गणेश चतुर्थी / विनायक चतुर्थी का महत्व, व्रत कथा एवं पूजा विधि (Ganesh chaturthi vrat pooja vidhi in hindi

गणेश चतुर्थी भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहार में से एक है। आमतौर पर यह त्यौहार दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो आध्यात्मिक रूप से बाधाओं का नाश करते हैं, अमंगल दूर करके सब मंगलमय करते हैं, सुख शांति समृद्धि जिनकी सबसे बड़ी विशेषता है। शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेश पुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था।
इसे “विनायक चतुर्थी” या “ढेला चतुर्थी” भी कहते है। इसी शुभ दिन में गणेश जी का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि को गणेश उत्सव के रूप में पूरे देश में उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में यह उत्सव राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी का महत्व
महाफलदायी इस व्रत में विघ्नहर्ता की सभी मनपसंद वस्तुएं अर्पित की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी की तिथि श्रीगणेश भगवान की उत्त्पत्ति होने के कारण यह तिथि इन्हें अत्यंत प्रिय है। अगर आज के दिन इन्हें शुद्ध घी में बने मोदक का प्रसाद चढ़ाया जाएं तो इन्हें अत्यधिक प्रसन्नता होती है। कही कही पर आज के दिन दही से भरे हुए कलश तथा फल हाथ में लेकर गाय के खुर के निशान में गाय के दूध में चन्द्रमा की परछाई का दर्शन करना शुभ माना जाता है।
इस दिन को इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाया जाता है जिसमें से पांच गणेश मूर्ति पर चढ़ाते है, पांच ब्राह्मण को देते है और शेष बचे लड्डू को प्रसाद के तौर पर परिवार के सभी सदस्यों को देते है। अगर कोई साधक पवित्रभाव से गणेश चतुर्थी का व्रत करता है तो उसकी बुद्धि एवं चित्तवृत्ति शुद्ध होती है। गणेश चतुर्थी के व्रत में गणेश मंत्र के जप से प्रभाव बहुगुणित हो जाता है।
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि (Ganesh chaturthi pooja vidhi in Hindi)
- अपने सामथ्र्य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें (शास्त्रों में मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की स्थापना को ही श्रेष्ठ माना है)।
- संकल्प मंत्र के बाद षोडशोपचार पूजन व आरती करें।
- गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं।
- मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
- 21 लड्डुओं का भोग लगाएं।
- इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण को दे दें। शेष लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन ग्रहण करें।
पूजन के समय यह मंत्र बोलें
ऊं गं गणपतये नम:
दूर्वा दल चढ़ाने का मंत्र… गणेशजी को 21 दूर्वा दल चढ़ाई जाती है।
- ऊं गणाधिपतयै नम:
- ऊं उमापुत्राय नम:
- ऊं विघ्ननाशनाय नम:
- ऊं विनायकाय नम:
- ऊं ईशपुत्राय नम:
- ऊं सर्वसिद्धप्रदाय नम:
- ऊं एकदन्ताय नम:
- ऊं इभवक्त्राय नम:
- ऊं मूषकवाहनाय नम:
- ऊं कुमारगुरवे नम:
इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।
गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा (Ganesh chaturthi vrat katha in hindi)
