बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध/भाषण/लेख/अनुच्क्षेद

Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi – बेटियों की सुरक्षा, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की दृष्टि से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान सरकार द्वारा चलाया गया एक अत्यंत सराहनीय योजना है । इस सृष्टि का सन्तुलन बनाये रखने और राष्ट्रनिर्माण के लिए भी यह अहम है। इससे भी अनिवार्य है बेटीयों का जीवित रहना अन्यथा ये सभी चीजें बेबुनियाद ही रह रहेगी ।
इस युग की एक भयावह और बेहद गम्भीर समस्या जिसका सामना सिर्फ बेटियां ही कर रहीं हैं उनमें प्रमुख रूप से कन्या भ्रूण हत्या है। ये भारत में चर्चा का विषय जरुर बनी हुई है। सरकार द्वारा भी इसे कानून बनाकर रोकने का प्रयास किया जा रहा है पर प्रत्येक बेटी को सरकार द्वारा बचाया जाना सम्भव नहीं है। समाज को जाग्रत करके ही तथा जनजागरण अभियान चलाकर और बेटी बचाओ बेटी पढाओ जैसे अच्छे कार्यक्रमों का आयोजन करके ही कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है।
बेटियों की सुरक्षा और शिक्षित करना उतना ही जरुरी है जितना बेटों की सुरक्षा और शिक्षित करना । जब बेटियों को भी बराबरी का हक मिलता है तभी समाज व देश तरक्की करता है। जब तक बेटी सुरक्षित और शिक्षित नहीं होगी तब तक देश और समाज की हालत नहीं बदल सकती । और इसलिए हमारे देश की सरकार की मुख्य प्राथमिकता कन्या भ्रूण हत्या रोकना व शिक्षित करने में है ।
इसी लक्ष्य के लिए सरकार ने एक अभियान की शुरुआत की जिसका नाम है “बेटी बचाओं बेटी पढाओं अभियान ।” क्योंकि भारतीय समाज में दोयम दर्जे की मानसिकता के कारण आज भी बेटियों को उतना महत्व नहीं दिया जाता है । महानगरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में तो बहू – बेटियों की सामाजिक स्थिति और भी खराब है । यहाँ दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बाल – विवाह जैसी कुप्रथाएँ इन्हें कसकर जकड़े हुए है, वह भी तब जब हम इक्कसवी सदी में कदम रख चूके है । जब महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में अपने पैरों पर खड़ा हो रही है ।
भारत में महिलाओं की स्थिति हमेशा से ऐसी नहीं थी । सभ्यता के इतिहास को टटोल कर देखे तो एक वक्त ऐसा भी था जब स्त्रियों को पुरुषो से अधिक सम्मान दिया गया था परन्तु परिवर्तनीय मानव सभ्यता के विकास व आधुनिकरण के युग में महिलाओं पर अत्याचार, शोषण व् हिंसा जैसी घटनाए निरंतर बढती गई । लेकिन वर्तमान में समाज द्वारा देश की महिलाओं अथवा बेटियों को दूसरा दर्जा देने वाली इस मानसिकता को बदलने के लिए, महिलाओं के प्रति समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त इन विसंगतियों, अंतर्विरोधो, परम्पराओं एवं कुप्रथाओं को त्यागने और इनकी की स्थिति में सुधार करने की दिशा में कई सामाजिक संरचना अपनी भूमिका निभा रही है इनमें से ही यह एक नयी बेटी बचाओं – बेटी पढाओं कार्यक्रम भी है, जो कि देश की बेटियों के गिरते जीवन स्तर और उनकी शिक्षा में सुधार करने के लिए चलाई गई योजना है ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत (Save Girl Scheme ‘Beti Bachao Beti Padhao’ In Hindi)
किसी भी समाज में महिलाओं का सशक्तिकरण वास्तव में तभी हो सकता है जब वह खुद शिक्षित हो । अत: महिला सशक्तिकरण हेतु बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने, बालिका विकास व संरक्षण की ओर जन – जन का ध्यान आकर्षित करने व जागरूकता लाने के उद्देश्य से इस विशेष योजना “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को सिर्फ हमारे देश की बेटियों के लिए प्रस्तुत किया ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की आवश्यकता एवं उद्देश्य – Beti Bachao Beti Padhao (Save Girl Scheme) In Hindi
