दशहरा पर हिंदी निबंध
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विजयदशमी/दशहरा पर निबंध – Vijayadashami Essay In Hindi

दशहरा : Vijayadashami Essay in Hindi 

Dussehra Essay In Hindi -100,150, 200, 250 300 & 500
Dussehra Essay In Hindi

Vijayadashami Essay In Hindi – भारतवर्ष की संस्कृति में त्योहार माला में मोतियों की भाॅंति पिरोए हुए हैं। उन्हें उससे पृथक नहीं किया जा सकता। प्रत्येक उत्सव अपना-अपना धार्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक महत्व रखता है। आश्चर्य की बात है त्योहार भी जाति के आधार पर बॅंट गये हैं। और विजयदशमी क्षत्रियों के हिस्से में आई, परंतु हिंदू संस्कृति में ऐसा कोई उत्सव नहीं जिससे समस्त जातियॉं समान रूप से न मनाती हों । अन्य त्योहारों की भाॅंति विजयदशमी हिंदुओं का परम पवित्र पर्व है। देवासुर संग्राम में देवताओं की विजय का शंखनाद करती हुई, विजयदशमी वर्षा ऋतु के अंत में प्रतिवर्ष हमारे यहॉं आती है। भारतीय जनता अनुराग और उल्लास भरे हृदय से इसका स्वागत करती है। युग-युग से यह त्यौहार हिंदू जनता में नवीन आशा, नया उत्साह और नव जागृति का संचार करता हुआ पूण्य एवं धर्म की विजय उद्घोषणा करता है। विजयदशमी राम के अलौकिक पुरुषार्थ की स्मृति के रूप में आती है।

यह त्यौहार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि के दिन भारतवर्ष के समस्त अंचलों में समान रूप से मनाया जाता है। कहीं दुर्गा जी की पूजा होती है, तो कहीं राम जी की। वर्षा ऋतु के अंत में और शरद के आरंभ में यह उत्सव अपना विशेष आकर्षण रखता है। क्षत्रिय इस पर्व पर शस्त्रों की पूजा करते हैं। कहीं-कहीं घोड़ों की भी पूजा होती है। प्राचीन काल में राजपूत इसी शुभ अवसर पर अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने का निश्चय करते थे। आज भी, सभी वर्गों के लोग इस राष्ट्रीय पर्व को बड़ी रुचि से मनाते हैं। आज भी, गाॅंवों में इसी दिन बड़े-बड़े दंगल होते हैं, जिनमें मल्लविद्या एवं शास्त्रों का प्रदर्शन होता है।

शरद ऋतु में जब यह उत्सव मनाया जाता है, प्रकृति की शोभा अनुपम होती है। निरभ्र आकाश अत्यंत स्वच्छ एवं निर्मल होता है। पृथ्वी पर हरी-हरी घास मखमल के समान बिछी रहती है। वर्षा ऋतु में उन्मुक्त वेग से उफनकर चलती हुई सरिता अब धीर मंथर गति से कल कल करती हुई बहने लगती है। नदियों का नीर निर्मल हो जाता है। गोस्वामी जी के शब्दों में-

‘सरिता सर निर्मल जल सोहा।
संत हृदय जस गत मद-मोहा।।’

सरोवर सुंदर सरोजों से अपने हृदय को भर लेते हैं और उन पर भ्रमरों का मधुर गुंजन हठात् अपनी ओर दृष्टि आकर्षित कर लेता है। प्रकृति के इसी हास-विलास के बीच विजयदशमी का पदार्पण होता है और हम प्रसन्नता से फ़ूले में नहीं समाते। हमारे स्कूल और कॉलेज बंद हो जाते हैं। नगरों और गांवों में रामलीला होने लगती है, जनता उसका आनंद लेती है।

विजयदशमी के साथ अनेक धार्मिक कथायें संबंधित हैं। रामानुज संप्रदाय के अनुसार, इस पवित्र तिथि को राम ने रावण का संहार किया था। इसी लक्ष्य से भारतवर्ष के नगर-नगर तथा गांव-गांव में दशहरे के एक सप्ताह पूर्व से रामलीला का आयोजन किया जाता है। तुलसीकृत रामायण के आधार पर इन लीलाओं में रामचंद्र जी के जीवन से संबंधित समस्त घटनाएं दिखाई जाती हैं। विजयदशमी के दिन रावण और कुंभकर्ण के शरीर का पुतला बनाकर जलाया जाता है। इस प्रकार, हम लोग विजयदशमी के पूण्य पर्व को रामचंद्र जी की स्मृति के रूप में तथा दानवी शक्ति की पराजय के रूप में मनाते हैं।

शाक्तों (शक्ति की पूजा करने वालों) के अनुसार इस उत्सव से एक और पौराणिक कथा संबंधित है। जब महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से जनता में कोहराम मच गया, देवता भी कंपित हो उठे, तो उन्होंने मिलकर महा शक्ति की उपासना की। भक्तों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर महाशक्ति श्री दुर्गा जी प्रकट हुई। उन्होंने अपने अनंत पराक्रम से महिषासुर तथा शुंभ और निशुंभ, आदि भयंकर राक्षसों का वध करके भग्रस्त जनता की रक्षा की। उसी देवी-शक्ति की विजय-स्मृति के रूप में हम इस त्योहार को मनाते हैं। आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि में दशहरा प्रारंभ होता है। उसी दिन से दुर्गा पाठ होने लगते हैं। दुर्गा जी के भक्त इस उत्सव को नवरात्र भी कहते हैं। नवरात्र में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक दुर्गा जी की पूजा होती है और दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है। बहुत से भक्त नौ दिन तक व्रत रखते हैं। केवल एक लौंग का जोड़ा खाकर ही अपना फलाहार करते हैं। नवें दिन यज्ञ होता है। रात्रि में जागरण होता है और घर-घर में देवी जी के गीत गाये जाते हैं।