एक बार भाद्रपद मास शुक्ला चतुर्थी को शिवजी स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावतीपुरी गए। पीछे से अभ्यंग स्नान करते हुए पार्वती ने अपनी देह के मल से एक पुतला बनाया और जल में डालकर उसमें प्राण डाल दिए। तत्पश्चात उसे आदेश दिया कि तुम मुद्गर लेकर द्वार पर बैठ जाओ और किसी भी पुरुष को अन्दर न आने दो। इस पुतले ने वैसा ही किया ।
जब भोगावतीपुरी से स्नान करके शिवजी वापस लौटे और पार्वती जी के पास भीतर जाने लगे तब उस पुतले ने उन्हें रोक दिया। इससे शिव जी क्रोध में भर गए और उन्होंने तत्काल उसका सर धड़ से अलग कर दिया तथा अन्दर चले गए।
पति का तमतमाता हुआ चेहरा देखकर पार्वती ने समझा कि भोजन में विलम्ब हो जाने के कारण ही इन्हें क्रोध चढ़ आया है । इसलिए उन्होंने तत्काल आहार तैयार करके दो थालों में परोस दिया। उन्हें देखकर शिवजी ने पूछा दूसरी थाली किसके लिए है |
पार्वती ने गणेश का नाम बतलाया। इतना सुनते ही शिव जी कह उठे, “मैंने तो तुम्हारें गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया है।” इतना सुनते ही पार्वती व्याकुल हो उठी और उन्हें जीवित करने के लिए शिव जी से अनुरोध करने लगी।
शिव जी ने पार्वती को प्रसन्न करने के लिए हाथी के नवजात शिशु का सिर काटकर गणेश के धड़ से लगा दिया और उसमें प्राण फूंक दिए। पार्वती गणेश को जीवित देखकर अति प्रसन्न हुई।
गणेश चतुर्थी का अध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्त्व
गणेश चतुर्थी का बड़ा अध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्त्व है। विघ्नहर्ता गणेश जी को विनायक भी कहते है। विनायक शब्द का अर्थ है – विशिष्ट नायक | जिसका नायक – नियंता विगत है अथवा विशेष रूप से ले जाने वाला। वैदिक मतानुसार सभी कार्यों के आरंभ में जिस देवता का पूजन होता है- वह विनायक है।
विनायक भगवान भुतत्त्वरूपी माने जाते हैं। ‘महोमूलाधार’ इस प्रमाण से मूलाधार भुतत्त्व है। अर्थात मूलाधार में भुतत्त्वरूपी गणेश विराजमान हैं । गणपति के ‘ग्लीं’ बीज का विचार करने पर पता चलता है – इस सृष्टि क्रम के अनुसार ‘गकार’ खबीज और ‘लकार’ भूबीज – इनके योग से पंचभूतात्मक गणेश हैं। अत: भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के पूजन के लिए प्राचीनकाल में मिट्टी से गणपति की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता था।
विनायक चतुर्थी व्रत सिंहस्थ, सूर्य, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी और हस्त नक्षत्र के योग में होता है। यह योग बुद्धवार को पड़ जाए तो इसका विशेष महत्व माना जाता है। आज के दिन गणपति की सुन्दर – सुन्दर प्रतिमाएं बनाकर उनका पूजन और व्रत किया जाता है। इस दिन अनेक विशिष्ट प्रयोग संपन्न किए जाते है एवं आज के दिन को प्रत्येक नए कार्य को आरम्भ करने और विद्या अध्ययन के आरम्भ के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
महाराष्ट्र में श्री गणेश उत्सव को महत्वपूर्ण बनाने का श्रेय लोकमान्य बालगंगाधर तिलक दिया जाता है। उन्होंने “गणपतिबप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया” की गूंज से सभी को एक सूत्र में बांध दिया। उत्सव में लोग भजन, कीर्तन एवं प्रवचन के द्वारा दिलों में एकता, भाईचारा एवं देशभक्ति की भावना जगाने लगे।
वर्षो पूर्व बालगङ्गाधर तिलक ने गणेश उत्सव की जिस महत्वपूर्ण परम्परा की धूम – धाम से शुरुआत की थी आज भी यह उत्सव उतनी ही धूम – धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। घर – घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते है। यह मूर्ति घर में कितने दिन रखी जाये, यह उस घर की परम्परा पर निर्भर करती है। कही – कही पर सार्वजनिक गणपति की भी स्थापना की जाती है।