–> देश में निरंतर घटते लिंगानुपात की प्रवृति पर अंकुश लगाना तथा कन्या भ्रूण हत्या को सख्ती से रोकने का प्रयास करना ।
–> बालिका जन्म को प्रोत्साहित व संरक्षण प्रदान करना ।
–> बालिका साक्षरता के स्तर को बढ़ाना व प्रोत्साहित करना ।
–> लिंग भेद की पूर्वाग्रसित मनोवृत्ति पर अंकुश लगाकर समाज में लड़का लड़की का भेद खत्म करना ।
–> बालिका पोषण व स्वास्थ्य के स्तर में सुधार लाना ।
–> बालिका को आगे बढ़ने का पूर्ण अवसर व संरक्षित माहौल प्रदान करना ।
–> देश की आधी आबादी को उनके मूलभूत अधिकार दिलाना है ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की कार्य योजना व रणनिति
वर्तमान में भारत की कुल आबादी का लगभग आधा भाग 48.5% महिलाओं का है, परन्तु यहाँ ना केवल महिलाओं की संख्या निरंतर घट रही है बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण व रोजगार के क्षेत्र में भी स्थिति पुरुषों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है । जबकी जन्म से लेकर मृत्यु तक इनके साथ हिंसा की घटनाएँ बहुत आम बात है जिस पर यहां विचार करना अभी बाकी है । पर देश की बेटियों की रक्षा और उन्नति के लिए बेटी बचाओं बेटी पढाओं की यह योजना हर तरह से उनके मूलभूत अधिकारों को दिलाने की आवश्यकता को महसूस कर कुछ इस प्रकार से बनाई की गई है कि जो सोचते है कि बेटियां बेटों से कम होती है और जिस कारण बेटियों को या तो जन्म से पूर्व या पश्चात् मार दिया जाता है या सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध उन पर लगाए जाते है उन सब में सुधार लाया जा सके तथा लोगों की बेटियों के प्रति मानसिकता बदली सा सके ।
अत: बेटी बचाओं बेटी पढाओं का यह नारा देश भर में दिया गया ताकि बेटियों के जीवन स्तर में सुधार आ सके और जिसके लिए हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के दिशा निर्देशन में बेटियों को बचाने और उन्हें पढ़ाने के संकल्प को साकार रूप देते हुए हरियाणा के पानीपत से 22 जनवरी 2015 को इस योजना की शुरुआत की गई ।
प्रारंभ में बेटी बचाओं – बेटी पढाओं योजना देश के उन चुनिन्दा राज्यों (हरियाणा, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र) के 100 जिलों में लागू की गई जिनमे बालिका लिंगानुपात की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है । इनमे हरियाणा बेहद संवेदनशील राज्य है । राज्य के 12 जिलों में 0 – 6 आयु वर्ष की बालिका लिंगानुपात में तेजी से गिरावट आई है । यह अनुपात प्रति 1000 लड़कों पर 800 से भी कम है । झज्जर व महेन्द्रगढ़ जिलों में लिंगानुपात गिरकर क्रमशः 782 तथा 775 तक पहुँच गया है ।
देश की 15 वीं जनगणना में जब यह तथ्य प्रकट हुआ कि मध्य प्रदेश, राजस्थान , उड़ीसा, उतराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों में भी बालिका लिंगानुपात के स्तर में गिरावट आ रही है तब केंद्र सरकार के द्वारा इस सामाजिक समस्या को गंभीरता से लेते हुए इस विशेष बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत कर एक सकारात्मक व प्रभावी पहल की । इसमें यह पक्ष भी रखा गया कि राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर इस योजना के निष्पादन में सहयोग करेंगी ताकि जनसहभागिता एवं जन जागरुकता को बढ़ावा दिया जा सके क्योंकि जब जन जन जागरूक होगा तभी भविष्य में असमान लिंगानुपात की स्थिति में निश्चित तौर पर सुधार आएगा ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की सार्थकता