इस उत्सव पर किन्हीं-किन्हीं स्थानों में शमी वृक्ष की पूजा भी होती हैं। इस पूजा से संबंधित एक पौराणिक कथा है। महाराजा दिलीप के पुत्र रघु ने एक बार विश्वजीत यज्ञ किया। उस यज्ञ में उन्होंने समस्त धन विद्वानों, ब्राह्मणों, आचार्यों तथा अतिथियों को दान में दे दिया। तभी महर्षि वरतंतु के आश्रम में विद्याध्ययन समाप्त करके उनका कौत्स नाम का शिष्य रघु के पास आया और गुरु दक्षिणा में देने के लिए चौदह करोड स्वर्ण मुद्राएं मांगी। रघु के पास उस समय कुछ नहीं था, बड़ी चिंता में पड़ गए। फिर विचार किया कि धनधिपति कुबेर पर आक्रमण करना चाहिए; वहीं से इतना द्रव्य प्राप्त हो सकता है। आक्रमण के भय से भयभीत कुबेर ने रात्रि में ही आकाश से एक शमी वृक्ष के ऊपर असंख्य स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की, रघु ने भी प्रसन्न होकर समस्त स्वर्ण मुद्रायें गुरुदक्षिणा के लियें कौत्स दे दीं। इसी घटना की स्मृति में विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष की विधिवत पूजा होती है।

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि प्रदेशों की तरह बंगाल में भी विजयदशमी का विशेष महत्व है। वे इसे दुर्गा पूजा के नाम से संबोधित करते हैं। उनका विश्वास है कि राम जब युद्ध में रावण को परास्त करने में अपनी असमर्थता का अनुभव करने लगे तब उन्होंने महामाया दुर्गा जी की पूजा की। महामाया के चरणों में चढ़ाने के लिए हनुमान को 101 नीलकमल लेने के लिये भेजा। उन्हें सौ कमल तो मिल गये, परंतु एक नहीं मिल पाया। हनुमान थक कर लौट आये। और अपना वृत्तांत राम को सुनाया। उन्होंने कहा, “यदि एक नीलकमल ना मिला तो क्या चिंता, मुझे भी तो सारा संसार नील कमल के समान नेत्रों वाला कहता है, मैं ही उन 100 कमलों में अपना एक नेत्र मिलाकर 101 करके भगवती महामाया के चरणों में चढ़ा दूंगा।” इतना कहकर नेत्र निकालने ही वाले थे कि महामाया ने राम को साक्षात दर्शन दिये और कहा, “पुत्र मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूं और मैं तुझे वरदान देती हूं कि रावण के साथ युद्ध में तेरी विजय होगी और आज ही होगी।” फल यह हुआ कि राम की विजय हुई। इसी की स्मृति में आज भी वहां दुर्गा जी की पूजा होती है।

यह त्यौहार हमारी और हमारे देश की सांस्कृतिक एकता का आधार है और अनेकता में एकता, विषमता में समता तथा पाप पर पुण्य की विजय का संदेश देता हुआ प्राणी-प्राणी में नव चेतना जागृत करता है। यह उत्सव हमें शिक्षा देता है कि अन्याय, अत्याचार और दुराचार को सहन करना भी एक महान पाप है, उनके अमूलोच्छेदन के लिए समाज में संगठन और एकता आवश्यक है, जिसके उदाहरण श्रीराम हैं। पाप के विनाश के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए। वीर भावनाओं से ओत-प्रोत विजयदशमी हमें राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता की प्रेरणा देती है, आतायियों को समाप्त करने का संकेत करती है, हमारे हृदय की वीर भावनाएं आज के दिन पुनः अनुप्राणित हो उठती हैं।

अब हम स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक हैं। हमें अपनी पुरातन दूषित परंपरायें समाप्त कर देनी चाहियें। देवी मां तो श्रद्धा और आनंद भक्ति से प्रसन्न होती हैं, विजयदशमी हमें पवित्र संदेश देती है कि जीवन में राम के चरित्रों और आदर्शों का अनुकरण करो न की रावण का, तभी जीवन सुखी और शांत रह सकता है। हमें इन राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक महान पर्वों को अधिकाधिक प्रसन्नता और उल्लास से मनाना चाहिए। पारस्परिक ईर्ष्या को भूलकर एक दूसरे को गले से लगाना चाहिए, समाज में सहानुभूति और संवेदना का प्रचार करना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि अपने इन शुभ पर्वों से शिक्षा ग्रहण करें और उत्सवों का आयोजन करके गौरव की वृद्धि करें।

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Babita Singh
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14 thoughts on “विजयदशमी/दशहरा पर निबंध – Vijayadashami Essay In Hindi

  1. दशहरा के ऊपर बहुत ही बढ़िया article लिखा है आपने। Share करने के लिए धन्यवाद। 🙂

  2. बबिता जी , दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है | इस विषय पर आपकी ये पोस्ट बहुत सुंदर जानकारी युक्त है |

  3. सनातन धर्म और दशहरा का रिश्ता इतना पुराना है कि एक को अलग करने से दुसरे का महत्व ही नहीं रहता| बुराई पर अच्छाई की जीत का यह त्यौहार हमारे मनो – भाव में इस कदर बस गया है कि इस त्यौहार के शुरू होते ही रामायण का वो युद्ध जो हजारों साल पहले हुआ था, हमारी कल्पनाओ में फिर जी उठता है| बहुत ही सुन्दर लेख लिखा आपने बबीता जी….धन्यवाद..

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