परम्परानुसार अनंत चतुर्थी के दिन जुलूस के रूप में गणेश जी की प्रतिमा को नदी या तालाब के पानी में अगले वर्ष जल्दी आने के लिए कहकर विसर्जित करता है। इस दिन ज्योति के महासागर में पूरा देश अनेक असंख्य दीपकों और लड़ियों से जगमगाता है। लोग अपनी खुशियों का इजहार रंगों और पटाखों से भी करते है। लेकिन हमें प्रकृति का भी ख्याल रखना चाहिए।
गणेश जी स्वयं प्रकृति की शक्तियों के प्रतीक हैं, गणेश का मस्तक हाथी का है। चूहा उनका वाहन है, नंदी उनका मित्र और अभिभावक, मोर और सांप परिवार के सदस्य हैं, पर्वत आवास है, वन क्रीड़ा स्थल, आकाश तले निवास अर्थात छत नाम की कोई चीज है। उनका प्रचलित रूप गढ़ने में नदी की बड़ी भूमिका रही है। गणेश के चार हाथों में से एक हाथ में जल का प्रतीक शंख है। उनके दूसरे हाथ में सौंदर्य का प्रतीक कमल है। तीसरे हाथ में संगीत की प्रतीक वीणा है। चौथे हाथ में शक्ति का प्रतीक परशु या त्रिशूल है।
प्रकृति में हर तरफ बहुतायत से उपलब्ध हरी-भरी दूब गणेश को सर्वाधिक प्रिय है। जब तक इक्कीस दूबों की मौली उन्हें अर्पित न की जाए, उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि आम, पीपल और नीम के पत्तों वाली गणेश की मूर्ति घर के मुख्यद्वार पर लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। गणेश के मिट्टी से जुड़ाव का एक प्रमाण यह भी है कि किसी भी मंदिर, घर या दुकान में गणेश की मूर्ति रखते समय यह ध्यान देना होता है कि उनके पैर जमीन का निश्चित रूप से स्पर्श करें। यदि उनके पैर भूमि से सटे न हों, तो अनिष्ट की आशंका होती है।
अत: गणेश के प्रति सम्मान का अर्थ है कि प्रकृति में मौजूद सभी जीव-जंतुओं, जल, हवा, जंगल और पर्वत का सम्मान। उन्हें आदिदेवता, देवताओं में प्रथम पूज्य और आदिपूज्य भी कहा गया है। इसका अर्थ है कि प्रकृति पहले, बाकी तमाम शक्तियां और उपलब्धियां उसके बाद।
गणेश को भुलाने का असर प्रकृति के साथ-साथ हमारे रिश्तों पर भी पड़ा है। आज प्रकृति अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से रूबरू है और इस संकट में हम उसके साथ नहीं, उसके खिलाफ खड़े हैं। गणेश के अद्भुत स्वरूप को समझना और पाना है, तो उसके लिए असंख्य मंदिरों और मूर्तियों की स्थापना, मंत्रों और भजन-कीर्तन का कोई अर्थ नहीं। गणेश हमारे भीतर हैं। प्रकृति, पर्यावरण और जीवन को सम्मान और संरक्षण देकर ही हम अपने भीतर के गणेश को जगा सकते हैं।
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Bahut hi upyogi jankari share ki hai aapne!!
Thanks Raj and keep reading.
आपको भी गणेश चतुर्थी की ढेर सारी शुभकामनायें |
Thank you Sabiha ji.
विघ्नहर्ता गणेश जी के प्रमुख पर्व ” गणेश चतुर्थी ” की पूजा विधि , महात्म व् महत्व आदि की विस्तृत जानकारी उपलब्द्ध करने के लिए शुक्रिया |
धन्यवाद वंदना जी ।
Nice work babita Ji thanks for this article
Thanks Kumar ji.
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि और गणेश जी के जन्म से जुडी कहानी को बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया आपने. थैंक्स फॉर शेयरिंग बबीता जी…..
धन्यवाद अविनाश जी ।
सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद ज्योंति जी ।