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना एक प्रभावी प्रयास है उस अभियान के जो बढ़ते लिंगानुपात को रोकने एवं बेटियों को पढ़ाने तथा उन्हें आगे बढाने की इस सोच को सार्थकता प्रदान करता है । यह योजना लड़का लड़की का भेद मिटाने एवं लड़कियों के पीटीआई समाज की दकियानूसी सोच में बदलाव लाने में सहायक सिद्ध होगी । बेटियों को परिवार पर बोझ समझकर जन्म से पूर्व ही मार दिया जाता था । इस योजना को लागू करके सरकार समाज द्वारा महिलाओं को दूसरा दर्जा देने, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, घरेलू हिंसा , देह व्यापार, दहेज प्रताड़ना, व हत्या जैसे अमानवीय अपराधों को रोकने में कामयाब होगी ।
बेटियों को लेकर समाज में फैली रूढ़ीवादी धारणाओं जैसे माता पिता के अंतिम संस्कार का हक़ केवल पुत्रों को ही है, बेटियां पराया धन है, बेटे ही वंश चलाते आदि इन्ही भ्रांतियों के चलते हजारों लड़कियों को जन्म से पूर्व ही मार दिया जाता है या लावारिस छोड़ दिया जाता है या कम उम्र में शादी कर समय से पूर्व जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया जाता है । बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से इन मानसिकता पर असर पड़ेगा और लोगों की सोच बदलेगी ।
महिला अत्याचारों की रोकथाम के लिए बने अधिनियमों पर सख्ती से पालन व् इसकी समुचित मानिटरिंग का माहौल बनाने में भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना सरकार द्वारा किया गया सफल प्रयास माना जाता है क्योंकि समाज व् परिवार के अस्तित्व को बचाने के लिए घटते लिंगानुपात को सख्ती से रोकना अत्यंत आवश्यक है । यह कार्य केवल सरकारी प्रयासों से ही संभव नही है, बल्कि जन सहयोग ही इस अभियान को सफल बना सकता है ।
सामाजिक अन्धविश्वासों व कुरीतियों को रोकने में सहायक
शिक्षा के मामले में लड़कियों के साथ भेदभाव , बालिका वध, बालिका विवाह, दहेज़ प्रथा, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, डायन प्रथा व बलात्कार जैसी समस्यायें चिंताजनक है या यों कहें कि विकास के इस युग में अभी भी अशिक्षा अन्धविश्वासों, सामाजिक कुरीतियों की खाई को पार करना बाकी है । कहने का मतलब है कि देश की आधी आबादी ( महिलाएं ) शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य, व्यापार और तकनीक आदि क्षेत्रों में तभी आगे बढ़ सकेंगी जब समाज द्वारा उनकी भूमिका को अहमियत दी जाएगी ।
देश में जन्म पूर्व लिंग परीक्षण विनियम व प्रतिषेध अधिनियम को बने लगभग 20 से भी अधिक वर्ष हो गए है लेकिन फिर भी बालिकाओं को गर्भ में ही मार दिया जाता है । अत: जब बेटी शिक्षित होगी तो उनमे चेतना, स्वालंबन और आत्मनिर्भरता आएगी क्योंकि शिक्षित बेटियाँ ही समाज में फैले अन्धविश्वासों और कुरीतियों में बदलाव की क्रांति ला सकती है ।
आर्थिक स्वालंबन का आधार
देश की आर्थिक प्रगति व विकास का यदि वास्तविक मूल्याकंन करना है तो महिला शिक्षा का स्तर उन्नत करना होगा । महिलाएं आर्थिक रूप से सदा पुरुषों पर ही निर्भर रहती आई है । इस मानसिकता को बदलने के लिए बालिका शिक्षा पर जोर देना आवश्यक है ।
समाज में बालिका के शिक्षा, विवाह खर्च व परिवार पर बोझ जैसी संकुचित विचारधारा में बदलाव लाना होगा । इससे देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढेगी तभी आर्थिक विकास सशक्तिकरण होगा । महिलाओं को शोषण जैसी समस्याओं से निजात मिलेगी । बेहतर जीवन यापन , पारिवारिक बजट , वित्तीय नियोजन व सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान दे पाएंगी ।
बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन व महिला साक्षरता का प्रसार

पूर्व में ज्यादातर बालिकाओं की कम उम्र में विवाह करके उन पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ डाल जाता था और उन्हें अपने बारे में सोचने अधिकार भी नहीं था । वे आर्थिक संसाधनों व जागरूकता के अभाव एवं पिछड़ी मानसिकता की वजह से चाह करके भी अपनी पढाई आगे जरी नही रख पाती थी । घर के कामकाजों, छोटे भाई बहनों की देखभाल आदि जिम्मेदारियों का बोझ उनपर ही लाद दिया जाता था । शादी के बाद अधिकांश लड़कियां अपनी पढाई बीच में ही बंद कर देती थी ।
आज नारी की स्थिति में थोड़ा बदलाव नजर आता है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है । आज भी देश में महिलाओं की साक्षरता दर 40% है । इसका कारण पर्दा प्रथा, लड़कियों के लिए अलग स्कूल ना होना, महिला अध्यापकों की कमी, धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का विरोध, बाल विवाह और समाज का विरोधी और दकियानूसी रवैया काफी हद तक जिम्मेदार है ।
बेटी बचाओं बेटी पढाओं योजना से यह आशा की जा रही है कि इसके द्वारा देश के ग्रामीण क्षेत्र आदिवासी व् पिछड़े क्षेत्र में भी बालिका शिक्षा का प्रसार होगा क्योकि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय जैसे आधारभूत संसाधन, scholarship, महिला स्वास्थ्य, पोषण व रोजगार के स्तर में वृद्धि – एक स्वस्थ माँ ही स्वस्थ संतान को जन्म देती है और स्वस्थ बच्चा ही देश और समाज का उज्ज्वल भविष्य बना सकता है आदि जैसी प्रोत्साहन दे रही है ।
परन्तु देश में बालिका का पोषण, स्वास्थ्य व रोजगार का स्तर लड़कों की तुला में अत्यंत पिछड़ा हुआ है । देश की 50% महिलाएं कुपोषित है । उनमे आयरन की कमी आम बात है । महिलाएं अपने पोषण एवं स्वास्थ्य को परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में कम महत्त्व देती है ।
इसलिए सरकार लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है । इसके लिए महिला छात्रावास का निर्माण, नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा 2009 के तहत नि:शुल्क शिक्षा, स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार सब बेटी बचाओं बेटी बढाओं अभियान के अंतर्गत कर रही है ।
महिलाओं के प्रति अपराध में कमी
बेटी बचाओं बेटी पढाओं योजना का उद्देश्य बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित कर महिला सशक्तिकरण को सार्थक बनाकर उसके साथ होने वाले भेदभाव को कम करना, समाज में नई पहचान देना भी है क्योंकि भारत में महिलाओं की स्थिति थाईलैंड, फिलीपींस आदि देशों की तुलना में भी अधिक शोचनीय है। महिलाओं के प्रति अपराध में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है । इन्हें रोकने के लिए बालिकाओं को सशक्त, जागरूक व् आधुनिक परिवेश के अनुरूप बनाना अति आवश्यक है ।
लैंगिक विभेदता के स्तर में कमी
वैश्विक स्तर पर लैंगिक भेदभाव सूचकांक में भारत की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है । देश में महिलाओं के निरंतर गिरते जनसंख्या प्रतिशत के कारण भविष्य में लड़के एकांकी जीवन जीने को मजबूर हो जाएगे और महिला अपराधों का प्रतिशत भी बढेगा । अन्य सामाजिक समस्याएं भी इसके फलस्वरूप उत्पन्न हो जाएगी ।
