्रष्टाचार के अनगिनत स्वरुप है। अनेक प्रकार के पाप, दुराचार और अन्याय – अत्याचार लगातार बढ़ रहे है । कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है । राजनीति, प्रशासन, धर्म, समाज आदि कोई भी तो क्षेत्र इस भ्रष्टाचार के प्रभाव से अछूता नहीं । इसका प्रमाण तब मिलता है जब एक ही ऑफिस में लगभग समान स्तर पर और साथ – साथ बैठकर काम करने वाला भी एक – दूसरे का काम बिना मुट्ठी गर्म किये नहीं करना चाहता ।
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(भारत में भ्रष्टाचार के कारण)
भारत में भ्रष्टाचार के अनेक कारण है; समाज में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी बहुतों की प्राथमिक सुविधाएँ भी पूरी नहीं करती; फिर तो यह विवश हो जाते है अपवित्रता के मार्ग से करने के लिए।
दूसरा है अधिक धन बनाने की लालसा, लोगों में लालच का भूत इस कदर सवार होता है कि वह अपने नैतिक मूल्यों की चिंता किए बगैर अपने जान की बलि चढ़ाकर पैसे कमाना चाहता है।
तीसरा है लोगों से समाज में प्रतिष्ठा पाने की मानसिकता। इसके लिए एक दूसरे का गला घोटकर वह अपने स्वार्थ को पूरा करना चाहता है।
हालांकि भ्रष्टाचार के रोज नये स्वरुप बनते भी रहते है और अधिक से अधिक लाभ पाने की इच्छा और प्रक्रिया में पता नहीं आज भ्रष्टाचार के कितने रूप इजाद कर लिए गए है । परिणाम हमारे सामने है। जब मानवों की तृष्णा उपलब्ध साधनों से शांत नहीं होती तो उसकी पूर्ति के लिए ही भ्रष्ट तरीके अपनाते है। साधारण शब्दों में कहें तो भौतिक सुख – सुविधाओं को बिना परिश्रम के सरलता से प्राप्त कर लेने की दौड़ ही भ्रष्टाचार का मूल कारण है।
इस प्रकार देखें तो आज समूची नैतिकता, व्यवस्था ही भ्रष्ट होकर रह गयी है। दूध का धुला खोजने पर भी नहीं मिलता है और जो मिलता भी है उसे विनष्ट करने की तमाम चेष्टा की जाती है। ऐसे में आखिर भ्रष्टाचार मुक्त भारत कैसे बनेगा ?
इस प्रश्न का एक ही उत्तर है कि वे ढेरों कानून-तंत्र जो भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए बनाएं गए हैं उनको निर्दयतापूर्वक देश में लागू करना होगा। कठोर से कठोर कदम उठाने के साथ – साथ सामाजिक व मनोवैज्ञानिक उपाय भी करने होंगे। इसके लिए भारत में भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु समय – समय पर विभिन्न संस्थाओं, कमेटियों एवं आयोगों का गठन किया जाता रहा है जिनमें से प्रमुख है –
भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए बनें भ्रष्टाचार उन्मूलन क़ानून
- विभागीय नियंत्रण
- क़ानूनी प्रावधान
- लेखा परिक्षण
- 1964 के पूर्व व्यवस्था
- केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरों (C. B. I.)
- केन्द्रीय सतर्कता आयोग (C. V. C.)
- मंत्रालय में सतर्कता आयोग
- राज्यों में सतर्कता आयोग
- लोकायुक / लोकपाल
लेकिन ये भी एक कटु सत्य है कि कानून बनाकर और कठोर दंड देखकर भय तो उत्पन्न किया जा सकता है पर भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता । इसलिए दृढ़ संकल्प और नैतिक सक्रियता भ्रष्टाचार की समस्या से छुटकारा पाने के कारगर उपायों में एक सबसे अच्छा उपाय है । अगर लोग राष्ट्र और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करें । अपने अंदर नैतिकता को जगाये । जियो और जीने दो के सिद्धांत को अपनायें तो भ्रष्टाचार की समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है ।
इसके अलावा हर धर्म, समाज और राजनीति के अगुआ स्वयं नैतिक बनकर कठोरता से नैतिकता के अनुशासन को लागू करें । जो सर्वविदित और घोषित अपराधी हैं, उनके साथ किसी भी प्रकार की रू-रियायत न बरते ।
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आज जन्म लेने वाली नयी पीढ़ी के सामने जब हम नैतिक मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करना शुरू कर देंगे, जब भ्रष्ट हो चुकी पीढ़ी को बलपूर्वक दबा दिया जायेगा, तब कही जाकर इस स्थितिहीनता और भ्रष्टता का रोकथाम हो सकेगा।
नव – निर्माण और विकास के दौर से गुजर रहे मानवों के लिए ये एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है जो की सारा संसार भ्रष्टाचार रूपी दानव के पंजे में बुरी तरह फंसा है। भारत तो भ्रष्टाचार की दलदल में इतनी बुरी तरह निमग्न हो चूका है कि समझ में नहीं आता पहले यहाँ दलदल था या भ्रष्टाचार ? भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश तभी होगा जब लोग अपने मन पर संयम, इच्छाओं पर नियंत्रण, भौतिक उपलब्धियों की दौड़ से पीछा छुड़ाकर सहज स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना आरम्भ करेंगे । ये सभी उपाएँ मिलकर यक़ीनन भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने में मदद करेंगी ।
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Thanks for sharing us the nice article on corruption.
Corruption is a major issue in India and have written well about causes and mitigation of corruption.Very good article.
भ्रस्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या है उस पर इतना सुन्दर निबंध शेयर करने के लिए शुक्रिया