UNO की रिपोर्ट के अनुसार इसी स्थिति के चलते सन 2030 तक देश में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की संख्या 30 गुना अधिक हो जाएगी । इस योजना के द्वारा बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करके उन्हें अन्याय से लड़ने की क्षमता प्रदान करने, बाल विवाह के अवसरों में कमी लाने, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर का प्रतिशत कम करने, दहेज हिंसा, घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या, कुपोषण को रोकने का मुकाबला करने में सक्षमता प्रदान करेगी ।
महिलाओं को क़ानूनी हक़ दिलाने में सफलता
महिलाएं जब शिक्षित होगी, तभी वह सशक्त सामर्थ्यवान बनेगी । अपने अधिकारों एवं हक़ के लिए लड़ेगी । उनके साथ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए केवल कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि जागरूकता व चेतना भी आवश्यक है ताकि उनके साथ होने वाली हिंसा व शोषण को रोका जा सके ।
कोई भी कानून चाहे घरेलू हिंसा अधिनियम हो या कामकाजी महिलाओं के लिए उत्पीड़न कानून जब तक वह स्वयं शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम नहीं होगी । नियम, कानून बनाने के बावजूद भी महिला उत्पीड़न की घटनाएँ निरंतर बढ़ती रहेगी । बालिकाओं का घटना लिंगानुपात, जन्म से पूर्व मर देना, शिक्षा सम्बन्धी भेदभाव, पोषण व स्वास्थ्य का गिरता स्तर यह दर्शाता है कि लड़कियों को अभी भी समानता, न्याय व स्वयं के मामलों में निर्णय लेने जैसी आजादी नहीं है । केवल कानून बनाकर इस भेदभाव को नहीं मिटाया जा सकता । सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाने के दिशा में ऐसी योजनाएँ ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ।
निष्कर्ष
केंद्र व राज्य सरकारें बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ योजना को सफल बनाने के लिए अनेक प्रयास कर रही है । इनमें जिलेवार ब्राण्ड एम्बेसडर का चयन, रथ यात्रा, बालिका समृद्धि योजना, राजलक्ष्मी योजना, मीडिया समाचार पत्र पत्रिकाओं, रोल मॉडल, संगोष्ठी, नुक्कड़ नाटक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग आदि है । इनके माध्यम से निश्चित तौर पर पुरुष प्रधान समाज में लड़के – लड़कियों में भेद की मानसिकता में बदलाव आएगा । बालिका के पक्ष में स्वस्थ व सकारात्मक माहौल विकसित करने व उन्हें शक्तिसम्पन्न बनाने में मदद मिलेगी ।
बेटी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी अधिकार एवं सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध होनी चाहिए । लिंग समानता के बिना नारी सशक्तिकरण की कल्पना करना अधूरा है । अत: कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने होगे । समाज को बेटी के जन्म पर ख़ुशी मनाना, पैतृक संपत्ति में से उन्हें उचित हिस्सा मिलना, बाल विवाह पर रोक लगाना, माता – पिता के दाह संस्कार का हक़ बेटियों को भी प्रदान करना, रोजगारोन्मुखी शिक्षा व प्रशिक्षण देकर आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना व वित्तीय समावेशन में महिला भागीदारी को सुनिश्चित करना आवश्यक है ।
यदि केंद्र और राज्य सरकारें पूर्ण तत्परता से इस दिशा में प्रयास करेंगी तो धीरे धीरे सामाजिक व्यवस्था में निश्चित तौर पर परिवर्तन आएगा औत यह योजना बेटी बचाओ और महिला सशक्तिकरण की दिशा में जन आन्दोलन का प्रभावी माध्यम बनेगी ।
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Bahut achha post….aap PDF file bhi create kriye jisse durvrti chhetra jha network ki suvidha nhi h vha k bchhe isse labhanvit ho ske. Thank u..
बेटी पढ़ाओ व बेटी बचाओ पर सुन्दर लेख ,पढ़कर अच्छा लगा ,बेटीओ से सम्बन्धि योजनाओं के बारे मे बहुत कुछ जानने व सिखने को मिला ,इस बहुपयोगी लेख प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद,